हूणों की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न मत-
शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव, चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- महाभारत ,वाल्मीकि रामायण तथा पुराणों के सन्दर्भों से उद्धृत करते हुए चीन के इतिहास से भी कुछ प्रकाशन किया है। यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा लिखे गये पुराण, महाभारत और वाल्मीकि रामायण आदि -ग्रन्थों पर सभी पुष्यमित्र सुंग की रूढ़ि वादी परम्पराओं के अनुयायी ब्राह्मणों ने ठप्पा (मौहर) लेखन की दृष्टि से व्यास जी की लगाई है। जैसे कि कृष्ण द्वैपायन व्यास ने सारे ग्रन्थ लिखे हों। व्यास- का मिलन ईरानी धर्म संस्थापक जुरथुस्त्र से ई०पू० अष्टम सदी के समकक्ष ईरानी ग्रन्थों में दर्शाया है । वास्तव पुष्य-मित्र सुंग कालीन पुरोहितों ने अनेक काल्पनिक वंश व्युत्पत्ति कर डाली। -जब उन्हें किसी जन-जाति के वंश और जन्म स्थान का ज्ञान न हुआ तो !history of india in hindi हम सब लोग जानते हैं कि झूँठ अस्वाभाविक व प्रकृति के नियमों के विरुद्ध होता है। और सत्य निर्विकल्प सदैव एकरूप ! परन्तु पुराणों तथा महाभारत का लेखन अनेक व्यक्तियों द्वारा किया गया है। ये किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं हैं । क्यों कि इनमें विरोधाभास है ।
कोई एक व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर खड़ा होकर परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न बातें नहीं कहेगा। जैसा कि पुराणों में अध्याय अध्याय पर हैं । सत्य केवल एक रूप है उसका कोई विकल्प नहीं जबकि झूँठ ( मिथ्या) है 'वह अनेक रूप धारणाओं करने वाला बहुरूपिया है । itihas ऐैतिहासिक श्लोकों के रूप में केवल ऋग्वेद के प्रथम और दशम मण्डल को छोड़कर अन्य सभी मण्डल प्राचीनत्तम हैं। परन्तु पुराण तो बुद्ध के परवर्ती काल खण्ड की रचनाऐं हैं। इसी लिए इनकी कथाओं में परस्पर विरोधाभासी रूप भी होने से असत्य हैं। पुराण इत्यादि तत्कालीन किंवदन्तियों पर आधारित रचनाऐं हैं। --जो वेदौं की व्याख्या व प्रति छाया के रूप में उद्भासित हुए । पुराणों में तो शब्द व्युत्पत्ति भी मिथ्या व काल्पनिक हैं । भाषाओं के शब्दों का ऐैतिहासिक व्युत्पत्ति मूलक विश्लेषण भी इतिहास का सम्पूरक रूप है। अब हिन्दु धर्मावलम्बी महाभारत को गणेश जी के द्वारा लिखित रचना मानते हैं । परन्तु महाभारत में यूनानी शब्दों का बहुतायत से प्रयोग हुआ है ।👇 mahabharat में सुरंग शब्द का आगमन ई०पू० 323 में आगत यूनानीयों की भाषा से है । महाभारत में सुरुंगा शब्द यूनानीयों का-- तथा पाषण्ड शब्द बौद्ध कालीन शब्द है । बाद में पाषण्ड का रूप पाखण्ड होगया ।
इतना ही नहीं रूढ़ि वादी अन्ध-विश्वासी ब्राह्मणों ने यूनान वासीयों की उत्पत्ति का -जब ज्ञान नहीं प्राप्त कर पायी तो यूनानीयों को नन्दनी गाय की यौनि से ही उत्पन्न बता डाला है।👇 असृजत् पह्लवान् पुच्छात् प्रस्रवाद् द्रविडाञ्छकान् (द्रविडान् शकान्)। योनिदेशाच्च यवनान् शकृत: शबरान् बहून् ।३६। मूत्रतश्चासृजत् कांश्चित् शबरांश्चैव पार्श्वत: । पौण्ड्रान् किरातान् यवनान् सिंहलान् बर्बरान् खसान् ।३७। यवन,शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की उत्पति वसिष्ठ की नन्दनी गाय के शरीर के विभिन्न अंगो से कर डाली --जो पूर्ण रूपेण काल्पनिक व्युत्पत्ति है । ________________________________________ नन्दनी गाय ने पूँछ से पह्लव उत्पन्न किये । तथा धनों से द्रविड और शकों को। यौनि से यूनानीयों को और गोबर से शबर जन-जाति उत्पन्न हुई। कितने ही शबर उसके मूत्र ये उत्पन्न हुए उसके पार्श्व-वर्ती भाग से पौंड्र,( पुण्ढ़ीर), किरात ,यवन ,सिंहल (सैंगर )बर्बर (बरवारा) और खसों की -सृष्टि हुई ।३७। ब्राह्मण -जब किसी जन-जाति की उत्पत्ति-का इतिहास न जानते ! तो उनके विभिन्न चमत्कारिक ढ़गों से उत्पन्न कर देते । अब इसी प्रकार की मनगड़न्त उत्पत्ति अन्य पश्चिमीय एशिया की जन-जातियों की भी कर डाली गयी है देखें--नीचे👇
चिबुकांश्च पुलिन्दांश्च चीनान् हूणान् सकेरलान्। ससरज फेनत: सा गौर् म्लेच्छान् बहुविधानपि ।३८। इसी प्रकार गाय ने फेन से चिबुक ,पुलिन्द, चीन ,हूण केरल, आदि बहुत प्रकार के म्लेच्छों की उत्पत्ति हुई । (महाभारत आदि पर्व चैत्ररथ पर्व १७४वाँ अध्याय) __________________________________________ भीमोच्छ्रितमहाचक्रं बृहद्अट्टाल संवृतम् । दृढ़प्राकार निर्यूहं शतघ्नी जालसंवृतम् । तोपों से घिरी हुई यह नगरी बड़ी बड़ी अट्टालिका वाली है । महाभारत आदि पर्व विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व ।१९९वाँ अध्याय । इसी प्रकार वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड के चौवनवे सर्ग में वर्णन है कि 👇 -जब विश्वामित्र वशिष्ठ की गो को बलपूर्वक ले जाने के लिए प्रणबद्ध हुए तो इसका सन्दर्भ में दौनों की लड़ाई में हूण, किरात, शक ,यवन आदि जन-जाति के लोगउत्पन्न होते हैं । ______________________________________________ अब इनके इतिहास को यूनान या चीन में या ईरान में खोजने की आवश्यकता नहीं। 👴... आगे पहलवों की उत्पत्ति की कथाऐं सूत जी सौनक जी को सुनाते हैं । तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभि: सासृजत् तदा । तस्या हंभारवोत्सृष्टा: पह्लवा: शतशो नृप।।18। राजकुमार उनका 'वह आदेश सुनकर उस गाय ने उस समय वैसा ही किया उसकी हुंकार करते ही सैकड़ो "पह्लव" जाति के वीर उत्पन्न हो गये।18। पह्लवान् नाशयामास शस्त्रैरुच्चावचैरपि। विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्वा पह्लवाञ्शतशस्तदा ।20 भूय एवासृजद् घोराञ्छकान् यवनमिश्रतान् ।। तैरासीत् संवृता भूमि: शकैर्यवनमिश्रतै:।21 उन्होंने छोटे-बड़े कई तरह के अस्त्रों का प्रयोग करके उन पहलवानों का संहार कर डाला विश्वामित्र द्वारा उन सैकडौं पह्लवों को पीड़ित एवं नष्ट हुआ देख उस समय नन्दनी की पुत्री उस शबल गाय ने पुन: यवन मिश्रित जाति के भयंकर वीरों को उत्पन्न किया उन यवन मिश्रित शकों से वहां की सारी पृथ्वी भर गई श्लोक संख्या- 20 -21। ततो८स्त्राणि महातेजा विश्वामित्रो मुमोच ह। तैस्ते यवन काम्बोजा बर्बराश्चाकुलीकृता ।23। तब महा तेजस्वी विश्वामित्र ने उन पर बहुत से अस्त्र छोड़े उन अस्त्रों की चोट खाकर वे यवन, कांबोज और बर्बर जाति के योद्धा व्याकुल हो उठे श्लोक :-23 अब इसी बाल-काण्ड के पचपनवें सर्ग में देखें--- कि यवन गाय की यौनि से उत्पन्न होते हैं और गोबर से शक उत्पन्न हुए। योनिदेशाच्च यवना: शकृतदेशाच्छका: स्मृता। रोमकूपेषु म्लेच्छाश्च हरीता सकिरातका:।3। यौनि देश से यवन, शकृत् देश यानि( गोबर के स्थान) से शक उत्पन्न हुए रोम कूपों से म्लेच्छ, हरित ,और किरात उत्पन्न हुए।3। यह सर्व विदित है कि बारूद का आविष्कार चीन में हुआ बारूद की खोज के लिए सबसे पहला नाम चीन के एक व्यक्ति ‘वी बोयांग‘ का लिया जाता है। कहते हैं कि सबसे पहले उन्हें ही बारूद बनाने का आईडिया आया. माना जाता है कि वी बोयांग ने अपनी खोज के चलते तीन तत्वों को मिलाया और उसे उसमें से एक जल्दी जलने वाली चीज़ मिली. बाद में इसको ही उन्होंंने ‘बारूद’ का नाम दिया. परन्तु पुराणों तथा स्मृतियों में भुशुण्डी , अग्नि अस्त्र का वर्णन है । --जो बारूद से सम्बद्ध हैं । बारूद के विषय में कहा जाता है कि 300 ईसापूर्व में ‘जी हॉन्ग’ ने इस खोज को आगे बढ़ाने का फैसला किया और कोयला, सल्फर और नमक के मिश्रण का प्रयोग बारूद बनाने के लिए प्रयोग किया. इन तीनों तत्वों में जब उसने पोटैशियम नाइट्रेट को मिलाया तो उसे मिला दुनिया बदल देने वाला ‘गन पाउडर‘ बन गया । ब्रह्म-पुराण के पाँचवें अध्याय" सूर्य्यः वंश वर्णन" में एक प्रसंग है हूणों यवनों तथा शकों आदि जन-जातियों के विषय में। 👇 बाहोर्व्यसनिन : पूर्व्वं हृतं राज्यमभूत् किल। हैहयैंस्तालजंघैश्च शकै: सार्द्ध द्विजोत्तमा: ।35। यवना: पारदाश्चैव काम्बोजा : पह्लवास्तथा। एते ह्यपि गणा: पञ्च हैहयार्थे पराक्रमम् ।36। लोमहर्षण जी ने कहा हे ब्राहमणों यह बाहू राजा पहले बहुत ही व्यसनशील था । इसलिए शकों के साथ हैहय यादवों और तालजंघो ने इसका राज्य से छीन लिया । यवन ,पारद, कम्बोज और पह्लव यह भी पांच गण थे जो हैहय यादवों के लिए अपना पराक्रम दिखाया करते थे । अर्थात् उनके सहायक थे । ब्रह्म पुराण के इसी अध्याय में अागे वर्णन है कि शका यवन कम्बोजा: पारदाश्च द्विजोत्म। कोणि सर्पा माहिषिका दर्वाश्चोला: सकेरला:।50। सर्वे ते क्षत्रिया विप्रा धर्म्मस्तेषां निरीकृत: । वसिष्ठ वचनाद्राज्ञा सगरेण महात्मना।51। (ब्रह्म-पुराण के पाँचवें अध्याय सूर्य्यः वंश वर्णन में) शक यवन कांबोज पारद कोणि सर्प माहिषक दर्व: चोल केरल यह है विप्रो क्षत्रिय ही रहे हैं कि उनका धर्म निराकृत कर दिया गया था और क्योंकि यह सभी अपने प्राणों की रक्षा के लिए वशिष्ठ जी की शरण में चले गए थे । इसलिए वसिष्ठ जी के वचनों से महात्मा सगर ने फिर इन्हें मारा नहीं था केवल उनके धर्म को परिवर्तित कराकर क्षत्रिय ही बना रहने दिया था श्लोक संख्या-50-51 तोमरा हंसमार्गाश्च काश्मीरा: करुणास्तथा। शूलिका : कहकाश्चैव मागधाश्च तथैव च।50। ए ते देशा उदीच्यास्तु प्राच्यान् देशान्निवोधत। अंधा वाम अंग कुरावाश्च वल्लकाश्च मखान्तका: 51। तथापरे जनपदा प्रोक्ता दक्षिणापथवासिन: । पूर्णाश्च केरलाश्चैव मोलांगूलास्तथैव च ।54। ऋषिका मुषिकाश्चैव कुमारा रामठा शका: । महाराष्टा माहिषका कलिंंगाश्चैव सर्व्वश:।55। आभीरा: शहवैसिक्या अटव्या सरवाश्च ये । पुलिन्दश्चैव मौलेया वैदर्भा दन्तकै: सह ।56। तोमर हंस मार्ग कश्मीर करुण शूलिक कुहक, मगध यह सब देश उदीच्य हैं अर्थात उत्तर दिशा में होने वाले हैं आप जो देश प्राच्य अर्थात् पूर्व दिशा में हैं उनको भी समझ लो आंध्र वामांग कुराव, बल्लक , मखान्तक 51। तथा दूसरे जनपद दक्षिणा पथ गामी हैं पूर्ण, केरल गोलंगमून ऋषिक मुषिक ,कुमार रामठ, शक ,महाराष्ट्र माहिषक ,शक कलिंग ,वैशिकी के सहित आभीर अटव्य,सरव, पुलिन्द,मोलैय और दंतको के सहित वेदर्भ यह सब दक्षिण दिशा के भाग में जनपद हैं। 54-56। ____________ चीनी इतिहास कारों के हबाले से प्राचीन चीन का सबसे लंबा स्थायी राजवंश चौ ( चाउ) (Chou ) नाम से प्रसिद्ध था । जिसने चीन को लगभग 1027 से 221 ई०पू० तक सम्यक् सुशासन दिया। यह चीनी इतिहास में सबसे लंबा राजवंश था और उस समय जब प्राचीन चीनी संस्कृति का विकास हुआ था। चौ राजवंश ने दूसरे चीनी राजवंश,जैसे शांग (शुंग) का भी पालन किया। मूल रूप से पादरी, जो चौउ वंश से था। ने प्रशासनिक नौकरशाही के साथ परिवारों पर आधारित एक (प्रोटो-) सामन्ती सामाजिक संगठन स्थापित किया। उन्होंने एक मध्यम वर्ग भी विकसित किया। हालांकि शुरुआत में एक विकेन्द्रीकृत आदिवासी प्रणाली थी। चाउ राजवंश समय के साथ केंद्रीकृत हो गया। अब ये हूण तो थे ही .. विदित हो की सुंग एक चीनी वंशगत विशेषण भी है और पुष्य-मित्र सुंग कालीन शुल्क तथा भारद्वाज ब्राह्मणों का भी विशेषण रहा है। हून उत्पत्ति के सन्दर्भों में इतिहास कारों का यह मत भी मान्य है कि अपने जीवन में यौद्धिक क्रियाओं में हूण रोमन साम्राज्य तक पहँचे और बाद में एकजुट हुए --- हूण भयानक योद्धा थे जिन्होंने चौथी और 5 वीं शताब्दी में यूरोप और रोमन साम्राज्य के अधिकांश क्षेत्रों को आतंकित किया था। वे प्रभावशाली घुड़सवार थे जो सबसे आश्चर्यजनक सैन्य उपलब्धियों के लिए जाने जाते थे। जैसे ही उन्होंने यूरोपीय महाद्वीप में जाने वाले रास्ते को लूट लिया, हुनों ने क्रूर, अदम्य यौद्धिक प्रतिष्ठा हासिल की। हुन उत्पत्ति के विषय में विद्वानों में मतभेद है । कोई भी नहीं जानता कि हूण कहाँ से आये थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि वे नामांकित (Xiongnu) लोगों से निकले हैं ; जिन्होंने 318 बीसी ( ई०पू०) में ऐैतिहासिक रिकॉर्ड में प्रवेश किया था। और क्यून राजवंश के दौरान और बाद में हान राजवंश के दौरान चीन को भी आतंकित किया। चीन की महान दीवार को शक्तिशाली (Xiongnu ) लोगो के खिलाफ सुरक्षा में मदद के लिए बनाया गया था। अन्य इतिहासकारों का मानना है कि हूण कजाकिस्तान से या एशिया में कहीं और से पैदा हुए थे। चौथी शताब्दी से पहले, हूण ने सरदारों के नेतृत्व में छोटे समूहों में यात्रा की और उन्हें कोई व्यक्तिगत राजा या नेता नहीं पता था। वे 370 ईस्वी के आसपास दक्षिण-पूर्वी यूरोप पहुंचे और 70 से अधिक वर्षों तक एक के बाद एक क्षेत्र पर विजय प्राप्त की। हूण घुड़सवार स्वामी (सरदार) थे जिन्होंने कथित तौर पर घोड़ों को सम्मानित किया और कभी-कभी घुड़सवारी पर शयन भी करते थे ।। हूणों के बालकों को तीन साल की उम्र में घुड़सवारी सीखा और पौराणिक कथाओं के अनुसार, उनके चेहरे को एक युवा उम्र में एक तलवार से पीटा जाता था । ताकि उन्हें दर्द सहन करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। चीन में आज भी बच्चों को फोलादी बनाने के लिए यही कठोरता की क्रियाओं को कराया जाता है । अधिकांश हुन सैनिकों ने बस कपड़े पहने लेकिन राजनीतिक रूप से सोने, चांदी और कीमती पत्थरों में छिद्रित सड़कों और रकाबों के साथ अपने कदमों को बाहर निकाला। उन्होंने पशुधन उठाया लेकिन किसान नहीं थे और शायद ही कभी एक क्षेत्र में बस गए थे। वे भूमि को शिकारी-समूह के रूप में, जंगली खेल पर भोजन और जड़ें और जड़ी बूटी इकट्ठा करते थे। हूणों ने युद्ध के लिए एक अनूठा दृष्टिकोण लिया। वे युद्ध के मैदान पर तेजी से और तेजी से चले गए और प्रतीत होने वाले विवाद में लड़े, जिसने अपने दुश्मनों को भ्रमित कर दिया और उन्हें दौड़ में रखा। वे विशेषज्ञ तीरंदाज थे जिन्होंने अनुभवी बर्च, हड्डी और गोंद से बने रिफ्लेक्स क्रोस वॉ ( नावक धनुष) का उपयोग किया था। चौहान शब्द चाउ और हूण अर्थात् श्वेत हूणों का विशेषण था । भविष्य पुराण में आबू पूर्वत पर अग्निवंशीय राजपूतों की उत्पत्ति का परिकल्पना है। जिसमें चौहान ,परिमार, सौलंकी तथा प्रतिहारभी हैं । आज विवाद है कि क्या चौहान गुर्ज्जरों की शाखा हैं या उनसे भिन्न ? परन्तु प्रमाण गुर्ज्जर जन-जाति के पक्ष में अधिक है । भविष्य पुराण अठारहवीं सदी के समकालीन की रचना है भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व अध्याय सात में महाराज विक्रमादित्य के चरित्र-उपक्रम में सूत जी और शौनक के संवाद का भूमिका करण किया गया है कि - सूतजी बोले -चित्र-कूट ( आज का बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड ) पर्वत के समीप वर्ती क्षेत्र में परिहार नामक एक राजा हुआ ; उसने रमणीय कलिञ्जर नगर में अपने पराक्रम से बौद्धों को परास्त कर पूर्ण प्रतिष्ठा प्राप्त की तभी राजपूताना रे क्षेत्र ( दिल्ली नगर) में चापहानि (चौहान)नामक राजा हुआ ; उसने अति सुन्दर नगर अजमेर में सुख-पूर्वक राज्य लिया । उसके राज्य में चारों वर्ण स्थित थे । आनर्त (गुजरात ) प्रदेश में शुल्क नामक राजा हुआ उसने द्वारिका को राजधानी बनाया । शौनकजी ने कहा ----- हे महाभाग ! अब आप अग्नि वंशी राजाओं का वर्णन करें । सूतजी बोले--- ब्राह्मणों इस समय मैं योग- निद्रा के वशीभूत हो गया हूँ ; अब आप लोग भी भगवान का ध्यान करें । अब मैं अल्प विश्राम करुँगा । यह सुन कर ब्राह्मण- भगवान विष्णु के ध्यान में लीन हो गये । दीर्घ अन्तराल के पश्चात् ध्यान से उठकर सूत जी पुन: बोले -----महामुने कलियुग के सैंतील़स सौ दश वर्षों व्यतीत होने पर प्रमर ( परमार) नामक राजा ने राज्य करना प्रारम्भ किया । उन्हें महामद ( मोहम्मद) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । तब तीन हजार वर्ष पूर्ण होने पर कलियुग का आगमन हुआ । तब शकों के विनाश के लिए और आर्य धर्म की वृद्ध के लिए वे ही शिव-दृष्टि गुह्यकों की निवास भूमि कैलास से शंकर की आज्ञा पाकर पृथ्वी पर विक्रमादित्य नाम से प्रसिद्ध हुए । अम्बावती नगरी में आकर विक्रमादित्य ने बत्तीस मूर्तियों से समन्वित किया ।भगवती पार्वती के द्वारा प्रेषित एक वैताल उसकी रक्षा में सदैव तत्पर रहता था । इन चारों क्षत्रियों ने ब्राह्मणों के निर्देश पर अशोक के वंशजों को अपने अधीन कर भारत वर्ष के सभी बौद्धों को नष्ट कर दिया । अवन्त में परमार ---प्रमर राजा हुए उसने चार योजन लम्बी अम्बावती नगरी में स्थित होकर सुख-पूर्वक जीवन व्यतीत किया । अध्याय सोलहवाँ समाप्त हुआ !! गीताप्रेस गोरख पुर संस्करण कल्याण भविष्य पुराण अंक पृष्ठ संख्या--244 _______________________________________________ भविष्य पुराण में वर्णन है कि बिम्बसार के पुत्र अशोक के समय कान्यकुब्ज (कन्नौज) देश का एक ब्राह्मण आबू पर्वत पर चला गया और वहाँ उसने विध-पूर्वक ब्रह्महोत्र सम्पन्न किया तभी वेद मन्त्रों के प्रभाव से यज्ञ कुण्ड से चार क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई । 1- प्रमर (परमार) सामवेदी मन्त्र प्रभाव से , 2- चपहानि ( कृष्ण यजुर्वेदी त्रिवेदी मन्त्र प्रभाव से 3--गहरवार (शुक्ल यजुर्वेदी और 4--परिहारक अथर्वेदी क्षत्रिय थे । ये सब एरावत कुलों में उत्पन्न हाथीयों पर आरूढ (सवार) थे । अग्निकुंड का सिद्धांत लेखक चंद्रवरदाई ने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज रासो में राजपूतों की उत्पत्ति का अग्नि कुंड का सिद्धांत प्रतिपादित किया इनकी उत्पत्ति के बारे में उन्होंने बताया कि माउंट आबू पर गुरु वशिष्ट का आश्रम था, गुरु वशिष्ठ जब यज्ञ करते थे तब कुछ दैत्यो द्वारा उस यज्ञ को असफल कर दिया जाता था! तथा उस यज्ञ में अनावश्यक वस्तुओं को डाल दिया जाता था अग्निकुण्ड का सिद्धान्त का यथार्थ---- वशिष्ठ के यज्ञ में असुर उत्पात करते हैं जिसके कारण यज्ञ दूषित हो जाता था गुरु वशिष्ठ ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अग्निकुंड अग्नि से 3 योद्धाओं को प्रकट किया इन योद्धाओं में परमार, गुर्जर, प्रतिहार, तथा चालुक्य( सोलंकी) पैदा हुए, लेकिन समस्या का निराकरण नहीं हो पाया इस प्रकार गुरु वशिष्ठ ने पुनः एक बार यज्ञ किया और उस यज्ञ में एक वीर योद्धा अग्नि में प्रकट किया यही अन्तिम योद्धा ,चौहान, कहलाया इस प्रकार चंद्रवरदाई ने राजपूतों की उत्पत्ति अग्निकुंड से बताई । ___________________________________ प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"