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भाग 25

5 अगस्त 2022

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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से कह दीजिए कि आपकी भी यही राय है। मैं इधर बहुत मिलना-जुलना नहीं चाहती। मुझे अच्छा नहीं लगता। आखिर सबका विवाह होता है, मेरा भी हो रहा है। स्त्रियों के मजाक के तीर ऊपर से सहने पड़ते हैं। हाँ, भोजन, पान, रोशनी, बाजे और नाच-गाने में खर्च है, वह सब मामा के हाथ रहेगा।"

यामिनी बाबू गंभीर होकर सहमत हुए और विदा होते समय सारी बातें मामा को समझा दीं। उनके चले जाने पर कमल ने बड़ा काम किया। प्रोफेसर दुबे को समझाया कि जबकि क्रिश्चियन रहने में अब विशेष आर्थिक फायदेवाली बात नहीं रह गई और हिंदू होने में एक फायदा नजर आता है तब घर-भर फिर हिंदू क्यों न बन जाएँ? अगर हिंदुओं में शुद्ध करने की ताकत नहीं, तो आर्यसमाजियों में तो है। आर्यसमाजियों और हिंदुओं में उतना फर्क नहीं, जितना हिंदू, मुसलमान या क्रिश्चियन, यहूदी में है।

प्रोफेसर दुबे को जितनी तरह के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक लाभ हो सकते थे, एक-एक कर कमल ने सब समझाए। प्रोफेसर दुबे मान गए। कमल को धन्यवाद दिया। कमल पिता के साथ अच्छे-अच्छे वकील, बैरिस्टर, सरकारी अफसर, यहाँ तक कि शहर कोतवाल से भी मिली और सबको आमंत्रित किया। फिर छपा निमंत्रण भेजवाया। यद्यपि निरू अपने बँगले में रहती थी, फिर भी बँगला विवाह के लिए किराए पर उठाया जा रहा है, ऐसी लिखा-पढ़ी हुई। सब तरफ से कमल ने पूरा-पूरा ध्यान रखा और थोड़े समय में पूरी सफलता प्राप्त कर ली।

धीरे-धीरे विवाह का समय निकट हो आया। कमल ने निरू के बँगले में चौबीसों घंटे पहरे के लिए आठ गोरखा सिपाही कर लिए। एक पहरा गेट पर लगाया, एक दोमंजिले के जीने पर। देखते-देखते विवाहवाली सुहावनी शाम हो आई। एक साथ बिजली के रंगीन बल्ब तरह-तरह के आकार से सजाए जल उठे। जैसे आकाश, सहस्रों पृथ्वी लता-गुल्म-सब विवाह देखने के लिए आमंत्रित हों! सामने बड़ा शामियाना तना, चारों ओर कायदे से कुर्सियाँ रखी हुईं, एक ओर कीमती मखमली गद्दीदार बड़ी कुर्सी, चुने हुए आमंत्रित । एक-एक करके आते हुए सब पूरी अभ्यर्थना के साथ कुर्सियों पर बैठाएजाने लगे। तरह-तरह की खुशबू से हवा मत्त हो उठी। प्रसिद्ध नर्तकी का गाना होता हुआ। रास्ते से एक छोर से दूसरे छोर तक मोटरों का ताँता लग गया। शाम होने के कुछ बाद वर-यात्री भी आ गए। उनके लिए एक ओर की कुर्सियाँ निश्चित की हई थीं। 

सब बैठे। यामिनी बाबू की अंग्रेजी ढंग की बँगाली सज्जा देखने लायक थी। सभा में पूरा सन्नाटा था, यद्यपि इधर-उधर तरह-तरह का शोर-गुल हो रहा था। एक दूसरी ओर आमंत्रितों को समय पर जल्द भोजन करा देने का इंतजाम हो रहा था।

योगेश बाबू इसी जगह मनोनिवेश किए हुए थे। कतार-की-कतार कुर्सियाँ पड़ी हुईं,  मेजें सटी हुईं। पाचकगण पटुता से प्रस्तुत कि क्षणमात्र में यंत्र से जैसे काम होने लगे। नियमानुसार घर की स्त्रियों को विवाह के दिन शाम से कुछ पहले आना था। जो मामा के घर की महिलाएँ थीं, उनके नाम की एक-एक छपी सूचना नीचे एक-एक कमरे में थी। उनके स्वागत का भार कमल पर था। जीन पर पहरा, कोई ऊपर नहीं जा सकती थीं। उनके साथ उनकी परिचित आई हुई सखी रह सकती थीं। अन्य महिलाओं के लिए अलग-अलग कमरों का प्रबंध था; एक साथ तीन-चार के रहने का; महिलाओं के निमंत्रण की सूची कमल के हाथ में थी। यह प्रबंध देख प्राचीनाओं ने सोचा, यह नया फैशन है। निरू के ममानवालियों ने सोचा, यह यामिनी बाबू की उपज है। नवीनाओं ने सोचा, यह आदर्श है, ऐसा ही होना चाहिए। इससे औरतों का एक साथ गड्डबड्ड भेड़धसान नहीं होता।

नियत समय पर आमंत्रित महिलाओं के आने पर निरू विवाह के लिए साज से सजी हुई, मस्तक पर चंदन, मुक्तकेश, रक्तवास आभरणों से झलमलाती हुई, नीली को लिए हुए ऊपर से नीचे उतरी। एक-एक करके वह सबके कमरे में गई और पूज्य महिलाओं को प्रणाम किया। सबने प्रसन्न दृष्टि से नीचे से ऊपर तक उसे देखा और आशीर्वाद दिया। उसके ममानवाली कुछ नाराज हुईं, क्योंकि अपने हाथों उसे सजा नहीं पाईं। एक ने व्यंग्य भी किया, "अगर विवाह हिंदुस्तानी ढंग से होगा, तो यह बँगला-सज्जा फिर किसलिए?"

"हिंदुस्तानी ढंग से विवाह होने की बात है, पहनावे की नहीं," थोड़े में उत्तर देकर निरू निवृत्त हो गई। फिर वहाँ से दूसरी ओर चली। इस प्रकार सबसे मिलकर नीली के साथ ऊपर चली गई। अब रात के दस का समय हुआ। सबको जिवाने का प्रबंध होने लगा। इधर हिंदुस्तानी पंडितजी बड़ा पग्गा बाँधे एक ओर बनाए हुए मंडप में आ विराजे; साथ-साथ प्रजाजन

और उनके सहायक। कमल मुस्तैदी से उनकी आज्ञा की प्रतीक्षा करती हुईं। महिलाओं को विवाह देखने का आमंत्रण फिर गया। सब मंडप में आकर एकत्र होने लगीं। और पंडितजी का अद्भुत वेश देखकर एक-दूसरे को धीरे से धकेल-धकेलकर मुस्कुराने लगीं। शिक्षित पंडितजी की गंभीरता में फर्क न पड़ा। उन्होंने स्वरचित संस्कृत-भाषा में वर और अवगुण्ठनवती वधू को ले आने की आज्ञा की। वर डॉक्टर यामिनी बाबू शिष्टतापूर्वक आकर अपने आसन पर विराजमान हुए, यद्यपि उस हिंदुस्तानी असभ्य वेशवाले पंडित के प्रति उन्हें हृदय से घृणा थी। कमल  अवगुण्ठनवती वधू को लेने के लिए दोमंजिले पर गई। वधू तैयार थी। आज्ञा के अनुसार उसे लेकर कमल मंडप में आई। महिलाएँ आनंदपूर्वक ऊल्-ध्वनि करने लगीं।

पंडितजी ने कर्मकांड शुरू किया और शिक्षित वर की रुचि का जैसा रूप उनके सामने पहले रखा गया था, तदनुसार विवाह को संक्षेप में ही समाप्त किया, एक घंटे के अंदर-अंदर। अब तक आमंत्रित सज्जन भोजन कर चुके, और शहरवाले मंडप में आकर विवाह देखकर प्रसन्न होकर हर्षध्वनि कर गए। 

विवाह हो गया। कुछ लोकाचार रह गया। यह बंगाल की फूल-शय्यावाली प्रथा है। कमल वधू को लेकर चली और यामिनी बाबू को अनुसरण करने के लिए कहा। महिलाओं से कहा कि कुछ देर बाद अब वे सब ऊपर चलने की कृपा करें। वधू को लेकर कमल ऊपर गई। पीछे-पीछे यामिनी बाबू जा रहे थे। देखा, ऊपर भी एक वेदी है और एक ब्राह्मण आसन पर बैठा हुआ है। ब्राह्मण ने बँगला-भाषा में यामिनी बाबू से कहा, "यह आपकी मातृवेदिका है, इसे भूमिष्ठ होकर प्रणाम कीजिए।" यामिनी बाबू ने इसे भी कर्मकांड की एक धारा समझा और भक्तिपूर्वक भूमिष्ठ होकर प्रणाम किया। कमल बहू को कमरे में ले गई। पीछे से यामिनी बाबू भी गए। कोमल सुगंधयुक्त फूलों की शय्या पर बहू को बैठा दिया और यामिनी बाब से  सुखपूर्वक रात्रियापन के लिए कहकर बाहर निकल द्वार पर साँकल चढ़ा दी।

नीली बाहर थी, महिलाओं को बुला लाने के लिए भेज दिया, आप वहीं बिजली के प्रकाश में, बीच के हॉल के बिछे फर्श पर बैठ गई। सिपाही ने जीने का रास्ता छोड़ दिया। महिलाओं का दल देखते-देखते एकत्र हो गया। इसी समय यामिनी बाबू ने द्वार भड़भड़ाया। पर वह बंद था। वे भीतर से चिल्लाए, "मेरे साथ विश्वासघात किया गया है, खोल दो द्वार।"

"चुप रहो मूर्ख," कमल उत्तेजित होकर बँगला में बोली, "पुलिस के आदमी अभी यहाँ से नहीं गए, तुम स्वयं समझो कि तुम्हारे साथ न्याय हुआ है या अन्याय।" यामिनी बाबू चुप हो गए। महिलाओं में कोलाहल उठा। सबने 'क्या बात है, क्या बात है' कहकर कमल को घेर लिया। 

कुछ देर तक कमल चुप रही, पर मिस दुबे की अवस्था का विचार कर सबसे कह देना ही उचित समझा। यद्यपि उसने देर तक सांगोपांग यह प्रसंग महिलाओं को सुनाकर कहा, फिर भी यहाँ संक्षेप में उसकी समाप्ति की जाएगी, तो किसी के लिए समझने की कसर कदापि न रहेगी। कमल ने कहा, "डॉक्टर यामिनी को जैसी विलायत की हवा लगी, तदनुकूल अपनी जोड़ी की तलाश करने लगे। मिस दुबे साथ पढ़ती है। बी.ए. की छात्रा है। कोई गँवार-गावदी लड़की नहीं। लखनऊ आकर एक दिन डॉक्टर यामिनी ने इन्हें कहीं देख लिया, फिर अनेक दिन इनके यहाँ इनके पिता के पास गए, एक साथ उठे-बैठे।

इनके पिता प्रो. दुबे किसी कारण से क्रिश्चियन हो गए थे। डॉक्टर यामिनी पहले उनसे अपने धर्म-परिवर्तन के संबंध में सलाह लेते रहे, उनके साथ चर्च भी जाया करते थे। प्रो. दुबे को मालूम हो गया कि डॉक्टर यामिनी उनकी कन्या को प्यार करते हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने उदारता दिखलाई, उनसे कहा कि आप चाहें सिविल मैरेज कर सकते हैं! डॉ. यामिनी अविवाहित थे, और चूँकि हर तरह अपना प्यार जता चुके थे-अपना धर्म छोड़ने को तैयार थे; इसलिए दूसरी तरफ से प्यार पाना कुछ

अस्वाभाविक या अनुचित न था। कुमारी दुबे भी इन्हें प्यार करने लगी। क्रिश्चियन-समाज में कुछ अधिक आजादी है ही, दोनों एक साथ आधी रात तक टहलते फिरते, मिलते-जुलते रहे, विवाह से पहले दोनों का चारित्रिक पतन भी हुआ, जिसका

परिणाम सिफलिश-गनोरिया के रूप में यामिनी बाबू में न होकर गर्भ-रूप में मिस दुबे में हुआ। यह गर्भ अभी बहुत छोटा है; पर शंका के कारण बहुत बढ़ा। कुछ दिनों बाद यामिनी बाबू की निरू से विवाह की बातचीत हुई। इधर कुछ अधिक फायदा

था, आर्थिक रूप से, नए प्रेम से भी अधिक फायदा हो सकता है या नहीं, इसका ज्ञान आप लोगों को मुझसे अधिक हो सकता है। खैर, इन्होंने उधर जाना बंद कर दिया। मिस दुबे को घबराहट हुई। उसने मुझे एक चिट्ठी लिखी। मैंने बाबा से पूछा। फिर उनकी सलाह से काम करती रही। प्रो. दुबे को फिर धर्म-परिवर्तन की सलाह दी, क्योंकि अदालत में बदनामी होती, खर्च भी होता। प्रो. दुबे ने वैसा ही किया। अब वही दोनों वर और वधू के रूप से उस कमरे में हैं, जिसके लिए डॉक्टर यामिनी का कहना है कि उनके साथ धोखा किया गया।" 

महिलाएँ प्रसन्न हो गईं। यह बहुत अच्छा हुआ, चारों ओर से संतोष-ध्वनि गूँजने लगी। कमल उत्तेजित थी; पर समय आने पर अपना मनोभाव दब गई, कहा, "आज निरू का भी विवाह यहाँ हुआ है, ऊपर। वह पहले अपने घरवालों की इच्छा से चल रही थी, पर बाद को सब हाल मालूम कर अपनी अनुवर्तिता की। खुद सोच-समझकर योग्य वर चुना। वह लंदन का डी. लिट. है।"

महिलाओं में वर और वधुओं को देखने का मधुर गुंजन फैल चला। कमल ने निरू के कक्ष का द्वार खोला। निरू और कुमार अलग-अलग दो कुर्सियों पर दोनों बैठे थे। एक ओर फूलों की सेज बिछी थी। महिलाओं को देखकर निरू उठकर खड़ी हो गई। कुमार ने बैठे-बैठे प्रणाम किया। महिलाएँ देखकर प्रसन्न हो गईं। फिर मिस दुबे के कमरे में गईं। यामिनी कुर्सी पर बैठे थे। मिस दुबे जिसका नाम सुशीला है, पलँग पर। सुशीला को देखकर महिलाएँ आपस में कहने लगीं-वर का कुछ दिमाग खराब है क्या? सुशीला अप्रसन्न थी, चुपचाप बैठी रही। महिलाएँ चली गईं; अंत में कमल ने अंग्रेजी में कहा, "यामिनी बाबू, इस शुभ मुहूर्त के लिए धन्यवाद!" 

रुक्ष स्वर से यामिनी बाबू ने कहा, "धन्यवाद!"

गाँव में भी खबर फैली। बड़ा सन्नाटा छाया। लोग बहुत डरे। आखिर मुखिया के दरवाजे बैठक हुई। सबने सलाह ली। मुखिया ने कहा, "पागल हो, राजा से कोई बैर करता है! अब वे दिन नहीं हैं। लखनऊ में कितने विलइतिहा हैं, उनके हाथ का पानी बंद है?"

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

5 अगस्त 2022
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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

5 अगस्त 2022
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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

5 अगस्त 2022
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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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