shabd-logo

भाग 13

5 अगस्त 2022

11 बार देखा गया 11

शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स्वच्छता ने हलकेपन कीजगह-जिससे हाथ-पैर जल्द उठते हैं, हृदय में स्फूर्ति आती है, मन प्रसन्न रहता है-दैन्य के चिह्नस्वरूप भूषणों का भार चढ़ रहा हो और यह भार का आधिक्य ही प्रसन्नता का कारण बन रहा हो। उचित आसन पर नीली को  लिए हए निरू बैठी थी। समागत देवियों को सम्मान के साथ दासी बैठा रही थी। निरू शांत भाव से बैठी हुई बैठनेके लिए इंगित कर देती थी। घंटे-भर में जगह भर गई। पान-इलायची आदि सम्मान के विधि-विधान चलते रहे।

उनमें से पुरानी अधिकांश देवियाँ निरू को देख चुकी थीं, पहचानती थीं। निरू भी यह पहचानती थी, पर कुछ के मुख याद आए, कुछेक भूल गए थे। वे अपने बड़े नथ का छोटा लटकन घुमाकर, मुस्कुराकर कहती हुई निरू के संबंध की विशेष बात याद दिला देती थीं, याद आने पर निरू परिचय की प्रसन्नता से स्फीत हो उठती थी, न आने पर सहज कंठ से कह देती थी-मैं भूल गई। उसके समय की लड़कियों में कोई न थी, सब अपनी-अपनी ससुराल में थीं, जिन्हें निरू कुछ अच्छी तरह पहचानती थी, सिर्फ रामरानी थी, वह सबसे पहले आई हुई थी और निरू ने बिलकुल पास बैठाला था; रह-रहकर उसके लड़के का गाल खोद देती थी स्नेह की दृष्टि से देखती हुईं। उसी से उसने पहचान की लड़कियों के समाचार मालूम किए। सबकी विशेषता उनके लड़कों से सूचित हुई। भागभरी सबसे आगे ठहरी। उसके तीन लड़के हैं और सब राम की इच्छा से जीते हुए।

जिस तरह यह प्रसंग निरू के लिए मनोरंजक था, उसी तरह निरू के उतनी बड़ी स्त्री रूप में बदल जाने पर भी विवाह न होना स्त्रियों के लिए। निरू उनके चाँदी के गहने देख-देखकर मन-ही-मन हँस रही थी, वे निरू का को ब्याह करने की क्या

आवश्यकता हो सकती है। मन-ही-मन उसकी उम्र का हिसाब भी तरह-तरह का लगा, स्त्रियों को यह महीनों तक के निर्णय करने का विषय मिल गया। साथ-साथ बातचीत भी चल रही थी। पहले निरू के लिए करुण रस का स्रोत बहा। वह जब

गई थी, उसके माँ-बाप साथ थे। इस बार वह अकेली है। उसके भाई जमींदारी सँभाले हैं। भगवान की करनी अकथ है। बस, क्षण में चाहे जो करें। फिर गाँव की बातचीत उठी। गाँव की बातचीत का मुख्य विषय कृष्णकुमार का घर था। औरों पर चल नहीं सकती। क्योंकि प्रायः वे सब मौजूद थीं। निरू का हृदय धड़का जब रामलाल की अम्मा ने लंबी साँस छोड़ी और रामदीन की काकी ने ललाट पीटकर समझा दिया कि सब यहीं का लिखा होता है। बेनी बाजपेई की स्त्री गंभीर होकर बोली, "सपूत ने पचास रुपये का मनीऑर्डर भेजा है।" फिर दोष की भावना से भ्रू कुंजित कर रह गई। गुरुदीन की स्त्री ने कहा, "तुम्हारे बाजपेई तो कहते थे कि..."

"भाई हमारे, उनको बदनाम न करो।" बेनी की स्त्री आँखें फाड़ तरेरकर बोली, "फलाने क्यों कहते हैं, संसार कहता है।" "संसार कहता होगा, गाँव में तो उन्होंने कहा है।" गुरुदीन की स्त्री विश्वास पर प्रमाण कर जोर देकर बेनी की स्त्री की त्योरियों की परवा न करती हुई बोलीं।

"तो तुझी से कहा होगा?" स्वर चढ़ाकर भाव में बँधकर बेनी की वीणा झंकृत हुई, "मुझसे कहे, किसी की मजाल है? -मूंछे न उखाड़ ली जाएँगी?" गुरुदीन की सरस्वती ने अपने काव्य की एक पंक्ति सुनाई।

निरू घबराई। बात क्या है, अभी तक इसी का फैसला नहीं हुआ, और स्त्रियाँ समझदार की तरह बैठी रहीं। उनके लिए ये सब बातें अभी ध्यान देने योग्य थीं ही नहीं।

निरू ने विनयपूर्वक बेनी की स्त्री से पूछा, "क्या बात है?"

"कुछ नहीं, किसुनकुमार लखनऊ में जूता गाँठते हैं, खबर फैली है। यह कहती है मेरे उनके लिए, कि उनकी फैलाई बात है! जिनके यहाँ हम (क्रिया विशेष का उल्लेख कर कहा) पानी नहीं लेते..."

निरू की दृष्टि में प्रलय की संभावना खुल रही थी। घबराकर कहा, "तो इसमें क्या हुआ? यह तो सच है। जूता पालिश तो वे करते हैं। मेरे यहाँ भी आए थे।"

"अब बोल," बेनी की स्त्री ने गुरुदीन की स्त्री को ललकारा। "बोलूँगी तो रोते न बनेगा।"

"भई, ऐसी बातें न करो।" निरू क्षुब्ध हो उठी।

मातादीन की माँ उम्र में सबसे बड़ी थीं। कहा, "दोष किसी का नहीं, अब चुप हो जा। एक गाँव का रहना-आज बैर, कल मेल! जो कुआँ फाँदेगा, वह आप गिरेगा।" "उनकी बात ही अब क्या है, गाँव से जब जाएँ। वे कहते हैं, नीघस हैं, नहीं तो आज

निकल जाते।" ललई की पत्नी बोलीं। "पहले कलकत्ता रहे, फिर कानपुर । जब रुपया चुका तब गाँव आए। अभी डेढ़ बरस भी तो नहीं हुआ।" हजारी की अम्मा बोलीं।।

"गाँव में किसी से पहले भी मेल न रखती थी।" मन्नी की स्त्री ने कहा। "परदेस की ठसक थी," सीतल की श्रीमती बोलीं।

"अब सब धो गई। कानपुर के घर, कहते हैं कि बिक गए, उन्हीं के रुपये से रहती थी किराए के मकान में," गुरुदीन की स्त्री ने धार्मिक स्वर में कहा। "अब यह घर भी बेचें।" बेनी की स्त्री ने सहयोग किया। 

"घर घर है! घर में तो पशु भी नहीं रह सकता।" मातादीन की माँ ने नीति कही।

"रामचंद्र कहीं कहते थे कि गाँव छोड़ देंगे।" मन्नी की स्त्री ने कहा। निरू सुनती रही। इन्हें प्रशमित करना और इनकी जान लेना एक ही मानी रखते हैं, उसने निश्चय किया। चुपचाप बैठी रही। उसके आने के समय रामचंद्र की माँ न थी, वह

समझी। सुरेश ने यद्यपि जाने के लिए कहला भेजा था, फिर भी अब मिलने के लिए जाना  उसे आत्म-सम्मान के खिलाफ मालूम देने लगा। बैठी हुई निश्चय करने लगी, क्या करे। नीली ने लौटकर भाई से हुई सब बातें बता दी थीं। निरू भी  समझ चुकी थी। बड़ी लाज लगने लगी। रामचंद्र की माँ स्वयं मिलने न आएँगी, उसने सोचा कि अगर आना होता तो उसे न बुला भेजतीं, और वह न जाएगी तो कितना बुरा होगा! स्त्रियों के चलने का समय हुआ। शाम हो गई। प्रसन्न मुख निरू उठकर द्वार के पासखड़ी हुई और चलती हुई देवियों को पान देकर नमस्कार करके विदा किया। 

25
रचनाएँ
निरुपमा
0.0
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
1

निरुपमा भाग 1

5 अगस्त 2022
5
0
0

लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

2

भाग 2

5 अगस्त 2022
2
0
0

एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

3

भाग 3

5 अगस्त 2022
1
0
0

कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

4

भाग 4

5 अगस्त 2022
1
0
0

सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

5

भाग 5

5 अगस्त 2022
1
0
0

नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

6

भाग 6

5 अगस्त 2022
0
0
0

सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

7

भाग 7

5 अगस्त 2022
0
0
0

कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

8

भाग 8

5 अगस्त 2022
0
0
0

निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

9

भाग 9

5 अगस्त 2022
0
0
0

नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

10

भाग 10

5 अगस्त 2022
0
0
0

रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

11

भाग 11

5 अगस्त 2022
0
0
0

जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

12

भाग 12

5 अगस्त 2022
0
0
0

भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

13

भाग 13

5 अगस्त 2022
0
0
0

शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

14

भाग 14

5 अगस्त 2022
0
0
0

दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

15

भाग 15

5 अगस्त 2022
0
0
0

कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

16

भाग 16

5 अगस्त 2022
0
0
0

दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

17

भाग 17

5 अगस्त 2022
0
0
0

रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

18

भाग 18

5 अगस्त 2022
0
0
0

रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

19

भाग 19

5 अगस्त 2022
0
0
0

ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

20

भाग 20

5 अगस्त 2022
0
0
0

कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

21

भाग 21

5 अगस्त 2022
0
0
0

"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

22

भाग 22

5 अगस्त 2022
0
0
0

दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

23

भाग 23

5 अगस्त 2022
1
0
0

कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

24

भाग 24

5 अगस्त 2022
1
0
0

नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

25

भाग 25

5 अगस्त 2022
1
0
0

 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

---

किताब पढ़िए