शायद हममें कुछ ऐसे आदमी हैं जिन्हें इस बात का डर है कि हिन्दी वाले हमारी मातृ-भाषा को छुड़ाकर उसके स्थान में हिन्दी रखवाना चाहते हैं । यह निराधार भ्रम है । हिन्दी प्रचार का उद्देश्य केवल यही है कि आजकल जो काम अंग्रेज़ी उद्देश्य से लिया जाता है वह आगे चलकर हिन्दी से लिया जाए । अपनी माता से भी ज़्यादा प्यारी मातृभाषा बांग्ला को हम कदापि नहीं छोड़ सकते किन्तु भारत के विभिन्न प्रांतों के भाइयों से बातचीत करने के लिए हिन्दी या हिंदुस्तानी को सीखनी ही चाहिए । स्वाधीन भारत के नवयुवकों को हिन्दी के अतिरिक्त जर्मन, फ्रेंच आदि यूरोपीय भाषाओँ में ऐसी एक दो भाषाएँ सीखनी पड़ेंगी । नहीं तो अंतर्राष्ट्रीय मामलों में हम दूसरी जातियों का मुक़ाबला नहीं कर सकेंगे । कुछ लोगों का विचार है कि बंगला राष्ट्रभाषा हो क्योंकि इसमें उच्च कोटि का साहित्य है । हिन्दी में उच्च साहित्य है या नहीं-यह विवादग्रस्त विषय उठाना ठीक नहीं है । हिन्दी व्यापक रूप से भारत में बोली जाती है और इसमें संग्रहण शक्ति है तथा यह सरल है ।
-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D