देश भर में पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आज 129वीं जयंती मनायी जा रही है। 14 नवंबर 1889 को जन्मे पंडित नेहरू की जयंती को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि नेहरू को बच्चों से बहुत प्यार था और वो नेहरू को चाचा कहकर बुलाते थे। नेहरू ने विदेश में रहकर बैरिस्टर की पढ़ाई की।
15 वर्ष की छोटी-सी उम्र में इंग्लैंड पढ़ने गए पंडित जवाहर लाल नेहरू उस समय सबसे कम उम्र में, महज बीस वर्ष की उम्र में बैरिस्टर की उपाधि लेकर सन् 1912 में भारत लौट आए। लेकिन, भारत लौटते ही उन्होंने वकालत को तवज्जो न देकर देश की आजादी की मुहिम में भाग लेना बेहतर समझा। यहां अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाही देखकर नेहरू ने सोचा कचहरी के एक व्यक्ति के मुकदमे की पैरवी करने के बजाए तो संपूर्ण भारत की पैरवी करना कहीं बेहतर है।
बिहार के पटना में पहली बार कांग्रेस की सभा में लिया था भाग
नेहरू को स्वतंत्रता संग्राम में उतरने के लिए जिसके लिए उन्हें एक मंच की आवश्यकता थी। उन दिनों कांग्रेस एक खुले मंच में राजनीति कर रही थी। जिसके चलते वह कांग्रेस के सदस्य बन गए और 1912 में प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने पटना के बांकीपुर में कांग्रेस की एक सभा में पहली बार भाग लिया। यहां से राजनीतिक सफर शुरू करते हुए पंडित नेहरू ने कांगेस के अध्यक्ष और फिर देश के पीएम बने।
लगातार चार बार देश के पीएम रहे नेहरू
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लगतार चार बार 1947, 1951, 1957 और 1962 तक देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला। पंडित नेहरू अपने जीवन काल में आजादी की लड़ाई के दौरान वह नौ बार जेल गए। उन्होंने जेल में 5 हजार 477 दिन गुजारे थे। पीएम के रूप में उन्होंने ‘नियति से मिलन’ पहला भाषण दिया था।
लोकतांत्रिक देश के पहले प्रधानमंत्री
चुनाव के समय देश की कई पार्टियों में जोरदार टक्कर हुई। जिसमें कांग्रेस, हिन्दू महासभा और अलगाववादी सिक्ख, अकाली पार्टियाँ प्रमुख थी. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जोरदार जीत हासिल की। देश भर में हुए चुनाव में 60 फीसदी मतदान हुआ. कांग्रेस को 364 सीटें प्राप्त हुई।
कांग्रेस की पूर्णबहुमत सरकार में गणतांत्रिक और लोकतांत्रिक देश को पहला प्रधानमंत्री मिला और यह प्रधानमंत्री कोई और नहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू ही थे।
प्रेस की स्वतंत्रता के पक्षधर
पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रेस की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वह कहते थे कि देश में प्रेस की स्वतंत्रता बरकरार रहनी चाहिए। मीडिया द्वारा अपना विरोध किये जाने पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि हो सकता है प्रेस गलती करे, हो सकता है प्रेस ऐसी बात लिख दे जो मुझे पसंद नहीं। मगर प्रेस का गला घोंटने की जगह मै यह पसंद करूँगा कि प्रेस गलती करे और गलती से सीखे. प्रेस की स्वतंत्रता बरक़रार रहनी चाहिए।
‘भारत रत्न’ का पुरस्कार
पंडित जवाहरलाल नेहरू को 1955 को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उस समय के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत रत्न से अलंकृत किया।
दिल का दौरा पड़ने से चल बसे नेहरू
प्रधानमंत्री के रूप में 17 वर्षो तक देश का प्रतिनिधित्व करने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू के ऊपर चार बार जानलेवा हमला हुआ लेकिन उन हमलों से वह बच निकले। वहीं पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने के कारण हुई।
चीन ने भारत पर जब हमला किया, तब चीन से युद्ध के दौरान भारत के करीब 1300 सैनिकों की मृत्यु ने नेहरू के दिल को कड़ा अघात पहुंचाया। उन्हें 1963 में दिल का पहला हल्का दौरा पड़ा, जनवरी 1964 में उन्हें और दुर्बल बना देने वाला दूसरा दौरा पड़ा। कुछ ही महीनों के बाद तीसरे दौरे में 27 मई 1964 में उनकी मृत्यु हो गई।
पंडित नेहरु ने अपनी वसीयत में लिखा…..
“जब मैं मर जाऊं, तब मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए, जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले, लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखरा दिया जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए”