अगले 2 महीने तक ऐसे ही चलता रहा | देविका भी अच्छे से जानती थी | कि अरनव का व्यवहार , उसके लिए क्यूं बदल गया है | लेकिन वह कभी भी देविका से कुछ नही कहता था | और न ही उसने फिर कभी देविका से विकास के बारे में कोई बात की |
क्यूंकि . . . . वह देविका को ऐसी हालत मे , अपनी वजह से कोई टेंशन नही देना चाहता था |
तभी एक - दिन देविका को लेबर - पेन होने लगता हैं | हॉस्पिटल में ! देविका को एडमिट कराया जाता है और कुछ ही घंटों में देविका को एक प्यारी सी बेटी होती है |
अरनव ये खबर सुनते ही बहुत खुश हो जाता है और अपनी बेटी को गोद में लेते ही , वह अपने और देविका के बीच चल रही सारी नाराजगीयो को भूल जाता है |
अब बेटी आने की खुशी में अरनव , देविका से वापस अच्छे से बात करने लगता हैं | और अरनव अब अपनी हर छोटी से छोटी खुशी को अपनी बेटी मै ही देखने लगता हैं |
अब , उसकी बेटी ही उसके लिए सब कुछ थी |
यहां से अरनव की जिंदगी का , अब एक नया मोड़ शुरू होता है |
किसी इंसान की जिंदगी में ; उसका परिवार ही उसके लिए सब कुछ होता है | माँ - बाप , भाई - बहन और इन सब के अलावा कोई खास होता है | तो वो है , उसका जीवन साथी |
जिस पर वो , सबसे ज्यादा भरोसा करता है और अगर कोई इस भरोसे को ही तोड़ दे तो उस पर क्या गुजरेगी ?
अरनव की जिंदगी में उसकी माँ ही सब कुछ थी | पिता और भाई - बहन सब बहुत अच्छे थे | लेकिन कोई कितना साथ देगा |
देविका पर उसे विश्वास था | अरनव ने अपनी तरफ से उस विश्वास को हमेशा बनाए रखा | लेकिन देविका उस विश्वास की कभी एहमियत नहीं समझ सकी । और अरनव के विश्वास को उसने चकना चूर कर दिया ।
इसलिए अरनव अब बस अपनी नन्हीं और प्यारी सी बेटी के लिए , वो सब कुछ करना चाहता था | जो कभी वो अपने लिए चाहता था |
अरनव ने अपनी बेटी का नाम तकशिवी रखा था | जो कि माता पार्वती के नाम पर था l लेकिन वह प्यार से अपनी बेटी को खुशी बुलाया करता था |
अरनव अब जितने भी समय घर पर होता था I वह खुशी के साथ ही खेलता था |
उसके साथ खेलकर वह अपनी , सारी दुख - तकलीफ भूल जाता था | देविका के कुछ भी करने से उसे अब कोई फर्क नहीं पड़ता था | वह बस अपनी बच्ची का हर तरह से ध्यान रखना चाहता था |
अरनव ने अपनी बच्ची के लिए कपड़े , खिलोनों से घर भर दिया था | वह उसके फूल से चेहरे पर , हर समय बस एक प्यारी सी मुस्कान देखना चाहता था |
ऐसे ही 3 साल कब निकल गए | अरनव को पता ही नहीं चला और इस बीच देविका ने क्या - क्या किया अरनव को नहीं पता |
देविका , अरनव के साथ इतना कुछ करने के बाद भी , इन 3 सालों में बिल्कुल भी नहीं पिघली |
एक दिन देविका अरनव के पास आती है और कहती है |
" अरनव शिवी अब 3 साल की हो गई हैं l उसका स्कूल में एड़मिशन करवाना हैं | में सोच रही थी कि मैं भी उसके साथ ही उस स्कूल में छोटे बच्चो को पढ़ाने चली जाया करूं | "
अरनव मैंने खुशी का एडमिशन करवा दिया है | तुम चाहो तो उसी स्कूल में बात कर लेना | इतना कहकर अरनव वहां से चला जाता है |
अब देविका , शिवी के साथ उसी स्कूल में नर्सरी के बच्चों को पढ़ाने जाने लगती है |
अरनव को नही पता था कि देविका को स्कूल जाने के लिए हाँ करना , उसे बहुत महंगा पड़ने वाला था I
अभी तक जो शिवी ; अपने पापा की खुशी थी । देविका अब उसे धीरे - धीरे अपनी तरफ कर रही थी |
क्यूंकि . . . देविका को इन 3 सालो में , ये लगने लगा था |कि उसकी बेटी उससे ज्यादा अरनव से प्यार करती है | क्यूंकि खुशी अब हर पल , बस अपने पापा के पास ही रहना चाहती थी |
देविका को इस बात का डर था | कि वह अपनी बेटी से दूर न हो जाए |
देविका अब स्कूल का होमवर्क करवाने के बहाने ; ज्यादातर समय शिवी को अपने पास ही रखती थी I
तभी दीवाली का समय था | एक बार देविका को सफाई के दौरान न जाने कहां से और कैसे ? अरनव के दिल्ली में चले ट्रीटमेंट के कुछ पेपर मिल गए थे |
अरनव का शादी से पहले देहली में जो ट्रीटमेंट चला था | उसके पेपर |
देविका उन पेपर्स को देखकर सोचती है । कि ये क्या है ? वो भी इनके ट्रीटमेंट के पेपर ! वो भी दिल्ली के डॉक्टर के | ऐसा क्या हुआ था इन्हें कि वहां दिखाना पड़ा |
अभी 2 साल पहले के ही है ये सारे पेपर्स तो |
किससे पूँछूँ ? इनसे तो नही | क्या करूं . . . . कैसे पता चले ! कि ये किस चीज के ट्रीटमेंट के पेपर है ?
तभी देविका को पीछे से किसी के आने की आवाज आती हैं |
देविका : - " जल्दी से पेपर अभी रख लेती हूँ | बाद में देखूंगी कि इनका क्या करना है | "
उस वक्त वहाँ पर अरनव आता है | और देविका को वहाँ देखकर पूछता है |
" क्या हुआ ? यहाँ क्या कर रही हो तुम ? "
देविका , अरनव से ट्रीटमेंट के उन सारे पेपर्स को छुपाते हुए कहती है |
" कुछ नहीं ! में बस दीवाली आने वाली हैं ना ! तो थोड़ी - थोड़ी सफाई कर रही थी | "
ये सुनकर अरनव वहाँ से चला जाता है | और देविका तुरंत रूम में आकर उन पेपर्स को अपनी अलमारी मै छुपा देती है |
रात को देविका बेड पर लेटे - लेटे इसी बारें में सोच रही थी | कि इन पेपर्स के बारे में कैसे पता करूं ?
भाभी बताएंगी क्या ? नही - नही . . . तो फिर शारदा दीदी से या सरला दीदी से पूँछू . . . नहीं देविका नहीं . . . वो मेरे बारे में क्या सोचेंगी फिर ? उन्हें शक हो गया तो . . कि मेरे मन मे क्या चल रहा हैं |
नही - नही देविका कुछ और सोच . . . सोच देविका सोच कुछ . . . एक मिनिट ; कल स्कूल से वापस आते समय किसी मेडिकल शॉप पर पूँछ लूंगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा | हाँ ! यही ठीक रहेगा |
अगले दिन देविका स्कूल से वापस आते समय मार्केट में एक मेडिकल शॉप पर जाती है | और उनसे पूछती है |
" भईया , आपके पास ये दवाएँ मिल जाएंगी क्या ? " ( देविका मेडिकल वाले को दवाओं का पेपर दिखाते पूछती है । )
मेडिकल वाला : - " ये वाली दवा तो नही मिलेंगी और यहां तो क्या आपको कही नहीं मिलेगी | जंहा ट्रीटमेंट चला है , ये वाली दवाएं वहीं मिलेगी | "
देविका मेडिकल वाले से पूछती है |
देविका : - " भईया , क्या आप बता सकते हैं ? कि दवाएं किस बीमारी की है ? "
मेडिकल वाला : - " क्यूं आपको नही पता ये ? और आप लेने आयी हैं । "
देविका : - " जी वो किसी ने मंगवायी थी | मेरी नहीं है ये दवा इसलिए पूछ रही थी | "
मेडिकल : - " ये दवाएं दिमाग के स्ट्रेस को कम करने के लिए ! डिप्रेशन के पेशेन्ट को दी जाती हैं | प्रॉपर नींद के लिए और पेन रिलीफ के लिए | "
देविका इतना सुनकर वो दवाओं का पेपर लेकर वहाँ से चल देती है |
उसी रात देविका , सोते समय अरनव से पूछती है |
" क्या कभी आपका कोई ट्रीट्मेंट चला है । सिर दर्द वाला ? "
देविका के अचानक से अरनव से इस तरह का सवाल पूछने पर अरनव , देविका से आश्चर्य से पूछता है |
" ये कैसा सवाल है ? "
देविका : - " ये देखिए , ये पेपर मुझे सफाई करते टाइम मिला था । "
अरनव : - " हाँ तो , ट्रीटमेंट का है मेरा , जब माँ नहीं रही थी , इस दुनिया में | तब मुझे बहुत स्ट्रेस हो गया था | तब दिखाया था डॉक्टर को बस और कुछ नहीं | "
देविका : - " अरे ! आपको बताना तो चाहिए था मुझे | "
अरनव : - " इसमें . . . बताने जैसा क्या था | डाॅक्टर को दिखाया था I 2 - 3 महीने ट्रीटमेंट चला था बस और मैंने तुमसे कभी भी पूछा ऐसा कुछ भी ?
तुम बिना वजह ही क्यूं लड़ रही हो मुझसे ? "
देविका : - " क्यूंकि आपने मुझसे ये बात छुपाई . . . इसलिए | "
देविका के मुंह से ये बात सुनकर अरनव थोड़ा गुस्से में देविका से कहता है |
" एक मिनिट देविका ! ये बात तुम . . मुझसे कह रही हो ? कि मैंने ये बात छुपाई तुमसे और तुमने . . . . . तुमने जो कुछ भी छुपाया मुझसे वो . . . . वो कुछ भी नहीं तुम्हारी नजर में ? मत भूलो देविका कि तुम्हारे उस झूठ से , तुमने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी | "
अरनव के कहते ही देविका , दूसरी साइड करवट लेकर सो जाती है |
लेकिन , उसके दिमाग में अभी भी अरनव के ट्रीटमेंट के पेपर को लेकर कुछ चल रहा था |
अगले दिन संडे था _ _ _ _
अरनव और देविका दोनों ही घर पर थे |
दिन के करीब 12 बज रहे थे | देविका अपने रूम में , घर के सब काम से फ्री होकर बैठी थी | उस समय अरनव बाजार कुछ काम से गया था | और खुशी अपने दादा जी के साथ खेल रही थी |
तभी देविका के मन मे , अचानक ही कोई ख्याल आता है और देविका अपना मोबाइल उठाकर ; किसी से बात करने लगती है |
बातों ही बातों में देविका ये भूल जाती है | कि उसके रूम का गेट खुला हुआ है और तभी 10 - 15 मिनिट बाद ही अरनव का मार्केट से वापस आना होता है |
मार्केट से वापस आने के बाद अरनव अपने रूम में जा रहा था | तभी रूम के बाहर ही अरनव को , देविका के किसी से बात करने की आवाज सुनाई देती है | इसलिए अरनव बाहर रुककर ही सुनने लगता है l
थोड़ा कुछ सुनने के बाद अरनव को देविका की बातो से ! कुछ तो गड़बड लग रही थी |
10 मिनिट बाद अरनव , रूम में अंदर जाता है | अरनव को देखते ही देविका तुरंत फोन रख देती है और बुरी तरह घबरा जाती है |
अरनव : - " अरे ! क्या हुआ तुम्हे ? तुम इतना डर क्यूं गयी ? वो भी मुझे देख कर I "
देविका : - " अरे नहीं ! नही ! में कहां डर रही हूँ | मे तो थोड़ी देर के लिए लेट गयी थी | तो मेरी कब नींद लग गयी पता ही नही चला | इतनी देर में ही , मैंने एक बुरा सपना देखा लिया था | बसस . . . . "
[ देविका , हडबडा कर अरनव से कहती है और उठकर रूम से बाहर चली जाती है I ]
अरनव : - " देविका ने फिर मुझसे इतना बडा झूठ बोला ; जबकि वो फोन पर बात कर रही थी किसी से | आखिर क्यूं ? "
आखिर देविका फोन पर क्या बात कर रही थी ? कि वह अरनव को देखकर घबरा गई |
आखिर कौन था . . . उस समय फोन पर ? और क्या चल रहा है अब देविका के मन में जिसे वो अरनव से छुपा रही थी ?
जानने के लिए आगे पढ़ते रहे . . . . . . . .