यदि मनुष्य को अपनी दिव्यता तथा अपने भीतर छिपी महाशक्ति पर विश्वास हो तो वह अद्भुत कर्म कर सकता है। वह बचपन से ही अपनी आत्म-धारणा से संलग्न नकारात्मक तथा दुर्बलतापूर्ण भावों को दूर कर सकता है। जीवन में उन्नति के लिए आवश्यक ऊर्जा, पवित्रता, एकाग्रता तथा साहस जैसे गुण, आत्मविश्वास से आ जाते हैं। निर्बल बनाने वाली नकारात्मक भावनाओं और विचारों को हमें हटाना होगा। हमें अपने आत्मविश्वास को सबल बनाने की पद्धति विकसित करनी होगी। यह एक दिन में नहीं हो सकता। आरम्भ में यह असम्भव भी प्रतीत हो सकता है, परन्तु धैर्य तथा सतत प्रयास से हमें कठिनाइयों को पार करने तथा आत्मविश्वास प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। हमारे भीतर निहित अनन्त ऊर्जा का भंडार व्यक्त किये जाने की प्रतीक्षा कर रहा है। इसका बोध होना ही आत्मविश्वास है। इसके अभाव में चिंता, भय, शंका, अकुशलता तथा हर तरह की निर्बलता आ जाती है। आत्मविश्वास हमें प्रभावशाली तथा शक्तिशाली लोगों की दया पर निर्भर होने से रोकता है, हमारे मन को घृणा तथा निराशा से बचाता है और हमें अपने पैरों पर खड़े होने को प्रेरित करता है। इसी आत्मविश्वास की भावना से जीवन में आने वाले प्रत्येक अवसर का लाभ उठाकर सफल होने की प्रेरणा मिलती है।
-स्वामी जगदात्मानन्द