जिंदगी को मौत के हवाले।
गुवाहाटी मेडिकल अस्पताल का डॉक्टर जो थे। उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया था ।
कहा-भाई ऑपरेशन जरूरी है ।ऑपरेशन के बगैर जिंदगी बचनी नहीं है ।
क्या ट्रांसप्लांट के बाद जिंदगी बच जाएगी ?
सवालात का पिटारा था उसके पास ।
जवाब में गंगाराम का कसाईबाड़ा सामने खड़ा था ।कसाईबाड़ा में इंसानी जिंदगी से मौत को रूबरू कराने के पैसे वसूले जाते।
खैर! कहानी को लिखते वक्त मैं कभी-कभी ज्यादा सेंटीमेंटल हो जाता हूं।
क्योंकि जो अस्पताल में भर्ती था ।जो बीमार था। वह मेरा भी जिगर का मेरा भी अजीज़ था। मेरा भी वह हम प्याला ,हम निवाला था। उसके केस में मैं रूबरू दर्शक बनकर खड़ा था। चश्मदीद गवाह था।
जब उसकी गुवाहाटी से दिल्ली को रवानगी हुई तो उसने मुझे फोन करके पूछा था -भाई तुम दिल्ली में ही हो?
मैं -जी हां !मैं दिल्ली में ही हूं ।
मैं खुश था ।मेरा बचपन का यार ,बचपन का दोस्त ,मेरा लंगोटिया यार दिल्ली आ रहा है। मेरा रक्षा थी कि किसी तरह से जाकर उससे मिलूं।
उससे फिर एक बार हम प्याला बनूं, हम निवाला बनूं। मुझ में खुशी का ठिकाना न था। मैं पूछा --कौन-कौन आ रहा है?
फोन पर गोपाल ने बताया हम मियां बीवी और दो बच्चे ।
-दीपांजलि (सानू) और विवेक।
मैं खुश ।जिसे मैं डिगबोई में जा कर मुलाकात करना चाहता था ।वह मेरे पास खुद पहुंच रहा था।
गोपाल- हम यहां राजेंद्र नगर होटल में ठहरे हुए है । मैंअस्पताल में एडमिट हूं।
हुआ क्या है? यह पूछा ही नहीं मैं ने। बस यह जानकर मेरे दिल को खुशी महसूस हो रही थी- कि मैं उसे दिल्ली में मुलाकात कर पा रहा था!
मेरे दिल में जेहन में यह बात कौंधी ही नहीं। डिगबोई से आकर दिल्ली अस्पताल में एडमिट हो रहा है। तो कोई गंभीर समस्या है।
मैं जान कर खुश था ।कि फिर से मुलाकात होगी।
फिर से वही बात होगी ।
फिर से 2 प्यारों में टकरा हट होगी।
दो-दो घूंट भरेंगे।
फिर वही बचपन के दुख सी लेंगे ।
हम फिर से वही बचपन जी लेंगे ।
यादों के झरोखे में खड़े होकर,
विगत की परछाई को नाप लेंगे ।
फिर से बचपन वह जी लेंगे।
फिर से वह लड़कपन की बातें होंगी ।
फिर से कई वही जंगल पेड़ पौधे होंगे ।
फिर से वह कूदना- फादना होगा।
फिर से यादों में ही सही डिगबोई नाप लेंगे। हम बचपन यादों में ही फिर से जी लेंगे।
मगर...!
मुझे लिखना पड़ा आंसुओ से, आसुओं के सिआई पर भिगोकर लिखना पड़ा।-
तो तुम मिले तो यूं मिले ।बिस्तर से ही न हिले। दिल में सैलाब लिए आंखों में हसरत लिए मैं करीब 24 साल बाद ,मैं उससे मिलने गंगाराम के डी ब्लॉक बिस्तर नंबर 14 में मिला पहली बार।
उसका पेट फुला हुआ था ।
आंखें भरी हुई आंसुओंसे ।
देख उसने मुझे ऊपर से नीचे तक, पुकारा-स..सेना!
मेरी आंखों में भी आंसुओं का एक सैलाब आया। मैंने अपनी आंखों को पोछते उसकी और देखा।
मेरा बचपन का यही नाम था ।मुझे घरवाले ने यही प्यारे नाम से नवाजा था मुझे।और आस पड़ोस वाले भी इसी नाम से पुकारते।
हम खुश। हमारा बहुत बड़ा परिवार था ।पूरा का पूरा मोहल्ला ही हमारा रिश्तेदार था। माशिमा ,मामूनी ,दीदी से लेकर भानुमति सब अपने थे ।
कोई तेलुगू नहीं था ।कोई बंगाली नहीं था। कोई आसामी नहीं था। हम एक परिवार थे।
लक्ष्मी पूजा मासी मां के घर में मनाते ।मामूनी दीदी के पास भोगाली बिहू तो भानुमति के पास च्यापलू( मछली )खाते ।एक साथ खेलते। एक साथ लड़ते ।एक साथ शिकायत करते। फिर दूसरे दिन एक हो जाते । दीदी के साथ दारी बंदर खेलते। छुपन- छुपाई तो -लड़के हाई जंप तो फुटबॉल खेलते!
इस तरह पूरा मोहल्ला ही अपना प्यार का घर था।
लड़ते- झगड़ते मगर एक हो जाते।
मुझे कुछ होता तो बंगाली कमल के भैया उठ
आते। कमल को कोई बोलता तो मैं लड़ पड़ता।
गोपाल -हम खूब खेलते!
मम्मी मुझे कहीं नहीं ढूंढती । सीधे डंडे लेकर गोपाल के घर आ जाती ।
पूछती- सानू कहां है ?और मैं चाची के पीछे छिप जाता ।
चाची मेरा बचाव करती, कहती- यहीं था। यहीं खेल रहा था।
घर में एक क्षण भी नहीं रहता। बाबा का आने का समय हो गया है। नहीं देखेंगे तो फिर मार पड़ेगी। मैं आगे आगे भाग कर घर पहुंचता। मम्मी फिर किसी चाची से गप्पे लड़ाने रुक जाती।
अब मैं मम्मी को बार-बार बुलाने आता। मम्मी का आंचल खींचता ।कहता भूख लगी है ।मम्मी डंडा दिखाती ।कहती ईतने देर तक तो भूख नहीं लग रही थी- तुम्हें ।अब भूख लग रही है। चल नाटक बाज!
मैं आगे आगे भागता। मम्मी डंडा लेकर पीछे-पीछे धीरे-धीरे आ जाती।
गोपाल का घर ही खेलने का मेला मैदान था। बारिश का मौसम में अक्सर हम घरों में बंद रहते । मगर वहां हम खूब खेलते ।
भीगे हुए आंखों से उसने मुझे फिर से पुकारा-- सेना!
आं...हां..! जैसे मेरी तंद्रा भंग हुई थी। बचपन के उन भूल भुलैया वाली गली में खोया हुआ मेरा दिल, अचानक से फिर उसके पास लौटा आता।
उसने मुझे पास बुलाया ।पास आओ - मास लगाओ -मांस लगा के -सिर में टोपी डाल लो- चोंगा पहन लो ।और जूते में भी कबर कर लो।
मैं दरवाजे के बाहर गया ।वैसा ही सामान कर के अंदर घुसा ।
वह हल्का सा मुस्काया ।बोला बोला कुछ नहीं। बस वर लीवर ट्रांसप्लांट के बाद सारा ठीक होगा!
उसका देखना ,उसकी आंखों की खालीपन, उसके चेहरे की मुस्कान से मुलाकात नहीं कर पा रही थी ।
दूर-दूर थे चेहरे की मुस्कान और आंखों का खाली-खाली पन।
मेरे आंखों में भी आंसू तैर गए।
पूछा मैंने -और सब ठीक है?
खाना क्या दे रहा है ?
आज पानी निकाला कितना?
चार लीटर ।आज पेट का पानी निकाला लिटर।
अभी मेरा केस डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन के पास है ।दवा चल रही है ।आज डॉक्टर आया था ,बड़ा डॉक्टर ,हिंदुस्तान का बड़ा डॉक्टर! आफ
मेडिसिन! अस्पताल बड़ा है बीमार भी बड़ा है। कहता है -लिवर ऐफेक्डेट है ।
फिर ट्रांसप्लांट करना होगा।
तुम्हारी भाभी आई है। लीवर ..लिवर डोनेशन करने।
लिवर ट्रांसप्लांट- एक अच्छे इंसान का लीवर का कुछ हिस्सा काट कर दूसरे इंसान के लिवर के साथ एडजस्ट करना! डॉक्टर ने कहा डोनर की हमें ज्यादा फिकर होगी रहेगी !
क्योंकि, वह बीमार नहीं है ।वह डोनर है। उसने हमें ट्रांसप्लांट का मौका आफजाई की है। वह ग्रेट है। वह बीमार नहीं है।
शरीर का अंग लीवर ही ऐसा आर्गन है जो निकालने के बाद फिर से अपनी पोजीशन में आ जाएगा। अर्थात नाखून कैसे बढ़ता है- उसी तरह बढ़ेगा !
फिर उसी तरह ठीक होगा। मगर जिस को प्रत्यारोपित किया गया है --उसका?
साल भर पहले ही हमें पता चला था- कि तुम्हारी भाभी का लीवर भी चल जाएगा! उसका ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव है ।और डॉक्टर का कहना है कि "ओ "पॉजिटिव का ब्लड ग्रुप जैसे किसी को भी दिया जा सकता है- उसी तरह ऑर्गन ट्रांसप्लांट में भी ऐसा होता है ।फिर हमने डिसाइड किया कि तेरी भाभी ही लिवर ट्रांसप्लांट के लिए डोनर बनेगी।
हां मेरा ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव पहले हमने सोचा "बी "पॉजिटिव छोटे भाई - राजू का भी है! उससे बात की ,तो उसने साफ इंकार कर दिया।
बोला -खेतों में काम करना पड़ता है! कभी बाहर भी मजदूरी करनी पड़ती है। और बच्चे अभी छोटे छोटे हैं। फिर कमाई मैं ही करता हूं। कैसे चल पाएगा।
फिर भी विवेक ने हैदराबाद अस्पताल में बात की ₹10000 एडवांस भी भिजवाया था। मगर अभी तक डोनर नहीं मिल पाया था।
दोनों बच्चों का ब्लड ग्रुप "बी" पॉजिटिव है! लड़की और लड़का! दोनों कह रहे थे हम डोनेट कर देंगे! मैंने मना करा, अभी लड़की की शादी नहीं हुई है। शादी भी करवानी है ।अभी लिवर डोनेट करेगी तो उसका हेल्थ बिगड़ने लगेगा। फिर सही नहीं होगा ।
लड़का भी अभी जवान है। फिर अभी लिवर डोनेट सन के बाद वह भी कमजोर हो जाएगा। सारी उम्र पड़ी है ।उसके पास मैंने ही मना कर करा फिर लड़के ने हैदराबाद में बात चलाया।
तुरंत के तुरंत तो कुछ मिलने से रहा ।फिर वेटिंग में चल रहा था। तबीयत ज्यादा खराब हुआ तो डॉक्टर के पास डिब्रूगढ़ अस्पताल ले गए ।पेट में पानी भर रहा था ।वहां चार लीटर पानी निकाला था ।
फिर कोशिश करने के बाद डॉक्टर ने कहा इनका लिवर काम करना बंद कर चुका है। ट्रांसप्लांट करवाने के बाद वह ठीक हो जाएंगे। तब लिवर डोनेशन की बात सामने आई। लिवर डोनेट करेगा कौन?
डॉक्टर ने घर के सभी लोगों के ब्लड ग्रुप के बारे में पूछा। जब तेरी भाभी ने बताया कि उनका ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव है। तो उसने बताया- कि अगर आपकी मिसेज चाहे तो आपको लिवर डोनेट कर सकती है। क्योंकि- उनका ग्रुप डोनर ग्रुप है !और ऑर्गन ट्रांसप्लांट में भी यही चल जाएगा।
फिर क्या था- तेरी भाभी बोलने लगी ;मैं डोनेट करती हूं लीवर आप के लिए।
तभी हम सोच रहे थे कि- लिवर ट्रांसप्लांट के लिए कहां जाया जाए?
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