उस दिन मैं सुबह 11:00 बजे के करीब उनके फ्लैट में पहुंच गया था। यह सोच कर- कि आज दिनभर इनके पास रहूंगा, और रात होने से पहले निकल चलूंगा।
इंसान की अपनी प्राइवेसी भी होती है।
इंसान की अपनी लाइफ भी होती है ।
गोपाल ने सानू को बताया कि काका को आज स्पेशल बनाकर खिलाओ।
गोपाल इस हाल में भी लोगों के खाने-पीने का खूब ख्याल रखता था। कहता था -मैं ..मुझे तो जैसे तैसे दे रहे हो। खुद तो अच्छा खा लो।मेरे चक्कर में तुम लोग क्यों बेस्वाद खाना खाओ।
मैं शानू से बोला- रहने दे सानू !जो साधरण खाते हैं ।वही खाएं। जब गोपाल ठीक हो जाएगा। तब तुम अपने हाथों से बना कर खिलाना। शाम- शाम को मैं निकलना चाहता था ।गोपाल ने आर्डर दनदना की यही रह लो आज ।
यूं भी आने के बाद मुझे उससे अलग होने का दिल करता न था। यह आज की आदत न थी मेरी बचपन की आदत थी। बचपन से हम दोनों में बहुत प्यार था। हम मिलते तो अलग होना ही नहीं चाहते थे। मुश्किल से रात को मम्मी बुलाती ।या डंडे लेकर आती तब जाकर अलग होते थे।
मगर यह मामला बचपन का था।
अब तो उसके भी बड़े-बड़े बच्चे हो गए थे ।मुझे यूं लगने लगा था ।कि मेरे आने से भाभी और बच्चों को कुछ तकलीफ होती हो ।इसलिए मेरा थैला पीठ मे लटका रहा था ।
तभी सानू बोली पीने का पानी नहीं है काका! मैं और विवेक और सानू मिलकर उस दिन गुरुद्वार से पानी ले आए थे ।
सोमवार का दिन था ।उस दिन मेरी फास्टिंग थी ।
गुरुद्वारे में मैं और सानू ने चाय पी ।और विवेक ने छोले खाये।
मेरी बहुत इच्छा थी -कि एक बार गोपाल को बंगला साहिब गुरुद्वारा ले चलूं ।मगर फिर वहां की भीड़ की वजह से मैं मन मसोसकर रह गया था।
ऐसी स्थिति कई बार गुजरी थी ।इसलिए शानू नॉर्मल थी। विवेक भी नार्मल था।
लगता था -आब सब कुछ नॉर्मल होने जान होने वाला है ।मैं गोपाल को समझाता रहा। कि आप ठीक हो जाओगे ।बस अब चटोरे पन छोड़ दो। यह चटोरा पान ही था ।और उम्र भर पी गई दारु ही थी।
या फिर ऑल इंडिया के ऑयल फील्ड से निकलने वाले मिथेन केस की बदौलत थी। उसकी हालत ऐसी हुई सारी जिंदगी उसने पैसे कमाने में गंवा दिए ।कभी उसने अच्छी जिंदगी देखी भी तो दारू में डूबा दिया।
सारी जिंदगी दारू फिर नौकरी में डुबो दिया। ड्रंकर जरूर था। मगर शाम के वक्त ड्यूटी से आने के बाद ही दारू को हाथ लगा था। या फिर हॉलीडे हो तो कभी-कभी सुबह से भीड़ जाता था।
शाम का दारू का वक्त बहुत मिसरेबल होता। भाभी डरी सहमी सी राते रात भर सेवा करती। आंखें झपकते ही फिर बोलता- है इस तरह से उसने भाभी की पर्सनल लाइफ का कबाड़ा कर रखा था।
अक्सर यह देखा गया है कि घर परिवार में कुछ न कुछ की कमी रहती है। जहां पैसा होता है वह कुछ ना कुछ कमी रह जाता है। इंसान पुरी तरह से संपन्न कभी नहीं होता ।बिस्तर है तो नींद नहीं ।नींद है तो बिस्तर नहीं। वाली बात होती है।
जब तक आदमी संतोष करना नहीं सीखता तब तक जिंदगी में जितना भी कमा ले ....जितना भी कमा ले। जो भी टारगेट अचीव कर ले.. वह खुश रह न पाता है ।खुशियां आती है। उन्हें छूकर किनारे से किनारे निकल जाती है ।क्योंकि ..खुशी को बटोरने के लिए मन में संतोष ..और हृदय में प्यार दया क्षमा जैसे चीजें हैं होना चाहिए होता है।
इन संभावनाओं के कमी के कारण-- अहम ...द्वेष... ईर्ष्या जैसी दानवी शक्तियां इंसान की शांति में डाका डालती है। और इंसान खुशी के बगैर भी जीने की आदत डाल लेता है। और ऐसा कुछ भाभी के पास भी था।
खुशी थी.. नहीं भी ।प्यार था ...नहीं भी। मगर क्या वजह थी। उसे मालूमाता सब मालूम थी। फिर भी इंसान खुशियों को बटोर न पाता था।
कई सालों बाद भाभी का चेहरा देख कर खुशी थी मुझे। तो उनके चेहरे की शिकन मुझे कुछ सोचने में मजबूर करता था।
भाभी की यहां तक आने की वजह क्या थी ?उनके बातों का नजर अंदाज करना ।
दारू का अत्यधिक सेवन करना।
नॉनवेज का अत्यधिक सेवन करना और चटोरी पन का होना.. जब इंसान खाने के लिए जीने लगता है तो शरीर के सारे ऑर्गन उसे जवाब देने लग जाते हैं।
उसे शुगर था ।हर वक्त बढा हुआ ।
शुगर ही तो है ।इंसान के शरीर के सारे आर्गन को धीरे-धीरे खोखला और बीमार करती जाती है।
शुगर जहां है.. मीठा जहर। इंसानी आर्गन को गला देता है। नसों में जब खून के साथ शुगर सर्करा बहने लगता है ।तो वही शर्करा सभी अंगों को बीमार बनाने लगता है ।
शुगर की बीमारी सभी बीमारियों की मां है। शुगर से सारी बीमारियां होने लगती है। फिर बीमार पर बिमार ..दारू लीवर को गला ने चढ़ाने लगता है ।मगर लोग दारू दबाकर पीने में विश्वास रखते हैं।
खैर..!
भाभी नाराज थी।
और गोपाल बच्चों से भी नाराज था। अपनी बीवी से भी नाराज था। अब जा के बोल रहा था-- क्यों डोनेट किया तुम ने मुझे ।
भाभी- मैं साल भर पहले से बोल रही थी- आपको तो बस घर बनाना- घर में ट्रांसफर होना !ऐसी बातों पर ध्यान था। धन दौलत क्या है यही छोड़कर जाना है।
गोपाल- अगर घर नहीं बनाते ;तो बताओ तुम कहां रहती? सानू विवेक कहां रहता?
भाभी कहती -सबसे बढ़कर तो शरीर है ना! शरीर है तो सब कुछ है ।यह शरीर छोड़कर जाने के बाद क्या है? कुछ नहीं। तब आपका शरीर भी ऑपरेशन को झेलने लायक था। वजन 50 किलो से ज्यादा था। शुगर को मेंटेन कर ही रहे थे। आपको तो बस.. मकान… मकान.. मकान ..बस मकान चाहिए था।
गोपाल -तुम जाड़े के मौसम के लिए कह रही थी। जाड़ा मुझसे सहा नहीं जाता ।तुम्हें पता है। जाडा आ गया। उससे पहले कोरोना का लक डाउन था। दिल्ली में तो और ज्यादा हालत खराब था। यहां किसी अस्पताल में कोरोनावायरस के अलावा किसी और बीमारी की इलाज हो ही नहीं रहा था।
भाभी खींचते हुए बोली -क्यों ना हो रहा था? सब कुछ हो रहा था। मगर अब देखें आते वक्त पेट में पानी भरा था। आते ही 8 लीटर पानी निकाला गया ।वजन सिर्फ 41- 42 किलो रह गया था ।इतनी कम वजन में ऑपरेशन संभव था ?क्या !?मगर डॉक्टर सुधीर ने ऑपरेशन के लिए हां कर दिया। शुगर को मेंटेन होते ही ऑपरेट किया जाएगा। उन्हें क्या उन्हें तो अस्पताल का बिल बढ़ाना था।
कमाई करना था। एक प्रयोग की जार की तरह-इंसानी जिस्म के ऊपर प्रयोग!
लीवर ट्रांसप्लांट का प्रयोग करना था। फिर और पैसे भी कमना था।
किसी ने यह नहीं कहा कि तुम नहीं बचोगे। सभी के दिल में आस होती है ।अरमान होता है। हर मरने वाला भी यही सोचता है ।कि बस और एक सांस ले लूं पर और एक सांस ले लूं कुछ दिन और जिंदा रह लूं.. बस।
मगर एक डॉक्टर को पता होता है। बस और नहीं ।और सांसे नहीं। मगर फिर शरीर को कष्ट में डालकर मरीज और अंधविश्वासी मरीज के परिवार वालों को यह विश्वास दिलाते हैं- कि मरीज अपने पैरों में चलकर जाएगा !जैसे आया था उस से बेहतर होकर जाएगा।
मीठी मीठी सी बातें ।
अक्सर जहां पैसे ज्यादा लगता है ।वहां मरीजों को लुभाने के लिए- लगाया जाते हैं खूबसूरत नर्सेस जो मरीजों को मीठी-मीठी बात करते हैं। और मरीज को पता ही नहीं चलता- बकरा कब हलाल हो रहा है ।
बकरा धीरे-धीरे हलाल होता जा रहा है।
कहते हैं बकरे को पता ही नहीं चलता कब पेट चीर कर पेट से नोटों की गड्डी निकाल ली जा चुकी है।
और वह..!
धीरे-धीरे जो मौत की ओर कदम बढ़ाने लगा था ।
कुछ गति तेज हो जाती है।
यह प्राइवेट अस्पतालों का करिश्मा मैं नहीं कहता कि ऐसे पेसेंट ठीक नहीं होते! ठीक करते नहीं ,करते भी हैं।
मगर जिसे ठीक नहीं होना है -उसे भी मौत के मुंह में जाने के लिए सहयोग करते हैं ।जो मरीज मरीज का रिश्तेदार यह सोचते हैं डॉक्टर भगवान है। वह सरासर गलत साबित होता है।
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