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भाग 23

5 अगस्त 2022

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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे देर हो गई। जी ऊब रहा है। एक बार पत्र को फिर पढ़कर झपट से भीतर गई और पैड ले आई। सोचती हुई चिट्ठी लिखने बैठी। क्या लिखे, किस तरह लिखे, कुछ समझ में नहीं आ रहा, केवल उत्तेजना बढ़ रही है। पत्र में घटनाचक्र ऐसा है, जो हर एक स्त्री-हृदय में पुरुष के प्रति विरोध भाव उभार देगा। ऐसी ही ओजस्विनी भाषा में वह उत्तर लिखने लगी। मुख्य बात यह है कि वह हर तरह पिता से मदद करने के लिए कहेगी, पर अच्छा यह होगा कि एक बार उसके घरवाले उसके पिता से आकर मिल जाएँ और फुर्सत हुई तो इस बीच में वह पत्र-लेखिका से साक्षात् करेगी। पता लिखकर चिट्ठी लिफाफे में बंद कर दी और फिर सड़क की ओर देखा। कुमार आ रहा था, देखकर खिल गई। उठकर कुछ कदम आगे बढ़कर लिया। कुमार बिलकुल पास आ गया, तो उच्छ्वसित कंठ से बोली, "जनाब, यह दो का समय है? चार बजने को पंद्रह मिनट है, अब कानपुर तो हम लोग चल चुके। चलें भी, तो बस जाना-आना होगा।" 

कुमार कुछ ऐसी उधेड़-बुन में था कि उत्तर की नाप-तोलवाली हालत से परे था। जैसा साधारण भाव आया, कह दिया, "तो न हो, होटल में रह जाएँगे।" कुमार को न कानपुर जाने की आवश्यकता थी, न होटल में रहने की। कमल का प्रस्ताव था एक साथ जरा टहल आने का, उसने एक तरह कह दिया।

लज्जित होकर मुँह फेरकर कमल एक पूरे जोर की छिपी हँसी हँस ली। तब तक कुमार बढ़कर उसी कुर्सी पर बैठ गया, भीतर से बिलकुल दूसरे रूप का भरा हुआ। कुमार के आज के भाव की ओर कमल दूसरे दिनों से अधिक आकृष्ट हो रही है। आज वह उसकी निगाह में और पवित्र और परिमार्जित मालूम दे रहा है। आज उसे देखकर उसके हृदय का स्नेह का फौव्वारा रुकना नहीं चाहता। आज उसमें न जाने कौन-सा आकर्षण है कि उसके संगमात्र से जैसे वह ऊपर उठती जा रही है और ऐसी जगह पहुँची है, जहाँ जड़ बंधन का ज्ञान भी उसे नहीं रह गया, केवल आनंद मान रही है।

एकाएक इस आनंद के भीतर उद्भावना पैदा हुई, कहा, "चलिए एरोड्रोम, आकाश में उड़ आया जाए।" घंटी दी, नौकर से मोटर ले आने के लिए कहा। कुमार निर्विकार भाव से बैठा रहा। कमल ने सोचा, 'कानपुर जाना नहीं हुआ, इसलिए इनका दिल बैठ गया है।' 

ड्राइवर ने गाड़ी सामने लाकर लगा दी। कमल सजी बैठी थी। कुमार से बैठने के लिए कहा। नौकर ने गाड़ी खोल दी। कुमार सामने ड्राइवर के पास बैठा। कमल लजाकर शिष्या की तरह भीतर बैठी, मन में एक प्रश्न उठता रहा, ये यहाँ बैठते तो छूतलगने की भी कोई बात थी? चलते समय नौकर से कागज उठाकर रखने के लिए कह दिया। गाड़ी चल दी। कमल अकेली बैठी रही। ऊपर एरोप्लेन के उड़ने की घरघराहट हो रही थी। कुमार कल्पना के नेत्रों से निरू का विवाह देख रहा था। रह-रहकर सुबहवाली  सूरत, वह फूली लता के भुजों के भीतर का मुख, वह पीछे का सूर्यमंडल, वे एकटक काली-काली बड़ी-बड़ी आँखें याद आ रही थीं। उस दृष्टि का भाव याद आते ही एक  अज्ञात दर्द उठता था। जब जूता-पालिश करने के लिए गया था, उस समय जिस तेजी में वह उसके सामने गई थी, जिस निरवरोध अपनाव से, उसे देखा था, भीतर से आज उसे पाने के वही भाव कुमार में उठ रहे है, पर हाय, यहाँ वह निरुपमा कहाँ, यहाँ तो उसकी छाया है! देखते-देखते एरोड्रोम आ गया। कमल उतर पड़ी। कुमार का दरवाजा खोल दिया। कुमार फिर भी बैठकर सोच रहा है। देखकर कहा, " (जनाब, सो रहे हैं या सोच रहे हैं?)

कुमार होश में आ सँभलकर, लज्जित होकर नीचे उतरा। एरोप्लेन अभी आकाश में उड़ रहा था। इसके बाद के जानेवाले गर्दन उठाए देख रहे थे। कमल कुमार के पास ही, एक प्रकार सटकर खड़ी थी, बोली, "काफी भीड़ होती है, हमें कुछ देर होगी शायद?" देखते-देखते एरोप्लेन उतरा। कमल और कुमार की आँखों में विस्मय था। निरू और यामिनी बाबू उतरकर उसी ओर बढ़ रहे थे। अभी इन्होंने न देखा था। निकट आने पर कुमार के साथ कमल को सरल आँखों से निरू ने देखा और आँखें फेर लीं। मुँह फेरने का भाव दोनों के हृदय में अंकित हो गया। कमल ने कुछ देर ठहरकर, निरू से मिलने की अपनी बढ़ती हुई इच्छा को रोककर यामिनी बाबू को देखा, जैसे मनुष्य किसी कीट को देखता है। उसके साथ कुमार की जल्द होनेवाली शादी के भाव को उपेक्षा की दृष्टि से उल्लंघन कर जैसे यामिनी बाबू ने कुमार को देखा। तब तक बिलकुल नजदीक

आ गए थे। उपेक्षा के स्वर से कहा, "अब जूता पालिश करना छूट गया जान पड़ता है।" वैसी ही उपेक्षा से कुमार ने कहा, "हाँ, तुम्हें उतनी शिक्षा देनी थी, वह दे चुका।" "बाकी जितनी रह गई है, वह मैं पूरी कर दूँगी।" कमल ने कहा। यामिनी बाबू झेंप गए। कुछ मतलब न समझे । तरह-तरह के अर्थ करने लगे। मतलब कोई नहीं समझा, पर निरू खुश हुई, यद्यपि भीतर से अप्रसन्न रही और यामिनी बाबू के साथ खुश आकर कुमार को अप्रसन्न करने की न सोची। एक बार ललित दृष्टि से कमल को

देखा, जिस लालित्य में श्रृंगार नहीं, करुणा थी, बेबसी का बयान था। आज कमल सब कुछ समझी, यदि कुमार के लिए उसके भीतर प्यार न होता, तो कमल को देखकर उस तरह वह आँखें न फेर लेती। अगर यामिनी को चाहती होती तो भी नहीं। खुलकर पहले कही बात को याद दिलाना चाहा कि मैंने पहले तुमसे पूछा था और मैं अब भी वही हूँ। तुम्हें बहुत बड़ा भ्रम हुआ है, पर वहाँ खड़े इक्के-दुक्के आदमियों की तरफ ध्यान गया, फिर यामिनी बाबू के लिए भी सोचा कि कुछ-का-कुछ सोच लेंगे, मुमकिन, दर्द पर हाथ जाए, यह अच्छा नहीं। सोचकर, कुमार का साथ छोड़कर,  यामिनी बाबू के संग बढ़ती हुई निरुपमा को एक बगल से बुलाया। निरू चलने को हुई, तो यामिनी बाबू ने स्नेह से कहकर रोका, "हमें अब जल्द चलना चाहिए, निरू और भी तो बातें हैं।"

"हाँ, जरा बात सुन लूँ।'' सलज्ज कहकर निरू कमल की ओर चली। एक साथ होकर दोनों एकांत की ओर बढ़ती चलीं। "निरू!" निरू एकाग्र हुई, पर कुछ कह न सकी। "एक बार और मैंने तुमसे पूछा था, पर तुमने उत्तर नहीं दिया, टाल दिया था। मेरी इच्छा होती है, अब मैं भी टाल जाऊँ और अच्छी तरह तुम्हारा सर्वनाश देख लूँ।" निरू काँप उठी। त्रस्त स्वर से कहा, "मैं समझ नहीं सकी।" "तुम जितना समझती थीं, मैं उतना ही तुमसे पूछ रही थी। अगर उतना ही तुम बता

देतीं, तो आज इतने बड़े हास्यास्पद नाटक का तुम्हें पार्ट न अदा करते रहना पड़ता।" यह इतनी सहृदय बात थी कि निरू सत्य की जगह से दुर्बल पड़ गई, वह छिपा सत्य जाहिर हो गया। उसने कहा, "मैं खुद अपने मर्ज की दवा के लिए चली थी, पर रास्ते में तुमने बाधा दी।" "मैंने बाधा दी? कैसी बाधा?" "तुम कुमार बाबू को प्यार करती हो?" कमल आश्चर्य की दृष्टि से निरू को देखती रही, कहा, "प्यार करती हूँ, इसका एक ही अर्थ मेरे पास है, उससे विवाह का कोई तअल्लुक है, यह मैं नहीं जानती, दूसरे अलबत्ते यही अर्थ-संयोग लेते हैं।"

निरू उदास होकर मुरझा गई, फिर एकाएक अपनी प्रभा से चमक उठी, बोली, "कुमार बाबू के यहाँ तुम्हें उनके साथ देखकर मैंने वैसा ही निश्चय किया था, इसीलिए अपने दर्द की दवा से मैंने अपना हाथ खींच लिया; मैं नहीं चाहती थी कि मैं तुम्हारी प्रतिद्वन्द्विनी बनें, नहीं तो कुमार बाबू की माँ का जैसा स्वभाव है, मैं जानती हूँ, वे मुझे अवश्य आश्रय देतीं; मैंने जान-बूझकर यह जहर पिया है; मुझे भ्रम था ही।" "वे आश्रय अब भी देंगी, नहीं, तुमने स्वयं अपना आश्रय-स्थल खोज लिया; और यही तुम्हारे योग्य भी है; हृदय से तुमने धोखा नहीं खाया। इस जिस मनुष्य के साथ तुम आई हो, यह, उफ!" "क्या है?" "फिर बताऊँगी। क्या तुम्हारा विवाह ठीक हो गया?" "हाँ।' निरू ने डरे हुए गले से कहकर विवाह-तिथि बताई।"तो वे तैयारी अवश्य कानपुर से करेंगे और वहीं से बारात भी लाएँगे।" "हाँ।"

"कब जाएँगे?'

"कल सुबह।"

"ठीक है। अच्छा, अब यह बताओ कि तुम कुमार बाबू को प्यार करती हो या नहीं?"  निरू लज्जित होकर देखने लगी।

"बोलो।" कमल ने जोर दिया।

"करती हूँ," कुछ बेहयाई से निरू ने कहा।

"आह-ऊह-ओहवाला प्यार?"

"हाँ।"

कमल खिलखिलाकर हँसी।

तब तक यामिनी बाबू ने बँगला में कुछ उद्धत स्वर से, 'देर हो रही है' कहकर निरू को बुलाया। निरू ने बिलकुल स्वतंत्र दृष्टि से देखा, कमल से कहा, "इसे कह दूँ, चला जाए।" "नहीं, नहीं, मजा न बिगाड़ो। जब नाटक यहाँ तक हुआ तब पूरा किए बगैर क्यों छोड़ा जाए?""यानी?""और बातें फिर कहूँगी, इस समय तुम निश्चिंत होकर जाओ, इन्हें अच्छी तरह अब हवा
खिलाना।" निरू अभिवादन कर हँसती हुई चली। कमल कुमार के पास आई।

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

5 अगस्त 2022
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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

5 अगस्त 2022
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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

5 अगस्त 2022
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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

5 अगस्त 2022
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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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