धीरे धीरे मौत का साया गोपाल की ओर बढ़ रहा था। गोपाल को भी एहसास था ।अब मैं शायद ठीक ना हो पाऊं।
गोपाल- तुमने लिवर डोनेट क्यों किया? इसी लिवर के ऑपरेशन से मैं ज्यादा परेशान हो गया हूं!
भाभी- हम आप को बचाना चाहते हैं! इसलिए लिवर डोनेट किया, मैंने अपना।
गोपाल भडक उठा बोला -तुम लोगों ने मुझे मारने के लिए ऐसा किया?
भाभी तड़प उठी रो पड़ी। मैंने पेट फाड़कर लीवर आपको दिया। आपको मौत के मुंह से बचाने के लिए। डॉक्टर बता रहा था। बस अब लीवर का ट्रांसप्लांट नहीं हुआ तो, यह 2 या 3 महीने के मेहमान है।
गोपाल होठों ही होठों में मुस्कुराता बोला- और अब?
मैं- अरे कुछ नहीं होगा तुम्हें, दोनों भाई चलेंगे। योगा करेंगे। मॉर्निंग वॉक करेंगे। बॉडीबिल्डिंग करेंगे। फिर मैं डिगबोई को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाना चाहता हूं। और फाइनेंसर तुम होगे। स्क्रिप्ट मैं तैयार कर रहा हूं।
गोपाल ने मुझे मुस्कुरा कर देखा। जैसे मेरी बातों का उसने मजाक सा बनाया हो। उसकी
बाएं और की गाल एक तरफ ऊपर उठा। ऐसे ही मुस्कान। बिल्कुल ऐसे ही उसके पापा भी मुस्कुराते थे।
उसने कुछ बोला नहीं ।सुन्य में ताकत रहा जैसे ऊपर वाले से कुछ मोहलत मांग रहा हो या रब मेरे दोस्त की कहा सच कर देना। उसे फिल्म राइटिंग का स्क्रिप्ट राइटिंग का शौक है।
मगर आज तक स्क्रिप्ट राइटिंग में उसने सफलता नहीं पाई है। उसने हाथ जोड़ें।
कुछ देर पहले ही सानू ने मंदिर से फूल और लाल सिंदूर का टीका ले आई थी। सानू ने उसके ललाट में सिंदूर लगाया था ।और सिर में दो पत्ते रख दिए थे। मंदिर से ले आए हुए धागे को गोपाल के गले में डाल दी थी। बड़े श्रद्धा से डालते वक्त सानू के दिल में आस्था का चिराग जलसा गया था। गोपाल की आंखों में नमी उभर आई थी।
समंदर आसमान से दो बूंद पानी मांगे,
लहरें खुद हवा से रवानगी मांगे।
आस्था से भरी हुई सानू अब भगवान पर यूं, क्यों पापा के लिए लंबी जिंदगी की दुआ कर रही थी। पापा की दुश्वारियां बढ़ती उससे देखी नहीं जा रही थी।
मुझसे एक वक्त वह बोल पड़ी थी। पापा ने बहुत दुख झेल लिया ।पापा बहुत दुख झेल रहे हैं।
वह फिर बोली थी- मुझसे पापा का दुख सहा नहीं जाता। पापा को अब चले जाना चाहिए।
मैं शायद समझ नहीं पाता था।या समझ कर भी उसको दुख को ताड़ने की कोशिश कर रहा था।
मैं- वह बहुत हिम्मती है ,परिस्थितियां दर्द उसे हिला नहीं सकती ।वह वास्तव में हिम्मत का पुतला है। जिंदगी के शुरुआती दौर में नौकरी के लिए संघर्ष करते ,लड़ते मुझे पता है उसे संघर्ष की सीमा लांग दिया था ।
हार !हार मानना उसके लिए फितरत में न था।
पापा एक अच्छे शिकारी भी थे ।वह एक दौर था ,जब जंगलों में बंदूक लेकर रात के वक्त में शिकार के लिए निकलते थे। जिस जंगल को दिन को ही देखकर लोग घबरा जाते थे ।उस जंगल में बंदूक टांग कर रात को शिकार के लिए निकलते, ऐसे हिम्मत दार पिता का पुत्र था।
गोपाल भाइयों में तीसरा था।
जब घर में बच्चों की भरमार होती थी। परिवार नियोजन का अर्थ ही मालूम होते हुए भी बच्चे पैदा करते थे।
पांच भाइयों में नौकरी के लिए स्टेट गवर्नमेंट से ही लड़ा था ।फिर जीत हासिल हुई थी।
यह एक मिसाल था। फिर नौकरी में बहाली हुई नौकरी करते-करते नवी महीने में उसे नौकरी से बिठा दिया गया था ।मगर उसने फिर से आयल इंडिया की नौकरी हासिल की। सभीने उसे सराहा ।ब्रैवो!
हिम्मत -ए -मर्दा ,मदद- ए -खुदा।
उसने सानू की आस्था से भरे चेहरे को देखा। बोला -अभी तो फूल छिड़क रही है ! यहां रहती है तो झपकी भी लेने नहीं देती। पुकारती रहती है। बाबा ..बाबा ..करके।
मैं हंसा बोला-डॉक्टर ने दिन को सोने से मना किया है। इसलिए तुम्हारी बेटी चाहती है कि दिन को सो कर इम्यून सिस्टम को कमजोर ना करो ।ठीक होना भी है!
इन्हीं के बारे में सोच कर तो खाने की कोशिश करता हूं ।वरना खाता हूं तो मुंह से लेकर अंदर तक जलन होती है।
सानू -मगर फिर भी आप खाते कहां है? डॉक्टर कह रहा था ।नाक से एक नली अंदर गले तक डाली जाएगी ।खाना खाने के लिए। लिक्विड दिया जाएगा। जिससे आपकी ए म्यूनिटि सिस्टम बढ़ने लगेगी।
उसका क़फ बढ़ गया था ।
पेट और छाती का एक्सरे फिर से लिया गया था।
और फेफड़े में छाती में भी पानी भरने का मसला सामने आया था ।
छाती से पानी निकालने के लिए एक छेद करके दो बोतल बिस्तर के नीचे रखा गया था। उसमें छाती का पानी भरता जाता- बिल्कुल गुलाबी पिंक कलर का पानी।
शरीर के सारे होमो ग्लोबिन बाहर।
डॉक्टर ने बताया था। उसके शरीर में प्लेटलेट्स की कमी आ गई, फिर दो या तीन यूनिट ब्लड चढ़ाना जरूरी हो गया था। शरीर के अंदर ब्लड फॉरमेशन नहीं हो रहा था।
मगर अजीब सी बात -बीपी नार्मल था!
सांसे अब नॉर्मल था। डॉक्टर कहते लंबी लंबी सांसे लो ।लंबी-लंबी सांसे।
शुगर नॉर्मल नहीं हो रहा था ।दो बार शरीर में इंसुलिन इंजेक्ट करना पड़ रहा था । चेस्ट से पानी निकालने का क्रम बढ़ता जा रहा था।
शरीर में खाना पहुंचाने के लिए नाक से नली डालकर गले की नली तक पहुंचाया जा रहा था। क्योंकि नली से शरीर के मुंह के छाले को छुए ,बगैर पेट में लिक्विड चला जाता।
एक तो न्यूट्रियंस नाक के सहारे लगी नली से अंदर पहुंचा जा रहा था ।
ऊपर से मरीज को कहते- मरीज के देखरेख के लिए बैठे अटेंडेंट को कहते- ज्यादा से ज्यादा मुंह से खाने और खिलाने की कोशिश करो। नाक की नली की वजह से ठीक से मुंह से भी लिक्विड अंदर डालने में परेशानी होती थी।
गोपाल कहता मुंह से खाते वक्त -अंदर नली में टकराता है !और दिक्कत पैदा हो रहा है! उसकी आंखें नम हो रही थी ।खाने की कोशिश करता हूं ।मगर खाया नहीं जा रहा।
मैं चाहता हूं कि मैं अपने बच्चों के लिए ही सही -कुछ दिन के लिए ठीक हो जाऊं। मेरी वजह से सब परेशान है ।
बेटी परेशान है ,विवेक और पत्नी परेशान है। वह इसलिए भी परेशान है ।कि उसने मुझे लीवर दान दिया है ।मगर फिर भी कोई काम नहीं कर रहा है। मैं क्या करूं ?आत्मविश्वास की वजह से मैं जिंदा रहने की कोशिश में; मैं भी मौत से लड़ रहा हूं!
सच था। जब से अस्पताल में आया था ।तब से ऑपरेशन के बाद भी शरीर में दवा पहुंचाने के लिए शरीर में न्यूट्रिएंट्स डलवाने के लिए कई सुराग किए जा चुके थे। नाक से, हाथ से, चेस्ट से, पेट से, फिर अब गले से।
बिल्कुल ही ना बंद हो गया था।
चेस्ट से गुलाबी पानी ,3 -3 लीटर अपने आप बाहर निकल रहा था। डॉक्टर कह रहे थे- कि कुछ नहीं बस ठीक हो रहा है। देखो कल 3 लीटर निकला था ।आज 24 घंटे में 2 लीटर से थोड़ा ज्यादा निकला है ।धीरे-धीरे चेस्ट का पानी निकलना बंद हो जाएगा। तो फिर इस छेंद को बंद कर देंगे। यह पेट का पानी ही है जो चेस्ट आ गया है।
विवेक ने पूछा -डॉक्टर पेट का पानी का कलर तो पिंक नहीं होता!
डॉ -यह पानी छाती में चढ़ जो गया है ,तो कलर भी चेंज हो गया है।
डॉक्टर न जाने क्या-क्या बताकर मरीज के घरवालों को बरगलाए रहते हैं।
ठीक हो जाने के क्रम में कितना ठीक हुआ कि शरीर के कई हिस्से से पानी निकाला जा रहा है।
ग्लूकोस वाटर फिर सुख जूस जो हम दे रहे हैं सब कुछ लिक्विड में है। शरीर में पानी की मात्रा ज्यादा जा रही है। वहीं पानी यह निकल रहा है।
अंदर भेजा गया न्यूट्रिशंस ग्लूकोस वाटर पेशाब से निकलेगा या फिर छाती से ।डॉक्टर को समझ है कि साधारण व्यक्ति को मानव शरीर और डायलिसिस के बारे में पता नहीं है। इसलिए यह डॉक्टर मरीज के घरवालों को बरगलाने में कामयाब हो जाते हैं।
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