'ब्राह्मण' पत्र के संपादक साहित्य मनीषी पंडित प्रताप नारायण मिश्र अपनी रचनाओं के माध्यम से सत्य, अहिंसा, ईमानदारी आदि गुणों के महत्त्व पर प्रकाश डाला करते थे । वे प्रायः कहा करते थे कि असली साहित्य वही है जिससे पाठकों को उचित मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले ।
एक बार वे कालाकाँकर रियासत के जंगल में भ्रमण कर रहे थे । युवा लेखक गोपालराम गहमरी उनके साथ थे । अचानक उन्होंने गहमरी जी से कहा, “वत्स, मेरे पास एक अनमोल वस्तु है जो मुझे एक पंहुचे हुए सिद्ध महात्मा से आशीर्वाद प्रसाद रूप में प्राप्त हुई है । मैंने उससे बहुत कुछ पा लिया है । अब मैं उसे किसी योग्य व्यक्ति को देना चाहता हूँ । कोई ऐसा योग्य पात्र मिल नहीं पा रहा है ।
गहमरी ने उनके शब्द सुने तो जिज्ञासा जाग्रत हुई कि उनके पास ऐसी अनमोल वस्तु क्या है ! वे बोले, “क्या मैं उसे लेने योग्य नहीं लगता ?”
मिश्र जी ने थैले में से पीपल का एक पत्ता निकाला । उस पर लाल रोली से अंकित था—“सत्य से बढ़कर दूसरा कोई गुण नहीं है I” वे उसे गहमरी जी को देते हुए बोले, “सुबह जब सो कर उठो, इसे देख लिया करो । सत्य-सम्भाषण, सत्याचरण का अभ्यास हो जाएगा । सत्य सम्भाषण से तुम्हारी आत्मा ही नहीं बल्कि लेखनी भी परिपूर्ण हो जाएगी ।" गहमरी जी ने उसी दिन से जीवन भर सत्य के पालन का संकल्प ले लिया I