मम्मा पीरा (बूढ़ी
दादियाँ)
डॉ शोभा भारद्वाज
कोरोना महामारी पहली
लहर के बाद दूसरी लहर में जिस तरह जाने जा रही है अब नया रोग ब्लैक फंगस और भी
अनेक रोग दिल की बिमारी , अस्थमा. कैंसर .कई कष्ट आपरेशन टेबल पर ले जाते हैं ,
मुटापा , ब्लड प्रेशर ,शुगर भूलने की बिमारी सुन –सुन कर . एक किस्सा याद आ गया हम
ईरान के खुर्दिस्तान की राजधानी सन्नंदाज में रहते थे शहर के आखिरी छोर पर अस्पताल
था उसके बाद खूबसूरत घाटी शुरू होती थी एक दिन अस्पताल में एक आदमी नाम था
लुतफुल्ला उसकी स्वयं की उम्र 70 वर्ष थी अपनी मम्मा पीरा , (दादी को वह मम्मा पीरा ,बूढ़ी माँ) कहते हैं गोद में उठा कर लाया वह बिमार थी शायद
पैरों में हल्की सूजन थी पहले उन्हें टेबल पर लिटाया थोड़ी देर बाद वह संयत हो गयी
उन्होंने कहा आगा डाक्टर मुझे आप ठीक कर दो मैं अभी मरना नहीं चाहती मुझे बहुत काम
करने है हैरानी हुई उसका पोता भारत के हिसाब से बूढ़ा था .
लुतफुल्ला नें हंस
कर मजाक में कहा डाक्टर साहब तीन दिन से कब्र खोदी हुई है आप जानते है बर्फ के
दिनों में कब्र कितनी मुश्किल से खुदती है .दादी हंस कर बोली अभी में जाने वाली
नहीं हूँ उसे ढक दे डाक्टर मुझे ठीक कर दो मैं हर महीने तुम्हे 500 तूमान दूंगी
इन्होने हंस कर कहा तुम्हारा निजाम मुझे बहुत पैसा देता है उसको देखा दवाई दी कुछ
वहीं खिलायीं कुछ देर बाते की अब वह ठीक महसूस कर रही थी पैदल पहाड़ी पर चढ़ कर घर
गयी . एक महीने बाद वह सही समय पर अस्पताल आई बिलकुल चुस्त साथ में 500 ,तुमान लाई
थी इन्होने कहा इसे जाते समय मस्जिद में दे देना समझ लो आपने मुझको दे दिए और
लगातार दवाई खाना है .एक वर्ष बाद हमें छुट्टी लेकर भारत आना था मम्मा पीरा आई
दवाई लेकर चली गयी जाते समय बहुत भावुक थीं डाक्टर के दोनों हाथ चूमे यह उनका
सम्मान करने का तरीका है .
हम एक माह के लिए
भारत गये थे लेकिन डेढ़ माह बाद लौटे तेहरान से सन्नंदाज बस से आये घर रास्ते में
पड़ता था उतर गये एक दूर से मिन्नी बस आ रही थी डाईवर जानकार था उसने हमें बस में
बिठा लियी मिन्नी बस में केवल बूढ़ियों बैठी थी पता चला मम्मा पीरा तीन दिन पहले चल
बसी अंतिम समय में इनको याद कर रही थीं सब उनकी मृत्यू में शोक प्रगट करने आयीं थीं
हैरानी हुई फातेखानी में आने वाली बूढ़ियाँ मम्मा पीरा से भी अधिक बूढ़ी थी उनकी फातेखानी
कई वर्ष पहले हो जानी थी ,हैरानी हुई सभी की कमर सीधी कुछ के काले बाल दुबारा आ
रहे थे कहते हैं उनके दांत भी ठीक थे सबसे बुजुर्ग का हमने हिसाब लगाया 114 वर्ष
से अधिक बूढ़ी थीं अस्पताल अधिक दूर नहीं था हमें उतार कर मिनी बस उनको लेकर चली
गयी . अगले दिन वही मिनी बस अस्पताल के पास रुकी सभी बुजुर्ग महिलाये इनसे मिलने
आई थी . मौत में आई थी परन्तु हमारे लिए सौगात में अंगूर, कच्चे अखरोट , कच्चे बादाम
भी लाई थी .
अस्पताल की सीढियाँ
चढ़ गयी किसी की सांस नहीं फूली सभी डाक्टर के कमरे में इनको घेर कर बैठ गयी पहले
उन्होंने अपनी रिश्तेदार के इलाज के लिए शुक्रिया किया इनको देख खुश हो रहीं थी
इन्होने सोचा शायद इलाज के लिए आई हैं उनमें कोइ बिमार नहीं थी फिर भी इन्होने
उत्सुकतावश दो तीन का ब्लड प्रेशर देखा नार्मल सबकी आंखे ठीक लाल गाल हैरानी हुई
अंत में पूछा आप खाती क्या हो पानी की जगह पतला मट्ठा ,दहीं ,आब गोश्त , (थोड़ा
गोश्त , उसमें काबुली चने पर पालक डाल कर उबलता है) जिसे वह घर के बने नान के साथ
खाते हैं चावल , फल ,अखरोट बादाम इसकी उनके यहाँ खेती होती है वह भी ज्यादा नहीं बर्फीला
प्रदेश है चाय वहाँ हर वक्त तैयार मिलती है , हाँ सब अपने बागों में काम करती थी
जरा भी आलस नहीं ,बिमारी न के बराबर वैसे भी बर्फ के दिनों में खांसी जुकाम भी
वहाँ नहीं होता .
उन्हें न जाने किस
जमाने के किस्से भी याद थे इन्होने मजाक में पूछा अडूस ( बहु ) कैसी है ?बहुत
अच्छी हैं .सेवा करती हैं ? हमें जरूरत ही नहीं है चेहरे पर भोलापन भोली हंसी इनके
पास आने वाले शहरी मरीजों का यह हाल था पहले बहू आती अपनी सास की बुराई करती उसके
जाने के तुरंत बाद सास जासूसी करने आती अरे बहू को कुछ भी नहीं है. बहू या पोते की
बहू बिलकुल अच्छी नहीं है. सास बहुओं के
किस्से इनका मनोरंजन था, लेकिन गावँ की भली मम्मा पीरा .जाते समय मुझसे भी मिलने
आई उनका आशीर्वाद था खुर्रा न मरे अर्थात बेटों की उम्र लंबी हो .हैरान हूँ इतनी
लंबी उम्र ऐसे कैसे है सब स्वस्थ थीं ? मेरी पठान दोस्त ने बताया उनके एरिया
नार्थवेस्ट फ्रंटियर में बहुत बड़े उम्र के लोग हैं .शुद्ध वायू सस्ता लेकिन अच्छा
खानपान समय पर सोना अच्छी इम्यूनिटी जिसके लिए हम तरसते हैं . उनके एरिया में शायद
कोरोना नहीं पहुंचा होगा .