'हँस तू हरदम, खुशियाँ या ग़म'...ये बात कहना बहुत आसान है लेकिन करना उतना ही मुश्किल । वास्तव में दुखी तो कोई नहीं रहना चाहता I कितने ही लोग हरदम हँसते-हँसाते रहते हैं और तमाम लोग ऐसे भी होते हैं जो अकारण दुखी भी रहते हैं I लेकिन ये तो तय है कि हँसने-हँसाने और अकारण दुखी रहने के पीछे स्थितियों-परिस्थितियों की अपेक्षा, आदतों की अहम् भूमिका होती है I
हम सभी जानते हैं कि हँसने से तन-मन में उत्साह का संचार होता है और उत्साह किसी बलवर्धक औषधि से कम नहीं होता I आज जगह-जगह पर संचालित हास्य क्लब इस बात के प्रतीक हैं कि हमारी ज़िन्दगी में भागम-भाग हद पार कर चुकी है और अब हम इस तनाव से मुक्ति चाहते हैं I
माना जाता है कि बातचीत करते समय हम जितनी ऑक्सीजन लेते हैं उससे छः गुना अधिक ऑक्सीजन हंसते समय लेते हैं। इस तरह शरीर को अच्छी मात्रा में ऑक्सीजन मिल जाती है। मनोवैज्ञानिक भी तनावग्रस्त लोगों को हंसते रहने की सलाह देते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जब आप मुस्कराते हैं तो आपका मस्तिष्क अपने आप सोचने लगता है कि आप खुश हैं I मस्तिष्क यही प्रक्रिया पूरे शरीर में प्रवाहित करता है और आप सुकून महसूस करने लगते हैं। जब आप हंसना शुरू करते हैं तो शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है। शारीरिक व्यायाम की तरह हँसने का भी अभ्यास एक आदत में परिवर्तित हो जाता है और व्यक्ति सामान्यत: हँसता-मुस्कराता रहता है I