ऑपरेशन के दूसरे दिन।
एक नई सुबह लेकर आई थी ।ऐसा लगता था जैसे आसमान में काले बादल मडरा तो रहते हैं मगर धूप चमक सी रही थी। माहौल कुछ सुहाना सुहाना सा लग रहा था।
मैं दोपहर के समय आज धर्मशाला से निकल कर भाभी के पास ही पहुंचा थ
वह होश में मेथी।
गोपाल भी मुस्कुरा रहा था ।होशो हवास में था। उसके होठों पर मुस्कान मुझे अच्छी लगी। और कुछ खा भी रहा था ।जो अस्पताल में दिया जाता है ।उसके अलावा भी फ्रूट और कुछ खाना खा सकता था।
मगर प्रॉब्लम प्रॉब्लम था।
उसके मुंह के अंदर छाले आए हुए थे ।हर चीज खाया नहीं जा सकता था ।फिर भी खा रहा था। डॉक्टर की सलाह के मुताबिक मुंह से चबा चबा कर खाना जरूरी था। खाएगा नहीं तो ठीक नहीं होगा।
डॉक्टर ने दिन में दो बार शुगर टेस्ट कराना जरूरी कर रखा था । इंसुलिन दिन में दो बार चढ़ाना जरूरी था।
सुबह शुगर मेंटेन रहता। शाम को फिर बिल्कुल ऊपर चढ़ जाता।
सुबह खाली पेट 150 और शाम को 455 मुझे समझ नहीं आ रहा था। यह मामला क्या था? समझ नहीं पा रहा था मैं।
एंटीबायोटिक का ओवरडोज!
हर 2 घंटे में एंटीबायोटिक ।हर घंटे में खाना। कभी अंडा, कभी पनीर ,कभी प्रोटीन पाउडर कभी दूध, कभी खिचड़ी ,कभी क्या !कभी क्या !ओह राम?
क्यों न्यूट्रिशन हर आधे घंटे में खाना खाने के लिए बोल रहा था?
उसके न्यूट्रिशन से मुझे एलर्जी था! मगर मेरा कहना क्यों मानता ;क्यों सुनता !
ख़ैर!!
मुझे अजीब सा फील हो रहा था। उसके खाने से मुझे एलर्जी नहीं था। इसलिए नहीं कि खाना ज्यादा खाना मुझे अजीब सा लगता।
मगर, मैं यह सोच ही रहा था ।कि मुंह के अंदर छाले बढ़ गए थे। खाना खाना मुश्किल सा हो गया था।मरीज का।
डॉक्टर कई चीज मुंह पर डलवाता। मुंह के छाले ठीक करने के लिए।
मरीज सबको खुश हो कर दिखाता ।हूं !मुझे पता था ।उसके अंदर ही अंदर कोई जहर उसे खाए जा रही है ।जो मुस्कान बनकर उसके होठों पर लरज रहे हैं।
क्या वह सच में खुश था?
उसके होठों की मुस्कान वास्तविक थी? या वो नाटक कर रहा था ,ठीक होने का।
गोपाल से खाना खाया नहीं जा रहा था। हर घंटे खिलाना चाहते थे। मगर उससे खाया नहीं जा रहा था ।मुंह के अंदर के छाले ही ।
डॉक्टर ने बताया -बस छाले ठीक हो जाए! खाना ठीक से खाने लग जाए !तो सब कुछ ठीक हो जाएगा! टेंशन फ्री रहो?
डॉक्टर सुधीर ने बताया था- कि ऑपरेशन के 20 दिन के बाद रिलीज कर सकते हैं। यह चलने फिरने लग जाएंगे ।यह अपने पैरों पर चलकर घर जाएंगे ।डॉक्टर आता उसे मीठी मीठी बातें सुनाता। और मरीज को 2 मिनट के लिए बिल्कुल खुश कर देता।
इधर दुसरी ओर भाभी रिकवरी जल्दी कर रही थी ।क्योंकि उनका सिस्टम ठीक था।
डॉक्टर सुधीर ने पहले यह बताया था कि डोनर को 10 दिन के अंदर रिलीज की जाएगी। मगर उनको भी रिलीज करने में 16 दिन लग गए थे।
इधर अस्पताल का बिल बढ़ता जा रहा था। बेवजह दवा और एंटीबायोटिक दी जा रही थी भाभी को भी।
लिवर ट्रांसप्लांट के बाद -मतली आना; चक्कर आना; और डायरिया कामन है ।यह कुछ ही दिनों में रिकवर हो जाएगा।
पहले भाभी के चक्कर आते रहे थोड़ा मुंबई फिर एंटीबायोटिक और दवा से ठीक हो जाएगा ।
बेफिक्र रहे । भाभी थोड़ा बहुत ठीक होने लगी थी ।भाभी तो डोनर थी ।उसे तो किसी प्रकार की तकलीफ थी नहीं ।
मगर ऑपरेशन के बाद उनकी हालत पहले जैसी रह नहीं आती थी।सीधी खड़ी नहीं हो सकती थी ।सीधी खड़ी होती तो पेट में किया गया सिलाई खींचने लगता ।और दर्द बढ़ जाता।
मगर दवाओं का जोर रहा।
फिर मैंने उनसे पूछा कि दवाई इतनी सारी क्यों दे रहे हैं?
भाभी बीमार तो थी नहीं। एंटीबायोटिक ,पेन किलर ,फिर इम्यून सिस्टम को बूस्टप्प करने के लिए दवाएं दी जा रही थी ।भाभी तो रिकोवर होती जा रही थी।
मगर गोपाल की हालात सुधार की ओर नहीं था ।
खाने पर खाना आता ।यह खाना अभी खत्म हुआ था ,कि दूसरा जाता ।
मुंह के अंदर के छाले ठीक होने के नाम नहीं ले रहे थे ।
वह बहुत बड़ी प्रॉब्लम बन के सामने खड़ी हो गई थी ।शरीर का वजन फिर से 42 किलोग्राम से 40 आ चुका था ।
फिर से पानी जमा होने लगा था ।दूसरे हफ्ते फिर 2 लीटर पानी निकाला गया था ।मुंह के छालों की वजह से ओरल ईटिंग कम हो रहा था।
मुंह के छाले तो थे।
मगर प्रत्येक मिनट में थूक , प्रत्येक मिनट मिनट में कफ़। फिर यही सिलसिला चलता रहा। डॉक्टर ने फिजिकल एक्सरसाइज करने के लिए कहा था ।थोड़ा हिलना डुलना ।थोड़ा सांसों को लंबा-लंबा लेना ।हाथ पैर को हिलाना। एक फुकनी सा दे रखा था ।वह कर अपने फेफड़े की शक्ति को बढ़ाने के लिए।
भाभी को छुट्टी दे चुके थे। भाभी को ओल्ड राजेंद्र नगर में ही एक फ्लैट में ठहराया गया था। 2 रूम सेट 33,000 का महीना और बिजली का अलग सारा इधर उधर से 40000 का पड़ रहा था ।ओल्ड राजेंद्र नगर के इस लोकेशन को बुरा भी नहीं कहा जा सकता था। अस्पताल से ज्यादा दूरी भी नहीं थी।
मगर फ्लैट का किराया डबल से भी ज्यादा वसूल रहे थे। फिर पैसे की टेंशन फिलहाल नहीं थी।
सानू सरकारी मुलाजिम थी। और गोपाल ऑयल इंडिया से ताजा ताजा अवकाश प्राप्त।
सानू (दीपांजलि )खर्चे के ऊपर चिंतित नहीं होती थी ।
अभी वह शादीशुदा हुई भी नहीं थी।
गोपाल का और दोनों बच्चों का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था ।सानू ने भी कहा था कि पापा के लिए मैं डोनेट कर दूंगी ।विवेक भी यही बोल रहा था।
फिर गोपाल ने दोनों बच्चो में से किसी का लीवर लेने से मना कर दिया था।
अभी दोनों बच्चे जवान है ।शादी भी हुई नहीं है। लीवर डोनेशन के बाद बच्चे कमजोर हो जाएंगे। इसलिए उसने बच्चों का लीवर लेना मना कर दिया था।
गोपाल अजीब सख्शियत था। जब हम छोटे थे गर्मी के मौसम में जहां बिना पंखे के रहा नहीं जाता था ।वह कंबल या फिर रजाई ओढ़ कर सोया करता।
मैंने कई बार पूछा -वह यह बताता है कि जब रजाई ओढता हूं तो अंदर पसीना आता है। शरीर भिजता है ।और रजाई में थोड़ा सा जीरी बनाए रखता हूं ।जब यहां से हवा अंदर आती है तो ऐसा लगता है ।जैसे ऐसी चला कर सो रहा हूं।
सानू विवेक और भाभी।
तीनों गोपाल के ठीक होने के सिलसिले में रोज डॉक्टर से सलाह मशविरा करते ।सानू मंदिर और दरगाह का चक्कर लगाती ।दुआ मांगती। कि पापा ठीक-ठाक हों और हंसी खुशी घर लौट जाएं।
अब यही काम चल रहा था दिन में 2:00 बजे के बाद सानू 10:00 बजे तक रहती ।
और रात10:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक विवेक गोपाल के पास रुकता ।दोनों बच्चे पापा की खूब सेवा करते ।कभी उनके मुंह से उफ तक ना निकला ।रात रात भर जागना दिन को कुछ घंटे दिन में जाकर कमरे में लेटना। नहाना धोना फिर रात 10:00 बजे पापा के पास अस्पताल में रहना।
दोनों बच्चों का यह सेवा भाव देखकर मेरी आंखें नम हो जाती। मैं खुद को गमगीन होने से रोक नहीं पाता।
मैं यू भी बचपन से ही सेंटीमेंटल था। संवेदनशील ,किसी के भी दर्द को देखकर मेरी आंखों पर आंसू आ जाते थे।
गोपाल को खाने पीने का बहुत शौक था। उसकी आदत चटोरे पन अभी तक छुटा न था। गोपाल मुझसे कहता -छुट्टी हो जाएगी तो देसी मुर्गा लाना! देसी मुर्गे का मीट बनाकर तुम्हें खिलाऊंगा!?
हर दूसरे मिनट में उसके मुंह से थूक निकलता। और वह मुंह में दबाए नहीं रह सकता था। ना ही निगलता था। उसके लिए हर 2 मिनट में टिशू पेपर की जरूरत हो रही थी।
मगर दोनों बच्चे !? सच में भाभी ने बच्चों पर क्या संस्कार भरे थे ।बेटी सानू भी पापा की सेवा करती पाव दबाती। जबरदस्ती खाना खिलाती। डांट भी लगा देती ।खाना नहीं खाओगे तो ठीक कैसे होगे। डॉक्टर हमें बोलेगा तुम लोग यहां किसलिए हो ?खाना भी नहीं खिला सकते तो!?
मैं जब गोपाल के पास पहुंचता मुलाकात के लिए -मुझसे गोपाल शिकायत करता।कहता- मुझे डांट लगाती है ।जबरदस्ती खाना खिलाती है । जब मैं खाना खा ही नहीं पा रहा ।मुंह में सारे छाले हैं ।हल्का सा गर्म हल्का सा नमकीन भी जलता है ।इन बच्चों के दिल रखने के लिए खाता हूं ।उसकी आंखें भी नम हो जाती ।कहता --क्या करूं मैं ...क्या करूं..?
मैं उससे कहाता-तुमने सच में बच्चों के रूप में फरिश्ते जाने !कभी उफ! करते नहीं देखा। सानू दोपहर से रात 10:11 बजे तक एक पाव में खड़ी रहती है ।कि पापा का सेवा कर सके।
मुझे पता था -क्या होना है ?
मगर मैं चुप था ।
मेरी छठी इंद्रिया पहले ही मंजर दिखा चुकी थी। इसलिए मैं भी डिस्टर्ब हो गया था ।क्योंकि भले ही मैं सालों से मिला ना था। मगर वह बचपन का सबसे अच्छा दोस्त था ।हम अलग रात के सोते वक्त सिर्फ और स्कूल जाते वक्त अलग होते या पढ़ते वक्त। वरना दिन भर साथ रहना खेलना गप्पे लड़ाना।
जबसे उससे मैंने बिस्तर में पड़े देखा था ।तब से मेरा भी मन डिस्टर्ब हो चला था।
मेरा भी नींद हराम हो चुका था। मैं सुबह 4:30 बजे उठना और फिर ध्यान त्राटक योग प्रणाम करने वाला ।शख्स सब कुछ भूल चुका था। मुझे पता था ।और ज्यादा से ज्यादा वक्त उसके साथ बिताना चाहता था। क्योंकि उसके बाद अंजाम मुझे पता था।
फिर भी एक आस बंधी रहती है।
जब तक इंसान जिंदा है ।
आशा छुटती नहीं ।
सोचता ठीक हो जाए ।फिर डिगबोई आसाम के पृष्ठभूमि पर एक डॉक्यूमेंट्री क्रिएट करूंगा।
दोनों मिलकर डॉक्यूमेंट्री बनाएंगे ।सोचा था डिगबोई जाऊंगा ।
फिर डिगबोई में डॉक्यूमेंट्री बनाना है। मगर सपना अधूरा रह गया था। वह बीमार होता गया। बाया पैर हिलता ना था ।उठा नहीं पाता। डॉक्टर कहते लीवर ऑपरेशन की वजह से है ठीक हो जाएगा।
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