सबके चेहरे में मायूसी सी थी।
गोपाल, विवेक, सानू ,भाभी सभी बोलते तो भी मुझे लगता था ।जैसे दिल में बहुत बड़ा वजन रखकर बोल रहे हो ।
दिल का बोझ बढ़ता जा रहा था।
जैसे दिल भी सोच सोच कर धड़क रहा था।
अभी गोपाल की बीपी ठीक था ।
इसका मतलब हृदय की गति ठीक थी। जिस्म का तापमान भी ठीक था।
मगर, शुगर लेवल सुबह कुछ शाम तक कुछ हो जाता।
जमीन आसमान का फर्क आ जाता। रात के वक्त शुगर साडे 400 तक पहुंच जाता सुबह-सुबह बिल्कुल 75 में आ रहा था।
ऐसा क्यों था!?
इंसुलिन का डोज दो बार डॉक्टर ने बता रखा था।
मगर शुगर लेवल फिर पिचहत्तर, का अर्थ था खतरे का लेवल।
शुगर बिल्कुल कम हो तो भी इंसान की खतरे की घन्टी हो जाती है, और ज्यादा बढ़ जाता तब भी।
और गोपाल को नमकीन अंदर जाता न था। शुगर फ्री शुगर खा रहा था। शुगर को कम करने के लिए।
खाने में परहेज करने से अच्छा डॉक्टर ने कुछ भी खाने के लिए बता रखा था। ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन डाइट। और फिर शुगर फ्री आइटम।
मगर सिर्फ शुगर फ्री शुगर प्रयोग करने से खून में अगर शुगर कमी होती तो यह ठीक था। मगर शुगर लेवल बढ़ता जाता था। रात तक 500 के पास आसपास पहुंच जाता।
सबसे पहले मरीज को इंसुलिन से शुगर को लेवल में लाने की कोशिश की गई थी। फिर लिवर ट्रांसप्लांट किया गया था। अब जब ऑपरेशन करके ट्रांसप्लांट हो चुका था। शुगर लेवल बढ़ता ही जा रहा था। बढ़ता ही जा रहा था। एक भी ऐसा दिन न था जब कभी शुगर लेवल कम हो।
वजह- एलोपैथी दवा का अत्यधिक सेवन। और इंसान चल फिर तो पता न था ।खाना खिलाए जा रहे थे। ना खिलाए तो भूखे मर जाता। खिलाने पर शुगर लेवल बढ़ जाता।
भाभी दूसरे कमरे में बैठकर आंसू बहाती। मुझे कहती खाना बनाना और खाने का इतना शौक था। कि अब चाहकर भी अच्छी तरह बनी खाना खा नहीं सकते थे। जब कभी स्पेशल खाना बनाना हो तो कहते- तुम हटो मैं बनाता हूं ।और बनाकर खिलाते।
सानू का बना पसंद नहीं करते। मेरा बना भी उनको पसंद नहीं आती ।सानू बनाती तो दुनिया भर की मीन मेख निकालते। डांट लगाते कहते इसे तो बनाना भी नहीं आता। फिर उसने सामने कहते बेकार बना है।
सानू खुद बनाती तो कहती बेकार बना है मत खाइए ।अपना बना खाओ ।
सानू के सामने से हटते ही कहते जरा देना टेस्ट तो करू! फिर टेस्ट करने के बाद कहते -- थोड़ा और दे देना!
भाभी शिकायत करती करती- आप कर रहे हैं अच्छा नहीं बना है ।फिर क्यों बार-बार मांग रहे हो।
गोपाल कहता थोड़ा ही तो मांग रहा हूं ।और थोड़ा- थोड़ा करके खूब खा लेते ।बेटी को डांट भी लेते ।और इसका बना पसंद वाली सब्जियां खा भी लेते । अजीब था।
सानू शनिवार को छुट्टी करके सीधा ड्यूटी से डिब्रुगढ़ से डिगबोई आ जाती ।आते ही थोड़ी देर के बाद बाप बेटी में तकरार शुरू हो जाता । तकरार में ही बाप बेटी का प्यार छुपा था। सानू कोने में बैठ कर रोने लगती ।मुझे तो बस देखते शुरू हो जाते हैं ।अगली बार आऊंगी ही नहीं -देख लेना!
जब तक रहती बाप बेटी में तकरार होता रहता।
भाभी भी कहती पता नहीं क्यों बच्चे तो इनको एक आंख नहीं सुहाते। मगर फिर जब सानू चली जाती। बार-बार फोन करते सही पहुंच गई ना ।सानू फोन में ही लडने लगती ।अबकी बार नहीं आऊंगी। देख लेना।
गोपाल!
मन ही मन मुस्कुराता ।सानू को छोड़ना उसको गुस्सा कराना उसे अच्छा लगता। सिलसिला ऐसी ही चलता रहा था। जैसे ही शनिवार होता सुबह से शाम को फोन करने में लग जाते हैं। ड्यूटी से जल्दी निकल जाना मैं विवेक को लेने के लिए चाराली भेज दूंगा।
सोनू!?
वही मन ही मन मुस्काती करती मुझे देखते लड़ाई शुरु कर देते हो। और अब!?
गोपाल कहता तुम मेरे बच्चे हो ।तुम्हें डांट नहीं लगाउंगा तो किसे डाट लगाउंगा ..किसे?
बाप बेटी का रिश्ता ही अजीब होता है ।बाप चाहता भी है ।बेटी को प्यार भी करता है। बहुत प्यार, मगर प्यार डांट और तकरार के रूप में सामने आता है।
सानू के चले जाने के बाद गोपाल सोंचता अबकी बार आएगी तो बिल्कुल नहीं डालूंगा। मगर जब सामने आती तो फिर वही डांट फटकार।
वही बात -अपनी सरकारी नौकरी का रौब झाडती है। मुझे बाप ही नहीं समझती। मुझसे जुबान लड़ाती है ।मुझसे तकरार करती है। ऐसी शिकायत गोपाल की होती सानू के साथ।
सानू कहती- मैं आपसे जुबान लड़ाती हूं। तो आप हैं घर में आते ही बस काटने को दौड़ते हैं।
गोपाल- अच्छा तो तुमने मुझे कुत्ता भी कह दिया ।जो मैं तुम्हें काटने दौड़ता हूं।
सोनू पैर पटकती मां ..ओ.. मां !मैं तो आपसे बात भी नहीं करना चाहती !पैर पटकती अपने कमरे की ओर चली जाती।
भाभी बोलती- क्यों परेशान करते हो? छुट्टी के दिन के लिए तो आती है ।तसल्ली से उसे रहने भी नहीं देते।
गोपाल- ईसे मैं क्यों परेशान कर रहा हूं। उससे गोपाल कहता।
भाभी परेशान हो लेती- सोचती पता नहीं क्यों सानू के सामने आती लड़ने लग जाते हैं! और उसके घर से चले जाते फिर ;सानू- सानू रोने लग जाते हैं।
और विवेक?
हिंदुस्तान में एक बाप बेटे का रिश्ता जितना गहरा होता है। उतना ही संवाद कम होता है। कई-कई दिनों तक तो बाप बेटे के बीच बात तक नहीं होता ।बेटा बाप के आसपास भी कम दिखता है।
जितना बेटी बाप के आसपास मडराती है उससे बहुत कम ही बेटा बाप के सामने आता है ।
पता है -एक घर में बाप बेटे का एक साथ रहना किसी सस्पेंस फिल्म का संवाद बगैर के सीन सा होता है ।
बेटा सोचता है कि बाप के सामने आना ही ना पड़े। बोलना ही ना पड़े ।किसी भी चीज की डिमांड कौन पूरा करता है ?-बाप!
मगर मीडिया कौन होती है-मां!
बाप और बेटे के बीच की मीडिया होती है- मां। बेटे की सिफारिश की अर्जी बाप के सामने मां रखती है। और उसे पहले ही अपने दिल से पास कर चुकी होती है।
और बाप को मनाती है ।बेटे की डिमांड को पूरा कराने के लिए। बस जिंदगी की दौड़ यूं ही गुजरती जाती है ।मंजिल इतना खूबसूरत नहीं होता- जितना खूबसूरत सफर होता है।
सफर की यादों को इंसान दिल में सजौता है। मंजिल मिले ना मिले सफर का मजा लीजिए।
सफर में ही मंजिल का रास्ते को दिल में सजा दीजिए ।
तोबा हम तेरे बातों में ना आते ।
मंजिल के सफर में हम यूं न खोते ।
आंखों में हजार सपने क्यों बसाए हैं।
मंजिल को ही दिल में क्यों बसाए हैं।
*******