ऑपरेशन के बाद---!
फ्लैट में लौटने के बाद, दूसरी बार फिर से अस्पताल में भर्ती किया गया था। दर्द था। पेट में, बहुत सारा दर्द था ।
खाने में शायद कुछ कोताही बरती गई थी। डॉक्टर का मानना था।
जबकि डॉ यह कह चुका था -कि जो मर्जी खा सकते हैं! साधारण इंसान की तरह! मगर खाया तो नहीं जा रहा था। मुंह के छाले ठीक होने का नाम नहीं ले रहे थे ।क्या खाया जाए? क्या खिलाया जाए?
यही बात बच्चों से लेकर ,खुद गोपाल तक को भी सोचने के लिए मजबूर किये रखा था।
गोपाल ने मुझे बताया- उसे खोया खाने का दिल है।
ओल्ड राजेंद्र नगर में आस-पास कोई ऐसी मार्केट न थी। कि जहां खोया प्राप्त कर सकें। राजेंद्र नगर के हर दुकान मिठाई वाले के पास मैंने खबर की। मगर वह मिला नहीं।
फिर मुझे ख्याल आया पटेल नगर ।
पटेल नगर में अच्छा खासा मार्केट है। होटल मिठाइयों की दुकानें है। डेरी है वहां मिलना जरूरी है। फिर ढूंढते हुए मैं पटेल नगर पहुंचा। वहां से मैं गोपाल के लिए खोया लेकर आया।
भाई को खोया खाने का दिल है। मुर्गा खाने का दिल है। मुर्गा मंगवाया गया ।पनीर तो हर रोज हर खाने में दिया जाने लगा था ।मसालेदार और तेल में फ्राइड को भाभी ने थोड़ा गोपाल के लिए बंद कर रखा था।
स्थिति नाजुक थी।
मगर फिर भी मियां बीवी में चिक चिक बाजी चलती रहती थी ।गोपाल कहता कि तुम लोग मेरा ध्यान नहीं रखते ।भाभी कलेजा डोनेट कर चुकी थी। उसकी स्थिति भी खास ठीक नहीं थी। फिर भी दिन भर हाथ पैर दबाती जितना हो सके करती। मगर उसको तसल्ली नहीं होता।
मुझे सुनकर बड़ी अजीब सी लगती। इसका एक पाव कब्र में पड़ा हुआ है -वह भी इंसान अपनी बीवी पर चिल्लता रहता है।
गोपाल ने कॉन्फिडेंस दिखाया। खुद बिस्तर से उतर कर दीवारें पकड़ कर चलना शुरू कर दिया था। उसके पांव में हल्की सी जान सी आ गई थी।
मगर यह कॉन्फिडेंस भी ज्यादा दिन टीका ना रहा। वह कोहिनी के बल लुढ़का।
जब फर्स पर लूढका तो ,जोड़ की धड़ाम की आवाज सीआई।
उस आवाज को सुनकर सानू और भाभी उसके कमरे में पहुंचे ।देखा कि वह बिस्तर से उतरने के चक्कर में फर्श पर लुढका हुआ है। और करहा रहा था।
शरीर क्षिण कमजोर था। जिसकी वजह से उसकी सबसे निचले वाले पसली में चोट आ गई थी।
फ्रैक्चर होने की भी संभावना थी। शरीर कमजोर होने के साथ-साथ शायद हड्डियां भी खोखली सी हो गई थी।
अब एक और मर्ज बढ़कर सामने आ गया था। वह यह था कि पसली में उसका दर्द बढ़ने लगा था। रिपट ने की वजह से।
आब पसली की भी एक्स-रे करने की जरूरत पड़ गई थी।
परेशानी में और एक परेशानी आन जुड़ा था।
गोपाल का कहना था- अगर यह मेरे को ध्यान देती तो मैं रिपटता?
भाभी आंशु बहाती, रोती रहती ।कहती -दारु तो रोज का था! मैं कभी कहती तो कहते मैं अपने पैसे से पीता हूं ।किसी के नहीं पीता मैं। मैं अपनी कमाई का पीता हूं। और दारू के बाद नॉनवेज बनाते खुद भी खाते और बच्चों को परिवार को भी खिलाते।
मगर मियां बीवी के बीच चिक चिक सी बनी रहती। मुझे पता नहीं था। वह बिबी बच्चों पर सवार रहता है। क्योंकि मैंने उसकी शादी के बाद का वह समय नहीं देखा। जिसमें चिक चिक बाजी शुरू हो चुकी थी।
मैं तो उसके करीब तब तक रहा जब सानू की उम्र 7 साल की रही होगी। और विवेक उस वक्त 2 साल का रहा होगा ।अब सानू की उम्र 35 साल की हो गई है।
उस समय तो मुझे सब कुछ ठीक-ठाक साही लगता था। शायद वह मेरी ना समझी थी। गोपाल अक्सर मेरे से मिलकर कहता। तुम दिन में जब भी वक्त हो भाभी के पास चले कर बैठ जाना ।अकेली रहती है।
मैं वक्त बेवक्त भाभी के पास पहुंच जाता। भाभी मेरे आने से खुश नजर आती। भाभी मुझे कहती-- बाबू! अगर कुछ खाने को दिल हो तो कह देना! मैं बना दूंगी!
27- 28 साल बाद का यह दर्दनाक मुलाकात थी। उसकी और मेरी ।मगर रिश्ता जो बचपन का था- वह गहरा होता है !बहुत गहरा दिल से जुड़ा होता है।
वह इस हाल में भी चीखता चिल्लाता था हाथ नहीं उठाता था शान उससे भी चिक चिक बाजी चलती रहती।
सानू जब भी छुट्टी में घर पर आती ।सब्जी बनाकर उसके पास रख देती, तो कहता मुझे इसका बनाया बिल्कुल पसंद नहीं है ।फिर सानू के हटते कहता सानू का बना थोड़ी सब्जी दे देना।
भाभी कहती - उसका बना आपको पसंद नहीं! फिर भी!
होठों होठों पर मुस्कुरा कर कहता-- मैं अच्छा थोड़ी बोल रहा हूं !मैं तो टेस्ट के लिए मांग रहा। हूं थोड़ा टेस्ट कर लूं ।और अच्छा भी नहीं कहता ,और खाना छोड़ता भी नहीं। चटोरे पनकी तो हद ही हो गई थी।
उसका ज्यादा सा आकर्षण दारू और नॉनवेज में रहता। जैसे जिंदगी सिर्फ खाने पीने के लिए बनी हो।
पेट का दर्द दर्द थोड़ा सा कम हुआ था। वोमिट भी थोड़ा सा कम हो गया था। मुंह के छालों में भी कभी कमी आ गई थी ।मगर अंदर अब भी जख्म था। थोड़ा हल्का सा गर्म भी नहीं खा पाता। खाते ही तड़प उठता। हम कहते हम क्या डॉक्टर भी कहता। बस या मुंह के छाले ठीक होते ही सारा ठीक-ठाक होगा।
इसे चलाओ फिरओ डॉक्टर कहता है।
अस्पताल में रहते वक्त दोनों और पकड़ के ही सही, अस्पताल के कैरी डोर में डेढ़ चक्कर लगवा ते मैं और विवेक ,विवेक और सानू ,और बाया पैर अभी ठीक नहीं हो रहा था। उसको ठीक करने के लिए भी एक खुला जूता सा खरीदना पड़ा था। कि पैर ठीक हो जाए।
गोपाल जीद्द पकड़ कर बैठा था ।कि मुझे छुट्टी दे दो। मैं फ्लैट में चला जाऊंगा ।
ऑपरेशन और अब तक का बिल 28 लाख के करीब आया हुआ था।
डॉक्टरों ने पेट में भरे पानी को निकालने के लिए एक पाइप लगा दिया था।
पेट का पानी किसी डब्बे में जमा होता। पेशाब के लिए एक पाइप लगाई गई थी ।वह किसी थैले में जमा होता।
हर वक्त शैतान का वक्त होता!
हर वक्त खौफ का वक्त! क्योंकि हर जगह पाईप से ही काम चल रहा था।
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