जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है - विदुर नीति
अभिमान नरक का
मूल है - महाभारत
कोयल दिव्या
आमरस पीकर भी अभिमान नहीं करती, लेकिन मेढक कीचर का पानी पीकर भी टर्राने लगता
है - प्रसंग रत्नावली
कबीरा जरब न
कीजिये कबुहूँ न हासिये कोए अबहूँ नाव समुद्र में का जाने का होए - कबीर
समस्त महान
गलतियों की तह में अभिमान ही होता है - रस्किन
किसी भी हालत
में अपनी शक्ति पर अभिमान मत कर, यह बहुरुपिया आसमान हर घडी हजारों रंग बदलता
है - हाफ़िज़ जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता - शेख सादी