shabd-logo

कसाईबाड़ा 21

6 दिसम्बर 2022

8 बार देखा गया 8
उस दिन मैं सुबह 11:00 बजे के करीब उनके फ्लैट में पहुंच गया था। यह सोच कर- कि आज दिनभर इनके पास रहूंगा, और रात होने से पहले निकल चलूंगा।
 इंसान की अपनी प्राइवेसी भी होती है।
 इंसान की अपनी लाइफ भी होती है ।
गोपाल ने सानू को बताया कि काका को आज स्पेशल बनाकर खिलाओ।
गोपाल इस हाल में भी लोगों के खाने-पीने का खूब ख्याल रखता था। कहता था -मैं ..मुझे तो जैसे तैसे दे रहे हो। खुद तो अच्छा खा लो।मेरे चक्कर में तुम लोग क्यों बेस्वाद खाना खाओ।

मैं शानू से बोला- रहने दे सानू !जो साधरण खाते हैं ।वही खाएं। जब गोपाल ठीक हो जाएगा। तब तुम अपने हाथों से बना कर खिलाना। शाम- शाम को मैं निकलना चाहता था ।गोपाल ने आर्डर दनदना की यही रह लो आज ।
यूं भी आने के बाद मुझे उससे अलग होने का दिल करता न था।  यह आज की आदत न थी मेरी बचपन की आदत थी। बचपन से हम दोनों में बहुत प्यार था। हम मिलते तो अलग होना ही नहीं चाहते थे। मुश्किल से रात को मम्मी बुलाती ।या डंडे लेकर आती तब जाकर अलग होते थे।
मगर यह मामला बचपन का था। 
अब तो उसके भी बड़े-बड़े बच्चे हो गए थे ।मुझे यूं लगने लगा था ।कि मेरे आने से भाभी और बच्चों को कुछ तकलीफ होती हो ।इसलिए मेरा थैला पीठ मे लटका रहा था ।

तभी सानू बोली पीने का पानी नहीं है काका! मैं और विवेक और सानू मिलकर उस दिन गुरुद्वार से पानी ले आए थे ।
सोमवार का दिन था ।उस दिन मेरी फास्टिंग थी ।
गुरुद्वारे में मैं और सानू ने चाय पी ।और विवेक ने छोले खाये।
 मेरी बहुत इच्छा थी -कि एक बार गोपाल को बंगला साहिब गुरुद्वारा ले चलूं ।मगर फिर वहां की भीड़ की वजह से मैं मन  मसोसकर रह गया था।
 ऐसी स्थिति कई बार गुजरी थी ।इसलिए शानू नॉर्मल थी। विवेक भी नार्मल था।
लगता था -आब सब कुछ नॉर्मल होने जान होने वाला है ।मैं गोपाल को समझाता रहा। कि आप ठीक हो  जाओगे ।बस अब चटोरे पन छोड़ दो। यह चटोरा पान ही था ।और उम्र भर पी गई दारु ही थी।
 या फिर ऑल इंडिया के ऑयल फील्ड से निकलने वाले मिथेन केस की बदौलत थी। उसकी हालत ऐसी हुई सारी जिंदगी उसने पैसे कमाने में गंवा दिए ।कभी उसने अच्छी जिंदगी देखी भी तो दारू में डूबा दिया।

सारी जिंदगी दारू फिर नौकरी में डुबो दिया।  ड्रंकर जरूर था। मगर शाम के वक्त ड्यूटी से आने के बाद ही दारू को हाथ लगा था। या फिर हॉलीडे हो तो कभी-कभी सुबह से भीड़ जाता था। 
 शाम का दारू का वक्त बहुत मिसरेबल होता। भाभी डरी सहमी सी राते रात भर सेवा करती। आंखें झपकते ही फिर बोलता- है इस तरह से उसने भाभी की पर्सनल लाइफ का कबाड़ा कर रखा था।
अक्सर यह देखा गया है कि घर परिवार में कुछ न कुछ की कमी रहती है। जहां पैसा होता है वह कुछ ना कुछ कमी रह जाता है। इंसान पुरी तरह से संपन्न कभी नहीं होता ।बिस्तर है तो नींद नहीं ।नींद है तो बिस्तर नहीं।  वाली बात होती है।
जब तक आदमी संतोष करना नहीं सीखता तब तक जिंदगी में जितना भी कमा ले ....जितना भी कमा ले। जो भी टारगेट अचीव कर ले.. वह खुश रह न पाता है ।खुशियां आती है। उन्हें छूकर किनारे से किनारे निकल जाती है ।क्योंकि ..खुशी को बटोरने के लिए मन में संतोष ..और हृदय में प्यार दया क्षमा जैसे चीजें हैं होना चाहिए होता है।
इन संभावनाओं के कमी के कारण-- अहम ...द्वेष... ईर्ष्या जैसी दानवी शक्तियां इंसान की शांति में डाका डालती है। और इंसान खुशी के बगैर भी जीने की आदत डाल लेता है। और ऐसा कुछ भाभी के पास भी था।
खुशी थी.. नहीं भी ।प्यार था ...नहीं भी। मगर क्या वजह थी। उसे मालूमाता सब  मालूम थी। फिर भी इंसान खुशियों को बटोर न पाता था।

 कई सालों बाद भाभी का चेहरा देख कर खुशी थी मुझे। तो उनके चेहरे की शिकन मुझे कुछ  सोचने में मजबूर करता था।
 भाभी की यहां तक आने की वजह क्या थी ?उनके बातों का नजर अंदाज करना ।
दारू का अत्यधिक सेवन करना।
 नॉनवेज का अत्यधिक सेवन करना और  चटोरी पन का होना.. जब इंसान खाने के लिए जीने लगता है तो शरीर के सारे ऑर्गन उसे जवाब देने लग जाते हैं।
उसे शुगर था ।हर वक्त बढा हुआ ।
 शुगर ही तो है ।इंसान के शरीर के सारे आर्गन को धीरे-धीरे खोखला और बीमार करती जाती है।
 शुगर जहां है.. मीठा जहर। इंसानी आर्गन को गला देता है। नसों में जब खून के साथ शुगर सर्करा बहने लगता है ।तो वही शर्करा सभी अंगों को बीमार बनाने लगता है ।
शुगर की बीमारी सभी बीमारियों की मां है। शुगर से सारी बीमारियां होने लगती है।  फिर बीमार पर बिमार ..दारू लीवर को गला ने चढ़ाने लगता है ।मगर लोग दारू दबाकर पीने में विश्वास रखते हैं।
खैर..!
भाभी नाराज थी।
और गोपाल  बच्चों से भी नाराज था। अपनी बीवी से भी नाराज था। अब जा के  बोल रहा था-- क्यों डोनेट किया तुम  ने मुझे ।
भाभी- मैं  साल भर पहले से बोल रही थी- आपको तो बस घर बनाना- घर में ट्रांसफर होना !ऐसी बातों पर ध्यान था। धन दौलत क्या है यही छोड़कर जाना है।
गोपाल- अगर घर नहीं बनाते ;तो बताओ तुम कहां रहती? सानू विवेक कहां रहता?
भाभी कहती -सबसे बढ़कर तो शरीर है ना! शरीर है तो सब कुछ है ।यह शरीर छोड़कर जाने के बाद क्या है? कुछ नहीं। तब आपका शरीर भी ऑपरेशन को झेलने लायक था। वजन 50 किलो से ज्यादा था। शुगर को मेंटेन कर ही रहे थे। आपको तो बस.. मकान… मकान.. मकान ..बस मकान चाहिए था।
गोपाल -तुम जाड़े के मौसम के लिए कह रही थी। जाड़ा मुझसे सहा नहीं जाता ।तुम्हें पता है। जाडा आ गया। उससे पहले  कोरोना का लक डाउन था। दिल्ली में तो और ज्यादा हालत खराब था। यहां किसी अस्पताल में कोरोनावायरस के अलावा किसी और बीमारी की इलाज हो ही नहीं रहा था।
भाभी खींचते हुए बोली -क्यों ना हो रहा था? सब कुछ हो रहा था। मगर अब देखें आते वक्त पेट में पानी भरा था। आते ही 8 लीटर पानी निकाला गया ।वजन सिर्फ 41- 42 किलो रह गया था ।इतनी कम वजन में ऑपरेशन संभव था ?क्या !?मगर डॉक्टर सुधीर ने ऑपरेशन  के लिए हां कर दिया। शुगर को मेंटेन होते ही ऑपरेट किया जाएगा। उन्हें क्या उन्हें तो अस्पताल का बिल बढ़ाना था।
 कमाई करना था। एक प्रयोग की जार की तरह-इंसानी जिस्म के ऊपर प्रयोग!
 लीवर ट्रांसप्लांट का प्रयोग करना था। फिर और पैसे भी कमना था।
किसी ने यह नहीं कहा कि तुम नहीं बचोगे। सभी के दिल में आस होती है ।अरमान होता है। हर मरने वाला भी यही सोचता है ।कि बस और एक सांस ले लूं पर और एक सांस ले लूं कुछ दिन और जिंदा रह लूं.. बस।
मगर एक डॉक्टर को पता होता है। बस और नहीं ।और सांसे नहीं। मगर फिर शरीर को कष्ट में डालकर  मरीज और अंधविश्वासी मरीज के परिवार वालों को यह विश्वास दिलाते हैं- कि मरीज अपने पैरों में चलकर जाएगा !जैसे आया था उस से बेहतर होकर जाएगा।
मीठी मीठी सी बातें ।
अक्सर जहां पैसे ज्यादा लगता है ।वहां मरीजों को लुभाने के लिए- लगाया जाते हैं खूबसूरत नर्सेस जो मरीजों को मीठी-मीठी बात करते हैं। और मरीज को पता ही नहीं चलता- बकरा कब हलाल हो रहा है ।
बकरा धीरे-धीरे हलाल होता जा रहा है।
 कहते हैं बकरे को पता ही नहीं चलता कब पेट चीर कर पेट से नोटों की गड्डी निकाल ली जा चुकी है।
और वह..!
धीरे-धीरे जो मौत की ओर कदम बढ़ाने लगा था ।
कुछ गति तेज हो जाती है।
 यह प्राइवेट अस्पतालों का करिश्मा मैं नहीं कहता कि ऐसे पेसेंट ठीक नहीं होते! ठीक करते नहीं ,करते भी हैं।
 मगर जिसे ठीक नहीं होना है -उसे भी मौत के मुंह में जाने के लिए सहयोग करते हैं ।जो मरीज मरीज का रिश्तेदार यह सोचते हैं डॉक्टर भगवान है। वह सरासर गलत साबित होता है।

                                         *******
40
रचनाएँ
कसाईबाड़ा
0.0
मेरे बचपन के दोस्त पराशर जो उक्त घटना के शिकार हुए ।जो खेल डॉक्टरों ने नामी-गिरामी अस्पताल मैं उनके साथ खेला। उनके परिवार के साथ दरपेश आए ।वह मेरा दोस्त ही नहीं था। बड़ा भाई था ।जिगर का टुकड़ा था। और उस इंसान के साथ अस्पताल के डॉक्टरों ने, डॉक्टरों के देखरेख में एक गेम खेला ।ऑपरेशन और मौत का घिनौना गेम! जिसमें उनकी मौत निश्चित थी ।मगर ऑपरेशन करना इसलिए जरूरी था- कि उसके छाती में ही 4000000 अटका हुआ था ।उसे निकालने के लिए घटनाक्रम को अंजाम दिया गया ।
1

कसाईबाड़ा 1

16 नवम्बर 2022
4
0
0

वह दिन था और आज का दिन है- शुरुआत कहां से करूं !मैं वहा-पोह में था ।मैं चाहता था हर क्रियाकलाप का एक वीडियो  चित्रण करूं। मगर फिर सोचा कि मेरे दोस्त को लगेगा कि यह मेरी जिंदगी की घटनाक्रम को एक व्यापा

2

कसाईबाड़ा 2

16 नवम्बर 2022
1
1
0

हां !कसाईबाड़ा ही कहा जाएगा! कसाई जानवर तथा पक्षियों को मारकर उसका मांस बेचते हैं ।लोगों को खिलाते हैं ।इंसानी भूख मिटाते हैं ।यह भी कसाईबाड़ा है। जिक्र करना बा मुश्किल पड़ जाता मुझे- अगर हालात से मैं

3

कसाईबाड़ा 3

17 नवम्बर 2022
1
1
0

एक जानलेवा खेल।पौराणिक काल में वैद्य होते थे । वी आदतन विरक्त रहते थे । उन्हें न अपनी कमाई की फिक्र होती थी ।न हीं अपने स्थिति की। वे सिर्फ इंसान की भलाई के लिए काम करते थे। इंसान की निरोगिता&nb

4

कसाईबाड़ा 4

17 नवम्बर 2022
0
1
0

जिंदगी का सफर।जिंदगी खुशनुमा इबादत सी हुई थी। पांच भाइयों में तीसरे नंबर का था। भाइयों का नंबर यह नंबर उसका लकी नंबर भी रहा। मगर मैं बचपन से लेकर अभी तक की घटनाओं का जिक्र करूंगा, तो मुझे दो तीन

5

कसाईबाड़ा 5

17 नवम्बर 2022
0
0
0

मैं अभी अपने काम से शाहबाद ( बादली दिल्ली )के पास था। अचानक फोन आया भतीजी -दीपांजलि का! जिसे हम सभी घर में प्यार से सानू बुलाते थे। अभी फिलहाल तो बड़ी हो गई है ।मगर हमारे लिए तो वह फिर भी

6

कसाईबाड़ा 6

18 नवम्बर 2022
0
1
0

जिंदगी को मौत के हवाले।गुवाहाटी मेडिकल अस्पताल का डॉक्टर जो थे। उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया था ।कहा-भाई ऑपरेशन जरूरी है ।ऑपरेशन के बगैर जिंदगी बचनी नहीं है ।क्या ट्रांसप्लांट के बाद जिंदगी बच जाएगी

7

कसाईबाड़ा 7

18 नवम्बर 2022
0
0
0

तभी दामाद जी इंटरनेट पर लिवर स्पेशलिस्ट तलाश करने लगे। तलाश करके उन्होंने बताया कि गंगाराम में एक डॉक्टर है- डॉक्टर सुधीर! जो लिवर ट्रांसप्लांट के माहीर स्पेशलिस्ट है ।फिर एक आद बार जमाई, फिर हमन

8

कसाईबाड़ा 8

19 नवम्बर 2022
0
0
0

आप गोपाल के लिए लिवर डोनेट करेंगी?हां! भाभी ने जवाब दिया -"इसके बाद वे ठीक हो जाएंगे।"डॉक्टर से बात हो गई है?नहीं !अभी जब पानी ज्यादा भर गया तो यहां जो भी डॉक्टर मिला- उसी के हवाले हमने कर दिया।डॉक्टर

9

कसाईबाड़ा 9

19 नवम्बर 2022
0
0
0

विवेक और भाभी और सानू सभी ने यही कहा था- कि हमें तो गंगाराम में इस खातिर भेजा गया ।कि यहां के स्पेशलिस्ट डॉक्टर है जो पापा की ऑपरेशन अर्थात ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक हो जाएंगी। और हम यहां बाबा के

10

कसाईबाड़ा 10

19 नवम्बर 2022
0
0
0

डॉक्टरों की मीटिंग बैठी हुई थी मेडिसिन से सर्जिकल मे ले जाते वक्त डॉक्टरों की खींचातानी के बीच में दश दिन गुजर गए थे। डॉक्टर शुगर कंट्रोल के लिए इंसुलिन चढ़ाते खाना वही देते जो साधारण व्यक्ति को खिलाय

11

कसाईबाड़ा 11

24 नवम्बर 2022
0
0
0

ऑपरेशन की रात थी वह।रात के करीब 11:00 बजे डॉक्टर सुधीर ने विवेक को फोन लगाया। विवेक, सानू और मैं ऑपरेशन थिएटर के बाहर पहुंचे। पांचवी मंजिल पर जहां लीवर संबंधित ऑपरेशन हो रहा था।गार्ड़ने हमें याद

12

कसाईबाड़ा 12

25 नवम्बर 2022
0
0
0

ऑपरेशन के दूसरे दिन।एक नई सुबह लेकर आई थी ।ऐसा लगता था जैसे आसमान में काले बादल मडरा तो रहते हैं मगर धूप चमक सी रही थी। माहौल कुछ सुहाना सुहाना सा लग रहा था।मैं दोपहर के समय आज धर्मशाला से निकल कर भाभ

13

कसाईबाड़ा 13

25 नवम्बर 2022
0
0
0

थूक पर थूक।आदमी थुक पे थुक ता रहे , 4 मिनट में खा कार से खाकर निकलता रह। तो स्वस्थ हो कैसे पाएगा। खाना पचाने के लिए जो इंसान की जरूरत है ।वह तो निकला जा रहा है ।हर वक्त ।आदमी खाना कैसे पचा आएगा ।

14

कसाईबाड़ा 14

26 नवम्बर 2022
0
0
0

विवेक फ्लैट में चला गया था।मैं गोपाल के पास घर गया था। गोपाल की स्थिति अभी भी ठीक नहीं थी।हर मिनट में उसकी खकार निकलती और थुक निकलता ।मैंने पेट के बारे में पूछा बताया- हल्का सा दर्द है !अभी दर्द काम ह

15

कसाईबाड़ा 15

4 दिसम्बर 2022
0
0
0

ऑपरेशन के बाद---!फ्लैट में लौटने के बाद, दूसरी बार फिर से अस्पताल में भर्ती किया गया था। दर्द था। पेट में, बहुत सारा दर्द था ।खाने में शायद कुछ कोताही बरती गई थी। डॉक्टर का मानना था।जबकि डॉ यह कह चुका

16

कसाईबाड़ा 16

4 दिसम्बर 2022
0
0
0

एक बात मुझे डॉक्टर से पूछनी थी। यही बात मैं कह रहा था और भाभी भी यही सवाल कर रही थी। डॉक्टर से मुलाकात के लिए ₹2000 की पर्ची कटवानी थी ।जब 28-30 लाख खर्च किया तो फिर 2,000 की तो कोई बात नहीं थी।डॉक्टर

17

कसाईबाड़ा 17

4 दिसम्बर 2022
0
0
0

एक सीक्रेट मीटिंग थी वह।सिर्फ गोपाल से रिलेटेड डॉक्टर थे ।उस मीटिंग पर नर्स कंपाउंडर तथा कोई भी आदर स्टाफ नहीं आ सकता था ।थोड़ी देर की मीटिंग थी ।गोपाल से संबंधित बातों को करना था। उसके हेल्थ चे

18

कसाईबाड़ा 18

5 दिसम्बर 2022
0
0
0

गोपाल की जिद तेज हो गई थी।मुझे जाना है -घर जाना है!डॉक्टर सुधीर- मगर अभी आप ठीक हुए नहीं है ;जनाब !बस 15 दिन बाद हम आपको चलने लायक कर देंगे ,फिर आप घर चले जाना।गोपाल- घर का मतलब यहां जहां बच्चे ठहरे ह

19

कसाईबाड़ा 19

5 दिसम्बर 2022
0
0
0

एंटीबायोटिक की मात्रा कम कर दी गई थी। शक्ति के लिए खाने से रिकवरी करने की बात कही थी । प्रोटीन डाइट ज्यादा से ज्यादा करने का न्यूट्रिशन ने चार्ट सा बना कर दिया था। चार्ट देखकर मुझे लगने लगा था इत

20

कसाईबाड़ा 20

5 दिसम्बर 2022
0
0
0

एंटीबायोटिक की मात्रा कम कर दी गई थी। शक्ति के लिए खाने से रिकवरी करने की बात कही थी । प्रोटीन डाइट ज्यादा से ज्यादा करने का न्यूट्रिशन ने चार्ट सा बना कर दिया था। चार्ट देखकर मुझे लगने लगा था इत

21

कसाईबाड़ा 21

6 दिसम्बर 2022
0
0
0

उस दिन मैं सुबह 11:00 बजे के करीब उनके फ्लैट में पहुंच गया था। यह सोच कर- कि आज दिनभर इनके पास रहूंगा, और रात होने से पहले निकल चलूंगा। इंसान की अपनी प्राइवेसी भी होती है। इंसान की अपनी लाइफ

22

कसाईबाड़ा 22

6 दिसम्बर 2022
0
0
0

विवेक पापा के जीद पर उन्हें घर ले आया था। मगर तीसरे दिन के बाद वह मुश्किल हुआ जा रहा था ।अचानक पेट का दर्द बढ़ गया था। पेट का दर्द क्यों बड़ा? क्या वजह थी, कि पेट में दर्द बढ़ने लग गया

23

कसाईबाड़ा 23

7 दिसम्बर 2022
0
0
0

शायद..?क्यों? मैं बयां करना उचित नहीं समझता था! जो गोपाल अपने बच्चों से दरपेश आता था। खैर.. मैं उन खोए हुए हुए यादों को, बिखरे हुए सपनों को, फिर से समेटकर मूर्त रूप देना नहीं चाहता था। कि बच्चों

24

कसाईबाड़ा 24

7 दिसम्बर 2022
0
0
0

मैं जब भी गोपाल के पास पहुंचता ,गोपाल मुझसे अपने पांव दबवाता। मैं भी बड़ी खुशी- खुशी उसके पाव दबाने लग जाता। गोपाल के शरीर को तेल लगाकर मसाज करता । मगर मुझे एहसास सा होता था जा रहा था। अभी शरीर

25

कसाईबाड़ा 25

8 दिसम्बर 2022
0
0
0

सबके चेहरे में मायूसी सी थी। गोपाल, विवेक, सानू ,भाभी सभी बोलते तो भी मुझे लगता था ।जैसे दिल में बहुत बड़ा वजन रखकर बोल रहे हो ।दिल का बोझ बढ़ता जा रहा था। जैसे दिल भी सोच सोच कर धड़क रहा था

26

कसाईबाड़ा 26

8 दिसम्बर 2022
0
0
0

गोपाल गोपाल सानू को लेकर दुखी था।इसलिए कि अभी तक उसने सानू के लिए अच्छा लड़का ढूंढ पाया था। शादी नहीं करा पाया था। इसके लिए अच्छे लड़के लोकल लड़के नहीं मिले। 2-4 आए थे और सानू ने उन्हें नापसंद कर

27

कसाईबाड़ा 27

8 दिसम्बर 2022
0
0
0

विवेक भी खौफ जदा था ।अब पापा बिस्तर में ही गंदगी छोड़ने लगे हैं। उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि कब लैट्रिन उतर गई ।फिर उसे साफ करते बच्चे फिर सभी मिलकर उसे करवट लीटाने की कोशिश करते ।और साफ करते।

28

कसाईबाड़ा 28

9 दिसम्बर 2022
0
0
0

धीरे धीरे मौत का साया गोपाल की ओर बढ़ रहा था। गोपाल को भी एहसास था ।अब मैं शायद ठीक ना हो पाऊं। गोपाल- तुमने लिवर डोनेट क्यों किया? इसी लिवर के ऑपरेशन से मैं ज्यादा परेशान हो गया हूं!भाभी- हम आप

29

कसाईबाड़ा 29

10 दिसम्बर 2022
0
0
0

पल- पल हर एक घड़ी गोपाल की जिंदगी की डोर ढीली पड़ती जा रही थी। गोपाल की आंखें सफेद सी बढ़ती जा रही थी ।आंखों में होने वाली लाली खत्म थी। जिस्म यूं भी पहले दिन से सुजता हुआ जा रहा था ।वह कभी ठीक हो कि

30

कसाईबाड़ा 30

10 दिसम्बर 2022
0
0
0

मौत!?मौत की ओर हर इंसान सरक रहा है। हर इंसान का अगला कदम मौत की ओर होता है ।इंसान और मौत का गहरा रिश्ता है। एक न एक दिन उसकी आगोश में समाना ही है। मगर इंसान को इस धरती पर परमेश्वर ने जीने के

31

कसाईबाड़ा 31

12 दिसम्बर 2022
0
0
0

सानू अपने पापा की कैंसर होने की बात को लेकर ज्यादा डिक्लेअर डिस्टर्ब हो गई थी।मैं महसूस कर रहा था ।उसकी आवाज में थर्रा हट थी। जब वह मुझसे इस बारे में बात कर रही थी।मैंने पूछा- किस स्टेज में है?स

32

कसाईबाड़ा 32

12 दिसम्बर 2022
0
0
0

अगला दिन था।सुबह नाश्ता करके मैं और भाभी भोपाल से मिलने के लिए चले गए थे। रूम सिंगल सा ले रखा था। फिर भी डॉक्टर यहां एक एक एटेन्डेन्ट से ज्यादा रहने की इजाजत नहीं देते। फिर भी हम चले गए थे ।इस व

33

कसाईबाड़ा 33

13 दिसम्बर 2022
0
0
0

लीवर खराब था। तो उसके लीवर को ट्रांसप्लांट किया गया। गलत हिस्सा संपूर्ण लीवर निकालकर, भाभी के लिवर का 60 परसेंट हिस्सा निकालकर गोपाल के लीवर की जगह जोड़ा गया था। अब इस नाकामयाबी का श्रेय दे रहे थे। कि

34

कसाईबाड़ा 34

13 दिसम्बर 2022
0
0
0

अब भाभी को भी बताना जरूरी था डॉक्टर कैंसर का इफेक्ट बता रहे हैं ।और बताया गया था।पहले लिवर में कैंसर बताकर ट्रांसप्लांट करवाया अब चेस्ट में ही कैंसर बता रहे हैं। भाभी का यह कह भी रो-रोकर हाल बुरा था।

35

कसाईबाड़ा 35

14 दिसम्बर 2022
0
0
0

धीरे -धीरे मौत के साए गोपाल पर हावी होते गए थे। मौत अपने नाखूनों को तेज कर के लंबे-लंबे राक्षसी दांत बाय गोपाल की ओर बढ़ रही थी।हम मूकदर्शक बने देखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सकते थे।डॉक्टरों क

36

कसाईबाड़ा 36

14 दिसम्बर 2022
0
0
0

वेंटीलेशन के लिए सभी डॉक्टर जोर देने लगे। अगर कुछ होता है तो ,हम जिम्मेदार नहीं है। अब अंतिम अवस्था में भी वेंटिलेशन के अंदर डालकर ।पैसा अशूली का घिनौना खेल खेला जाने वाला था।जिस डॉक्टर ने ल

37

कसाईबाड़ा 37

14 दिसम्बर 2022
0
0
0

मैं राजू और विवेक रात भर अस्पताल की वेटिंग रूम में रूक गये थे।विवेक ने कुछ भी नहीं खाया था। 2 दिन हो गए थे ।अब उसका चेहरा लगता था -जैसे चेहरे को अभी-अभी पानी से धो आया हो। भी गवाह आसुओं से भीगा

38

कसाईबाड़ा 38

15 दिसम्बर 2022
0
0
0

परिवार के कुछ और सदस्य आ गए थे।वक्त!? गोपाल के पास न था ।बस अब तो शरीर का मिट्टी में तब्दीली का इंतजार था। कब डॉक्टर खबर करें कि अब गोपाल नहीं रहा!ऐसा इंतजार!? लंबा होता है ।जानलेवा ..जानलेव

39

कसाईबाड़ा 39

15 दिसम्बर 2022
0
0
0

एक नायाब कहानी का अंत हो चला था। नहीं नहीं में आंसुओं का बाध टूट सा गया था। अस्पताल को अब भी आस थी ।कि दो चार लाख झाड़ जाते। जाते -जाते तुम मौत का हिसाब किताब कर जाते !नहीं ..नहीं में

40

कसाईबाड़ा 40

15 दिसम्बर 2022
1
0
1

गोपाल का अंत!गोपाल का अंत ऐसा होगा सोचा न था। यूं सभी बीमारियों का जखीरा लिए ,लंबी-लंबी सांसे भरेगा। आंखों में पथराई आंसुओं में वह मुझ में यूं जी लेगा, सोचा ना था।अगला दिन भी मर्म से भरा था।भाभी जी रह

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए