विवेक पापा के जीद पर उन्हें घर ले आया था।
मगर तीसरे दिन के बाद वह मुश्किल हुआ जा रहा था ।
अचानक पेट का दर्द बढ़ गया था।
पेट का दर्द क्यों बड़ा?
क्या वजह थी, कि पेट में दर्द बढ़ने लग गया था?
एंटीबायोटिक? एम्यून सिस्टम बुस्ट अप करने के लिए दिए जाने वाली दवाएं ?
फिर पेट में भरता हुआ पानी?
जब पहले लाकर एडमिट किया गया था, तब पानी पेट में जमने का प्रोग्रेस कम होना था।
डॉक्टर सुधीर ने बताया था ।ऑपरेशन के दसवें दिन बाद रिकवरी शुरू हो जाएगी ।मगर, ऑपरेशन हुए तीसवा दिन था। दूसरी बार एडमिट करने के बाद वापस लाया गया था। पहले खुद कुछ-कुछ पकड़ कर खुद बिस्तर से उठने की कोशिश किया करता था। मगर अब ताकत खत्म हो चली थी।
डॉक्टर ने बताया सावनी का कारण, खून की कमी!?
खून में प्लेटलेट भी कम हो चले हैं!
डॉक्टर ने बताया था कि जल्दी ही खून चढ़ाना होगा।
ब्लड फॉरमेशन होने में कमी समय लग रहा है। शरीर अस्वस्थ हो तो फिर ब्लड फॉरमेशन कैसे होता!
शरीर सिर दवा के दम पर चल फिर रहा था। फिर से पानी भरने की प्रक्रिया शुरू हो गया था।
मैं सिर्फ एक एक मूकदर्शक था ।मुझे पता मैं कहीं फिट नहीं हो रहा था। मैं कोशिश कर रहा था ।कि किसी तरह मेरे दोस्त और उसके बच्चों के काम आए!
मैं कोशिश करता हर दूसरे दिन के बाद में उनका दुख बांटने चला जाता। मेरे पास इस वक्त कोई काम न था। बैठकर लिखने के सिवाय ।मैं लिख रहा था। दो नोंवल अभी चल रहे थे- "डेडली वूमेन "और "क्राइम ब्रांच।"
मुझे लिखने के लिए सोचना पड़ता, दिमाग लगाना पड़ता ।मगर गोपाल की बीमारी जानलेवा बीमारी ने मेरे मन मस्तिष्क को जैसे आपंग सा बना दिया था। मैं मानसिक रूप से डिस्टर्ब सा हो गया था। मैं इमोशनल हो गया था।
मैं हूं भी ज्यादा इमोशनल !
बहुत ज्यादा सोचता मेरी आखों में नमी आ जाती ।मुझे पता था। यह इंसान अब ज्यादा जिंदा नहीं रहेगा।
मुझे मेरी छठी इंद्री यही जवाब देती। मैं फिर ऊपर वाले से लाख दुआएं मांगता। कहता प्रभु इसकी रक्षा करना। तेरे शरण में है -प्रभु रक्षा करना ।मंदिरों में भी जाते तो खुद के लिए नहीं अपने दोस्त के लिए दुआएं मांगता।
गोपाल की मुश्किलाते बढ़ने लगी थी। पेट दर्द अभी और तेज होने लगा था।
दिन रात करहाने लगा था। ईसके सिवाय कुछ कर न पाता।
मुश्किल हो गया था ।बच्चों के जीद पर कुछ फ्रूट ,कुछ खाना ,निगल लेता। दवाई टाइम से दिए जा रहे थे।
विवेक और सानू हर उस बात का ख्याल रखते, जो अस्पताल में नर्स रखा करते थे।
वक्त के मुताबिक गोलियां और सिर्फ टाइम पर उबला खाना ।और प्रोटीन डाइट। कि कुछ शक्ति बढे। शक्ति तब तो बढ़ता- जब अंदर का सिस्टम काम कर रहा हो अंदर का सिस्टम ठीक ठाक होता ।अंदर का सिस्टम खराब चल रहा था।
अंदर का सिस्टम खराब था। खराब ही रहा। लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी दो वक्त ठीक से खाना ना खा पाता। मुंह के छाले -गले के अंदर छाले। डॉक्टर ने हिदायत दी थी- कि मरीज के पास बिन मास के कोई न जाए! घर हो या फिर अस्पताल ;में जब गया तो गोपाल ने मुझे बताया ।
मेरे कमरे में बिना मास के ना आया करो -मुझे इंफेक्शन होने का खतरा है ।लीवर में इंफेक्शन होने का अंदेशा ,डॉक्टर बता रहे हैं।
मुझे लगा डॉ अब अपनी गलती को मरीज के ऊपर थोपने की कोशिश कर रहे हैं ।
लाखों रुपए का चोट जो उन्होंने मरीज को दिया है ।उसकी बात अलग थी ।
मगर ..!जो जख्म जो ऑपरेशन किया गया है। वह भैया ठीक कैसे होगा?
शुगर कभी नॉर्मल उतर ही नहीं रहा था।
रोज दो बार इंसुरेंस का डोज दिया जाता रहा। मगर फिर भी शुगर नॉर्मल नहीं हुआ। फिर जख्म जो अंदर चिरफाड़ किया गया था ।उसके ठीक होने की संभावना कैसे सोच रहे थे।
डॉक्टर क्या हर साधारण इंसान भी जानता समझता है। अगर इंसान के खून में ब्लड शुगर बढ़ा हुआ है। तो मामूली जख्म भी ठीक नहीं हो सकता था। फिर इतना बड़ा अंदरूनी चिरफाड कैसे ठीक हो जाता। बाहर चमड़े का तो सुक सा गया था।
मगर अंदर का जख्म!?
पेट दर्द !?
पेट में पानी या डॉक्टरों द्वारा किया गया।
जब तक किसी की मौत ना हो ..हम मर्डर नहीं कह सकते।
भाभी रोए जा रही थी।
उसने मुझे कहा -डॉक्टर सुधीर से एक बार बात कर लो!
एक बार पूछ लो !
हम कब जा पाएंगे !
ऐसी हालात में पेट में पानी भरने की प्रक्रिया तो फिर से चालू हो चुका था।
मगर ..!
घर वापस जाना है।
डिगबोई.. फिर जाना है !
देखो यादों का शहर ..एशिया का सबसे पुराना पेट्रोलियम सिटी!
जो भी था- मगर हमारे आंखों में बसा हुआ छोटा सा.. प्यारा सा.. शहर !
कभी डिगबोई ऐतिहासिक पेट्रोलियम सिटी के बारे में आपको बयान जरूर करूंगा ।
अभी तो मैं उस पेट्रोलियम सिटी से इलाज के लिए आए हुए पराशर और गोपाल की दर्दनाक हत्या की कहानी बयां कर रहे हैं ।
भाभी ने आंखों से आंसू पोछते हुए कहा था-- मैं इसी आशा के ठीक-ठाक होकर जाएं! मैं बचपन से ही संवेदनशील था ।
मगर कोई पत्थर मारे भी जब तक दर्द ना हो मैं पत्थर के चोट को बर्दाश्त कर लेता था। कुछ ऐसी बातें जो मुझे चुभती थी ।
शायद..!?
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