ऑपरेशन की रात थी वह।
रात के करीब 11:00 बजे डॉक्टर सुधीर ने विवेक को फोन लगाया। विवेक, सानू और मैं ऑपरेशन थिएटर के बाहर पहुंचे। पांचवी मंजिल पर जहां लीवर संबंधित ऑपरेशन हो रहा था।
गार्ड़ने हमें याद दिलाया -आप लोग, तीन लोग यहां एक साथ नहीं आ सकते। एलाऊ नहीं है।
विवेक ने बताया लिवर ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन है ।डॉक्टर ने मिलने के लिए बुलाया है। तब जाकर बाहर गार्ड ने 3 लोगों को गेट से अंदर आने दिया।
वह गाड़ी बड़ी भयानक सी थी। जब हम आप्रेशन थियेटर के बाहर खड़े थे। हम तीनों के दिल पसलियों में धाडधाड करके बज रहा था। जैसे अपने ही दिल की धड़कन हमें सुनाई दे रही थी।
मैं कभी ऐसी परिस्थितियों से गुजरा न था। जब डॉक्टर का फोन आया-जब मेरे मुंह से यह बात निकल गई ।कि ऑपरेशन थिएटर में रात के 11:00 बजे सभी रिश्तेदारों को न जाने क्यों बुला रहा है? क्या बात है!?
इस बात से सानू का दिल अंदर ही अंदर दहल रहा था ।बार-बार यही सोंची जा रही थी ।कि रात की इस समय डॉक्टर के द्वारा काल आन संकास्पद लग रहा था ।घबराहट तो सभी में बढ़ गई थी।
सानू अपने आप को रोक नहीं पाई। वह गार्ड से पूछ कर -चौथी फ्लोर में ।वास रूम में भाग कर चली गई थी। मैं -उसकी और विवेक की स्थिति समझ रहा था। वे तो उसके बच्चे थे। जिस का ऑपरेशन हुआ था ।2 घंटे पहले ही उनकी मम्मी को आईसीयू में ले जाया गया था। मम्मी को हल्का-हल्का सेंस था । उन्हीं का लीवर उसके पति के लिवर में प्रत्यारोपित किया गया जाना था।
इसीलिए घबराहट थोड़ी ज्यादा बढ़ गई थी। समझ में नहीं आ रहा था ।अगले छड़ क्या होने वाला था।
अगला छठ हर पल भयानक सा था ।अगला क्षण सस्पेंस के गोद में बैठा ।लॉलीपॉप जूस रहा था। अगला छठ तब पता चलता जब डॉक्टर बाहर निकल कर कुछ कमेंट करता। कुछ बताता। मगर अभी तक डॉक्टर निकला नहीं था ।हम बाहर खड़े अपने ही पसलियों में धड़कते दिल को महसूस कर रहे थे।
धक..! धक..! धक...! धक!
दिल की धड़कन हर पल तेज होती जा रही थी।
धड़कन बर्दाश्त न कर पाने की वजह से सानू बाथरूम की ओर भागी थी ।
और हम दिल को थामे खड़े थे। कब क्या समाचार आए अंदर से ।कब क्या हो ना हो!
पता नहीं था। जब आदमी जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा होता है। और उसके बाल बच्चे बाहर इंतजार कर रहे होते हैं ।
तब ..!?
अजीब सी धड़कन ।अजीब -अजीब सी बातों का सिलसिला दिल और दिमाग को समन्वय करने की कोशिश करती है ।
दिमाग आगे भाग रहा होता है ।और दिमाग के साथ साथ चलने के लिए दिल भी तेजी से धड़क रहा होता है।
क्योंकि ,बात जिंदगी और मौत के बीच झूलती हुई जिंदगी की होती है ।
सफल असफलताओं के बीच झूलती हुई होती है ।जिंदगी हम गहन खौफ को अपने दिल की धड़कनों में थामे पास रखी सीट पर बैठे थे।
जब भी अंदर से मुस्कुराता हुआ, आंखों में मोटे लेंस का चश्मा और सिर पर दूरबीन लगाए हुए डॉक्टर सुधीर का चेहरा चमका। बाहर आते ही उसने अंगूठा दिखाया कर तसल्ली भरी मुस्कान फेंका ।
विवैक खौफ से हिलता हुआ डॉक्टर सुधीर के पास पहुंचा -डॉक्टर !?
डॉक्टर सुधीर -परेशान मत हों।ऑपरेशन हंड्रेड परसेंट सक्सेस ,ऑपरेशन सफल रहा ।सौ प्रतिशत ।घबराने वाली जैसी कोई बात नहीं है। 15- 20 दिन के अंदर आप अपने पापा मम्मी को घर लेकर जा सकते हैं!
विवेक ने लंबी सांस छोड़कर- पूछा सच में डॉक्टर !?पूछते वक्त उसकी आवाज में हल्की कंपन सी थी।
जैसे विश्वास कर ना पा राहा हो।
सच..!?
डॉक्टर सुधीर बोला -योर फादर इज हंड्रेड परसेंट कंप्रोमाईजिंग , टू मच एनर्जेटिक, टू मच सपोर्टिंग, फुल विद कॉन्फिडेंस।
विवेक ने फिर से एक बार तसल्ली करना चाहा फिर पूछा- इज ईट सकसीड?
डॉक्टर सुधीर -हंड्रेड परसेंट !मैंने कहा ना ,वह बहुत सपोर्टिव है। उनकी आत्मविश्वास के कारण ही ऑपरेशन सौ प्रतिशत सफल रहा।
उस वक्त विवेक की आंखों में एक प्यारी सी चमक चमक उठी। आप अपनी मम्मी से मिले? सी सो वेल कोऑपरेटिव। एन्ड टू मच वोल्ड लेडी- डॉक्टर बोला।
विवेक बोला -हां ऑपरेशन के बाद हम मम्मी से मिल चुके हैं। उन्हें थोड़ा थोड़ा सा सेंस था। थोड़ी आंखें खोल कर मेरे हाथों को हाथ में लेकर थोड़ा दबाया भी था। और उनको होश नहीं है है अभी।
हम उन्हें पांच से सात दिन के अंदर रिलीव कर देंगे ।उन्हें कोई बीमारी नहीं था ।और उनका लीवर इतना खूबसूरत था।कहता हुआ उसने मोबाइल से खींचा हुआ पेट के अंदर की तस्वीरें मोबाइल पर ही दिखाया ।कोई बीमारी नहीं ,मगर आपके पिता का कलेजा। एक मिनट मैं आपको दिखाता हूं। करता हुआ एक दूसरा शख्स जो थिएटर के बाहर ही खड़ा था। दरवाजे पर ।उसको इशारा किया ।बोला --इनको इनके पापा का कलेजा जो हमने कट आउट किया था !लाकर दिखाइए!
राघवन अंदर गुसा और कुछ सेकंड के अंदर एक बर्तन में हरा कपड़ा रखा था ।और हरे कपड़े के ऊपर रखा हुआ कलेजा लेकर आया और दिखाएं।
डॉक्टर ने कलेजे के ऊपर उंगली से इशारा करता हुआ दिखाया- यह जो देख रहे हैं- बबल- बबल सा। यह कैंसर है।जो कुछ ही दिनों में इनकी जान ले लेती ।यह बीच में देखिए यह हार्डसा दिखाई दे रहा है ।कलेजे के अंदर यह कैंसर था ।अगर इस वक्त हम नहीं निकालते तो उनकी बस लास्ट स्टेज था। और 10- 20 दिन के मेहमान थे।
विवेक कालेजे को देखता हुआ ,हल्का सा चीख सा पड़ा - ओ माय गॉड !ईजईट!?
डॉक्टर सुधीर बोला -तुम लोगों ने इन्हें सही समय पर अस्पताल पहुंचाया है। नाऊ ही इस स्केप्ड।
उसी वक्त सानू वापस आ गई थी। सानू डॉक्टर सुधीर को देखते ही उसे हाथ पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़ी ।मेरे बाबा को बचाओ.. मेरे बाबा को बचाओ ...मेरे बाबा को बचाओ !डॉक्टर !रोती रोती सी बोली -डॉक्टर मेरे बाबा को बचा लो! मेरे बाबा को बचा लो डॉक्टर!
मैं-सोनू यह डॉक्टर कर रहे है !ऑपरेशन सफल हो गया है। वह अब ठीक हो जाएंगे ।वह ठीक हो जाएगा ।मत रो प्लीज।
वह फफक ती रही। मैं शांत कराता रहा ।कुछ देर में उसका फफक ना बंद हुआ ।अब सानू और विवेक को कुछ तसल्ली सी हो गई थी।
डिगबोई से आते ही विवेक ने ओल्ड राजेंद्र नगर में एक धर्मशाला का एक कमरे का सेट रेंट पर ले लिया था। मैं धर्मशाला की ओर पलटा था ।सानू मां के पास और विवेक बाबा के पास रुकने के लिए वही अस्पताल में ठहर गए थे।
हम सभी भगवान का लाख-लाख शुक्रिया अदा कर रहे थे। कि ऑपरेशन सफल होने की खुशखबरी डॉक्टर ने हमें दी थी।
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