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भाग 14

5 अगस्त 2022

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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली जाएगी, जिसे लेकर बहन की तरह सिर ऊँचा कर वह सुरेश के सामने खड़ी होती है। निरू अपनी शोभा न छोड़ सकी। वह उसी की रक्षा के सौर-मंडल में तैयार हुई है; उसकी पहले वह शोभा है, फिर और कुछ; उसके साथ उसका अछेद्य संबंध है। भाई से जाने के लिए कहने में उसे साफ इनकार के तार बजते हुए सुन पड़े, उन्होंने जैसे उसकी इच्छा का विचार कर वैसा कहा हो। जो कुछ भी हो, निरू के दादा हैं; वह स्नेह में पली है, स्नेह न तोड़ सकी।

साथ ही मनुष्यता का भी विचार आया। कुमार की माँ क्या सोचेंगी! उन पर जो बर्ताव गाँववाले कर रहे हैं, वह किसी बुद्धिमती द्वारा समर्थन न पा सकेंगे। जमींदार के धर्म का पालन करते हुए उसके दादा ने एक प्रकार कुमार का सर्वस्व हर लिया है, जितने से वे उस गाँव के बाशिंदा रह सकते, पुनः उनके साथ-उनके जैसे सुधरे हुए विद्वान के साथ विद्याभाव का सहयोग नहीं किया-एक जमींदार होकर सामाजिक मुआमलों में उनका बाजू नहीं बचाया, बल्कि अपना ही स्वार्थ देखा है (जो वास्तव

में निरू का है)। अपने घर तथा समाज की आज्ञा और मर्यादा के अनुसार उसे भी एक प्रकार कुमार के कानपुरवाले मकानों के लिए यामिनी बाबू को कर्ज लेकर रुपया देना होगा, मामा छल करने पर भी छल नहीं कर सकते और यह इतना-सा अर्थ लेकर वह उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते-यह उनके कार्यों का पुरस्कार भी नहीं ठहरता, अस्तु इस प्रकार उसे भी विरोध करना होगा, कुमार को वह मदद नहीं पहुँचा सकती।

रामचंद्र को उसने खर्च देने के लिए कहा है; मुमकिन, अब उसकी माँ खर्च लेना मंजूर न करे। सोचती हुई निरू जब-जब आवेश में आई, चलने को तैयार हुई, पर दूसरे ही क्षण, लौटने पर उसका कैसा भाव होगा, सोचकर लज्जित हो गई। जो निरू कभी-कभी इसके कवल से मुक्ति पाने की सोचती थी, वह दूसरा खाली मकान देखकर भी न जा सकी।

वह अपनी ही इच्छा से नहीं जा सकती। लजाकर, मुरझाकर, असभ्य व्यवहार के कारण मन में मरकर रह गई।

नीली की इच्छा जाने की थी। उसने याद दिलाई और कहा कि दादा ने अंत में जाने की राय दी है पर निरू ने कहा, "जहाँ गाँववाले नहीं जाते, वहाँ मेरा भी जाना ठीक नहीं, पहले मुझे मालूम नहीं था।" इतना कहकर नीली को भी जाने के लिए न कह सकी।

नीली ने भी सोचा कि वहाँ उसका जाना ठीक नहीं। ऐसा सिर्फ अपनी पराधीनता का विचार कर सोचा। मन से वह दीदी का विरोध किए रही। कारण, कुमार बाबू की माँ से ज्यादा भली और स्नेहवाली महिला उस गाँव में कोई हैं, यह वह न मान सकी।

उस रोज निरू टहलने न निकली, नीली भी कहीं न गई। सुरेश बाबू पते पर थे कि निरू क्या करती है। उसके न निकलने से खुश होकर बोले, "आज रामचंद्र की माँ ने तुम्हें बुलाया था, अच्छा हुआ, तुम नहीं गईं। उनके यहाँ जाने पर दूसरी भी

तुम्हें बुलातीं और न जाने से अच्छा न होता। जमींदारी करने पर प्रतिष्ठा का विचार रखना पड़ता है। अभी तुम समझती नहीं। रामचंद्र की माँ भी तुम्हारे यहाँ आ सकती हैं, पर वे आवेंगी नहीं। वे इसका विचार रखती हैं। पर न आएँ, तुम बुलाना

भी मत, नहीं तो अपमान होगा अगर वे न आईं। हम सिपाही से कहला भेजेंगे कि रामचंद्र को आज्ञानुसार बीस रुपये महीने भेज देंगे।" 

भाई की बात सुनकर निरू ने कुछ न कहा। सुरेश बाहर से गंभीर और मन से खुश होकर चले गए। देवी सावित्री ने निरू के लिए अच्छा-अच्छा जलपान, सुबह पाँच बजे उठकर बंगाली पसंद के अनुसार मुलायम-मुलायम, सूरज खुलते-खुलते बना रखा और स्नेह के हृदय और आदर की दृष्टि से प्रतीक्षा करती रहीं। धीरे-धीरे दस बज गए, ग्यारह बजे, निरू न आई। तब हताश होकर जलपान रामचंद्र को देकर पहले एक चिट्ठी लिखी, फिर तीसरे पहर भोजन बनाया। रामचंद्र जलपान कर चिट्ठी डाकखाने छोड़ने गया। 

देवी सावित्री के मन में अनेक प्रकार के भाव आए। उन्होंने निरू को स्नेहवश होकर बुलाया था, वह जमींदार की लड़की या स्वयं जमींदार है, यह सोचकर नहीं। पर वह नहीं आई। तो क्या रामचंद्र के लिए उसने कल जो कुछ कहा है, उसे सहायता देने की जो उदारता दिखाई है, वह इसलिए कि रामचंद्र एक गरीब विद्यार्थी है और वह उस पर दया करनेवाली उसके गाँव की मालकिन? क्या इसी दयाभाव के कारण फिर उसके मकान पर आमंत्रित होकर जाना उसने उचित नहीं समझा? मुमकिन, उसके भाई ने उसे  रोका हो अथवा गाँव की हवा देखकर उसके अनुकूल रहना ही उसने युक्तियुक्त समझा हो, पर

उन्होंने केवल स्नेहवश उसे बुलाया था। वे धीर महिला थीं, इधर दुःख का पहाड़ उन पर टूटा था, धैर्य से वे उसे सँभाले हुई थीं, जब तक वह प्राकृतिक नियम से पूर्ववत हट न जाए। कुमार की इच्छा के अनुसार उसे विलायत भेजने के लिए उन्होंने स्वयं पति से आग्रह किया था। धन का मोह छोड़कर मकान रेहन कर देने के लिए कहा था। फिर परिस्थिति के उत्तरोत्तर बिगड़ते रहने से लेकर पति के स्वर्गवास तक का वज्रप्रहार धीरतापूर्वक सहन किया था। पुत्र की भविष्य-आशा में गाँववालों के भी असह्य लांछन नत-मस्तक होकर धारण किए थे। वैसी दीनता में भी मलिकवा की माँ का भरण-पोषण कर रही थीं। कभी पानी नहीं भरा, पर ऐसे अपमान के साथ गाँव से बाहर जाकर पानी भर लाना भी उन्होंने स्वीकार किया। कुमार की इच्छा पूरी हुई, पर वह स्थितिशील नहीं हो रहा, इसका असह्य ताप भी उन्होंने शांत होकर धारण किया। रामचंद्र पर इस परिस्थिति का बुरा प्रभाव न पड़े, इसके लिए माँ की तरह उसे पहला ही स्नेह देती रहीं, उसे बराबर गाँव तथा देश की  नोवृत्ति की समुचित धारणा कराती रहीं! पर अब उनके लिए बरदाश्त से बाहर हो गया। निरू को उन्होंने  बुद्धिमती सोचा था और उनकी स्थिति निरू को मालूम होने पर निरू शिक्षित बंगाली बालिका होकर भी उनके प्रति सहानुभूति न रखेगी, यह वे नहीं सोच सकीं। यही उनके लिए बरदाश्त से बाहर हुआ। इसी समय मलिकवा की माँ आई और कहा कि कल बिटिया बाग गई थीं, उसका दुःख सुनकर चली गईं, कुछ न बोलीं, गाँववाले अब इस उपाय में लगे हैं कि खेतवाले कुएँ से पानी भरना बंद करा दें और कल गाँव की औरतें डेरे पर बिटिया से मिलने गई थीं, बरमभोज की खबर है! कुमार की माँ धैर्य से सुनती रहीं।

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

5 अगस्त 2022
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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

5 अगस्त 2022
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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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