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कसाईबाड़ा 4

17 नवम्बर 2022

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 जिंदगी का सफर।
जिंदगी खुशनुमा इबादत सी हुई थी। पांच भाइयों में तीसरे नंबर का था। भाइयों का नंबर यह नंबर उसका लकी नंबर भी रहा। मगर मैं बचपन से लेकर अभी तक की घटनाओं का जिक्र करूंगा, तो मुझे दो तीन उपन्यास लिख डालना पड़ेगा। मैं बस छोटी सी इस चैप्टर को सफर का नाम देकर आपको सफर जिंदगी का बयां करना चाहता हूं।
पांच भाई दो बहने ।और आयल इंडिया का क्वार्टर बड़ा सा क्वार्टर ।फिर बगल में एक किचन गार्डन ।पिछवाड़े में एक कार्यशाला। कार्यशाला का मतलब उस वक्त उनके पापा ड्यूटी से आकर बर्तन हांडे चाकू छोरियां और इसी तरह के सामान बनाने का काम करते। अपने बच्चों का पेट भरते ।क्योंकि ,आयल इंडिया की तनख्वाह इतनी नहीं बनती थी- कि इतने भारी भरकम परिवार को परवरिश की जाए ।इसीलिए चाचा ड्यूटी से आते ही लग जाते ।घर में कुछ बकरियां भी रख रखी थी। हंस और मुर्गियां भी पाल रखे थे ।जिनसे अंडों का काम चल जाता था ।बच्चे खाते पीते रहते। बच्चे भी कुछ ना कुछ काम में लगे रहते।
 कोई बकरियों को घास के लिए चला गया या फिर बकरी चराने के लिए ,जलाने के लकड़ी लाने जंगल चला गया ।
फिर इसी बीच बच्चे पढ़ाई भी कर लेते। खेलकूद भी कर लेते ।बच्चों का टाइम बंधा हुआ था ।खेलने का ,खाने का, स्कूल का।
 जो भी बच्चे थे -सभी पढ़ाई भी करते और घर का काम भी करते ।
 किचन गार्डन का काम फिर बकरियां-- मैं मैं करती । उनका भी घास और चारे की तैयारी करते ।बकरियों को छोड़ा जाता ,फिर उन्हें ढूंढ कर घर मिलाने का काम करते ।
इन सबके बावजूद पढ़ाई करते ,सारे बच्चे अब्बल तो नहीं थे। औसत बच्चों की तरह पढ़ाई करते ।
घर में बुलाने के उनके कुछ और नाम थे। स्कूल  मे कुछ अलग नाम से नवाजे जाते। 

3 बच्चे मुझसे बड़े थे । एक बड़ी दीदी थी। माया दीदी ।सबको प्यार करती सबको संभालने की कोशिश करती ।उस वक्त मैं ही बहुत छोटा था।कि  किसी को जज करने की मेरी भी उम्र नहीं थी ।एक दीदी को लेकर चार मुझसे बड़े थे। जिनकी  जिक्र यहां चल रहा है वह भी मुझसे बड़े थे ।मगर मेरी और इनकी अच्छी छनती थी।
मुझे अपने बारे में पता है। उस समय स्कूलों में 5 साल से छोटे बच्चों को एडमिशन नहीं की जाती थी। मैं अभी 5 साल का हुआ नथा। 5 साल होकर छठी साल लिखवाकर  पापा ने मुझे  स्कूल डाल दिया था । स्कूल जाएगा बच्चों से खेलेगा मिलेगा कुछ न कुछ तो सीखेगा ।यही सोच कर।
मैं उनसे छोटा था। मैं खेलने के लिए उनके पास घर में चला जाया करता। और अक्सर दिन का ज्यादा वक्त मैं वहीं गुजार लेता। क्योंकि , वहां मुझे बच्चे बच्चे कई नजर आते। कोई ना कोई तो मुझसे खेलता। अगर कोई खिलाड़ी ना हो तो चाची के पास ही बैठ जाता। 
या  चाचा खूब अपनी जिंदगी में घटित घटनाओं को चटखारे ले -लेकर कुछ इस तरह से कहते कि मुझे सुनने में मजा आता! उसी बीच चाची भी खाने पीने के लिए दे जाती। कोई भी मुझे अपने से अलग नहीं समझता ।मैं भूख लगे तो खा लेता था। वरना खाने पीने में कोई समस्या न थी। और खेलने में भी ज्यादा ध्यान रहता ।
 मेरी और गोपाल की अच्छी बनती थी। हम साथ जंगल जाते ।साथ दौड़ते।सुभह दौड़ने चले जाते ।खेलने के लिए चले जाते। गोपाल के घर में छत में एक डंडा लगा हुआ था। गोपाल ने उस में झूलने के लिए ।हम चले जाते।
कहने का अर्थ मेरा पता यह नहीं है कि हमारा सारा बचपन ही खेलकूद में गुजर रहा था।

पढ़ाई के साथ काम में भी लगता था।
 बकरियां लौटती नहीं तो चाचा डंडा लेकर बकरियों से ज्यादा बच्चों को ढूंढते ।और उनकी खैर खबर लेते।
जिंदगी बच्चों से लेकर बड़ों तक का संघर्ष मय था। बच्चों की पढ़ाई के साथ काम भी जरूरी था ।बच्चे तो पढ़ाई तो करते ही थे। मगर काम भी करते और बच्चों की भी आदत पड़ गई थी। काम की।
धीरे-धीरे बच्चे बड़े होते चले गए थे ।और घर का खर्चा भी बढ़ता जा रहा था ।इसी दरमियान गोपाल ने दसवीं कर ली थी। और डिग्री कॉलेज भी ज्वाइन कर लिया था ।

घर के खर्चे तथा काम करने की प्रवृत्ति ने आयल इंडिया की वैकेंसी निकली थी। और गोपाल ने आयल इंडिया और बड़े ने एसएससी के एग्जाम दिए थे ।आयल इंडिया के तो क्या एग्जाम होते थे।एग्जाम नहीं बस फोर्थ ग्रेड की भर्ती में सिर्फ बुलाकर बातचीत करते और अपॉइंटमेंट दे देते।
गोपाल की भी जॉब लग गई थी ।आयल इंडिया में।
नौकरी का आठवां महीना चल रहा था।
तब अचानक एक दुर्घटना घटित हुई । कई बच्चों को कई लड़कों को नौकरी से बर्खास्त करके घर बैठना पड़ा। यह कारस्तानी सहरा उस समय नई नई आई हुईम राजनीतिक पार्टी असम गण परिषद की वजह से थी। उन्होंने उस समय वहां काम कर रहे हैं नेपाली मूल के लोगों को और दूसरे मूल के लोगों को राज्य के लोगों को सबको यह बोलकर बिठा दिया था कि वह लोकल नहीं है विदेशी है।
और उस समय जोर पकड़ती असम गण परिषद की पकड़ को देखते हुए मैनेजमेंट ने भी यही फैसला दिया था । उसी समय असम गण परिषद की आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा था ।और आयल इंडिया की नौकरियां जो टेंपरेरी थी उनको कई को वहां के लोकल ना होने की वजह से नौकरी से बर्खास्त की गई थी।
 यह कहकर बर्खास्त की गई थी ।कि वह यहां के लोकल नहीं है ।विदेशी है ,नेपाल के मूल के हैं।
 तुम्हें यहां नौकरी करने का अधिकार नहीं है। और गोपाल को आठवें महीने के बाद नौकरी से बिठा दिया गया था।
घर की जरूरत नौकरी से कमाए पैसे से ही पुरी होती थी।
 फिर नौकरी ना रहेगी तो फिर खाने-पीने की भी समस्या खड़ी होने लगी थी। मगर गोपाल ने संघर्ष की ।
इस मसले के हल करने के लिए उसने दिल्ली हेड क्वार्टर तक चक्कर लगाया।इस बात को उसने दिल्ली हेड क्वार्टर तक पहुंचाया ।इन लोगों ने हमें विदेशी करार कर नौकरी से हटाया है ।कई महीने तक दिल्ली से क्रॉस पेंडेंट भी करता रहा ।
वह जमाना फोन और इंटरनेट का नहीं था। उस समय चिट्ठियों से ही कॉरस्पॉडेंट होता था। आज के जमाने में बस फोन करो फोन से ही बातें हो जाती है।और अंत में जाकर गोपाल और पराशर सोनार की जीत हुई। उसे फिर से बहाल करना पड़ा ।
उसकी जिंदगी के संघर्ष में घटनाओं में से एक अहम संघर्ष था ।जिसमें कानूनन उसकी जीत हुई ।
भारत सरकार की ओर से हरी झंडी मिली। भारत सरकार और आयल इंडिया के हेड क्वार्टर ने यह बताया-- कि इनका जन्म डिगबोई में हुआ है ।इसलिए पिता यही आयल में कार्यरत है ।कई सालों से यहां रह रहे हैं। तो यह विदेशी नहीं कहे जाएंगे ।यह नेपाली मूल के जरूर है ।मगर बाय बर्थ बाई रेजिडेंट से भारतीय हैं।
धुलिआजन ऑयल इंडिया का ऑफिस था। वहां पर आर्डर आया - इस शख्सियत को फिर से बाहर किया जाए ।उन्हें नौकरी में फिर से बहाल किया जाए।
और हेड क्वार्टर के आदेश के मुताबिक उसे फिर से नौकरी पर रखा गया ।
सच्चाई और ईमानदारी और संघर्ष को सफलता मिली। टेंपरेरी पोस्ट से उनसे परमानेंटली बहाल किया गया ।
यह तो थी उसके  जुझारू प्रवृत्ति और प्राथमिक संघर्ष की कहानी ।उसके बाद जिंदगी एक आसान सी जिंदगी गुजरती रही। इसी जिंदगी में कई मोड़ आए ।कई एव आए। सबसे दो -चार होते आगे बढ़ते रहें ।आगे बढ़ते रहें।

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रचनाएँ
कसाईबाड़ा
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मेरे बचपन के दोस्त पराशर जो उक्त घटना के शिकार हुए ।जो खेल डॉक्टरों ने नामी-गिरामी अस्पताल मैं उनके साथ खेला। उनके परिवार के साथ दरपेश आए ।वह मेरा दोस्त ही नहीं था। बड़ा भाई था ।जिगर का टुकड़ा था। और उस इंसान के साथ अस्पताल के डॉक्टरों ने, डॉक्टरों के देखरेख में एक गेम खेला ।ऑपरेशन और मौत का घिनौना गेम! जिसमें उनकी मौत निश्चित थी ।मगर ऑपरेशन करना इसलिए जरूरी था- कि उसके छाती में ही 4000000 अटका हुआ था ।उसे निकालने के लिए घटनाक्रम को अंजाम दिया गया ।
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16 नवम्बर 2022
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वह दिन था और आज का दिन है- शुरुआत कहां से करूं !मैं वहा-पोह में था ।मैं चाहता था हर क्रियाकलाप का एक वीडियो  चित्रण करूं। मगर फिर सोचा कि मेरे दोस्त को लगेगा कि यह मेरी जिंदगी की घटनाक्रम को एक व्यापा

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16 नवम्बर 2022
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हां !कसाईबाड़ा ही कहा जाएगा! कसाई जानवर तथा पक्षियों को मारकर उसका मांस बेचते हैं ।लोगों को खिलाते हैं ।इंसानी भूख मिटाते हैं ।यह भी कसाईबाड़ा है। जिक्र करना बा मुश्किल पड़ जाता मुझे- अगर हालात से मैं

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17 नवम्बर 2022
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एक जानलेवा खेल।पौराणिक काल में वैद्य होते थे । वी आदतन विरक्त रहते थे । उन्हें न अपनी कमाई की फिक्र होती थी ।न हीं अपने स्थिति की। वे सिर्फ इंसान की भलाई के लिए काम करते थे। इंसान की निरोगिता&nb

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17 नवम्बर 2022
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जिंदगी का सफर।जिंदगी खुशनुमा इबादत सी हुई थी। पांच भाइयों में तीसरे नंबर का था। भाइयों का नंबर यह नंबर उसका लकी नंबर भी रहा। मगर मैं बचपन से लेकर अभी तक की घटनाओं का जिक्र करूंगा, तो मुझे दो तीन

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17 नवम्बर 2022
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मैं अभी अपने काम से शाहबाद ( बादली दिल्ली )के पास था। अचानक फोन आया भतीजी -दीपांजलि का! जिसे हम सभी घर में प्यार से सानू बुलाते थे। अभी फिलहाल तो बड़ी हो गई है ।मगर हमारे लिए तो वह फिर भी

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18 नवम्बर 2022
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जिंदगी को मौत के हवाले।गुवाहाटी मेडिकल अस्पताल का डॉक्टर जो थे। उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया था ।कहा-भाई ऑपरेशन जरूरी है ।ऑपरेशन के बगैर जिंदगी बचनी नहीं है ।क्या ट्रांसप्लांट के बाद जिंदगी बच जाएगी

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18 नवम्बर 2022
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तभी दामाद जी इंटरनेट पर लिवर स्पेशलिस्ट तलाश करने लगे। तलाश करके उन्होंने बताया कि गंगाराम में एक डॉक्टर है- डॉक्टर सुधीर! जो लिवर ट्रांसप्लांट के माहीर स्पेशलिस्ट है ।फिर एक आद बार जमाई, फिर हमन

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19 नवम्बर 2022
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आप गोपाल के लिए लिवर डोनेट करेंगी?हां! भाभी ने जवाब दिया -"इसके बाद वे ठीक हो जाएंगे।"डॉक्टर से बात हो गई है?नहीं !अभी जब पानी ज्यादा भर गया तो यहां जो भी डॉक्टर मिला- उसी के हवाले हमने कर दिया।डॉक्टर

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19 नवम्बर 2022
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विवेक और भाभी और सानू सभी ने यही कहा था- कि हमें तो गंगाराम में इस खातिर भेजा गया ।कि यहां के स्पेशलिस्ट डॉक्टर है जो पापा की ऑपरेशन अर्थात ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक हो जाएंगी। और हम यहां बाबा के

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19 नवम्बर 2022
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डॉक्टरों की मीटिंग बैठी हुई थी मेडिसिन से सर्जिकल मे ले जाते वक्त डॉक्टरों की खींचातानी के बीच में दश दिन गुजर गए थे। डॉक्टर शुगर कंट्रोल के लिए इंसुलिन चढ़ाते खाना वही देते जो साधारण व्यक्ति को खिलाय

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24 नवम्बर 2022
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ऑपरेशन की रात थी वह।रात के करीब 11:00 बजे डॉक्टर सुधीर ने विवेक को फोन लगाया। विवेक, सानू और मैं ऑपरेशन थिएटर के बाहर पहुंचे। पांचवी मंजिल पर जहां लीवर संबंधित ऑपरेशन हो रहा था।गार्ड़ने हमें याद

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25 नवम्बर 2022
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ऑपरेशन के दूसरे दिन।एक नई सुबह लेकर आई थी ।ऐसा लगता था जैसे आसमान में काले बादल मडरा तो रहते हैं मगर धूप चमक सी रही थी। माहौल कुछ सुहाना सुहाना सा लग रहा था।मैं दोपहर के समय आज धर्मशाला से निकल कर भाभ

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25 नवम्बर 2022
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थूक पर थूक।आदमी थुक पे थुक ता रहे , 4 मिनट में खा कार से खाकर निकलता रह। तो स्वस्थ हो कैसे पाएगा। खाना पचाने के लिए जो इंसान की जरूरत है ।वह तो निकला जा रहा है ।हर वक्त ।आदमी खाना कैसे पचा आएगा ।

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26 नवम्बर 2022
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विवेक फ्लैट में चला गया था।मैं गोपाल के पास घर गया था। गोपाल की स्थिति अभी भी ठीक नहीं थी।हर मिनट में उसकी खकार निकलती और थुक निकलता ।मैंने पेट के बारे में पूछा बताया- हल्का सा दर्द है !अभी दर्द काम ह

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4 दिसम्बर 2022
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ऑपरेशन के बाद---!फ्लैट में लौटने के बाद, दूसरी बार फिर से अस्पताल में भर्ती किया गया था। दर्द था। पेट में, बहुत सारा दर्द था ।खाने में शायद कुछ कोताही बरती गई थी। डॉक्टर का मानना था।जबकि डॉ यह कह चुका

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4 दिसम्बर 2022
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एक बात मुझे डॉक्टर से पूछनी थी। यही बात मैं कह रहा था और भाभी भी यही सवाल कर रही थी। डॉक्टर से मुलाकात के लिए ₹2000 की पर्ची कटवानी थी ।जब 28-30 लाख खर्च किया तो फिर 2,000 की तो कोई बात नहीं थी।डॉक्टर

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4 दिसम्बर 2022
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एक सीक्रेट मीटिंग थी वह।सिर्फ गोपाल से रिलेटेड डॉक्टर थे ।उस मीटिंग पर नर्स कंपाउंडर तथा कोई भी आदर स्टाफ नहीं आ सकता था ।थोड़ी देर की मीटिंग थी ।गोपाल से संबंधित बातों को करना था। उसके हेल्थ चे

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5 दिसम्बर 2022
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गोपाल की जिद तेज हो गई थी।मुझे जाना है -घर जाना है!डॉक्टर सुधीर- मगर अभी आप ठीक हुए नहीं है ;जनाब !बस 15 दिन बाद हम आपको चलने लायक कर देंगे ,फिर आप घर चले जाना।गोपाल- घर का मतलब यहां जहां बच्चे ठहरे ह

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5 दिसम्बर 2022
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एंटीबायोटिक की मात्रा कम कर दी गई थी। शक्ति के लिए खाने से रिकवरी करने की बात कही थी । प्रोटीन डाइट ज्यादा से ज्यादा करने का न्यूट्रिशन ने चार्ट सा बना कर दिया था। चार्ट देखकर मुझे लगने लगा था इत

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5 दिसम्बर 2022
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एंटीबायोटिक की मात्रा कम कर दी गई थी। शक्ति के लिए खाने से रिकवरी करने की बात कही थी । प्रोटीन डाइट ज्यादा से ज्यादा करने का न्यूट्रिशन ने चार्ट सा बना कर दिया था। चार्ट देखकर मुझे लगने लगा था इत

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6 दिसम्बर 2022
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उस दिन मैं सुबह 11:00 बजे के करीब उनके फ्लैट में पहुंच गया था। यह सोच कर- कि आज दिनभर इनके पास रहूंगा, और रात होने से पहले निकल चलूंगा। इंसान की अपनी प्राइवेसी भी होती है। इंसान की अपनी लाइफ

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6 दिसम्बर 2022
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विवेक पापा के जीद पर उन्हें घर ले आया था। मगर तीसरे दिन के बाद वह मुश्किल हुआ जा रहा था ।अचानक पेट का दर्द बढ़ गया था। पेट का दर्द क्यों बड़ा? क्या वजह थी, कि पेट में दर्द बढ़ने लग गया

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7 दिसम्बर 2022
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शायद..?क्यों? मैं बयां करना उचित नहीं समझता था! जो गोपाल अपने बच्चों से दरपेश आता था। खैर.. मैं उन खोए हुए हुए यादों को, बिखरे हुए सपनों को, फिर से समेटकर मूर्त रूप देना नहीं चाहता था। कि बच्चों

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7 दिसम्बर 2022
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मैं जब भी गोपाल के पास पहुंचता ,गोपाल मुझसे अपने पांव दबवाता। मैं भी बड़ी खुशी- खुशी उसके पाव दबाने लग जाता। गोपाल के शरीर को तेल लगाकर मसाज करता । मगर मुझे एहसास सा होता था जा रहा था। अभी शरीर

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8 दिसम्बर 2022
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सबके चेहरे में मायूसी सी थी। गोपाल, विवेक, सानू ,भाभी सभी बोलते तो भी मुझे लगता था ।जैसे दिल में बहुत बड़ा वजन रखकर बोल रहे हो ।दिल का बोझ बढ़ता जा रहा था। जैसे दिल भी सोच सोच कर धड़क रहा था

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8 दिसम्बर 2022
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गोपाल गोपाल सानू को लेकर दुखी था।इसलिए कि अभी तक उसने सानू के लिए अच्छा लड़का ढूंढ पाया था। शादी नहीं करा पाया था। इसके लिए अच्छे लड़के लोकल लड़के नहीं मिले। 2-4 आए थे और सानू ने उन्हें नापसंद कर

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8 दिसम्बर 2022
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विवेक भी खौफ जदा था ।अब पापा बिस्तर में ही गंदगी छोड़ने लगे हैं। उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि कब लैट्रिन उतर गई ।फिर उसे साफ करते बच्चे फिर सभी मिलकर उसे करवट लीटाने की कोशिश करते ।और साफ करते।

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9 दिसम्बर 2022
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धीरे धीरे मौत का साया गोपाल की ओर बढ़ रहा था। गोपाल को भी एहसास था ।अब मैं शायद ठीक ना हो पाऊं। गोपाल- तुमने लिवर डोनेट क्यों किया? इसी लिवर के ऑपरेशन से मैं ज्यादा परेशान हो गया हूं!भाभी- हम आप

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10 दिसम्बर 2022
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पल- पल हर एक घड़ी गोपाल की जिंदगी की डोर ढीली पड़ती जा रही थी। गोपाल की आंखें सफेद सी बढ़ती जा रही थी ।आंखों में होने वाली लाली खत्म थी। जिस्म यूं भी पहले दिन से सुजता हुआ जा रहा था ।वह कभी ठीक हो कि

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10 दिसम्बर 2022
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मौत!?मौत की ओर हर इंसान सरक रहा है। हर इंसान का अगला कदम मौत की ओर होता है ।इंसान और मौत का गहरा रिश्ता है। एक न एक दिन उसकी आगोश में समाना ही है। मगर इंसान को इस धरती पर परमेश्वर ने जीने के

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12 दिसम्बर 2022
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सानू अपने पापा की कैंसर होने की बात को लेकर ज्यादा डिक्लेअर डिस्टर्ब हो गई थी।मैं महसूस कर रहा था ।उसकी आवाज में थर्रा हट थी। जब वह मुझसे इस बारे में बात कर रही थी।मैंने पूछा- किस स्टेज में है?स

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12 दिसम्बर 2022
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अगला दिन था।सुबह नाश्ता करके मैं और भाभी भोपाल से मिलने के लिए चले गए थे। रूम सिंगल सा ले रखा था। फिर भी डॉक्टर यहां एक एक एटेन्डेन्ट से ज्यादा रहने की इजाजत नहीं देते। फिर भी हम चले गए थे ।इस व

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13 दिसम्बर 2022
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लीवर खराब था। तो उसके लीवर को ट्रांसप्लांट किया गया। गलत हिस्सा संपूर्ण लीवर निकालकर, भाभी के लिवर का 60 परसेंट हिस्सा निकालकर गोपाल के लीवर की जगह जोड़ा गया था। अब इस नाकामयाबी का श्रेय दे रहे थे। कि

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13 दिसम्बर 2022
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अब भाभी को भी बताना जरूरी था डॉक्टर कैंसर का इफेक्ट बता रहे हैं ।और बताया गया था।पहले लिवर में कैंसर बताकर ट्रांसप्लांट करवाया अब चेस्ट में ही कैंसर बता रहे हैं। भाभी का यह कह भी रो-रोकर हाल बुरा था।

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14 दिसम्बर 2022
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धीरे -धीरे मौत के साए गोपाल पर हावी होते गए थे। मौत अपने नाखूनों को तेज कर के लंबे-लंबे राक्षसी दांत बाय गोपाल की ओर बढ़ रही थी।हम मूकदर्शक बने देखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकते थे।डॉक्टरों क

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14 दिसम्बर 2022
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वेंटीलेशन के लिए सभी डॉक्टर जोर देने लगे। अगर कुछ होता है तो ,हम जिम्मेदार नहीं है। अब अंतिम अवस्था में भी वेंटिलेशन के अंदर डालकर ।पैसा अशूली का घिनौना खेल खेला जाने वाला था।जिस डॉक्टर ने ल

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14 दिसम्बर 2022
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मैं राजू और विवेक रात भर अस्पताल की वेटिंग रूम में रूक गये थे।विवेक ने कुछ भी नहीं खाया था। 2 दिन हो गए थे ।अब उसका चेहरा लगता था -जैसे चेहरे को अभी-अभी पानी से धो आया हो। भी गवाह आसुओं से भीगा

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15 दिसम्बर 2022
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परिवार के कुछ और सदस्य आ गए थे।वक्त!? गोपाल के पास न था ।बस अब तो शरीर का मिट्टी में तब्दीली का इंतजार था। कब डॉक्टर खबर करें कि अब गोपाल नहीं रहा!ऐसा इंतजार!? लंबा होता है ।जानलेवा ..जानलेव

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15 दिसम्बर 2022
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एक नायाब कहानी का अंत हो चला था। नहीं नहीं में आंसुओं का बाध टूट सा गया था। अस्पताल को अब भी आस थी ।कि दो चार लाख झाड़ जाते। जाते -जाते तुम मौत का हिसाब किताब कर जाते !नहीं ..नहीं में

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15 दिसम्बर 2022
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गोपाल का अंत!गोपाल का अंत ऐसा होगा सोचा न था। यूं सभी बीमारियों का जखीरा लिए ,लंबी-लंबी सांसे भरेगा। आंखों में पथराई आंसुओं में वह मुझ में यूं जी लेगा, सोचा ना था।अगला दिन भी मर्म से भरा था।भाभी जी रह

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