वरनाली ने भले ही सारिका दीदी और निशांत के सामने ये बात मान ली थी | कि अब वह इलेक्शन नहीं लड़ेगी और वरनाली ने अपनी गलती भी स्वीकार कर ली थी ।
( निशांत को बिना बताये , वरनाली जो कुछ भी गलत कर रही थी उस बात की गलती । )
लेकिन वरनाली के मन मै तो अभी भी , हर वक्त बस एक ही बात चल रही थी | कि अब वह कैसे और आखिर क्या करेगी ? जिससे वह पॉलिटिक्स मै अपना भविष्य बना सके । क्यूंकि उसे इस तरह अब इस घर मै नहीं रहना था ।
अब वरनाली हर समय , बस यही सोचती रहती थी । वरनाली का अब , किसी भी काम मै ! मन नहीं लग रहा था ।
ऊपरी मन से , वह सबको खुश करने के लिए , अभी सबके साथ अच्छे से रह तो रही थी । लेकिन उसका मन अभी भी ! पॉलिटिक्स मे लगा हुआ था ।
( वरनाली , बस अपने भविष्य में पॉलिटिशियन बनने के सुनहरे सपने ही देखती रहती थी । )
बरनाली ने अब ! घर से बाहर निकलने के लिए , टीचिंग की जॉब करने का फैसला कर लिया था ।
वरनाली के टीचिंग की जॉब करने से , घर मै किसी को भी कोई परेशानी नही थी ।
वरनाली ने education मैं हिंदी से एम.ए. किया था । और अब वह हिंदी टीचर की जॉब करने लगी थी | उसने वहीं के एक प्राइवेट स्कूल मै जाना शुरू कर दिया था ।
वहीं अरनव भी बहुत समय से सरकारी जॉब की तैयारी कर था । ( अरनव पिछले कुछ महीनों से बड़ी बहन सारिका के बच्चों के साथ - साथ कुछ और बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ाता था | उसके साथ - साथ वह सरकारी जॉब की भी तैयारी कर रहा था | और जब भी कोई वेकन्सी निकलती थी | तो वह एग्जाम देता रहता था । )
इस वक्त तक अरनव ने पढ़ाई मै एम. ए. इंग्लिश से कर लिया था । वह भी बहुत अच्छे नंबर्स से I कि तभी अरनव का गवर्नमेंट टीचर की जॉब का एग्जाम क्लियर हो जाता है ।।
और अरनव , अब एक गवर्नमेंट टीचर बन जाता है । अरनव की पोस्टिंग ! पास ही के एक छोटे से शहर मे हो जाती है ।
अरनव की गवर्नमेंट जॉब लगने से सभी बहुत खुश हो जाते है । ( इस जॉब के लगने मै अरनव की मेहनत के साथ - साथ , उसकी माँ और बड़ी बहन सारिका का बहुत योगदान था । )
लेकिन अरनव की , गवर्नमेंट जॉब लगने से भाभी वरनाली विल्कुल भी खुश नहीं थी । क्यूंकि अरनव की सैलरी बहुत अच्छी थी |
और वह जानती थी | कि पहले ही सभी अरनव को , हाथो पर लिए घूमते है । जिसमे अब उसकी ये जॉब और . . .
लेकिन अरनव इंटेलीजेंट होने की वजह से अभी भी इस जॉब से ! संतुष्ट नहीं था । अभी भी इस जॉब के साथ - साथ और दूसरे एग्जाम की तैयारी भी कर ही रहा था |
अरनव अपनी भाभी वरनाली को पहले काम मैं , बहुत मदद करवा लिया करता था । जैसे - बाजार से सब्जी लाना या कोई और सामान लाना , वरनाली के बच्चों का स्कूल का होम वर्क करवाना , वरनाली की अनुपस्थित मै बच्चों को घुमाना , उनके साथ खेलना | इसीलिए भी अरनव चाचू बच्चों के चहेते थे ।
लेकिन अब अरनव कि जॉब लगने से , वह पूरे दिन बिजी रहता था । और अब उसके पास समय ही नहीं होता था । वरनाली को अब खुद ही , बच्चों को पढ़ाना होता था ।
पहले वरनाली स्कूल से घर आने के बाद , अरनव के साथ बच्चों को छोड़कर , फ्री होकर घूमती थी । जो अरनव कि जॉब लगने से बंद हो गया था ।
वरनाली को अब धीरे - धीरे अरनव से जलन होने लगी थी | और यह जलन बढ़ते - बढ़ते उसकी परेशानी मै बदल गयी थी । वरनाली को अब अरनव की , हर छोटी से छोटी बात से परेशानी होने लगी थी |
पहले तो वरनाली को , अरनव भैया बहुत अच्छे लगते थे । जब तक वह भाभी के सारे काम करता था ।
लेकिन फिर वरनाली को अरनव , एक आंख भी नहीं सुहाता था | वरनाली अब किसी भी तरह और किसी भी कीमत पर , अरनव को अपने साथ एक ही घर में बर्दास्त नहीं करना चाहती थी |
( वरनाली का स्वार्थ और अहंकार उसे इस हद तक सोचने पर मजबूर कर गया था | कि वरनाली पॉलिटिक्श छोड़कर अब हर समय बस यही सोचने मैं लगी रहती थी । कि अरनव ही उसके फ्यूचर मैं बाधा है । जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था | )
अब वरनाली , हर तरह से बस अरनव को उस घर से निकालना चाहती थी । क्यूंकि शुरू से ही वरनाली अरनव को एक नौकर की तरह ट्रीट करती थी | उसके लिए अरनव बस एक काम करने वाला इंसान था | जिसका अब बरनाली के लिए कोई उपयोग नही रह गया था |
जब पुलिस को वरनाली की इस बात के बारे में पता चला | कि वह अरनव से नफरत करती थी I तब पुलिस को वरनाली के अरनव के साथ व्यवहार के बारे मै जानना जरूरी हो गया था | और अरनव की मौत से अभी तक तो सिर्फ वरनाली को ही मन की शांति जरूर मिलती l
वरनाली के मन मै अब हर पल , यही विचार आते रहते थे | कि वह , ऐसा क्या करे ? जिससे अरनव को उस घर से दूर किया जा सके ।
इसके लिए , वरनाली ने हर तरह कि कोशिशे की . . . . .
जैसे निशांत को अपने भाई अरनव के खिलाफ भरना | अरनव को बिना बात के डांटना , बुरा भला कहना आदि ।
लेकिन वरनाली की अभी तक की सारी कोशिशे बेकार गयी । वह जैसा सोच रही थी , उसका आधा काम भी वह नहीं कर पायी थी ।
वरनाली , अरनव के लिए निशांत के विचारों को , बिल्कुल भी नहीं बदल पायी थी । या ऐसा भी कह सकते है , कि वरनाली ; अरनव के खिलाफ निशांत के मन मैं थोड़ी सी भी नफरत नहीं भर पायी थी |
जिसका नतीजा ये हुआ | कि वरनाली के मन मैं और भी तेजी से अरनव के खिलाफ जहर भरता गया ।
लेकिन निशांत को इस बात का जरा सा भी अंदाजा नहीं था । कि वरनाली के दिमाग मै , ऐसा भी कुछ चल रहा होगा । और ना ही , बाकि सब घरवालों को इस बात कि भनक पड़ी |
क्यूंकि जब से सारिका ने दोनों को समझाया था । तभी से वरनाली सबके सामने अच्छे से ही रहती थी। और जब से वसाली ने , स्कूल मै टीचिंग कि जॉब , ज्वाइन कर ली थी |तब से वह खुश भी थी ।
निशांत , के साथ भी उसका व्यवहार अच्छा हो गया था |
सभी को यही लग रहा था । कि वरनाली अब खुश है । और उसे कोई परेशानी नहीं है अब |लेकिन अब भी , वरनाली का दिमाग़ तो उसे नकारात्मकता की ओर ही लिए जा रहा था ।
वरनाली , पर जैसे - भूत सा सवार हो गया था |
इससे पहले कि वरनाली के दिमाग की नकारात्मकता , उसे कुछ और ही करने के लिए कहती । और वरनाली अब अपने दिमाग की सुनते हुए , कुछ और ही तरीके अपनाती | कि तभी अरनव कि बड़ी बहन सारिका , अपने पति और बच्चों के साथ वैष्णो - देवी , माता के दर्शन करने जा रही थी l
( सारिका और उनके पति , जब भी कहीं बाहर घूमने जाया करते थे । वह अपने साथ , अरनव को हमेशा ले जाया करते थे | क्यूंकि अरनव को उनके साथ जाना बहुत अच्छा लगता था ।
खासकर अरनव की माँ को , ये बहुत अच्छा लगता था I क्यूंकि अरनव को खुश देख कर ! उन्हे बहुत तसल्ली मिलती थी |
अरनव की माँ को वह पिछले कुछ दिनों से परेशान सा लग रहा था । एक - दो बार उन्होंने , वरनाली को देखा भी अरनव को बिना किसी बात के डांटते हुए ।
अरनव से उन्होंने पुछा भी , तो उसने अपनी माँ को कुछ नहीं बताया ।
अरनव हमेशा से ऐसा ही था । वह किसी से कभी कुछ नहीं कहता था । चाहे कोई उसे , कुछ भी कह दे | इसीलिए अरनव की माँ को उसकी बहुत फिक्र होती थी |
जब भी अरनव , सारिका के साथ कहीं घूमने चला जाया करता था | तो वह सारे टेंशन भूलकर अच्छा महसूस करता था ।
इसलिये अरनव को भी उनके साथ , अच्छा लगता था । और सारिका के बच्चे भी अपने मामा को बहुत प्यार करते थे । और अपनी हर ट्रिप को उनके साथ बहुत एन्जॉय भी करते थे ।
इसीलिए अरनव अपनी दीदी और जीजा जी के साथ , माता के दर्शन के लिए चला जाता है ।
कुछ दिनो बाद ( 7 - 8 दिन बाद ) , सब घूमकर वापस आ जाते है ।
कि तभी , अरनव के घूमकर आने के 4 - 5 दिनो बाद ही , एक दिन अरनव की माँ की तबीयत ! अचानक ही ख़राब हो जाती है । और . . . . . .
उस दिन रात के करीब 11 - 12 बजे , अरनव की माँ को अचानक ही , घबराहट और बेचैनी सी होने लगती है ।
उस वक्त तक , घर में सभी लोग सो चुके होते है । अरनव की माँ , अरनव के पिता को नींद से जगाने के लिए उठती है |
( क्यूंकि अरनव के पिता भी उस समय तक सो चुके थे । )
अरनव की माँ , उस के पिता को नींद से जगाने की कोशिश करती है । ( उन्हें हाथो से तेज हिलाते हुए उठाती है । ) और बस बता ही पाती है | कि उनकी घबराहट तेज होने लगती है । और वह जमीन पर गिर जाती है ।
अरनव के पिता , घर के वाकि लोगों को जोर - जोर से आवाज लगाते है । ( निशांत . . . . . , अरनव . . . . , अयान . . . . . , ) लेकिन , कोई भी नहीं सुन पाता है |
फिर अरनव के पिता , भागते हुए पास ही के दूसरे रूम मैं जाते है । जहाँ अरनव सो रहा था । ) वह अरनव को उठाते है । दोनों भागते हुए फिर आशु कि माँ के पास जाते है |
आशु , की माँ की हालत और ज्यादा खराब हो रही थी । फिर अरनव भागते - भागते निशांत को बुला कर लाता है ।
सभी मिलकर , अरनव की माँ को जैसे - तैसे हॉस्पिटल लेकर जाते है । ( क्यूंकि रात का समय ज्यादा ही हो गया था । और इस समय ऑटो भी बड़ी मुश्किल से ही मिलता है । )
जब सभी माँ को हॉस्पिटल लेकर पहुंचते है | उन्हें सीने मै दर्द भी होने लगा था | अरनव और निशांत बहुत घबरा गए थे | उस वक्त नाईट ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने जल्दी से उन्हें एडमिट किया ।
अरनव की माँ का , हॉस्पिटल पहुंचने तक ब्लड - प्रेशर काफी ज्यादा बढ़ चूका था । और सीने मै दर्द भी बढ़ता ही जा रहा था । डॉक्टर ने उनका ट्रीटमेंट शुरू कर दिया था ।
जब ! ये सभी लोग अरनव की माँ को लेकर , घर से हॉस्पिटल के लिए निकल गए थे , तब तक वरनाली ने सारिका दीदी को भी फोन कर दिया था ।
सारिका भी , ये खबर सुनकर बहुत घबरा गयी थी ।
उधर हॉस्पिटल मै , अरनव की माँ की तबियत और बिगड़ती जा रही थी | उनका ब्लड - प्रेसर बढ़ ही रहा था ।
सारिका घर से , हॉस्पिटल के लिए बस निकल ही गयी थी । ( अपने पति के साथ ) और वह हॉस्पिटल पहुंच भी नहीं पाती ।
कि उससे पहले ही डॉक्टर वहां हॉस्पिटल मै मौजूद , सभी लोगो से कह देते है | कि अब अरनव की माँ इस दुनिया मै नहीं रही | उन्हें हार्ट अटैक आया था और वह उसे सहन नहीं कर पायी ।
सभी के लिए यह , बहुत ही दुखद समाचार था । कि तभी सारिका भी हॉस्पिटल पहुंच जाती है ।
सभी बहुत रो रहे होते थे | सारिका को सभी , ये खबर बताते है , कि अब उसकी माँ इस दुनिया मै नहीं रहीं । सभी का रो - रो कर बुरा हाल हो जाता है ।
सारिका को जैसे , यकीन ही नहीं हो रहा था , कि उसकी माँ जो अभी तक पूरी तरह स्वस्थ थी । अचानक ही सबको छोड़कर कैसे चली गयीं ।
वहां हॉस्पिटल मै सभी ( निशांत , अरनव के पिता , सारिका और उनके पति ) रोने कि बजह से , एक बार भी यह नहीं देख पाए थे | कि अरनव वहां नहीं है , वह कहा चला गया ।
कि तभी ( थोड़ी देर बाद ) सभी ने देखा , के अरनव कहाँ गया है । हॉस्पिटल मैं आस - पास देखा | लेकिन अरनव अंदर तो नहीं था , फिर बाहर देखा तो अरनव वहीँ हॉस्पिटल के बाहर , एक तरफ कोने मैं चुप - चाप छुपकर खड़ा हुआ था ।
लेकिन आशु की आँखों मैं एक भी आंसू नहीं था । सभी अरनव को , हॉस्पिटल मैं अंदर लेकर गए ।
( सभी यह बात जानते थे , कि अरनव अपनी माँ से बहुत प्रेम करता था । वैसे तो सभी बच्चे करते थे , लेकिन अरनव का अपनी माँ से , कुछ ज्यादा ही गहरा प्रेम था । )
सारिका , अरनव और अरनव के पिता को घर के लिए रबाना कर दिया गया था । वहीँ हॉस्पिटल मैं , निशांत और जीजा जी रुके हुए थे | क्यूंकि हॉस्पिटल कि सारी फॉर्मेलिटी करके ही वह माँ की बॉडी को घर ला सकते थे ।
निशांत और जीजाजी कुछ देर बाद ( 2 - 3 घंटे बाद ) घर पहुंचते है । रात के करीब 3 बज चुके थे । परिवार के सभी लोगो को , ये खबर दे दी गयी थी । क्यूंकि सुबह सभी के आ जाने पर ही , अंतिम संस्कार कि प्रक्रिया पूरी होंगी ।
सारी रात , सभी ने रो - रो कर निकाली I लेकिन अरनव अभी भी , एक कोने मैं शांत बैठा हुआ था । और अकेला बस वही था , जो रो नहीं रहा था । ना जाने क्यूँ वह बस वहां रखी हुई , अपनी माँ को देखे जा रहा था | दूर से . . .
अगले दिन , सुबह सभी के आ जाने पर अंतिम संस्कार की सभी जरूरी प्रक्रियाऐँ की गयी ।
घर का माहौल , पूरी तरह शांत हो चूका था । अरनव की माँ को , इस दुनिया से गए हुए अब 4 - 5 दिन हो गए थे । लेकिन इन 4 - 5 दिनों मैं भी अरनव एक बार भी नही रोया |
सभी चाहते थे , कि अरनव एक बार रो ले , जिससे उसका मन हल्का हो जाये । बहनो ने और निशांत ने बहुत कोशिश की , लेकिन अरनव नहीं रोया |
देखते ही देखते अरनव की माँ को , इस दुनिया से गए हुए पूरे 13 दिन हो गए थे । सारी प्रक्रिया पूरी हो गयी थी ।किसी इंसान के शांत हो जाने पर तेहरवीं तक जो भी प्रक्रिया होती है |
लेकिन अरनव तो रोने का नाम ही ले रहा था । इतने दिनों बाद भी वह बस हर पल अपने कमरे मैं शांत बैठा रहता | सभी उससे कहते और समझा रहे थे । लेकिन अरनव तो किसी की सुनने के लिए तैयार ही नहीं था ।
धीरे - धीरे अरनव का खाना , खाने से भी मन हटने लगा था । और वह पूरे - पूरे दिन ही भूंखा रहने लगा था । मानो वह जैसे अंदर ही अंदर घुट रहा था |
लेकिन कोई बात थी , जो अरनव के मन मैं चल रही थी | और उससे वह अंदर से परेशान भी था । और अरनव की , इसी हालत का फायदा वसाली ने उठाया ।
अरनव को इस तरह देख कर , वरनाली के मन मैं और ही कुछ चल रहा था । वह हर तरह से बस , इस मौक़े का फायदा उठाना चाहती थी । चाहे फिर इसके लिए उसे , कुछ भी करना पड़े |
अब वरनाली , अरनव की एक और बात ( जिसे सिर्फ अरनव , अरनव की माँ और वरनाली ही जानते थे । ) भी जानती थी । क्यूंकि जब अरनव अपनी बड़ी बहन सारिका के साथ घूमने गया था । तब अरनव की माँ और वरनाली के बीच कुछ बात हुए थी |
अरनव की माँ , ये बात जानती थी । कि कुछ दिनों से वरनाली का बर्ताब , अरनव के प्रति ठीक नहीं है । इसीलिए जब अरनव सारिका के साथ घूमने गया था । तब उन्होंने वरनाली से , अरनव के प्रति इस बर्ताब का कारण भी पुछा था ।
लेकिन वरनाली ने इस बात से साफ इंकार कर दिया था । कि उसने अरनव भैया से कभी भी कुछ भी नहीं कहा है । और वह अरनव को , शुरू से ही अपने छोटे भाई के जैसा ही मानती है ।
अरनव की माँ को वरनाली का कोई भी जबाव ठीक नहीं लगा था | वह जानती थी , कि वरनाली झूठ बोल रही है ।
अरनव जब , बहन सारिका के साथ घूम कर , घर वापस आ गया था । तब फिर अरनव की माँ ने उस से इस बात के बारे मैं जानना चाहा ।
उन्होंने , अरनव से पुछा कि वरनाली के इस गलत बर्ताब के बारे मैं उस ने किसी को भी , अभी तक क्यूँ नहीं बताया और आखिर क्यूँ ?
माँ की ये बात सुनकर , अरनव पूरी तरह से पलट जाता है । ( क्यूंकि वह , यह नहीं जानता था । कि माँ ने खुद , अपनी आँखों से , वरनाली को उस से कई बार गलत तरीके से और बिना बात के ही डांटेते हुए देखा था । )
लेकिन , अरनव कि माँ भी अपने बेटे के बारे मैं यह बात बहुत अच्छे से जानती थी । कि वह कभी भी वरनाली के या परिवार के किसी भी अन्य सदस्य के द्वारा , उसे डांटने या कुछ और कहने पर भी । वह कभी भी किसी से इस बारे मैं कोई शिकायत नहीं करेगा |
( अरनव का शुरुवात से ऐसा ही स्वभाव रहा था । )
सिर्फ यही एक बजह थी । जिसके कारण अरनव कि माँ को उसकी बहुत फिक्र होती थी |
और अरनव की माँ यह भी अच्छे से समझ चुंकि थी | कि आगे चलकर भविष्य मैं कहीं वरनाली , निशांत को अपनी तरफ करके अरनव का हक़ ना छीन ले ।
इससे पहले कि अरनव की माँ , निशांत या अरनव के पिता को इस बारे मैं | कुछ भी कह पाती । उससे पहले ही यह हादसा हो गया । और वह इस दुनिया को छोड़कर हमेशा के लिए चली गयी |
और यह बात इस तरह अब सिर्फ वरनाली और अरनव के बीच ही थी ।
अरनव यह बात अच्छे से समझ गया था | कि उसकी माँ का ब्लड प्रेसर उसी की फिक्र मैं बढ़ा था और वह खुद को मन ही मन , उनकी मौत का जिम्मेदार भी मान बैठा था |जबकि यह पूरी तरह सच नहीं था |
( अरनव की माँ को उस से ज्यादा , बरनाली के द्वारा रचाये जा रहे प्रपंचो से घर की फिक्र हो रही थी । कि कहीं आगे जाकर वह इस घर मैं फूट ना डाल दे और उनका बनाया ये घर बिखर ना जाये | और हुआ भी यही )
और उस पर वरनाली भी अब ; इसी बात का फायदा उठा रही थी । और अरनव के मन कि इस गलत फहमी को अब वह सच्चाई मैं बदलने मैं लगी हुए थी |
लेकिन वरनाली यही रुकने वाली नहीं थी । वह अब कुछ और बड़ा करने कि सोच रही थी | जिसकी किसी को भी कोई भनक नहीं थी |
क्या सच में वरनाली पॉलिटिक्स में जाना चाहती थी ? ? या अपने ईगो के चलते अरनव ही उसका टारगेट था ?
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