विवेक भी खौफ जदा था ।
अब पापा बिस्तर में ही गंदगी छोड़ने लगे हैं। उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि कब लैट्रिन उतर गई ।
फिर उसे साफ करते बच्चे फिर सभी मिलकर उसे करवट लीटाने की कोशिश करते ।और साफ करते। मेडिकल से डायपर लाकर पहनाया जा रहा था।
डायपर में ही लैट्रिन हो जाता। पिसाब की तो नली लगी थी ।थैले में पेशाब जमा होता। दिन-रात 24 घंटे में चार चार बार होता।
बच्चे इसलिए परेशान नहीं थे कि बाप का टॉयलेट साफ करना पड़ रहा था। बल्कि इसलिए परेशान थे कि गोपाल की हालत में सुधार नहीं हो रहा था।
तब गोपाल अपने आप करवट भी नहीं ले पा रहा था। बिस्तर में ही छोड़ जाता। फिर वह विवेक को आवाज लगाता था। मैं भी हाल में सो रहा था ।रात को तीन बार साफ करवाना पड़ा था। मुझे भी नींद नहीं आ रही थी।
क्योंकि टॉयलेट हाल पर ही बना हुआ था। और विवेक और मैं उसे उठाकर किसी तरह कॉमेंट पर बिठाते रहें। बैठने के बाद साफ करने के बाद फिर उसे कॉमेंट से ही उठाना पड़ रहा था। फिर कपड़े ठीक करवा कर दो लोग अगल बगल पकड़कर बिस्तर में लाकर सुनाना पढ़ रहा था।
गोपाल के लेटे लेटे कमर के नीचे की चमड़ी छिल गई थी ।जो अभी तक ठीक हो के नहीं दे रहा था ।और उस हिस्से को ठीक करने के लिए या फिर लेटने की दर्द को कम करने के लिए ।स्पन्ज का एक गद्दा सा ईस तरिके से बना हुआ था- वास्तव में वह गद्दा इस तरीके से बना हुआ था कि लेटने में जो जख्म वाला हिस्सा था वह बिस्तर से ना टकराय उसमें हवा लगे।
क्योंकि लेटे लेटे रहने की वजह से जख्म वाले हिस्से को थोड़ा-थोड़ा करके दवा लगाया जाता। फिर बिस्तर के सहारे पुरे दिन चिपका रहता। उस गद्दे को इसीलिए लाया गया था।जिससे कि जख्म वाला हिस्सा, बिस्तर से ऊपर रहे और जख्म सूख जाए।
अस्पताल में मरीज को लेटे-लेटे; बैठे-बैठे; एक्सरसाइज कराने के लिए, या यूं कहें कि उनके लिम्स को मोशन देने के लिए, फिजिकल एक्सरसाइज के लिए भी एक कंपाउंडर आता। और हाथ पैर फिर फूकने वाला एक्सरसाइज कराता था। दिन में 3 बार या फिर 4 बार।
इससे मरीज के दिल में कंफ्यूजन मरीज को लगता कि उसके शरीर में मूवमेंट है ।वह अभी भी हिलडुल सकता है। मरीज को लगता उसके हाथों में ताकत सी आ रही है ।और इसी मोमेंट की वजह से थोड़ा बहुत- भूख और नींद भी आ जाती! मरीज कुछ देर के लिए आराम कर पाता!
डॉक्टर ने बता रखा था। अटेंडेंट को कि उन्हें दिन में सोने ना देना ।झबकि लेने लगे तो आवाज लगा देना। डॉक्टर ने सिर्फ रात को सोने देने के लिए कहा था। इसलिए कोशिश कर करा कर किसी तरह खड़ा करके चीयर में बिठ रहे थे ।मगर चीयर मैं अब ज्यादा देर बैठ नहीं सकता था ।कमर और सारे शरीर में दर्द उभर कर आने लगता ।फिर उसे उठाकर बिस्तर में लिटा जाता।
गोपाल दर्द के चरम अवस्था से होकर वह गुजर रहा था।
पेशाब की नली तो लगी ही थी। का लेट के लिए भी कोशिश कर रहे थे। कि वह कोमेड पर बैठ जाए।
कल मगर धीरे-धीरे यह सब होता जा रहा था। गोपाल बेचारा हो गया था। उसकी ऐसी दयनीय स्थिति सही नहीं जा रही थी। जब से एडमिट हुआ था। तब से बिस्तर बिस्तर में ही लेटा रहा था। बीच में 10:00 15 दिन थोड़ी यू लगे थे कि अब ठीक हो रहा है ।मगर आप्रेशन से पहले की स्थिति में भी वह पहुंच ना पाया था।
गोपाल की दयनीय स्थिति देखकर बच्चों की आंखें भी नम हो रही थी। फिर भी जब तक सांस है तब तक आस है। वाली बात रह गई थी।
एक-एक इंच उसके कदम मौत की ओर सरक रहा था। लेकिन सांसे मौत की ओर रवानगी का अलार्म दे रही थी।
मगर गोपाल ने मौत को अपनी ओर आते देख रहा था। उसकी पथराई सी आंखें मुझे जड़ता की ओर ले जाती ।
उसकी भाव रहित चेहरा उसके भाव रहित । सब कुछ मौत की ओर इशारा करती।
मैं पहले दिन जब मिला था -तब से ही ऐसी भावना शिकार हुआ था ।
अनहोनी सा लगा था। मगर मैं भी कुदरत से दुआ मांग रहा था ।कि इल्तजा सफल हो ।और हंसी खुशी से बच्चे और गोपाल लौट जाएं।
जब बिल्कुल रहा नहीं गया था- तब डॉक्टर सुधीर से भाभी ने प्रश्न किया था? आप कह रहे थे- कि ठीक होकर अपने पैरों में चलकर जाएगा ।मगर अब तक कोई प्रोग्रेस नहीं है। डॉक्टर जब भी बोलता- बस यही 15 दिन के अंदर खड़ा होने लगेगा ,चलने लगेगा निश्चिंत रहें।
भाभी कैसे निश्चित रह पाए? आए हुए 3 महीने होने लगे हैं। ऑपरेशन के बाद दो-चार दिन ही ठीक रहा। फिर बिस्तर पकड़ा तो उभर न पाया। अभी आप 15 दिन की बात बता रहे हैं।
डॉक्टर सुधीर बस अब ज्यादा दिन 25 वे दिन में ही, उन्हें जाने लायक जरूर बना दूंगा। इन्हें फिर से एडमिट करना होगा। हमारे सर्विलेंस में रहना होगा ।इन्हें इंफेक्शन हो गया है।
भाभी खाना भी ठीक है। मगर गले से नीचे खाना दो चम्मच से ज्यादा उतरता नहीं है। इनका पेट में पानी भरने का सिस्टम ठीक नहीं रहा है ।और पेट में दर्द उभर कर आ रहा है। रात भर करहाते रहते हैं।
डॉक्टर -हमने जानबूझकर पेन किलर और एंटीबायोटिक का ज्यादा से ज्यादा डोज कम कर दिया है। इसलिए कि नेचुरल एमेनिटी बढानी होगी। क्योंकि दवाओं के सहारे तो कितने दिन तक रखा जाएगा ।नेचुरल एमेनिटी बढ़ानी होगी।
मगर घर जाना है तो।
भाभी- रात भर करहाते रहते हैं। इनसे ज्यादा इस बात का हमें बर्दाश्त नहीं होता ।
डॉक्टर- देखिए आपका और आपके पति का ऑपरेशन हुआ ।आपका यह एयूनिटी ठीक था। आप चल फिर रहे हैं। वह पहले से ही बीमार थे। और यह एम्युनूटी इसलिए इंक्रीज नहीं हो पा रहा है।
भाभी -अभी तक मुंह के छाले ठीक नहीं हुए। अभी तक पेट का दर्द ठीक नहीं हुआ। पेट में पानी बढ़ता ही जा रहा है।
आपको इन्हें 15-20 दिन के लिए और यहां एडमिट करके रखना होगा। तब जाकर कहीं यह ठीक हो पाएंगे।
भाभी -विवेक कंपनी में मेल डालेगा ।और क्रेडिट ट्रांसफर करवाएगा तभी तो इन्हें फिर से हम एडमिट करा सकते हैं ।जानकारी के मुताबिक अभी तक 3000000 कंपनी के तरफ से अस्पताल को पे हो चुका था। कंपनी जबकि 2600000 की क्रेडिट पेमेंट पहले ही अदा कर चुकी थी। अब फिर मरीज को एडमिट करने का अर्थ था -फिर क्रेडिट मगवाना फिर से सारी चेक अप को रिवाइज करना।
क्या बात हो गई थी ।जिसकी वजह से क्योर नहीं हो रहा था। रिकवरी नहीं हो पा रही थी।
भाभी -क्या आप लोगों ने सही से डायग्नोसिस नहीं किया। क्यों इतने लाखों रुपए खर्च करने के बाद आप बता रहे हैं ।फिर से सारा चेक अप करना है ।कंपनी आपकी गलतियों का पैसा नहीं देगी। और कंपनी एडमिट के लिए भी कुछ टाइम देगी। इससे ज्यादा अस्पताल का चार्ज नहीं देगी।
डॉक्टर सुधीर -इनका शरीर कुछ अच्छा रिस्पांस नहीं कर रहा ।इस बात का हमें पता लगाना है। हफ्ते भी नहीं लगेंगे ।और 20 दिन का टाइम कंपनी के द्वारा आप ले लो ।15 दिन में आपके हस्बैंड को फिट फाट करके भेज देंगे।
अब जो आप लोगों ने ढाई 3 महीने में नहीं कर पाए। वह एक पखवाड़े में कैसे ठीक कर पाएंगे। यह तो मरीज है- उसके रिश्तेदारों को झांसा देने वाली बात है।
डॉक्टर- अगर ऑपरेशन असफल रहता तो मरीज 2 दिन भी जिंदा नहीं रह पाता! यह बड़ी उपलब्धि है कि आपके हस्बैंड का लिवर ट्रांसप्लांट यकीनन सफल रहा है। इसके अलावा भी कई दुश्वारियां है जिसे पता लगाकर इलाज करना है ।
भाभी- जो अभी तक पता नहीं है।
डॉक्टर- एक्सरे में चेस्ट में कुछ बादल से दिख रहे हैं! बस कफ़ का प्रॉब्लम है- थोड़ा पेट का भी प्रॉब्लम है ,किडनी का प्रॉब्लम तो पुराना है। सब कुछ ठीक होगा ।आप आराम से निश्चिंत होकर जाइए। वह जल्दी ही ठीक होगा यह मेरा वादा है।
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