उन दिनों गोपालकृष्ण गोखले विद्यार्थी थे I एक दिन कक्षा अध्यापक ने गणित का
एक प्रश्न पूछा I प्रश्न थोड़ा कठिन था इसलिए कोई भी विद्यार्थी उसे हल नहीं कर
पाया I
एक गोपालकृष्ण ऐसे छात्र थे
जिन्होंने प्रश्न का सही उत्तर बता दिया I अध्यापक को बड़ी प्रसन्नता हुई I
उन्होंने इस प्रश्न के लिए गोपालकृष्ण को पुरष्कृत भी किया I किन्तु पुरस्कार
प्राप्त करने के साथ ही गोपालकृष्ण की मानसिक बेचैनी और अशांति बढ़ती गई I घर पहुँच
कर तो उनकी अशांति और भी तीव्र हो उठी I रात कठिनाई से बिता पाए I उन्हें अच्छी
तरह नींद भी नहीं आई I
गोपालकृष्ण दूसरे दिन विद्यालय में
सीधे अपने अध्यापक के पास पहुँचे I पुरस्कार वापस करते हुए बालक गोखले ने निवेदन
किया, “गुरूजी ! इस पुरस्कार का अधिकारी मैं नहीं हूँ I गणित के प्रश्न का उत्तर
तो मैंने दूसरे विद्यार्थी से पूछकर बताया था I इसलिए यह पुरस्कार तो उसे ही मिलना
चाहिए ।"
अध्यापक महोदय ने गोपालकृष्ण की सत्यनिष्ठा की बड़ी प्रशंसा की I उन्होंने सभी
विद्यार्थियों को एकत्रित करके समझाया— जो लोग सत्य से विमुख आचरण करते हैं उनका झूठ
उजागर ना भी हो तो भी इसी तरह अशांति होती है जैसे गोपालकृष्ण गोखले को हुई I
उन्होंने गोपालकृष्ण गोखले को
पुरस्कार लौटते हुए कहा, “इस पर अब तुम्हारा वास्तविक अधिकार हो गया है क्योंकि
तुमने सत्य की रक्षा की है I”
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D