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कसाईबाड़ा 3

17 नवम्बर 2022

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एक जानलेवा खेल।
पौराणिक काल में वैद्य होते थे । वी आदतन विरक्त रहते थे । उन्हें न अपनी कमाई की फिक्र होती थी  ।न हीं अपने स्थिति की। वे सिर्फ इंसान की भलाई के लिए काम करते थे। इंसान की निरोगिता  के लिए काम करते थे।

मगर अब जमाना बदल गया। साइंस का जमाना आ गया। प्रयोग का जमाना आ गया। बड़े-बड़े कालेज बन गए -बड़े-बड़े यूनिवर्सिटीज बन गए!

 अच्छे घराने के लोग चिकित्सा क्षेत्र को अपना धर्म नहीं पेशा बनाने लगे ।चिकित्सक की डिग्री हासिल करने में दिमाग का होना तो जरूरी माना गया- मगर उसका चरित्र को नहीं देखा गया।
 चरित्र को कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती। चरित्र का अर्थ ही नहीं रह गया। बड़े-बड़े विश्वविद्यालय मे जहां लाखों रुपए के डोनेशन देने के बाद एक बच्चे को एडमिशन मिलता है। या फिर किसी नेता अभिनेता या फिर किसी और की सिफारिश से प्रवेश लेकर चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करने के बाद -उनमें मानवता जैसी चीज खत्म होती जाती है। मात्र रह जाता है-" पैसा" किस तरह लाखों का खर्चा जो किया गया है !उसे भरपाई करे ।

तब चिकित्सा, चिकित्सक न रहकर एक खिलाड़ी रह जाता है ।जो जानलेवा खेल  खेलता है। उसे प्रैक्टिशनर कहा जाता है।
 वह मानव शरीर को एक प्रयोग की वस्तु समझकर, दवाओं का प्रयोग करके देखता है। ठीक हुआ तो ठीक ।नहीं हुआ तो भी ठीक।
 कोई अर्थ नहीं रह जाता ।डॉक्टर जानलेवा खेल के मूल खिलाड़ी होते हैं। वह परफेक्ट कभी नहीं होते । कोई डॉक्टर गारंटी के साथ यह नहीं कह सकता कि मैं परफेक्ट हूं ।मैं डॉक्टर हूं ।
इस बात से एक सवाल खड़ा होता है। डॉक्टरी पेशा की ओर उंगली उठती है ।इस पेशा की ओर ।क्योंकि, यह पेशा बना हुआ है ।धंधा बना हुआ है।
 मगर अब इसमें कोई सेवा भाव नहीं है ।डॉक्टर 10 मिनट बात करने का ₹50 से लेकर 5000, 10000 तक वसूल करते हैं। यह भी देख देख कर है । 
दौलत की भूख उसकी दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ती जाती है ।विमार इंसान विमार इंसान ना होकर उसके, लिए प्राइवेट अस्पताल के लिए, पैसा छापने का मशीन बन जाता है। उसके पेट चीरकर भी पेट चीरकर पैसा निकाला जाता है।
 सफेदपोश काम में काला काम यू चलता है। काला धंधा है यह, सफेद मुखौटे में लिपटा। काला धंधा ।
आदमी की मजबूरी का फायदा उठाने का धंधा। आदमी को शालीनता से लाकर चीर कर पैसा उगाही का धंधा।
पैशाचिक खेल खेल है यह।
अपराध जगत में लोग सुपारी लेकर हत्या करते हैं ।पैसा कमाते हैं। लोगों का जान लेते हैं। लोगों को सरेआम या फिर किसी तरह हत्या करने के लिए सुपारी ली जाती है। वह तो किसी के साथ जब दुश्मनी होती है। किसी से खून्दस होता है ।
अपराधिक मन मस्तिष्क वाले अक्सर यू करते हैं ।या फिर किसी आर्थिक फायदे के लिए किसी की भी सुपारी लेकर हिस्ट्रीशीटर हत्या कर देते हैं ।और उस पैसे से अय्याशी करते हैं। यह तो अपराधिक जगत की बात है- जहां इंसान की कीमत सिर्फ एक गोली के बराबर होती है।
इंसानी जिंदगी के कोई मायने नहीं होते । एक इंसान सिर्फ दूसरे इंसान की सुपारी इसलिए लेता है- कि उस शख्स की जान लेने में उसे चंद रुपय मिल जाते हैं ।अपनी अय्याशी के लिए अपने और जरूरी कामों के लिए ।

और वह सुपारी किलर फिर आगे सुपारी का इंतजार करता है ।किसी और को मारने की तैयारी करता है ।ऐसा चलता रहता है ।जब तक वह सुपारी किलिंग में जेल के अंदर नहीं चला जाता।
 मगर इसके उलट बिन सुपारी के किसी की हत्या करना धीरे-धीरे मरीज को या इंसान को डिसेबल बनाना ।उसे चूसना उसकी दौलत को चूसना ।सर्जरी के बहाने जिसे सर्जरी की जरूरत नहीं, ट्रांसप्लांट ऑर्गन ट्रांसप्लांट की जरूरी नहीं ।जो बगैर ट्रांसप्लांट के भी जी सकता था -उसे ट्रांसप्लांट करवा कर उसे मौत के घाट उतारना ।अब बड़े-बड़े प्राइवेट अस्पतालों का पेशा रह गया है ।
पैसे की भूख उन हिस्ट्रीशीटर से भी ज्यादा बढ़ गया है ।दौलत !दौलत! दौलत!
 दौलत की भूख इंसान को इंसान रहने नहीं देता ।इंसानियत को जिंदा रहने नहीं देता। प्यार को बरकरार रहने नहीं देता।
ऑर्गन ट्रांसप्लांट करना, सफल ट्रांसप्लांट करना ,और किसी की जान बचाना अहम किरदार का रोल करना डॉक्टरी पेशा है। 
मगर कई बार यह पता रहता है ऑर्गन ट्रांसप्लांट के बाद भी मरीज जिंदा नहीं रहेगा। फिर भी इसलिए ट्रांसप्लांट किया जाता है- कि ट्रांसप्लांट -फिर आईसीयू- सिर्फ एक रुपए की दवा  ₹100 में बेचना !महंगा हॉस्पिटैलिटी !  आईसीयू के बाद वेंटिलेशन!  वेंटिलेशन के बाद मौत सिर्फ मौत।
 वाजिब मौत नहीं ।ऑपरेशन के कारण मौत। ट्रांसप्लांट के कारण मौत ।
डॉक्टरों का एक टीम लाभान्वित होता है। अस्पताल फलने फूलने लगता है।
 लोग सोचते हैं अपनी मौत मरा है ।
अंतिम में डॉक्टर यह बताने लगता है -हमारे हाथ में कुछ नहीं है । भगवान के हाथ में है सब कुछ ।
ऊपर बैठा सुपर नेचुरल पावर सब कुछ करता है। मगर सब कुछ भगवान के हाथ में है तो तुमने किसी की छाती क्यों चीरा। कितने लाख रुपए निकाले तुमने छाती चीरकर ।कितने लाख?

मेरी डॉक्टरों से सर्जनों से कोई दुश्मनी नहीं है। और ना ही इल्जामात लगाने के लिए मैं यह लिख रहा हूं।  मैं इन अस्पतालों का जिक्र यहां करता रहा हूं ।जहां पता होता है मरीज नहीं बचेगा। डॉक्टर को पता चल जाता है जब एक इंसान का कई आर्गन एक साथ काम करना बंद कर देते हैं- तो डॉक्टर को इंडिकेशन तभी मिल जाता है। कि इस मरीज की मौत इसकी जिंदगी चंद रोजो की है ।
अगर आप्रेशन न करें तो मरीज ज्यादा जी जाएगा ।मगर ऑपरेशन व्यर्थ करते हैं ।
क्यों ...?
सिर्फ अस्पताल को चलाने के लिए? अपनी दौलत की प्यास बुझाने के लिए ?
और उनकी दौलत की प्यास इतनी भयानक होती है ।कि सुपारी किलिंग से भी ज्यादा जानलेवा ।
धीरे-धीरे मरीज की ओर बढ़ता हुआ मौत। धीरे-धीरे दौलत उनकी झोली में डाल जाता है।
 और उसकी लाश भी दे जाती है कई लाख रुपए । डॉक्टर उन्हें बचाने का स्वांग रचाते हैं। उसे वेंटिलेटर में भेज देते हैं ।वेंटीलेशन में अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती। कहते हैं इंफेक्शन होगा ।दूर से चलता हुआ ऑक्सीजन के बुलबुलों उससे आदमी सोचता है। मेरा भाई जिंदा है। मेरा बाप जिंदा है। मेरी मां जिंदी है।
 मगर यह उसका अंतिम पड़ाव होता है ।इसके बाद उसका सफर- मोर्चरी फिर श्मशान घाट का ही होता है।

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रचनाएँ
कसाईबाड़ा
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मेरे बचपन के दोस्त पराशर जो उक्त घटना के शिकार हुए ।जो खेल डॉक्टरों ने नामी-गिरामी अस्पताल मैं उनके साथ खेला। उनके परिवार के साथ दरपेश आए ।वह मेरा दोस्त ही नहीं था। बड़ा भाई था ।जिगर का टुकड़ा था। और उस इंसान के साथ अस्पताल के डॉक्टरों ने, डॉक्टरों के देखरेख में एक गेम खेला ।ऑपरेशन और मौत का घिनौना गेम! जिसमें उनकी मौत निश्चित थी ।मगर ऑपरेशन करना इसलिए जरूरी था- कि उसके छाती में ही 4000000 अटका हुआ था ।उसे निकालने के लिए घटनाक्रम को अंजाम दिया गया ।
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16 नवम्बर 2022
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वह दिन था और आज का दिन है- शुरुआत कहां से करूं !मैं वहा-पोह में था ।मैं चाहता था हर क्रियाकलाप का एक वीडियो  चित्रण करूं। मगर फिर सोचा कि मेरे दोस्त को लगेगा कि यह मेरी जिंदगी की घटनाक्रम को एक व्यापा

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16 नवम्बर 2022
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हां !कसाईबाड़ा ही कहा जाएगा! कसाई जानवर तथा पक्षियों को मारकर उसका मांस बेचते हैं ।लोगों को खिलाते हैं ।इंसानी भूख मिटाते हैं ।यह भी कसाईबाड़ा है। जिक्र करना बा मुश्किल पड़ जाता मुझे- अगर हालात से मैं

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17 नवम्बर 2022
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एक जानलेवा खेल।पौराणिक काल में वैद्य होते थे । वी आदतन विरक्त रहते थे । उन्हें न अपनी कमाई की फिक्र होती थी ।न हीं अपने स्थिति की। वे सिर्फ इंसान की भलाई के लिए काम करते थे। इंसान की निरोगिता&nb

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17 नवम्बर 2022
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जिंदगी का सफर।जिंदगी खुशनुमा इबादत सी हुई थी। पांच भाइयों में तीसरे नंबर का था। भाइयों का नंबर यह नंबर उसका लकी नंबर भी रहा। मगर मैं बचपन से लेकर अभी तक की घटनाओं का जिक्र करूंगा, तो मुझे दो तीन

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17 नवम्बर 2022
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मैं अभी अपने काम से शाहबाद ( बादली दिल्ली )के पास था। अचानक फोन आया भतीजी -दीपांजलि का! जिसे हम सभी घर में प्यार से सानू बुलाते थे। अभी फिलहाल तो बड़ी हो गई है ।मगर हमारे लिए तो वह फिर भी

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18 नवम्बर 2022
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जिंदगी को मौत के हवाले।गुवाहाटी मेडिकल अस्पताल का डॉक्टर जो थे। उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया था ।कहा-भाई ऑपरेशन जरूरी है ।ऑपरेशन के बगैर जिंदगी बचनी नहीं है ।क्या ट्रांसप्लांट के बाद जिंदगी बच जाएगी

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18 नवम्बर 2022
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तभी दामाद जी इंटरनेट पर लिवर स्पेशलिस्ट तलाश करने लगे। तलाश करके उन्होंने बताया कि गंगाराम में एक डॉक्टर है- डॉक्टर सुधीर! जो लिवर ट्रांसप्लांट के माहीर स्पेशलिस्ट है ।फिर एक आद बार जमाई, फिर हमन

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19 नवम्बर 2022
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आप गोपाल के लिए लिवर डोनेट करेंगी?हां! भाभी ने जवाब दिया -"इसके बाद वे ठीक हो जाएंगे।"डॉक्टर से बात हो गई है?नहीं !अभी जब पानी ज्यादा भर गया तो यहां जो भी डॉक्टर मिला- उसी के हवाले हमने कर दिया।डॉक्टर

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19 नवम्बर 2022
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विवेक और भाभी और सानू सभी ने यही कहा था- कि हमें तो गंगाराम में इस खातिर भेजा गया ।कि यहां के स्पेशलिस्ट डॉक्टर है जो पापा की ऑपरेशन अर्थात ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक हो जाएंगी। और हम यहां बाबा के

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19 नवम्बर 2022
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डॉक्टरों की मीटिंग बैठी हुई थी मेडिसिन से सर्जिकल मे ले जाते वक्त डॉक्टरों की खींचातानी के बीच में दश दिन गुजर गए थे। डॉक्टर शुगर कंट्रोल के लिए इंसुलिन चढ़ाते खाना वही देते जो साधारण व्यक्ति को खिलाय

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24 नवम्बर 2022
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ऑपरेशन की रात थी वह।रात के करीब 11:00 बजे डॉक्टर सुधीर ने विवेक को फोन लगाया। विवेक, सानू और मैं ऑपरेशन थिएटर के बाहर पहुंचे। पांचवी मंजिल पर जहां लीवर संबंधित ऑपरेशन हो रहा था।गार्ड़ने हमें याद

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25 नवम्बर 2022
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ऑपरेशन के दूसरे दिन।एक नई सुबह लेकर आई थी ।ऐसा लगता था जैसे आसमान में काले बादल मडरा तो रहते हैं मगर धूप चमक सी रही थी। माहौल कुछ सुहाना सुहाना सा लग रहा था।मैं दोपहर के समय आज धर्मशाला से निकल कर भाभ

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25 नवम्बर 2022
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थूक पर थूक।आदमी थुक पे थुक ता रहे , 4 मिनट में खा कार से खाकर निकलता रह। तो स्वस्थ हो कैसे पाएगा। खाना पचाने के लिए जो इंसान की जरूरत है ।वह तो निकला जा रहा है ।हर वक्त ।आदमी खाना कैसे पचा आएगा ।

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26 नवम्बर 2022
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विवेक फ्लैट में चला गया था।मैं गोपाल के पास घर गया था। गोपाल की स्थिति अभी भी ठीक नहीं थी।हर मिनट में उसकी खकार निकलती और थुक निकलता ।मैंने पेट के बारे में पूछा बताया- हल्का सा दर्द है !अभी दर्द काम ह

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4 दिसम्बर 2022
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ऑपरेशन के बाद---!फ्लैट में लौटने के बाद, दूसरी बार फिर से अस्पताल में भर्ती किया गया था। दर्द था। पेट में, बहुत सारा दर्द था ।खाने में शायद कुछ कोताही बरती गई थी। डॉक्टर का मानना था।जबकि डॉ यह कह चुका

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4 दिसम्बर 2022
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एक बात मुझे डॉक्टर से पूछनी थी। यही बात मैं कह रहा था और भाभी भी यही सवाल कर रही थी। डॉक्टर से मुलाकात के लिए ₹2000 की पर्ची कटवानी थी ।जब 28-30 लाख खर्च किया तो फिर 2,000 की तो कोई बात नहीं थी।डॉक्टर

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4 दिसम्बर 2022
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एक सीक्रेट मीटिंग थी वह।सिर्फ गोपाल से रिलेटेड डॉक्टर थे ।उस मीटिंग पर नर्स कंपाउंडर तथा कोई भी आदर स्टाफ नहीं आ सकता था ।थोड़ी देर की मीटिंग थी ।गोपाल से संबंधित बातों को करना था। उसके हेल्थ चे

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5 दिसम्बर 2022
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गोपाल की जिद तेज हो गई थी।मुझे जाना है -घर जाना है!डॉक्टर सुधीर- मगर अभी आप ठीक हुए नहीं है ;जनाब !बस 15 दिन बाद हम आपको चलने लायक कर देंगे ,फिर आप घर चले जाना।गोपाल- घर का मतलब यहां जहां बच्चे ठहरे ह

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5 दिसम्बर 2022
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एंटीबायोटिक की मात्रा कम कर दी गई थी। शक्ति के लिए खाने से रिकवरी करने की बात कही थी । प्रोटीन डाइट ज्यादा से ज्यादा करने का न्यूट्रिशन ने चार्ट सा बना कर दिया था। चार्ट देखकर मुझे लगने लगा था इत

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5 दिसम्बर 2022
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एंटीबायोटिक की मात्रा कम कर दी गई थी। शक्ति के लिए खाने से रिकवरी करने की बात कही थी । प्रोटीन डाइट ज्यादा से ज्यादा करने का न्यूट्रिशन ने चार्ट सा बना कर दिया था। चार्ट देखकर मुझे लगने लगा था इत

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6 दिसम्बर 2022
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उस दिन मैं सुबह 11:00 बजे के करीब उनके फ्लैट में पहुंच गया था। यह सोच कर- कि आज दिनभर इनके पास रहूंगा, और रात होने से पहले निकल चलूंगा। इंसान की अपनी प्राइवेसी भी होती है। इंसान की अपनी लाइफ

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6 दिसम्बर 2022
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विवेक पापा के जीद पर उन्हें घर ले आया था। मगर तीसरे दिन के बाद वह मुश्किल हुआ जा रहा था ।अचानक पेट का दर्द बढ़ गया था। पेट का दर्द क्यों बड़ा? क्या वजह थी, कि पेट में दर्द बढ़ने लग गया

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7 दिसम्बर 2022
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शायद..?क्यों? मैं बयां करना उचित नहीं समझता था! जो गोपाल अपने बच्चों से दरपेश आता था। खैर.. मैं उन खोए हुए हुए यादों को, बिखरे हुए सपनों को, फिर से समेटकर मूर्त रूप देना नहीं चाहता था। कि बच्चों

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7 दिसम्बर 2022
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मैं जब भी गोपाल के पास पहुंचता ,गोपाल मुझसे अपने पांव दबवाता। मैं भी बड़ी खुशी- खुशी उसके पाव दबाने लग जाता। गोपाल के शरीर को तेल लगाकर मसाज करता । मगर मुझे एहसास सा होता था जा रहा था। अभी शरीर

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8 दिसम्बर 2022
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सबके चेहरे में मायूसी सी थी। गोपाल, विवेक, सानू ,भाभी सभी बोलते तो भी मुझे लगता था ।जैसे दिल में बहुत बड़ा वजन रखकर बोल रहे हो ।दिल का बोझ बढ़ता जा रहा था। जैसे दिल भी सोच सोच कर धड़क रहा था

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8 दिसम्बर 2022
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गोपाल गोपाल सानू को लेकर दुखी था।इसलिए कि अभी तक उसने सानू के लिए अच्छा लड़का ढूंढ पाया था। शादी नहीं करा पाया था। इसके लिए अच्छे लड़के लोकल लड़के नहीं मिले। 2-4 आए थे और सानू ने उन्हें नापसंद कर

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8 दिसम्बर 2022
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विवेक भी खौफ जदा था ।अब पापा बिस्तर में ही गंदगी छोड़ने लगे हैं। उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि कब लैट्रिन उतर गई ।फिर उसे साफ करते बच्चे फिर सभी मिलकर उसे करवट लीटाने की कोशिश करते ।और साफ करते।

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9 दिसम्बर 2022
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धीरे धीरे मौत का साया गोपाल की ओर बढ़ रहा था। गोपाल को भी एहसास था ।अब मैं शायद ठीक ना हो पाऊं। गोपाल- तुमने लिवर डोनेट क्यों किया? इसी लिवर के ऑपरेशन से मैं ज्यादा परेशान हो गया हूं!भाभी- हम आप

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10 दिसम्बर 2022
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पल- पल हर एक घड़ी गोपाल की जिंदगी की डोर ढीली पड़ती जा रही थी। गोपाल की आंखें सफेद सी बढ़ती जा रही थी ।आंखों में होने वाली लाली खत्म थी। जिस्म यूं भी पहले दिन से सुजता हुआ जा रहा था ।वह कभी ठीक हो कि

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10 दिसम्बर 2022
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मौत!?मौत की ओर हर इंसान सरक रहा है। हर इंसान का अगला कदम मौत की ओर होता है ।इंसान और मौत का गहरा रिश्ता है। एक न एक दिन उसकी आगोश में समाना ही है। मगर इंसान को इस धरती पर परमेश्वर ने जीने के

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12 दिसम्बर 2022
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सानू अपने पापा की कैंसर होने की बात को लेकर ज्यादा डिक्लेअर डिस्टर्ब हो गई थी।मैं महसूस कर रहा था ।उसकी आवाज में थर्रा हट थी। जब वह मुझसे इस बारे में बात कर रही थी।मैंने पूछा- किस स्टेज में है?स

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12 दिसम्बर 2022
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अगला दिन था।सुबह नाश्ता करके मैं और भाभी भोपाल से मिलने के लिए चले गए थे। रूम सिंगल सा ले रखा था। फिर भी डॉक्टर यहां एक एक एटेन्डेन्ट से ज्यादा रहने की इजाजत नहीं देते। फिर भी हम चले गए थे ।इस व

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13 दिसम्बर 2022
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लीवर खराब था। तो उसके लीवर को ट्रांसप्लांट किया गया। गलत हिस्सा संपूर्ण लीवर निकालकर, भाभी के लिवर का 60 परसेंट हिस्सा निकालकर गोपाल के लीवर की जगह जोड़ा गया था। अब इस नाकामयाबी का श्रेय दे रहे थे। कि

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13 दिसम्बर 2022
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अब भाभी को भी बताना जरूरी था डॉक्टर कैंसर का इफेक्ट बता रहे हैं ।और बताया गया था।पहले लिवर में कैंसर बताकर ट्रांसप्लांट करवाया अब चेस्ट में ही कैंसर बता रहे हैं। भाभी का यह कह भी रो-रोकर हाल बुरा था।

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14 दिसम्बर 2022
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धीरे -धीरे मौत के साए गोपाल पर हावी होते गए थे। मौत अपने नाखूनों को तेज कर के लंबे-लंबे राक्षसी दांत बाय गोपाल की ओर बढ़ रही थी।हम मूकदर्शक बने देखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकते थे।डॉक्टरों क

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14 दिसम्बर 2022
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वेंटीलेशन के लिए सभी डॉक्टर जोर देने लगे। अगर कुछ होता है तो ,हम जिम्मेदार नहीं है। अब अंतिम अवस्था में भी वेंटिलेशन के अंदर डालकर ।पैसा अशूली का घिनौना खेल खेला जाने वाला था।जिस डॉक्टर ने ल

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14 दिसम्बर 2022
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मैं राजू और विवेक रात भर अस्पताल की वेटिंग रूम में रूक गये थे।विवेक ने कुछ भी नहीं खाया था। 2 दिन हो गए थे ।अब उसका चेहरा लगता था -जैसे चेहरे को अभी-अभी पानी से धो आया हो। भी गवाह आसुओं से भीगा

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15 दिसम्बर 2022
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परिवार के कुछ और सदस्य आ गए थे।वक्त!? गोपाल के पास न था ।बस अब तो शरीर का मिट्टी में तब्दीली का इंतजार था। कब डॉक्टर खबर करें कि अब गोपाल नहीं रहा!ऐसा इंतजार!? लंबा होता है ।जानलेवा ..जानलेव

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15 दिसम्बर 2022
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एक नायाब कहानी का अंत हो चला था। नहीं नहीं में आंसुओं का बाध टूट सा गया था। अस्पताल को अब भी आस थी ।कि दो चार लाख झाड़ जाते। जाते -जाते तुम मौत का हिसाब किताब कर जाते !नहीं ..नहीं में

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15 दिसम्बर 2022
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गोपाल का अंत!गोपाल का अंत ऐसा होगा सोचा न था। यूं सभी बीमारियों का जखीरा लिए ,लंबी-लंबी सांसे भरेगा। आंखों में पथराई आंसुओं में वह मुझ में यूं जी लेगा, सोचा ना था।अगला दिन भी मर्म से भरा था।भाभी जी रह

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