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भाग 18

5 अगस्त 2022

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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की और एक सुंदर कन्या के धनी पिता भावी जामाता की कानपुर की इमारतें और विश्वविद्यालय की सर्वश्रेष्ठ पदवी देखकर उसके पिता के पास आए और कन्या के साथ दान में यथेष्ट धन देकर उन्हें प्रसन्न करने के लिए कहा, पिता विवाह के पक्ष में हो गए, माता की आँखों में भी अदृश्य बहू का मुख कुछ-कुछ दृश्य हो चला, विवाह के लिए वे ललचा उठीं, उसने किसी की समझ पर नासमझी नहीं की-सीधे विलायत की तरफ देखा। विलायत का नाम सुनकर कन्या के पिता खिंचे; वे ऐसे न थे कि जो धन देकर धर्म भी देते। 

विलायत से लौटकर, भारत के वृहत्तर समाज पर जो कल्पनाएँ उसने की थीं-जाति-निर्माण का जो नक्शा खींचा था-इस पद-दलित धारा पर उसकी सहानुभूति की धारा जिस वेग से बहती थी-जिस सहृदयता से वह शिक्षित-मात्र को देखता था, वे सब,जीविकार्जन के क्षेत्र पर उसके पदार्पण करते ही, संकुचित होकर, सूखकर अपने ही सूक्ष्म-तत्व में विलीन हो गईं। पर उसने किसी की समझ पर नासमझी नहीं की। चुपचाप एक पेशा इख्तियार कर लिया, जहाँ किसी को धोखा खाने की बात न थी। बीच रास्ते पर उसका व्यवसाय लोग स्पष्ट रूप से देख सकते थे।

जब माँ की चिट्ठी मिली कि गाँव में रहना दुश्वार है, शायद लोग जमींदार पर दबाव डाल रहे हैं कि कुएँ से पानी भरने न दिया जाए, तब ऊँची-ऊँची किताब और ऊँचे-ऊँचे मनुष्यों की व्यवहार की इस जानकारी ने तुच्छ जमींदार और गाँववालों के उस विरोध को उनकी स्थिति के अनुकूल हुआ जानकर उनके खिलाफ एक शब्द नहीं कहा, चुपचाप गाँववालों को अपने साथ ले आया, यह समझकर कि जूते की पालिश रोटियों का सवाल अच्छी तरह हल कर लेती है। और उसकी माँ जैसी मार्जित हैं, उनके विचारों को कोबरा की स्याही न लगेगी; रामचंद्र के अभी अपने विचार कुछ नहीं, भविष्य में उनकी अधिक पुष्टि की आशा है। केवल मलिकवा की माँ की चिंता हुई कि कहीं उसकी समझ कुंद न हो जाए। उसे गाँव में कष्ट था, विशेष काम कर नहीं सकती थी। उसका लड़का जब पक्ष लिए हुए मरा, तब पक्ष छोड़ना ठीक नहीं -इस विचार से माँ बराबर उसे खाने-पीने को देती रही। चलते समय बुलाकर, कहकर, रोकर उसके आग्रह करने पर साथ लेकर आईं। अब उसकी समझ को धक्का न लगे, इस विचार से उसने रामचंद्र से मजाक में कहा, "ब्रश और ब्रांकों की वस्तु का अगर तू निर्देश न करेगा, तो मलिकवा की माँ इस जिंदगी में न समझ पाएगी कि मैं क्या करता हूँ," कहकर, दूसरे दिन, अपने जीविकार्जन के महास्र लेकर बाहर निकला।

लखनऊ में कुमार अब तक काफी प्रसिद्ध हो चुका है। हैट-कोट पहनकर, रास्ते पर बैठकर जूता-पालिश करनेवाला मामूली आदमी नहीं, फर्राटे से अंग्रेजी बोलता है। कोई-कोई कहते हैं, विलायत भी गया हुआ है, अंग्रेजी खत्म किए हुए है, यह देश को शिक्षा देने के लिए ऐसा करता है कि न कोई बड़ा है न छोटा, यह चर्चा घर-घर है। चमार, जिस रास्ते से वह निकलता है, चौकन्ने होकर देखते हैं। चमार चार पैसे लेते थे, वह एक पैसा लेता है। बाजार तब से गिर गया है। लोग चमारों को हेय

दृष्टि से देखते हैं। छावनी में कुमार की बड़ी कद्र है। गोरे बड़ी प्रीति से उसे काम देते हैं, उसकी बातें सुनते हैं। एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराते हैं। उसकी इज्जत करते हैं। वह भी यूरोप की, तरह-तरह की, उन्हें पसंद आनेवाली बातें सुनाता है। बँगलों में भी जाया करता है। सभी जगह यथेष्ट आमदनी होती है। उसके सीधे निरभिमान, प्रसन्न और प्रिय स्वभाव को सभी प्यार करते हैं। कभी-कभी लोग चारों ओर से घेरकर विस्मय, आदर और स्नेह की दृष्टि से देखते रहते हैं। आज वह बँगलों की तरफ चला। कमल साधारण घरेलू सुंदर पहनावे में सजी फाटक के पास खड़ी हुई, आकाश भरकर उतरती हुई वर्षा की पीन श्यामच्छवि एकटक देख रही थी। मुख पर काव्य का नैसर्गिक प्रकाश पड़ा पृथ्वी और स्वर्ग को एक कर रहा था।

कुमार ने देखा। मन में निश्चय हुआ कि यह विदुषी है। अपने कार्य के लिए आगे बढ़ा। आहट पा कमल ने उसी भाव की दृष्टि से देखा। कुमार ने अंग्रेजी में कहा, "जूते पालिश करता हूँ। आप देखकर खुश होंगी। मिहनत बहुत कम लेता हूँ।' कमल भाव की आँखों से मुस्कुराकर सोचने लगी, 'यह चमार है। थोड़ी-सी अंग्रेजी पढ़ ली है। आजकल के बाबू अंग्रेजी सुनकर खुश होकर काम ज्यादा देते हैं।' हिंदी में पूछा, "तुम्हारा नाम?" "कृष्णकुमार," नम्रतापूर्वक कुमार ने कहा। 'कृष्णकुमार चमार, सानुप्रास है।' मन में सोचकर, खुलकर कहा, "बड़ा अच्छा नाम है। अब तुम लोग भी अच्छे नाम रखने लगे।" सोचती हुई गंभीर होकर बोली, "यह देश की उन्नति के लक्षण हैं।" "जी हाँ।" सारा मतलब समझकर, मुस्कुराते हुए कुमार ने हा।"लेकिन तुम मुझसे अंग्रेजी क्यों बोले?" "मैंने कहा, मेमसाहब नाराज न हो।" "मैं मेमसाहब नहीं।" कुमार कुछ न बोला। कमल ने भाव स्पष्ट कर दिया, "अभी मेरी शादी नहीं हुई।" "मुझसे गलती हुई।" क्षमा चाहते हुए जैसे कुमार ने कहा।

कमल लापरवाही से बँगले के सामनेवाले टेनिस-ग्राउंड की ओर बढ़ी, पीछे-पीछे कुमार।

"तुम अंग्रेजी साफ बोलते हो; किसी साहब के यहाँ थे शायद?"

कुमार को बड़ा बुरा लगा। पर प्रश्नकर्ची का अनुमान व्यर्थ नहीं, सोचकर कहा, "नहीं, मैंने पढ़ी है।"

इसे स्पर्धा समझकर बी.ए. फाइनल की विद्यार्थिनी कमल ने दबाने के भाव से कुछ तिरछे देखते हुए उँगली जरा ऊपर को उठाकर पूछा, "वह क्या है?"

काम की तलाश में आकर परीक्षा देते हुए कुमार को बुरा लगा, जैसे कोई बच्चे से पूछ रहा हो; पुनः वह चमार है इसलिए बड़ी सभी बातें उसके लिए अनावश्यक, अप्रत्याशित-सी हो रही हैं-व्यक्ति होकर वह पद और मर्यादा में बड़ा नहीं, तो बराबर है; पर यह विचार भी नहीं रहा, नहीं तो उँगली उठाकर इस तरह प्रश्न करने का क्या अर्थ, सोचकर, यथाभ्यास क्षोभ को दबाकर कहा, "बादल।" ।

"हाँ, इस पर पाँच मिनट जरा अंग्रेजी में बोलो।" प्रश्नकर्ची को गंभीर मुद्रा-वैषम्य की दृष्टि से देखता हुआ कुमार बोला, "आए

थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास-हो रहा है।"

"नहीं, मैं तुमसे हरि-भजन ही कराना चाहती हूँ, इसलिए कहती हूँ।"

"लेकिन पारिश्रमिक तो कपास ओटने से ही मिलेगा।"

"ऐसी कोई बात नहीं है।"

"तो इसका तो बहुत ज्यादा पारिश्रमिक होगा।" "जब तुम पास होगे।"

"तो कितना पारिश्रमिक मिलेगा, अगर मैं पास हुओं में सबसे आगे रहा?" कुमार ने मुस्कुराते हुए कहा।

कमल चौंककर देखने लगी, कहा, "तुम जितनी आशा रखते हो, उतना मुझे संदेह है। पर दो सौ रुपये समझ लो।" ।

कुमार प्रसन्न हो गया; बोला, "संदेह ठीक है, पर भ्रम सभी को होता है। अच्छा, आपका आदर्श किस कोटि का होगा?"

"अच्छी अंग्रेजी का आदर्श तुम्हें मालूम होगा तो मुझे समझने में दिक्कत न होगी, तुम सीधी कहो या सजी हुई।"

"विषय तो सजी हुई का ही है। मैं यह और पूछता हूँ कि आपके विषय पर अंग्रेजी के कवियों का कहना और उसका हवाला सुनाऊँ या अपनी तरफ से कहूँ, अवश्य आप 'बादल' पर वैज्ञानिक व्याख्या नहीं सुनना चाहतीं।"

कमल को जैसे कुछ होश हुआ। पूछा, "तुमने कहाँ तक पढ़ी है अंग्रेजी?"

"मैं लंदन विश्वविद्यालय से डी. लिट. हूँ, अंग्रेजी साहित्य का।" कुमार का पौरुष न छिप सका।

कमल लज्जित हो गई। नम्र हँसती हुई बोली, "तो आपने यह कैसा स्वाँग रच रखा है!"

"यह स्वाँग नहीं, यह मेरे साथ भारत का सच्चा रूप है।"

कमल भाव में डूबी हुई खड़ी रही। गौरव अपनी महत्ता में भरकर उसे हृदय की दृष्टि से विद्या का प्रांजल प्रकृत-पथ दिखाता रहा, जिससे कुमार उसके पास चलकर आया था। नत होकर बोली, "मैं बी.ए. फाइनल की विद्यार्थिनी हूँ। आइए, मैं बाबा से

कहती हूँ, आप दो सौ मासिक लीजिए; मुझे सुबह दो घंटे अंग्रेजी पढ़ा जाया कीजिए!" कहकर, अपने बँगले की ओर चलती हुई, "आप अवश्य हिंदू हैं।"

नत मुस्कुराहट से, "हाँ।" शिष्या के विचार मात्र से कुमार आप न कह सका।

"आपकी जाति?"

"कान्यकुब्ज ब्राह्मण।"

कुमार के भार से झुकी हुई कमल एक कुर्सी की ओर बैठने का इंगित कर भीतर पिता के कमरे में गई, और संसार के आठवें विस्मय की चर्चा से पिता को बाहर ले आई, बँगला में कहा, "ये डॉक्टर कृष्णकुमार कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं; लंदन के डी. लिट.

हैं, जगह न मिलने से यह पेशा इख्तियार किया है।" कुमार का ब्रश उठाकर दिखाया, "जूता पालिश करते हैं। मैं इनसे अंग्रेजी पढूँगी, कहा है, सुबह दो घंटे के लिए। दो सौ मासिक पर।"

दिनेश बाबू प्रसिद्ध वकील थे। कई हजार मासिक की वकालत थी। मनोविज्ञान के पूरे जानकार। ऐश्वर्य और सम्मान सबके ऊपर उनकी प्यारी कन्या प्रतिष्ठित थी।

ब्रह्मसमाजी थे। अतः किसी तरह विचलित न हुए; सोचा, 'कमल इस युवक को प्यार करती है। यदि भविष्य में दोनों सदा के लिए बँध भी गए तो बुरा क्या है? युवक विद्वान और सुंदर है, पुनः ब्राह्मण है। अवश्य इसका सामाजिक बहिष्कार हुआ होगा।                                               
ब्रह्मसमाज को एक योग्य मनुष्य प्राप्त हो सकता है।' कमल की बातें स्वीकार कर, देर तक कुमार से बातें करते रहे और बहुत प्रसन्न हुए।

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

5 अगस्त 2022
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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

5 अगस्त 2022
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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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