कुछ शिष्य अपने गुरु जी के साथ एक जंगल से गुजर रहे थे। रास्ते में एक बेर का वृक्ष दिखाई दिया । सभी शिष्यों ने सुनहरे बेर खाने की इच्छा प्रकट की । लेकिन बेर बहुत ऊंचाई पर लगे थे काँटों के कारण पेड़ पर चढ़ना भी कठिन था ।
एक शिष्य ने गुरु जी से पूछा, “ गुरु जी, यह ईश्वर का कैसा न्याय ? बेर जैसा छोटा सा फल इतनी ऊंचाई पर लगता है और बड़े-बड़े तरबूज़ खेतों में ज़मीन पर पड़े रहते हैं !”
तभी संयोगवश एक बेर टूटकर शिष्य के सिर पर आ गिरा।
गुरु जी बोल उठे ,
“वत्स, अभी तुम ईश्वर के न्याय की बात कर रहे थे और ईश्वर ने संकेत से उत्तर भी दे दिया, यदि बेर के बदले तुम्हारे सिर पर तरबूज़ गिरता तो क्या होता ……?” इसीलिये कहा गया है, “ईश्वर के न्याय को समझने के लिए उस पर अडिग विश्वास करना पड़ता है।”