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दिल बिक रहे है लोग बिक रहे है दौलत की दलदल मे सब फँस रहे है। कहीं आंतकवादियों की भीड़ लगी है कहीं नेताओं की नेतागिरि है एक सामने से तलवार चलाता दूसरा कुर्सी का लाभ उठाता। लोग ऐसे बिक रहे है जैसे चौरा

सुबह आँख खुलते ही,मोबाइल के दीदार करते हैं।करते नोटिफिकेशन चेक,स्टेटस पर अपडेट रहते हैं।सारे काम अब तो,मोबाइल पकड़े पकड़े करते हैं।रात को सोते समय भी,पास में रखें रहते हैं।हर मूवमेंट का अब,फोटो क्लिक

अपराध करो कम ना अपराधी,अपराध ही है सारी व्याधि।अपराध की कुछ मजबूरी होती,अपराध की भी कुछ जड होती।कुछ भोले-भाले इंसान भी,अपराध चपेट में आ जाते।कुछ अपनी ताकत के बलबूते,अपने अपराध छुपा जाते।अपराधी सिद्ध ह

सुना है कि खामोशी की आवाज दूर तक सुनाई देती है  खामोशी जब बोलती है तो फिर सिर चढ़कर बोलती है  सौ बक बक से अच्छी है एक अदद खामोशी  तकरार ज्यादा बढ़ने को रोक देती है खामोशी  खामोश रहने

हमारे बड़े बुजुर्ग, मिट्टी में अनाज उगाते थे। फिर मिट्टी के चूल्हे पर, मिट्टी के बर्तन में खाना बनाते थे। रहते थे स्वस्थ, सौ साल तक जीते थे। और मिट्टी के मटके का, ठंडा पानी पीते थे। बच्चे धूल मिट

23.03.2021 नारी समाज के एक उस रथ के पहिए के समान है जिसमें दो पहिए हो और एक पहिया निकल जाये या खराब हो जाये  तो वह रथ चल नहीं सकता है।उसी प्रकार गृहस्थी जीवन में परमात्मा के दो अद्भुत रूप नर और न

47डीआईजी ढिल्लन सिंह द्वारा ड्राइवर फरीद व कब्रिस्तान पर निगाह रखने एवं पूरी जानकारी देते रहने का निर्देश दिया। पत्रकारिता के क्षेत्र में नया नया आया स्वतंत्र पत्रकार रिपुदमन सिंह यूँही इधर-उधर भ

22 मार्च 2022   मंगलवार समय- 11:45(रात)मेरी प्यारी सखी,हम सब सीखते कुछ है और उसे व्यवहार जीवन में कुछ और ही तरह से प्रयोग में लाते हैं। बचपन में जब भी मैं विवाद या निबन्ध लिखती थी, जल स

दिनाँक : 21.03.2022समय। : रात 10 बजेप्रिय डायरी,कविता ज्यों तिमिर में प्रकाश-पुंजकविता मन की आवाज की गूंज।कविता किंचित शब्दों से करती प्रहार,कविता मनोभावों का सुमधुर उदगार।।       

दिल्ली की निर्भया की मां के संघर्ष पर एक कविता जिसने दरिंदों को फांसी के फंदे तक ले जाकर छोड़ा । उस मां को एक सलाम तो बनता है । दो वर्ष पूर्व लिखी गई  मेरी कविता सवा सात साल का वक्त कोई कम नह

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 हमने खोया सितारों को , वादी ए कश्मीर के प्यारो को, रातों रात भगाया उन बैचारो को जन्नत में एक धर्म भारी पड़ गया । घाटी में पंडितो का परिवार उजड़ गया। चारो और खून खराबे का मंजर था । क्या महिला , क्य

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 हमने खोया सितारों को , वादी ए कश्मीर के प्यारो को, रातों रात भगाया उन बैचारो को जन्नत में एक धर्म भारी पड़ गया । घाटी में पंडितो का परिवार उजड़ गया। चारो और खून खराबे का मंजर था । क्या महिला , क्य

प्रत्येक गांव की ग्राम सभा को ई ग्राम सभा के माध्यम से करवाना जरूरी हो जिसमे ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों की भागीदारी व ग्राम पंचायत के सभी सदस्यों की उपस्थिति जरुरी हो। जिसकी शुरुवात वर्तमान सरकार ने क

हम ना झुकेंगे, तुम ना रूकेंगे, देखें कितना दम है ।तुम नहीं कम हो यहां पर,हम नहीं क्या कम है।धधक रही है धरा हमारी,तेरी घोर मिसाइलों से।कितना तुझे घमंड हुआ है,क्या भिड़ा है तू कायरों से।हम भी तेरी ताकत

दिवाली के जिन पटाखों से कई संस्थाओं से लेकर अदालत तक चिंतित हो जाती हैं। वही पटाखें होली पर क्यों बढ़ते जा रहे हैं? क्या ये होली पर प्रदूषण करना बंद कर देते हैं? वैज्ञानिकों की मानें तो इन पटाखों से नि

दिनाँक : 19.03.2022समय : शाम 8 बजेप्रिय डायरी जी,पंजाब में लगी है झाड़ू औरदिग्गज पड़े है डस्टबिन में।जीतने और हारने वाले,दोनों ही जमात में शामिल है।पंजाब के कोने-कोने से ढूंढ-ढूंढ कर इकट्ठी की गई,म

जब संसार में आंखे खुलती हैं तो ये नहीं पता होता कि संसार क्या हैं। न ही ये पता होता हैं कि हम क्या हैं। न ये कि अच्छा क्या और बुरा क्या हैं। संक्षेप में एक कोरा कागज़ जिस पर जो चाहे लिख लो। आज की पीढ़

आज भले ही होली की छुट्टी थी लेकिन अपनी छुट्टी कहाँ? सुबह से ही बच्चों की फरमाइश कि ये बनाकर खिलाओ, वो बनाकर खिलाओ के बीच होली की उधेड़बुन में भूली-बिसरी होली के रंगों में डूब हिचकोले खाती रही। दिन मे

होली के रंगों में ही क्यों, प्रेम और सद् भाव होते।रहे हमेशा जीवन में,उसके रंग कितने गहरे होते।द्वेष और घृणा को भुलाने, क्यों त्यौहार ही अपनाते हो।रहे त्यौहार सम हर पल जीवन,क्यों इसको तुम भुलाते हो।ऐसा

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