एक बात मुझे डॉक्टर से पूछनी थी। यही बात मैं कह रहा था और भाभी भी यही सवाल कर रही थी। डॉक्टर से मुलाकात के लिए ₹2000 की पर्ची कटवानी थी ।जब 28-30 लाख खर्च किया तो फिर 2,000 की तो कोई बात नहीं थी।
डॉक्टर सुधीर ने ही ऑपरेट किया था ।हमें सुधीर से ही मुलाकात करनी थी। डॉक्टर ने अचानक रात को बताया था- कि कम से कम 7-8 यूनिट ब्लड की आवश्यकता है ।शरीर में ताकत आ ही नहीं रही है।
डॉक्टरों का कहना था ।कि उसके शरीर में ब्लड फॉरमेशन हो ही नहीं रहा। और दिन में दो बार ब्लड टेस्ट के लिए सिरिंज भर भर के ब्लड निकाला जाता।
बात समझ में नहीं आ रही थी ।पता नहीं क्या बात थी।
हर तीसरे दिन एक्सरे करवाते। क्या बात थी? सभी खौफ ज़दा थे ।सभी की आंखों में प्रश्नचिन्ह था। डॉक्टर खुलकर बात नहीं करता। अपनी बातें बताता और फुर्र हो जाता। सवाल पूछने का तो मौका ही न देता। पूछते ही बोलता बस सब ठीक हो जाएगा। और गोल गोल घुमा देता।
पेट में दर्द क्यों है!?
रोज दो-दो बार ब्लड टेस्ट के लिए सिरिंज भरकर क्यों निकाला जाता!?
डेली दो- दो बार इंसुलिन शरीर के अंदर क्यों इंजेक्ट किया जाता!?
वजन रोज ब रोज घटता क्यों जा रहा था!?
जो बंदा कुछ रोज पहले अपने पांव में खड़ा होता था ।अब बिस्तर में ही पलट ना उसे भारी क्यों पड़ रहा था?
रिकवरी क्यों नहीं हो रही थी?
शुगर बढ़ता क्यों जा रहा है?
खांसी और बलगम क्यों फिर से बढ़ता जा रहा है?
पेशाब में भी बढ़त हो रही थी ,वह भी कमता जा रहा है।
पेट का पानी क्यों कम नहीं हो रहा है?
हमने सोच लिया अब तो बात करनी ही पड़ेगी।
उसे पकड़ कर उसके चेंबर में ही जाकर बात करनी ही पड़ेगी।
मगर डॉक्टर से बातें करने का वक्त नहीं मिल पा रहा था। वार्ड में जूनियर डॉक्टर आते। वह कहते कि सीनियर डॉक्टर से बातें कीजिए। तो आपको पता चलता जाएगा।
जूनियर डॉक्टर कहते यूं तो रिकवरी हो रही है। मरीज अब कुछ बोलने भी लगा है ,आपने आप खाने लगा है।
मगर हमें और खुद मरीज को भी एहसास था। कि वो रिकवरी नहीं कर पा रहा ।वह और बीमार पर बीमार होता जा रहा है।
जो शख्स खुद उठकर दीवारें पकड़ कर चलने की साहस कर सकता था। आज वह पलटने के लिए भी किसी और की जरूरत महसूस कर रहा है ।शरीर में बाजुओं में किसी प्रकार की ताकत रह नहीं गई थी ।उसका शरीर छिण-छिण होता जा रहा था!
शरीर के चमड़े में व्याप्त सारी चर्बी खत्मई थी। हड्डी के साथ सटा हुआ मांस पेशी भी लगभग खत्म हो चुका था। सिर्फ हड्डी और चमड़े का ढांचा बचा हुआ था।
उसकी आंखें सुन्य में टिकी रहती ।न जाने क्या सोचता रहता! मुझे देखता फिर छत को देखता! बच्चों को देखता फिर छत को देखता! उसकी आंखों को मैं देखने की कोशिश करता पढ़ने की कोशिश करता! उसके चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश करता! मैं उसमें आत्म विश्वास जगाना चाहता।
उसकी आत्मा में इच्छाओं को जागृत करने की कोशिश करता ।
कभी-कभी मुझे लगता उसकी घूरती हुई आंखों ने परमपिता परमात्मा से कुछ मांग रहा हो। परमपिता परमात्मा से कुछ याचना कर रहा हो।मगर परमपिता परमात्मा अनजान बना उसकी ओर ताक रहा हो।
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