विदेश की धरती पर अन्नकूट
गोवर्धन पूजा
डॉ शोभा भारद्वाज
विदेश खास कर
मुस्लिम देशों में त्यौहार मनाना मुश्किल है वह दिवाली के अलावा भारत में मनाये जाने वाले
पर्वों को समझ नहीं सकते बृज
वासी विश्व में कहीं भी बसें दीपावली
के अगले दिन अन्नकूट ,गोवर्धन
पूजा के लिए बहुत समवेदन शील हैं मैने 10 अन्नकूट विदेश में श्रद्धा भक्ति से मनाये हैं वह
सब कुछ बनाने की कोशिश की जो वहाँ मिल जाता था उनमें अवतार या भगवान का कंसेप्ट
नहीं था वह कहते थे आज हिन्द के पैगम्बर लार्ड कृष्णा के सम्मान में ईद (ख़ुशी )
हैं मैं उनके भाव को नमन करती हूँ .
ईरान के खुर्दिस्तान
में अक्टूबर नवम्बर में बहुत सर्दी पड़ती है पहली बर्फ बारी हो जाती है फल ,सब्जियां
मुश्किल से मिलती हैं हाँ सूखे मेवों की कमी नहीं होती . सब्जियों के बचाने के लिए
फ्रिज में रखना पड़ता था बाहर जम जाती हैं लेकिन मिठाई ? केक की हर वैराईटी मिलती
थी हाँ उनके यहाँ तिल एवं पिसते से बनी पपड़ी मिल जाती थी .हम जिस एरिया में रहते
थे हम ही केवल हिन्दू थे , खुर्दिस्तान की राजधानी सन्नंदाज के अस्पताल में बच्चों
के स्पेशलिस्ट डाक्टर गुप्ता उन्हें जलेबियाँ बनाने में महारथ हासिल थी मैं गाजर
का हलवा एवं रसमलाई बनाना जानती थी .मैने गोवर्धन पूजा में शामिल होने के लिए आस
पास के डाक्टर एवं जानकार ईरानियों को बुलाया एक पाकिस्तानी डाक्टर मुश्ताक को
मैने पहले से पूरिया तलना सिखा दिया था जब भी हमारे यहाँ पार्टी होती मैं पूरिया
और कचौरियां बेलती वह तलते. गाय का दूध आसानी से मिल जाता था दूध से खीर , रसमलाई
गाजर का हलवा, बनाया .जैसी बंगाली मार्किट दिल्ली में आलू की सब्जी बनती है वैसी
सब्जी और उर्द की दाल, मैं भारत से लाती थी उसकी कचौरियां और जो भी सब्जियां थीं सबने मिल कर बनाई कढ़ी चावल , बादाम ,अखरोट और
पिसते तल कर उनमें हल्का नमक लगाया आटे से
लड्डू जिसमें पीस कर बादाम ,पिस्ता एवं साबुत किशमिश मिलाई गयी , जलेबियां बनाई जोश में मैने रबड़ी भी बना ली फलों
की कोई कमी नहीं थी दो दिन तक हम हलवाईयों की तरह लगे रहे मैं हेड हलवाई थी जो
बनाया वह टेवल पर सजाते रहे सबने पूछा गिरिराज जी की पूजा में कितने पकवान बनते हैं मैने बताया मन्दिर में 56
भोग चढ़ाये जाते है तीस की संख्या हमने भी पूरी कर ली .
उन्हें बताया अन्नकूट का आयोजन कन्हैया ने करवाया था उन्होंने
गोकुल वासियों को समझाया था इंद्र देवता
के स्थान पर क्यों न गिरिराज जी ( गोवर्धन पर्वत ) के पूजन में सामहिक भोज, हम ऐसा उत्सव मनाये जिसे बृज भूमि में सदैव याद
किया जाये
गोकुल
का कोई घर
ऐसा नहीं था जहाँ से कन्हैया ने दही ,माखन
चुरा कर स्वयं खाया और ग्वाल बालों को न खिलाया हो हर छींके पर बाल गोपालों के
कंधों पर सवार हो कर माखन का भोग लगाया था हर
घर में उनके पवित्र चरण पड़ें थे कन्हैया का एक नाम चोर ,माखनचोर भी है गोवर्धन पर्वत पर एक स्थान को साफ़ कर सबको बिठाया गया था सबसे पहले कान्हा की अग्र पूजा की गयी थी .वहाँ
दोने पत्तल मिटटी के बने कुल्हड़ में सबको सब कुछ समान भाव से परोसा गया सबने
प्रसाद समझ कर प्रेम पूर्वक गृहण किया .
ईरानी
मेहमान हैरान थे हिंदी क्या-क्या खाते हैं और कैसे मुश्किल से बनाते हैं .उन्हें
कान्हा एवं गिरिराज जी की सामूहिक इबादत की कथा सुनाई ओह आपके पैगम्बर ने यह
परम्परा शुरू की थी . पाकिस्तानी मथुरा के पेड़े बड़े स्वाद होते हैं ,लौर्ड कृष्णा की नगरी मथुरा
वृन्दावन को जानते थे .
भोजन
को बहुत अच्छी तरह सजा कर परोसा गया पहले फल उसके बाद तले मेवे , आलू की सब्जी
कचौरियां , कढ़ी चावल रोटी सब्जियां , रायते , मीठा दहीं ,खीर, कस्टर्ड मीठा दूध का
दलिया , मक्खन ,आखिर में मठरी ,मिठाईयां जलेबी और रबड़ी .सबने अपनी प्लेटों में
अपने आप भोजन लिया मेरा आदेश था देखो यह प्रसाद ( इबादत का खाना है )जूठा छोड़ना
गुनाह है . ऐसे अन्नकूट के दस उत्सव ईरान में उत्साह के साथ मनाये गये हर बार
वैराईटी बढ़ती जा रही थी . ईरानी महिलाएं हैरान थी बिना प्याज , अंडे और गोश्त के
इतनी स्वादिष्ट दावत भी सम्भव है.