भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को आज 34 साल पूरे हो गए हैं। 31 अक्टूबर, 1984 को उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया था। आखिर क्या थी सिख समुदाय की नाराजगी की वजह, जो इंदिरा की मौत का कारण बनी? दरअसल सिख समुदाय का एक बड़ा हिस्सा ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण उनसे नाराज़ था। उस दिन इंदिरा गांधी ब्रिटिश ऐक्टर पीटर उस्तिनोव से मिलने जा रही थी जो उनका इंटरव्यू एक डॉक्यूमेंटरी के लिये करने वाले थे। उनके सुरक्षा गार्ड्स बेअंत सिंह और सतवंत सिंह दरवाज़े पर उनका इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही वह दरवाज़े से निकलीं तो बेअंत सिंह ने उनके पेट में तीन गोलियां दाग दी। इंदिरा गांधी गिर गईं और सतवंत सिंह ने अपने स्टेनगन से उन्हें 30 गोलियां दागीं। दोनों को पकड़ लिया गया और इंदिरा गांधी को तुरंत अस्पताल ले जाया गया और कुछ घंटों के बाद उनका निधन हो गया। इंदिरा की हत्या के बाद कांग्रेस ने सत्ता की बागडोर उनके बड़े बेटे राजीव गांधी को सौंप दी।
6 जून 1984 के दिन सिखों के सबसे पावन स्थल स्वर्ण मंदिर परिसर में भारतीय सेना की कार्रवाई 'ऑपरेशन ब्लू स्टार की यादें आज भी लोगों को टीस देती है। 1984 तक पंजाब के हालात बेकाबू हो गए। स्वर्ण मंदिर में डीआइजी ए.एस. अटवाल की हत्या के बाद से पंजाब सुलग रहा था। जरनैल सिंह भिंडरांवाले के नेतृत्व में सिखों के एक विद्रोही गुट ने जंग छेड़ रखी थी। भिंडरावाले खालिस्तानी चरमपंथी के तौर पर तेजी से अपनी पैठ पंजाब में बना रहा था।
80 के दशक में पंजाब हिंसा की आग में जल रहा था और स्वर्ण मंदिर परिसर से खालिस्तान समर्थक भिंडरावाले ने अपने साथी ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई को लेकर अभियान शुरू कर दिया। अकालियों ने भी अपने मोर्चे का विलय भिंडरावाले के मोर्चे में कर दिया। पंजाब से आ रही हिंसक खबरों ने दिल्ली की सरकार को सकते में डाल दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सिखों के सबसे पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर में सेना को ऑपरेशन चलाने की अनुमति दे दी।
'ऑपरेशन ब्लू स्टार' के लिए हरी झंडी देना इंदिरा के लिए इतना आसान नहीं था। 5 जून, 1984 को रात में 10.30 बजे के बाद काली कमांडो पोशाक में 20 कमांडो चुपचाप स्वर्ण मंदिर में घुसे। उन्होंने नाइट विजन चश्मे, एम-1 स्टील हैल्मेट और बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थीं। उनके पास कुछ एमपी-5 सबमशीनगन और एके-47 राइफल थीं। इंदिरा गांधी ने सेना को यह आदेश देने का फैसला बहुत सोच-विचार के बाद लिया। वरिष्ठ पत्रकार मार्क टुली और सतीश जैकब ने अपनी पुस्तक अमृतसरः मिसेज गांधीज लास्ट बैटल में लिखा, 'उन्होंने कार्रवाई का फैसला तब किया जब बुरी तरह से घिर गई थीं और सेना ही उनका आखिरी सहारा थी। उन्होंने ऑपरेशन ब्लूस्टार को हरी झंडी दिखा दी।'
2 जून 1984 को भारतीय सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा सील कर दी और 3 जून को पूरे प्रदेश में कर्फ्यू लगा दिया गया था। 4 जून को सेना ने कार्रवाई शुरू कर दी और कुछ ही देर में मंदिर का अहाता पुराने जमाने का जंग का मैदान हो गया था। ऑपरेशन कामयाब रहा, लेकिन बड़ी संख्या में सैनिक और सामान्य नागरिक मारे गए। ऑपरेशन के बाद सरकार ने बताया कि ऑपरेशन में भारतीय सेना के 83 सैनिक मारे गए और 248 सैनिक घायल हुए। इसके अलावा 492 अन्य लोगों की मौत की पुष्टि हुई। इस घटना के बाद पंजाब में माहौल बेहद तनावपूर्ण था।