मैं जब भी गोपाल के पास पहुंचता ,गोपाल मुझसे अपने पांव दबवाता। मैं भी बड़ी खुशी- खुशी उसके पाव दबाने लग जाता। गोपाल के शरीर को तेल लगाकर मसाज करता । मगर मुझे एहसास सा होता था जा रहा था। अभी शरीर में जान नहीं रह गई थी ।शरीर में मांस का तो कोई नामोनिशान नहीं था। चमड़ी हड्डी से जाकर सट सी गई थी।
मुझे अपने पापा की याद आ गई थी। जब पापा गुजरे थे। तब मैं उनके पास पहुंच न पाया था। बिल्कुल बीमार हो गए थे ।वे भी बिस्तर से सट से गए थे। उनको वॉशरूम उठाकर ले जाना पड़ता था। मगर कोरोनावायरस की वजह से फुल लॉकडाउन की वजह से मैं उनके पास पहुंच न पाया था। मुझे मलाल है कि मैं उनकी सेवा न कर पाया था।
मैं पापा की इतनी सेवा न कर पाया जितनी सेवा में गोपाल की कर रहा था। मेरे पापा जब गुजरने वाले थे -मुझे छोटे भाई ने कॉल किया था। पापा अभी बिस्तर में ही गंदगी करने लगे हैं ।
तब मैं मैं भाइयों का फोन उठाने से भी डरता था। कब यह समाचार आ जाए, कि भाई बोले- पापा नहीं रहे !
फिर भी जाने वाले को हम इंसान रोक नहीं सकते ।हमारे बस में कुछ नहीं है।
जब ऊपर वाले का बुलावा आता है। तब तत्काल इंसान को जाना होता है ।इंसान एक क्षण भी यह नहीं बोल सकता। रुक जाओ मैं फलाने से यह बोल आता हूं ।या बस रुक जाओ मैं यह काम कर लेता हूं। या रुक जाओ मैं फलाने से मिलाता हूं ।
नहीं बस मौत आती है- तो ले ही जाती है। किसी की नहीं सुनती।
6:45 बजे के करीब मेरे छोटे भाई का सुबह कॉल आया था। उसने बाल सिलवा रखे थे। कहां पापा जी अभी नहीं रहे। कोरोनावायरस था आदमी हिल ही नहीं सकता था। घर जाने की बात तो दूर पापा के अंतिम दर्शन भी कर न पाया। मलाल दिन में रह गया। मगर पता है-- यही होता है।
खैर..!!
मैं कोशिश करता कि गोपाल को कुछ राहत महसूस हो। कुछ आराम हो। कुछ अच्छी नींद आए।
मगर गोपाल रिकवरी की ओर जा ही नहीं रहा था। थुकपे थुक हर मिनट में तो निकलता। जब खाना पचाने वाला थुक ही शरीर में नहीं रहा तो- वह इंसान क्या कर सकता था ?
इसी से पैदा होता है- कैंसर ।मेरे दिल कहता । मगर, फिर भगवान से मनाता कि मेरा दोस्त ठीक हो जाए !
सही सलामत घर लौट जाए।
अब गोपाल की मुश्किलाते है और ज्यादा बढ़ गई थी।
अब सीने में भी छेद करके पानी निकाला जा रहा था।
इस बात का जवाब डॉक्टर सुधीर -लिवर स्पेशलिस्ट एंड स्पेशलिस्ट इन ट्रांसप्लांट एंड सर्जरी के पास भी नहीं था ।
वह मरीज के घरवालों को गेट की तरह कभी इधर डालता कभी उधर डालता ।
तसल्ली बस जवाब उसके पास भी नहीं था। उसे खुद समझ नहीं था -कि क्या माजरा है ?या उन्हें पता था !कि क्या हो रहा है !क्योंकि- ऑपरेशन से पहले ही उन्हें पता था ।मरीज की हालत क्या होने वाला है ।और कितने दिन तक वह सरवाईव कर पाएगा।
उनको सब कुछ पता था। सब कुछ जानते हुए भी, समझते हुए भी ,सर्जरी जैसी कष्टदायक स्थिति से उन्होंने गोपाल को गुजारा था। गोपाल की वाइफ को गुजारा था। वह इसलिए कि आयल इंडिया मरीज की जिंदगी के लिए- उसे सही सलामती के लिए- क्रेडिट यीशु कर रही थी।
उन्हें असूल करना था ।अपनी जेबे भरने था।
रोज कई टेस्ट हो रहे थे ।रोज 20-20 यम यल खून निकाला जाता ।रोज दो बार शुगर टेस्ट होता। पिसाब भी रोज टेस्ट किए लिए जाता। मगर रिकोवरी नकारात्मक नदारद था।
डॉक्टर को पता नहीं लग पा रहा था। कि किस वजह से शरीर में नकारात्मकता बढ़ रही है? किस वजह से प्रॉब्लम बढ़ रही है? क्यों शरीर रिकवर कर नहीं पा रहा ?इतने दवाओं बाद भी मरीज रिकवर कर नहीं पा रहा था। वजह क्या थी!?
पल-पल अपनी और बढ़ते हुए मौत से लड़ते हुए गोपाल की आंखों पर मैं देखता तो यूं लगने लगता जैसे किसी मुर्दे की आंखें हों।
होठों से मुस्कान खत्म हो गया था ।
बोलने की भी तकलीफ होने लगी थी ।
खांसी बढ़ गई थी ।खांसते खांसते वक्त शरीर का सारा का सारा आर्गन हिल जाता। दर्द से कराह उठता।
वह कहता कामाख्या माता रक्षा करना। कामाख्या से लाई हुए एक पीतल की मूर्ति सानू ने पापा के सिरहाने रख दिया था ।
और मंदिर से जाकर पापा के लिए मन्नत भी मांगी ।
मंदिर रोड पर जाकर लक्ष्मी नारायण मंदिर पर भी बैठ कर मन्नते मांगी।
प्रसाद चढ़ा, मंदिर से पूजा करके गले में बांधने के लिए धागा ले आई ।पापा को तिलक करके प्रसाद चटाया।
ऊपर वाले ने गोपाल की कहानी में जो लिख छोड़ा था। वह मिटने वाली नहीं थी ।हर किसी के जिंदगी में ऊपरवाला कुछ ना कुछ लिख कर भेजता है।
जिंदगी तो मौत से दो-दो हाथ करने वाली थी। जब परमपिता ने जो लिख भेजा है- वही अक्षरस होने वाला था। हम तुम कुछ भी करते बदलने वाला न था ।जीतने भी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का चक्कर लगालें।
डॉक्टरों का ड्रामा चल रहा था।
मेरे आंखों के आगे ड्रामा खेला जा रहा था। डॉक्टर के फेरों से बचने के लिए ,दिन के कई कई बार के टेस्ट और डॉक्टरों का हर आधे घंटे का वह दौर से बचने के लिए ,नर्सों की वह खूबसूरत चेहरे के पीछे छुपा सत्य को झांकने से बचने के लिए ,दिन भर के उन मशीनों से, मशीनों की आवाज से बचने के लिए, बाहर की हवा ,आबोहवा थोड़ी-थोड़ी लगे इसलिए, गोपाल ने अस्पताल से फ्लैट में आने की जिद की थी ।
और आ भी गया था।
मगर यह आवागमन भी कितने दिन की थी!?
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