भारत को 2011 में विश्व चैंपियन बनाने में अहम रोल निभाने वाले मुनाफ़ पटेल ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया है। 35 साल के मुनाफ़ ने खेल के सभी फॉर्मेट्स को अलविदा कह दिया है। मुनाफ़ 2006 से 2011 के बीच टीम इंडिया के रेगुलर खिलाड़ी रहे। लेकिन चोट के कारण उन्हें कई बार टीम से बाहर भी होना पड़ा। उन्होंने अपना आखिरी इंटरनेशनल मुकाबला 2011 में खेला था।
अपने रिटायरमेंट के फ़ैसले पर मुनाफ़ ने कहा जिन खिलाड़ियों के साथ उन्होंने खेला वो भी संन्यास ले चुके हैं। सिर्फ़ धोनी ही बचे हैं। इसलिए उन्हें कोई अफ़सोस नहीं है।उन्होंने आगे कहा-
“सभी का समय खत्म हो चुका है। गम होता जब सारे खेल रहे होते और मैं रिटायर ले रहा होता। संन्यास का कोई विशेष कारण नहीं है। उम्र हो चुकी है, फ़िटनेस पहली जैसी नहीं है। युवा अपने मौकों का इंतजार कर रहे हैं और ऐसे में मेरा खेलना अच्छा नहीं रहेगा। प्रमुख बात ये है कोई प्रोत्साहन नहीं बचा है। मैं 2011 विश्व कप विजेता टीम का सदस्य हूं और इससे बड़ी उपलब्धि कुछ और नहीं हो सकती।”
2011 वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के गेंदबाजी कोच एरिक सिमंस ने मुनाफ़ पटेल को विश्व कप का एक अज्ञात योद्धा बताया था। टूर्नामेंट में मुनाफ़, ज़हीर खान और युवराज सिंह के बाद सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले तीसरे गेंदबाज़ थे।
मुनाफ़ अपने युवा दौर में टाइल कारखाने में काम किया करते थे। उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हुआ करती थी। वो बॉक्स में टाइल्स पैक किया करते थे, जिसके बदले में उन्हें दिन की 35 रूपये की दिहाड़ी मज़दूरी मिलती थी। अपने उस दौर को याद करते हुए मुनाफ़ बताते हैं-
“दुख ही दुख था, मगर झेलने की आदत भी हो गई थी। आठ घंटे की मज़दूरी के बदले जो पैसे मिलते थे वो काफ़ी नहीं थे, मगर कर भी क्या सकता था? घर में पिताजी अकेले कमाने वाले थे और हम स्कूल में पढ़ते थे। मगर आज जो भी मैंने हासिल किया है वो सब क्रिकेट की वजह से हैं।”