स्वर्गीय मृदुला सिन्हा जी को मौन श्रद्धांजलि
गोवा की पूर्व राज्यपाल भू आयामी व्यक्तित्व की धनी श्रीमती मृदुला सिन्हा
डॉ शोभा भारद्वाज
मृदुला की का जन्म -मृदुला जी का जन्म बिहार के मुज्जफरपुर जिले के छपरा गाँव में 27 नवम्बर 1942 को हुआ था उनकी माँ श्रीमती अनुपा देवी पिता जी का नाम श्री छबीले सिंह था और उनकी दादी जी उन्होंने अक्सर अपने लेखों में उन्हें स्मरण ही नहीं किया बल्कि उनके माध्यम से लोक संस्कृति से अपने पाठकों को जोड़ा है| मनोविज्ञान में एम.ए करने के बाद बी.एड. कर वह कालेज में प्रवक्ता एवं मोतिहारी के विद्यालय में प्रधानाचार्य रही हैं लेकिन नौकरी को अलविदा कह कर हिंदी साहित्य सेवा में लग गयीं उनके पति डॉ राम कृपाल सिन्हा कालेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे वह बिहार सरकार में मंत्री रहे हैं अब श्रीमती मृदुला जी राजनीति से जुड़ गयीं| आपतकालीन घोषणा के बाद उन्होंने जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाली क्रान्ति में भी सक्रियता दिखाई थी वह भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्षा भी रह चुकी हैं | अटल जी के नेतृत्व वाली सरकार में वह केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड व मानव संस्थान विकास मंत्रालय की अध्यक्षा रहीं हैं | वह गोवा राज्य की पहली महिला राज्यपाल रहीं हैं |
विशेष -यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है मृदुला जी अखिल भारतीय साहित्य परिषद की उपाध्यक्ष रहीं हैं |आशा रानी वोहरा द्वारा स्थापित सूर्या संस्थान की आजीवन सदस्य एवं अध्यक्षा भी थीं लेकिन गोवा की राज्यपाल पद पर आसीन होने के बाद संस्थान की अध्यक्षा का पद छोड़ा लेकिन संस्थान से उन्होंने सम्बन्ध कभी नहीं तोड़ा उन्हें प्यार से हम दीदी कहते हैं राज्यपाल का पद भार सम्भालने के बाद उन्हें सम्मानित करने के लिए कैलाश सभागार में आमंत्रित किया गया हम सब उनको अपने बीच पाकर अत्यंत उत्साहित थे व प्रसन्न वह वैसी ही अपनी थीं जैसे पहले रही हैं| बहुमुखी प्रतिभा की धनी सरल सीधी भाषा में अपनी बात को दिल में उतार देने वाली श्रीमती मृदुला जी की दृष्टि पारखी पत्रकार जैसी है वह लेखिका , कवियत्री ,समाज सेवी राजनीति से जुड़ी और अच्छी वक्ता हैं उनके भाषणों में उनका अपनी पृष्ट भूमि से जुड़ाव साफ़ नजर आता है
मृदुला जी की साहित्य साधना -उन्होंने 46 से अधिक पुस्तके लिखीं जैसे राजपथ से लोकपथ पर (जीवनी),नई देवयानी ,ज्यों मेंहदी का रंग.घरवास ,सीता पुनि बोली (उपन्यास )यायावरी आँखों से ,विकास का विश्वास (लेखों का संग्रह )देखन में छोटे लगे ,बिहार की लोककथाएँ -1 ,बिहार की लोककथायें-2 ढाई बीघा जमीन, साक्षात्कार (कहानी संग्रह ) हैं मात्र देह नहीं है औरत (स्त्री विमर्श), विकास का विश्वास नाम से लेखों का संग्रह है |
उनकी कृति पर ‘ज्यों मेहँदी के रंग लघु फिल्म भी बनाई गयी | एक थी रानी ऐसी भी " उनकी कहानी राजमाता विजया राजे सिन्धिया पर एक फिल्म भी बनी
उनको अनेक पुरुस्कारों से नवाजा गया उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से साहित्य भूषण सम्मान व दीनदयाल उपाध्याय पुरूस्कार के अतिरिक्त अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके है | उनका सबसे बड़ा सम्मान लोक संस्कृति से पाठकों का जुड़ने के बाद मुस्कराना, लेखों को दुबारा पढ़ना है | उनके लेखों,उपन्यासों कहानियों के विषय अधिकतर सामाजिक हैं उनकी पुस्तक ‘एक थी रानी ऐसी भी’ राजमाता विजय राजे सिंधिया पर फिल्म भी बन चुकी है | जिसका टेलर अभिताप बच्चन जी ने लांच किया था |
मासिक पत्रिका ‘पांचवा स्तम्भ’-उन्होंने मासिक पत्रिका ‘पांचवा स्तम्भ’ का सम्पादन एवं संचालन किया| वह अपनी पत्रिका का नाम पांचवा स्तम्भ रखना चाहती थीं पत्रिका के नाम करण के लिए उन्होंने श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी से विचार विमर्श किया श्रीमती मृदुला जी के शब्दों में उन्होंने श्री अटल जी से अनुरोध किया जब तक वह पत्रिका के नाम एवं इसके महत्व पर प्रकाश नहीं डालेंगे तब तक यह नाम सार्थक नहीं होगा श्री अटल जी ने चर्चा ही नहीं पाँचवा स्तम्भ के महत्व पर भी प्रकाश डाला |मृदुला जी ने पत्रिका के मूल उद्देश्य और उसके महत्व को बढ़ाने का श्रेय उन्हें दिया है उनके अनुसार पाँचवा स्तम्भ सर्वजन हिताय का संदेश देता है | भारतीय सभ्यता और संस्कृति का मूल उद्देश्य है न मैं भूखा रहूँ न मेरा पास पड़ोस भूखा रहे सभी सुखी रहें |
प्रजातंत्र के चार खम्बे है पहला व्यवस्थापिका भारतीय संसद के दो सदन हैं उच्च सदन राज्य सभा इसमें राज्यों को प्रतिनिधित्व दिया गया है इसके 12 सदस्यों का चयन राष्ट्रपति महोदय करते हैं यह विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े महानुभाव हैं | निम्न सदन लोकसभा में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं | दोनों सदनों में पास होने के बाद विधेयक राष्ट्रपति महोदय के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है |दूसरा खम्बा, कार्यपालिका जनता द्वारा चुने गये लोकसभा के सांसदों में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं उनके आदेश पर मंत्री मंडल का गठन किया जाता है | तीसरा न्यायपालिका ( सर्वोच्च न्यायालय ) अन्य कार्यों के अलावा प्रमुख कार्य देश के संविधान की रक्षा करना है और चौथा जनमत निर्माण करने में प्रभावशाली भूमिका निभाने वाला मीडिया जिसमें प्रिंट मीडिया का अपना स्थान है |मृदुला जी के अनुसार पाँचवा स्तम्भ समाज कल्याण के विषयों को सामने रखते हुए पाठकों में जागरूकता लाना है| यह साहित्यिक एवं सामाजिक पत्रिका है अटल जी ने नाम पर सहर्ष स्वीकृति दी |अपना ही नहीं सबके विकास में योगदान दें यहीं संवेदन शीलता है सच्चे अर्थों में इंसानियत |
पाँचवा स्तम्भ में इनका एक लेख अवश्य होता है |लेखों में उनका पत्रकारिता से जुड़ा व्यक्तित्व साफ झलकता है |वह अपनी जन्मभूमि बिहार को कभी नहीं भूलीं दिल्ली में उनका निवास रहा है लेकिन हर लेख एवं भाषणों में बिहार की संस्कृति की झलक मिलती है| श्रीमती मृदुला जी ने अपने कार्यों समाज सुधार के प्रयत्नों को एनजीओ का नाम नहीं दिया | उन्हें एन में नकारात्मक झलकती दिखाई देती है |कई एनजीओ केवल कागज पर ही बन कर रह जाते हैं | कुछ ने एनजीओ को अन्य व्यवसायों की भांति व्यवसाय बना लिया है बड़ी शान से कहते हैं वह एनजीओ चलाते हैं समाज सेवा के नाम पर सरकारी सहायता पाने के इच्छुक रहते हैं अब तो मोदी सरकार में कुछ एनजीओ पर रोक लगाने की कोशिश हो रही है जिन पर देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का शक है | ऐसे एनजीओ भी हैं जो बिना सरकारी अनुदान के अपने क्षेत्र विशेष में सेवा कर रहे हैं| पाँचवा स्तंभ समाज की सेवा के लिए सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है |
श्रीमती मृदुला जी का मानना है मतदान के समय समाजसेवी संगठनों को आगे आकर मतदाताओं से सम्पर्क कर उन्हें समझाना चाहिए मतदान मतदाता का अधिकार है हमारा संविधान बिना किसी लिंग ,जाति धर्म ,अमीरी ,गरीबी शिक्षित और अशिक्षित का भेद किये सबको मतदान का अधिकार देता है सबके वोट का मूल्य एक है |18 वर्ष के हर मतदाता को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का हक दिया गया है मतदान पावन कर्तव्य भी है सबको मतदान के लिए प्रेरित करना चाहिए| चुनाव लोकतंत्र का सबसे उत्तम पर्व है हाँ किसी दल विशेष के लिए मतदान की अपील करना राजनीतिक हो सकता है | भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है | वह बड़ी बेबाकी से आम व्यक्ति से जुड़ती हुई दादी जी को याद करती हैं दादी आधी रात को बच्चों द्वारा जलाई गयी लेकिन बुझी हुई लकड़ी से सूप को पीटती हुई घर की परिक्रमा करती हुई बुदबुदाती थीं ‘लक्ष्मी जागे ,दरिद्रता भागे’ लक्ष्मी जगाने का अर्थ ही घर में खुशहाली लाना है उनके अनुसार मेरा मन दोहराता है ‘मतदाता जागे कुशासन भागे’ उनकी बात बड़ी व्यवहारिक है हमारा आपका भी अनुभव होगा एक वर्ग प्रजातंत्र की सबसे अधिक बात करता है एक दिन अखबार न मिले बेचैन हो जाता है लेकिन मतदान के दिन छुट्टी होती है उसके साथ दूसरी छुट्टियाँ मिला कर घूमने निकल जाता है यदि साथ में बच्चे हैं तो भावी मतदाता को भी अनजाने में मतदान से बचने की शिक्षा दे देता है |
श्रीमती मृदुला जी मंचासीन महानुभावों के स्वागत में फूलों के गुलदस्तों के स्थान पर फलों की टोकरी को प्रमुखता देती हैं फूलों का गुलदस्ता अतिथिगण अक्सर वहीं छोड़ जाते हैं लेकिन फलों की टोकरी प्रेम से साथ ले जाते हैं |
पाँचवा स्तम्भ का एक अंक विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों के लिए भी था | देश छूटा परदेस में वास हुआ लेकिन उन्होंने अपनी संस्कृति को बचाते हुये ऐसे प्रवासियों के अनुभवों और विचारों को भी पाँचवा स्तंभ के विशेषांक में स्थान दिया जिस देश में निवास हैं वहाँ के कल्चर का भी सम्मान किया लेकिन कभी भारतीयता को नहीं भूले |आज की बदलती परिस्थितयों और वातावरण में इन्सान को अपनी मिटटी से जोड़ने की कला में श्रीमती मृदुला जी माहिर हैं| प्रवासी भारत वंशियों को उन्होंने पाँचवा स्तम्भ में अपने अनुभव और विचार लिखने का अवसर दिया उन्हीं में से एक मैं भी थी वर्षों ईरान में परिवार सहित रहने के बाद जाना वहाँ बसे प्रवासी भारतीयों ने पर्शियन कल्चर को कैसे अपना लिया | फर्श पर कालीन दीवार के सहारे लगी पुश्तियों के सहारे बैठना नाश्ते के लिए छोटे पायों वाली मेज ,फर्श पर सिफरा बिछा कर मिल कर भोजन करने की प्रथा को सहर्ष अपनाया | 21 मार्च के दिन पर्शियन उत्सव ‘नौरोज’ नये वर्ष का उत्सव धूमधाम से मनाते हैं जिसमें होली का उल्लास ,लोहड़ी का अग्नि पूजन भारत में चैत मास के नवरात्र में बोया जाने वाला मिटटी के कटोरे में जों ईरान में गोंदुम (गेहूं ) को कटोरे में बोते हैं अंत में सीसदा बदर के दिन रुद्खाने में प्रवाहित करना शामिल है |
उनका लेख ‘ई जहजवा वैरी हो –-‘उन परदेस में बसे भारतवंशियों की पीड़ा को दर्शाता है जिन्हें रोजी रोटी की खोज में परदेस जाना पड़ा यह लोग मजदूरी करने गये थे अधिकतर पीछे अपनी पत्नी को छोड़ कर गये आज की बदलती परिस्थितयों और वातावरण में इन्सान को अपनी मिटटी से जोड़ने की कला में श्रीमती मृदुला जी माहिर हैं| कुछ पत्नियाँ जिद कर पतियों के साथ भी गयी श्रीमती मृदुला जी ने उस जिद को लोक गीत की निम्न पंक्तियों में दर्शाया
‘हमहू जायब तोहरा संग परदेसिया’
पत्नी को रुपया पैसा या गहना देकर संतुष्ट नहीं किया जा सकता उसे अपने पति का संग साथ भी चाहिए पत्नी थके हारे पति की पीड़ा मीठे बोल बोल कर हर लेगी| पत्नी के साथ वह परदेस में भी अकेला नहीं होगा |
उन्होंने मिथलांचल में गाये जाने वाले बारहमासा
यही प्रीति कारण सेतु बांधल है| सिया उद्देश्य श्री राम हैं ...”
अच्छा जीवन जीने की चाह के लिए पैसा चाहिए अत: खटने (कमाने ) के लिए अपनी नव विवाहिता पत्नीयों को छोड़ कर कई परदेस चले जाते हैं पत्नी को साथ न ले जाने की असमर्थता और नव विवाहिता की पीड़ा हर लोक संगीत में झलकती है |अकेली पत्नी के मन का यही भाव लम्बा इंतजार मैने पंजाब में गाये जाने वाले लोकगीतों में भी देखा है |
वह गोवा में भी वह शांत नहीं रहीं उन्होंने वहाँ की समस्याओं का गहराई से अध्ययन किया जबकि वह मानती हैं गोवा समस्याओं वाला राज्य नहीं है| गोवा में रहते हुये भी वह मुजफ्फरपुर के साहित्यिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेती रहीं सभी मंचों से उन्होंने बिहार की लोक कलाओं , लोक संस्कृति लोकगीतों को आवाज देकर खूबसूरती से उनका मंचन करवा कर उनका महत्व बढ़ाया |अपने एक लेख में सच्चा पुरुष कौन है यक्ष द्वारा युधिष्ठर से पूछे गये प्रश्न का वह क्या उत्तर देते हैं जिसमें भारतीय संस्कृति सार मृदुला जी ने व्यक्त किया है मनुष्य को देवता ,अतिथि अपने उन कुटुंबीजनों का भी भरण -पोषण करना चाहिए जो उन पर निर्भर हैं लेकिन जो दिखाई नहीं देते अपने पितर जो स्वर्ग सिधार चुके हैं और प्यासी आत्माओं को पानी देने की परम्परा है ऐसा मनुष्य ही मनुष्य कहलाने के योग्य हैं |
आज कल के दंपत्ति मान कर चलते हैं एक ही बच्चा होना चाहिए जिसे वह सब कुछ देंगे जिन अभावों को उन्होंने झेला है उनका बच्चा नहीं देखेगा मृदुला जी परिवार में एक ही बच्चा होना को सही नहीं मानती अकेला बच्चा उदास और दुखी रहता है घर में दो बच्चे होने चाहिए इससे बच्चे बाँट कर खाना सीखते हैं उनके व्यक्तित्व का सही विकास होता है जबकि |पति पत्नी का रिश्ता बिगड़ना नहीं चाहिए गृहस्थी प्रेम से चलनी चाहिए |घर को तर्कशास्त्र का अखाड़ा नहीं है वह कहती हैं भारत की महिलायें पुरुष मुक्त समाज की समर्थक नहीं हैं नारी पुरुष की सहयोगी है| विवाह का उद्देश्य मनोरंजन नहीं है बल्कि कर्तव्य पालन के लिए है अधिकार कतर्व्य पालन से भी स्वयं मिल जाते हैं विवाह से ही परिवार की शुरुआत होती है |परिवार की गृहणी अर्थात माँ का सबसे बड़ा गुण सहना और क्षमा करना है अत : विवाह संस्कार है व्यापार नहीं है|
नारी शिक्षा,प्रगतिशीलता और नारी सशक्तिकरण की प्रबल समर्थक हैं- उनके अनुसार महिलायें मान कर चलती थीं उनका फर्ज है शादी से पहले अपने मायके में परिवार का ध्यान रखना है जहाँ उनका जन्म हुआ उन्हें पाला पोसा गया बड़ी हुई उनका विवाह कर दिया जायेगा उनका अपना घर सुसराल है वहाँ उन्हें गृहस्थी सम्भालनी है सास ससुर की सेवा करना ,सन्तान को जन्म देना उन्हें पालना, सुख या दुःख दोनों यहीं हैं देश आजाद होने से पहले ही महिलाओं की शिक्षा का प्रसार होने लगा वह स्कूल जाने लगीं महिलाओं ने मेहनत से अपना भविष्य संवारा| माता पिता एवं परिवार का कर्त्तव्य है बेटियों को पढ़ायें उन्हें उचाईयों को छूनें दें , जल थल नभ में जाने दीजिये बेटे को बेटी की तरह पालें न कि यह कहें मैने बेटी को बेटे की तरह पाला है | बेटियों को अपने गुण उजागर करने का भरपूर मौका मिलना चाहिए |उनके चार सबक उनकी अच्छी सोच को दर्शाते हैं |चूड़ियों पर गर्व करो वह नारी की शक्ति का प्रतीक हैं, भोजन बनाने का समय भले न मिलें परन्तु परोसना कभी न भूलें अर्थात अतिथि सत्कार जब भोजन बनेगा तभी तो परोसेंगे, बेटी को दुलार दो लेकिन बहू को अधिकार उन्होंने दिया उनकी बहू संगीता सिन्हा पांचवा स्तम्भ की सम्पादक हैं उनकी देख रेख में पांचवा स्तम्भ फल फूल रहा है और वह राज्यपाल का पद भार सम्भाल रहीं हैं | वह कहती हैं मकान ऐसा खरीदें जिसमें दादा दादी के रहने सोने आराम करने की पर्याप्त जगह हो | मैं सदैव बड़े बूढों के पास बैठने का समय निकालती हूँ उनके अनुभवों से शिक्षा लेती हूँ बुजुर्गों से प्रेम करें उनके मनोभावों का ध्यान रखें आप बड़े बूढ़ों के पास बैठे उनसे बातें करें |सच्चाई से देंखें हमारे बुजुर्ग फलदार वृक्ष है | योरोप में मंदी आई नौकरियाँ गयीं लोग अपने माता पिता के पास लौट गये परिवार संयुक्त होने लगे यहाँ उन्हें आसरा भी मिला प्रेम भरी छाया भी | भारत में भी गावँ से जुड़ा परिवार तीज त्यौहार पर अपने घर जरूर जाता है मुश्किल की घड़ी में अपने गाँव लौटता है परिवार उन्हें सहारा देता है|
वह आज की तरक्की पसंद महिलाओं के मन के करीब जाती हैं उनके पास हर सुख सुविधा के साधन हैं उन्हें अर्जित करने में उनका भी हाथ है क्या वह आनन्दित हैं उनके जीवन में सकून है ? वह अकेली होती जा रही हैं पति पत्नी के सम्बन्धों के बीच में हमारी न होकर मेरी आमदनी ,मेरी जरूरतें ,मेरी जिन्दगी तक सीमित हो गयी हैं हमारी संस्कृति में अपने लिए जीना मानव जीवन का उद्देश्य नहीं माना जाता ऐसी महिलायें भी है जिनके यहाँ सुख सुविधाओं का अभाव है फिर भी वह खुश नजर आती हैं |छात्र और छात्रा प्राईमरी और उच्च शिक्षा एवं व्यवसायिक शिक्षा का एक सा पाठ्यक्रम है कैरियर का लक्ष्य धन कमाना है उदाहरण के तौर पर एक डाक्टर डाक्टर से विवाह करना चाहता है उद्देश्य अपना नर्सिंग होम या अस्पताल बनाना चाहते हैं कार्य क्षेत्र में दोनों की मेहनत समान है एकल परिवार घर में भोजन कौन बनाये बच्चे कौन पाले दोनों को कैरियर में लगे रहे पति अपेक्षा रखता है यह काम पत्नी के हैं ऐसा घर न बन पायेगा न हीं बस पायेगा |वह नारी की सुरक्षा के लिए भी चिंतित रहती हैं किसी दुर्घटना के घटने के बाद सरकार की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किये जाते हैं दुखी सभी होते हैं लेकिन समाज निष्पक्ष होकर आत्म निरीक्षण नहीं करता |
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के 6,7,8 तक चलने वाले 15 वें राष्ट्रीय अधिवेशन के प्रथम दिन गोवा की राजपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा जी का अध्यक्षीय भाषण सुनने का अवसर मिला जनमानस से जुड़ा भाषण,उस दिन तीखी धूप थी फिर भी उपस्थित लोग उनको मंत्रमुग्ध हो कर सुन रहे थे उनके हर विचार सामाजिक समस्याओं से जुड़े रहते हैं भाषण समाप्त होने के कुछ देर बाद घनघोर बादल छा गये मूसलाधार बारिश होने लगी | मृदुला जी सायंकालीन सत्र के कवि सम्मेलन में भी उपस्थित हुई मंच संचालकों की अनुनय पर भी वह मंच पर नहीं बैठीं उन्होंने अन्य कवियों व कवियत्रियों के समान सबके लिये निर्धारित स्थान पर कविता पाठ किया कविता का विषय ‘लड़की और साईकिल’ था |बिहार के मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार जी ने पहली बार मुख्यमंत्री पद भार सम्भालने बाद लड़कियों को साईकिल देने का आदेश दिया था | साईकिल लड़की के लिए कितना जरूरी है श्रीमती मृदुला जी ने उसकी शब्दों से तस्वीर खींची| साईकिल लड़के से भी अधिक लड़की के लिए कितनी जरूरी है | साईकिल के हैंडल पर बेटी ने अपने पिता को भी बिठाया | भाव पूर्ण कविता महिला सशक्तिकरण का प्रतीक थी |
वह स्वच्छता अभियान से भी जुड़ीं हैं महिलाओं को श्रम दान का संदेश देती हैं बेटी बचाओ, पर्यावरण की रक्षा करें उनके अनेक लेख जीवन दायनी वृक्षों पेड़ पोधों पर हैं पोधों को केवल रोप कर गिनती न गिना कर उनको संरक्षण देना चाहियें उनसे स्नेह कीजिये | वह अक्सर कहती और लिखती हैं बरगद और पीपल की जड़ में पानी देकर उसकी परिक्रमा करना आम ,महुआ,बांस की पूजा करना आवले के पेड़ के नीचे बैठ कर खाना खाना अंधविश्वास नहीं समाजशास्त्रियों द्वारा समझ बूझ कर बनाई गयीं परम्पराएं हैं नई पीढ़ियों को भी सीखनी चाहिये | हम सभी जानते वृक्ष साफ स्वच्छ हवा देते हैं पर्यावरण को शुद्ध करते हैं | नदियों में गंदगी डालने की वह सख्त विरोधी हैं | वह जब भी बिहार जाती हैं वहाँ के लोगों के साथ घुलती मिलती हैं उनका एक लेख पांचजन्य में पढ़ा था जिसमें दही जमाना भी एक कला है दादी जी हर आने वाली बहू से पूछती थीं दही कैसे जमाते हैं ?हैडिंग पढ़ कर हंसी आई थी परन्तु जब लेख पढ़ा समझ में आया लेखिका ने कैसे पाठकों को ग्राम की संस्कृति से जोड़ा था |आज तो बाजार से जमा जमाया दही खरीदने का रिवाज बढ़ रहा है |
हर माँ चाहती है उसके सूर्य गुण युक्त सन्तान हो तेजस्वी हो बच्चे के जन्म के बाद सोहर में बिहार और उत्तरप्रदेश में गाया जाने वाला गीत सास पूछती है
बहू जी कौन –कौन व्रत कइली बालक बड़ा सुंदर भेल
बहू उसी भाषा में उत्तर देती है सूरज को प्रतिदिन प्रणाम किया था रविवार का व्रत रख कर नमक नहीं खाया था इससे बच्चा सुंदर और स्वस्थ है | एक पत्रकार की दृष्टि से जन समाज को देखा अच्छाई और बुराई का विश्लेषण कर उन्होंने अपने पाठकों को अपने विचारों से जोड़ा पांचवा स्तंभ उनके द्वारा ‘सकारात्मक चिन्तन एवं विकास का संवाहक है’ |