“सांसारिक सुखों से कभी भी किसी को न तो पूर्ण तृप्ति मिली है और न ही भविष्य में मिलेगी I भौतिक सुखों की लालसा नित्य बढ़ती ही जाती है I उस लालसा के कारन व्यक्ति नित्य ही अतृप्त अवं अशांत बना रहता है I इसके विपरीत बुद्धिमान व्यक्ति आत्मज्ञान रूपी अमर तत्व को प्राप्त करने का प्रयास करता है I शरीर और मन तो नित्य परिवर्तनशील है I स्वयं को इनसे पृथक कर आत्म स्वरुप में स्थित हो जाने वाला साधक मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है I”
—स्वामी राम