*आचरण-आभूषण*
*विप्राणां भूषणं विद्या पृथिव्या भूषणं नृपः* ।
*नभसो भूषणं चन्द्रः शीलं सर्वस्य भूषणम्* ॥
जिस प्रकार एक *विप्र का आभूषण विद्या है, पृथ्वी का आभूषण राजा है, आकाश का आभूषण चन्द्र है उसी प्रकार इस समस्त चराचर जगत का आभूषण सदाचार* है ।
जिस प्रकार *प्रकृति का स्पष्ट नियम है दान देना , उसके बदले प्रकृति आपसे कुछ नही लेती और न अपने लिये संग्रह करती है , अर्थात उसका समस्त आचरण-आभूषण समस्त जगत के हित के लिये है*
प्रकृति के इस नियम पर यदि हमें विश्वास हो जाये तो फिर सुख की संपत्ति के संग्रह की बुद्धि नही , सदुपयोग की बुद्धि जागृत हो जायेगी और कैसी भी स्थिति-परिस्थिति हो हम उसे ऐसा सुन्दर स्वरूप दे सकते है कि उससे हमें ही सदाचार-परोपकार-निस्वार्थ भावना रूपी शक्ति ही मिले।
एक बात *सदैव ध्यान रखनी चाहिये कि यह शरीर , शरीर में ताकत , जेब में पैसा , पद और प्रतिष्ठा सब अस्थाई हैं* ,इसलिये सदैव *समान रहकर सरलता-सहजता तथा मर्यादित रहकर प्रकृति की भाँति दान देना सीखिये,लेकिन उसकी चर्चा समाज करे , आप नहीं , जैसे प्रकृति न तो कभी अपने आप पर गुमान करती है और न अपना बखान करती है*
जिस भी मनुष्य ने अपने *हदृय को राग , द्वैष , काम-क्रोधादि कषायों आदि से रहित कर लिया है , उसके सुख और आनन्द की कोई सीमा नही है* , क्योकि मनुष्य *साधनों से नहीं साधना से श्रेष्ठ बनता है* । इसलिये कृपया सदैव सत्य का ही आचरण करने का ही प्रयास करें ,आपका मंगल ही होगा ।
🌹🚩जय🌹🚩 जय🌹🚩 श्री 🌹🚩राम🌹🚩