सत्य कहा नहीं जा सकता...कहने की कोशिश की जाए तो असत्य की यात्रा शुरू हो जाती है. बहुत ज़रुरत पड़ने पर ही बोलें और अधिक न बोलें. कम बोलना कुदरत का अनुगमन है. हवा का झोंका हर वक़्त नहीं चलता. आकस्मिक फुहार दिन भर नहीं पड़ती. मौन की ऊर्जा हमें प्रकाशित करती है. दूसरों को जानना चालाक होना है लेकिन स्वयं को जानना प्रकाशमय होना है. दूसरों को जीतने के लिए सेना चाहिए. स्वयं को जीतने के लिए शक्ति चाहिए. हो सके तो पानी जैसे हो जाएं. पानी से अधिक कोमल और समर्पित और कुछ नहीं फिर भी ऐसा कुछ नहीं जो कड़ी से कड़ी चीज़ों पर हमला बोलने में इसकी बराबरी करे. समर्पण कठोरता पर छा जाता है और कोमलता कठोरता पर काबू पा लेती है.—लाओत्से