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यात्रा

hindi articles, stories and books related to Yatra


एक पँछी जब पिजड़ों से आजाद हुई उड़ चली वो उन ऊँची ऊँची पहाड़पर्वत सब हो नीचे छोड़ आसमानो कीउड़ान लिए वो सब को पीछे छोड़ आगेनिकल गई जो हुआ कल की बात थी जोचली गई अब आने वाला पल ओर आने वाला कल मेरे ह

ये चिरइया तो उड़ चली नए नीड़ को मुड़ चली एक आस लिए कुछ खास लिए नूतन जीवन का प्यास लिए उत्कृष्ट क्रिया से जुड़ चली ये चिरइया तो उड़ चली आजाद है कोई ना टोकेगा कोई  पिंजड़ा अब ना रोकेगा अनं

नई बीमारी ले आए तेरे शहर से एक खुमारी ले आए तेरे शहर से इश्क है या फरेब है मेरी आंखो मेंहम ये पता लगाएंगे तेरे शहर से 

प्यार की गहेराई---------------------मैं आपकी चाहत मैंजोगनियाँ हो गई,आपकी मुस्कान दिल मेंयुही तीर की तरह चुब सी गई,आपकी बातों में कुछ तो था,पर आप लफ्जों से न बल्किआँखो से बोल रहे थे।जो दिलसुनने के लिए

जिंदगी के सफ़र में, कौन कहाँ तक साथ चलेगा। ये तो क़िस्मत के हांथों में है, कौन कितना चलेगा। वक्त के आगे नहीं किसी की, कभी यहां चल पाई है। जिसने भी किया यहां पर गुरुर, उसने ठोकर खाई है। क्यों करत

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पल दो पल ‌की शायरी , तीन शब्द की डायरी , मेरी पहचान तो नहीं , हिसाब में समय जोड़ जाना , समय का प्रेमी हूं , उड़ जाऊंगा , कल लौट कर जरूर आऊंगा , किताब पढ़ने - लिखने, हो सके तो शब्द जोड़ने सीखने

एक नगर में सोमिलक नाम का जुलाहा रहता था । विविध प्रकार के रंगीन और सुन्दर वस्त्र बनाने के बाद भी उसे भोजन-वस्त्र मात्र से अधिक धन कभी प्राप्त नहीं होता था । अन्य जुलाहे मोटा-सादा कपड़ा बुनते हुए धनी हो

चाँदनी रात, समीर के सुखद झोंके, सुरम्य उद्यान। कुँवर अमरनाथ अपनी विस्तीर्ण छत पर लेटे हुए मनोरमा से कह रहे थे- तुम घबराओ नहीं, मैं जल्द आऊँगा। मनोरमा ने उनकी ओर कातर नेत्रों से देखकर कहा- मुझे क्यों

चलो प्रतिलिपि जी आपकेबहाने हम भी सोच लियाकी कभी न कभी हम भीकर लेंगे विदेश यात्रा।वरना रह जायगी ये आसअधूरी की हमने क्यों नहीकी विदेश यात्रा।यात्रा तो विदेश हो या देश की यात्रा करनी चाहिए जरूर 

मुंशी इंद्रमणि की आमदनी कम थी और खर्च ज्यादा। अपने बच्चे के लिए दाई का खर्च न उठा सकते थे। लेकिन एक तो बच्चे की सेवा-शुश्रूषा की फ़िक्र और दूसरे अपने बराबरवालों से हेठे बन कर रहने का अपमान इस खर्च को स

कल शाम को एक जरूरत से तांगे पर बैठा हुआ जा रहा था कि रास्ते में एक और महाशय तांगे पर आ बैठे। तांगेवाला उन्हें बैठाना तो न चाहता था, पर इनकार भी न कर सकता था। पुलिस के आदमी से झगड़ा कौनमोल ले। यह साहब

 चोको ने सोसाइटी में अपनी पहचान  मुहैया करवा ली थी , इसकी वजह सिर्फउसका डील डॉल और मस्तानी चाल  ही  नहीं थी , वरन वो सबसे ज्यादा शांत और मिलनसार  थी , हम रोज़ शाम मेंसोसाइटी में   घूमने जाते  , जो की ह

जिंदगी एक प्लेटफॉर्म की तरह होती है,

जंहा  ट्रेन सुख और दुख की तरह 
गुज़रते

बचपन की ओ बातें मानस पटल पर किसी फिल्म के रील की तरह धीरे धीरे पलटने लगी थी।सुबह सबेरे घर के सामन

जो चीज हमे दूर से जितना बेचैन करती है,
उसके पास जाने पर वो हमे उतना ही सुकून देती है.

बात आज से कुछ पन्द्रह सोलह साल पहले की हैं..। मैं अपने किसी रिश्तेदार से मिलने शहर से दूर एक गा

मुझे मालुम है
    ले वैठी होगी,
        किसी

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