गोपाल गोपाल सानू को लेकर दुखी था।इसलिए कि अभी तक उसने सानू के लिए अच्छा लड़का ढूंढ पाया था। शादी नहीं करा पाया था।
इसके लिए अच्छे लड़के लोकल लड़के नहीं मिले। 2-4 आए थे और सानू ने उन्हें नापसंद कर दिया था ।
अंजली का देवर था जो सानू को पसंद करता था। मगर अंजली के देवर से बात चलाने से सानू ने हीं मना कर दिया था। दो बहनों की एक ही घर में सही नहीं है। ऐसा कह कर सानू ने मना कर दिया था।
अब सानू के दिल में क्या बात था? वह तो अलग बात थी। मगर मना कर दिया था ।
सानू सरकारी नौकर थी। तो उसके लिए ऐसा ही लड़का ढूंढ थोड़ा जा रहा था। मगर सरकारी वाले एक आधआए भी तो ऐसे जो अपने स्टेटस के ही नहीं थे ।और उसके लिए सानू को तबादला करना पड़ता ।और सानू मां बाप को छोड़कर दूर जाना नहीं चाहती थी ।ईस बात का जिक्र को पालने दुखी होते हुए मुझे बताया था।
या यह बात भी हो सकती थी। कि सानू अभी शादी के लिए सीरियस नहीं थी। शादी के लिए मेंटली प्रिपेयर नहीं थी।
यह बात नहीं थी। कि सानू के लिए लड़के नहीं मिले थे ।मगर बेरोजगार लड़कों से शादी करवा कर उसके जिंदगी में जहर घोल ने से अच्छा यही होता की शादी ही ना कराते।
इस वक्त सानू की उम्र भी हाथ से निकलती जा रही थी। सानू का उम्र ढलता जा रहा था। मगर अभी तक ठोस डिसीजन वह लेने नहीं पा रही थी ।दिल से जितना वह मजबूत थीं। अपने आप कोई ऐसा कदम नहीं उठा पाती।
गोपाल कहता यह बताए तो। जाति बिरादरी का नाम भी हो तब भी मैं उसके हाथ पीले कराने के लिए तैयार हूं ।मगर सानू को कोई पसंद भी आए तब ना!
कहता कहता गोपाल खामोश हो गया था। जैसे बहती हुई नदी अचानक बहती- बहती रुक सी गई हो! समंदर की लहरों में अचानक रवानगी खत्म हो गई हो!
मैं- चिंता क्यों करते हो ?हो जाएगी उसकी शादी भी ।हो जाएगी। कन्यादान तुम ही करोगे। तुम भी डांस करोगे।
गोपाल मुस्कुराया भर। नहीं न कह सका!
गोपाल की आंखों में नमी भर गई थी। शायद वह मेरी बातों को भी ..न ,करना नहीं चाहता था। वह नहीं चाहता था कि उसके लिए मेरे आंखों में भी आंसू बह आए ।
दिल्ली में पहली बार जब अस्पताल में देखने के लिए गया था ।तब उसकी बातों से मेरी आंखें नम हो गई थी। मैं बोला था -तुमसे मिलने के लिए मैं डिगबोई आना चाहता था। मिलना चाहता था। मगर यूं ऐसी हालात में मिलोगे मैं सोचा ही नहीं पाया था। मेरी आंखें नम हो गई थी। मेरी आंखों की नमी को उस ने भाप लिया था ।
मैं बोला भी था -अब रुलाओगे क्या?
तुम ठीक हो कर जल्दी से डिगबोई पहुंचा तो। फिर उन गलियों में एक बार हम जरुर घूमेंगे। उन भूले हुए यादों के सिलसिले में फिर से एक बार गुनगुनाएंगे ।
मैं आंसू में भर गया था ।उसे पता था ।मेरे दिल की बात आंखों की नमी को फिर मैं जल्दी से निकला था ।शाम को फिर आऊंगा कह कर।
वह बोला- शाम को भी आधे घंटे के लिए सिर्फ दो आदमी को मिलने देगा।
मैं बोला -फिर कल सुबह मिलूंगा!
गोपाल बोला- यही ठहर जाना। कमरे में( फ्लैट में )
मैं बोला -ठहरने का कोई प्रॉब्लम नहीं है! मैं यही दिल्ली में रहता हूं! तुम्हें पता तो है!
गर्मी का मौसम तेज पर था।
दिल्ली की गर्मी यूं ही कड़क होती है ।दिल्ली का मौसम- गर्मी में अत्याधिक गर्मी! और ठंड में भी अत्यधिक ठंड सा हो जाता है।
मगर, गंगाराम के अस्पताल वार्ड में गर्मी का एहसास नहीं होता ।पूरा का पूरा अस्पताल चिल्ड होता है ।मरीज और कोई भी अस्पताल के अंदर रहने वालों को गर्मी का एहसास होता ही नहीं है।
मैं बोला था- बाहर बहुत गर्मी है ।यहां गर्मी की वजह से इधर उधर जाने में तकलीफ होती है।
उस वक्त जब पहली बार अस्पताल में एडमिट था ।तब यहां ठहरने के लिए किसी को डॉक्टर ने यह अस्पताल आथरिटी ने इजाजत न दी थी। मगर विवेक नीचे बने वेटिंग रूम में ठहरा रहता ।न जाने बाबा को किस चीज की जरूरत पड़े ।और कब बुला ले।
विवेक से भी यहां पहली बार मेरी मुलाकात हुई थी।
कई सालों बाद भाभी और सानू से भी।
विवेक को देखकर लगा था -कि यह डिगबोई आया हुआ है।
विवेक और मैं बातें करने लग गए थे ।विवेक ने जहां ठहरे थे वहां ले गया था मुझे ।तब मामला इतना सीरियस लगा ना था।
भाभी बोली थी- हमें पता ही नहीं था! कि वह ग्रुप वाले जैसे किसी भी को भी ब्लड दान दे सकता है। वैसे ही लीवर भी डोनेट कर सकता है। तब जाकर मैंने फैसला किया कि मैं इनको लिवर डोनेट करूंगी।
मेरे दिमाग में भी यह नहीं था या लिवर ट्रांसप्लांट का मामला है। और महीने भर की दिल्ली में स्टेबिलिटी होगी फिर डिगबोई रवानगी।
बच्चे और भाभी भी यही सोच रही थी। मगर मामला इतना हल्का न था ।जो लंबा खींचने वाला था। किसी ने भी यह नहीं सोचा था।
लिवर ट्रांसप्लांट के बाद भी डॉक्टर रोज ब्लड टेस्ट करते रहे ।
उसकी चमड़ी बिल्कुल पतली हो गई थी। कागज की तरह हो गई थी ।चेहरे में और शरीर में डार्कनेश आ गया था ।
यूं तो डार्कनेस पहले से ही था। डिगबोई से आते वक्त भी डार्कनेस था ।आब तो चेहरा और ज्यादा डार्क हो गया था।
मैं कुछ दिन से उन्हीं के पास पड़ा था ।मुझे हर वक्त डर लगा रहता- कि अब सांसे ना बंद हो जाए। अगर सोते देखता तो उसके छाती पर नजर गड़ाता- सांसो को चढ़ता उतरता देखकर तसल्ली होता। कि आदमी जिंदा है। थोड़ी सी देर अगर सांसो को ना ही देखता तो मेरा दिल की धड़कने तेज हो जाती।
सबको पता है- मौत की सच्चाई फिर भी आदमी क्या करता ? इंसान को मौत से कोई नहीं बचा सकता? खुद भगवान भी नहीं! फिर डॉक्टर क्या चीज है? सारा खेल उसी का रचाया हुआ है।
मैं देख रहा था गोपाल की स्थिति में कोई सुधार नहीं था दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी।
अभी किराए के फ्लैट में थे ।
मगर अब डायरिया या का दौर शुरू हो चुका था।
एक तो कब की वजह से खांसी बरकरार थी। थुकपे थुक निकलना ।थूकना फिर वोमिट। अब डायरिया।
पहला दो-तीन दिन तो चलकर पकड़कर टॉयलेट में को मोड पर बिठाते रहे ।इस स्थिति में सुधार नहीं। और फिर गिरावट थी। शुगर बड़ा हुआ था ।
बीपी भी बड हुआ था। सांसो में नियंन्त्रण नहीं था।
भाभी दूसरे कमरे में बैठ कर रो लेती- बोलती क्या सोच कर आए थे। विवेक! क्या हो रहा है!
मैं भाभी को कहता- क्यों रो रही है। अभी कुछ हुआ थोड़े हैं। यह तो लिवर ट्रांसप्लांट के बाद होने वाले साधरण दुश्वारियां है ।डॉक्टर ने बताया है- सब कुछ ठीक चल रहा है! और खौफ़ खाने की कोई जरूरत ही नहीं है।
मेरी तसल्ली से भाभी को कोई खास तसल्ली नहीं मिलती ।क्योंकि स्थिति वह सामने देख रही थी। जो भी गुजर रहा था ।उसे अपनी आंखों से देख रही थी।
बाबू आंसुओं को पूछ कर धीरे से बोलती- मैं समझ नहीं पा रही ;कि सुधार क्यों नहीं हो रहा। एंटीबायोटिक कम कर दी गई है। विटामिन बी दिए जा रहे हैं। प्रोटीन डाइट भी दिए जा रहे हैं। मगर स्थिति में कोई सुधार नहीं है। दिन-ब-दिन और ढलता जा रहा है।
भाभी को क्या कुछ अंदेशा हो गया था! क्या उसे इनट्यूशन मिल गई थी ?वह हर वक्त भगवान के जाप में लगी रहती थी। क्या उससे किसी बात का पहले ही पता था? क्या दुनिया को वह यह नहीं दिखाना चाहती थी- कि हमने कुछ नहीं किया , हमने मरिज को बचाने की कोशिश ही नहीं की ।दुनिया को यह भी दिखाना चाहती थी- कि उनके लिए मैंने अपना लिबर डोनेट किया है। शायद उसे सब कुछ पता था। सब कुछ!
अभी अंदरूनी कम्युनिटी में ह्रास होता जा रहा है ।
ड्रग्स दे देकर अंदर की है एम्यून सिस्टम को दबा रखा था। अब वह दवा कम करने की वजह से फिर से ऊभर आया है। और डॉक्टर इसी तरह धीरे-धीरे दवाई का डोज कम करा रहे हैं। फिर धीरे-धीरे लेवल में आएगा।
मौत की परछाई धीरे-धीरे गोपाल की और सड़क रही है।
मौत के काले बादलों से आसमान बिल्कुल काली मां मय हो गया है ।चारों तरफ तेज हवाएं हैं। घुप अंधेरा है। शहर की पत्तियां गुल हो चुकी है। उसी वक्त यमराज धीरे-धीरे गोपाल की ओर अपने मंद मंद मुस्कान लिए बढ़ रहा है। भाभी को क्यों न जाने ऐसा लग रहा है।
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