आप गोपाल के लिए लिवर डोनेट करेंगी?
हां! भाभी ने जवाब दिया -"इसके बाद वे ठीक हो जाएंगे।"
डॉक्टर से बात हो गई है?
नहीं !अभी जब पानी ज्यादा भर गया तो यहां जो भी डॉक्टर मिला- उसी के हवाले हमने कर दिया।
डॉक्टर बोल क्या रहे हैं? क्या टेस्ट रिपोर्ट जो आसाम में किया गया था, क्या वह सब वाप साथ ले आए हैं?
लाया तो सब कुछ गया है। मगर यहां के डॉक्टर फिर से उसी चीज को कंफर्म करेंगे। खुद के चेक करने पे भरोसा है। उन्हें उधर वाली चेक या रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करते।
रिपोर्ट कब तक आ जाएगा?
भाभी बोली- पता नहीं !दो-तीन दिन शायद लग सकते हैं। तब तक उसी में रखेंगे। टेस्ट का रिजल्ट आता है, तब जाकर इस बात का खुलासा होगा। मुख्य तो हम लीवर के लिए ही आए हैं। मगर डायरेक्ट सर्जन से तो मुलाकात नहीं हुई नहीं। जबकि बातें तो सर्जन से होती रही थी। यहां आने के बाद लगा मामला सीरियस हो सकता है। फिर हमने डॉक्टर आफ मेडिसिन के थ्रो से एडमिट कराया गया।
मैंने पूछा- खर्चा क्या लगेगा?
जो भी लगेगा अस्पताल को आयल इंडिया क्रेडिट से आएगा। खर्चा उनकी ओर से लगेगा।
मगर कंपनी खर्चा उठा रही है तो ऑपरेट करवाना सही भी है? दर्द तो इंसान को ही होगा? आपको होगा! गोपाल को होगा! कई दिनों तक तबीयत खराब रहेगी।
भाभी लंबी साथ छोड़ती हुई बोली -क्या करें; रिश्क तो लेना पड़ेगा ।मेरे लिवर डोनेट से उनकी कुछ साल और जिंदगी रह जाएगी तो अच्छा है ना!
वही नहीं रहेंगे !उनके जाने के बाद मैं यूं भी जी ना पाऊंगी ।जी कर भी क्या करूंगी?
वह समय था -जब डिगबोई से दिल्ली आए थे। अभी -अभी अस्पताल में भर्ती किया गया था। सब कुछ ठीक-ठाक सा लगा था मुझे। दिल लगा मामूली सी बात है ।और यह अस्पताल भी बढ़िया है ।कंपनी भी अच्छा खर्च कर रही है ।डॉक्टर स्पेशलिस्ट उपलब्ध हैं। फिर क्या था !कर लेने में खराबी नहीं है!
मेरा एक मन कर रहा था- कि लीवर ट्रांसप्लांट ना करें तो बेहतर रहेगा !शरीर के हिस्से को शरीर को चीर फाड़!? यूं भी गोपाल की स्थिति देखकर मुझे लग नहीं रहा था -कि आपरेशन को झेल पाएगा!
विवेक जब 2 साल का था ।तब मैं दिल्ली छोड़ आया था ।सानू शायद 6-7 साल की रही होगी! तब मैं डिगबोई छोड़कर निकल चुका था। कुछ साल मैं इधर -उधर की रवानगी करता रहा ।फिर दिल्ली आ गया था। दिल्ली रहते मुझे करीब 24 साल बीतने वाले थे।
इतने लंबे अंतराल के बाद मैं गोपाल से मिल रहा था।
मगर कुछ प्यार कम ना हुआ था। वह लगाव कम न हुआ था।
मुझे दुख था- कि करीब 27 -28 साल बाद मेला भी इस हाल में ।
मैं कुछ और ही सोच रहा था। मगर इंसानी जिंदगी कई दौर से गुजरती है ।और मैं गुजरा वह भी गुजरता रहा।
कई बीमारियों का सामना करता हुआ- अब वह इस पड़ाव में आया था ।और बचने का लास्ट ऑप्शन लिवर ट्रांसप्लांट था ।ऐसा डॉक्टरों का मानना था ।
कहना भी था।
और जो डॉक्टर कहते हैं इंसान अक्षरस वही मानने लगता है ।क्योंकि बात शरीर और जिंदगी का होता है ।जब तक इंसान चलने फिरने लायक होता है। तब तक तो डॉक्टरों की बातों को भी नजरअंदाज करता रहता है ।जब लास्ट स्टेज रह जाता है -तो बस वही करता है जो डॉक्टर का कहना होता है। अक्षरस वही करता है-जो डॉक्टरों का कहना होता है
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