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भाग 16

5 अगस्त 2022

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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ समझ, अपने देवता-समाज की रक्षा के लिए सावधानी से पिला दिया। बिटिया रानी की जिनसे सगाई हो रही है, वे विलायत से लौटे हुए हैं, सुरेश बाबू के साथ बैठकर जेंये हुए, इस तरह अपने साथ इन्हें भी बहा ले गए हैं। युवती ने बड़े ढंग से बिटिया रानी से बातें करते हुए यह मतलब की बात निकाल ली। इनके साथ पान-पानीवाला संबंध रखना ठीक न होगा। ये इस तरह गाँव को भ्रष्ट कर देंगे, सबके साथ बिटिया भी बैठी हैं। गीले आटे का छुआव है। ऐसा जान-बूझकर धर्म लेने के लिए किया गया है कि फिर आगे कहने का मुँह न रहे। बिटिया सिर्फ देखने को उतनी बड़ी हो गई हैं, शऊर बिलकुल नहीं है। युवती दिल्लगी के पद से दिल्लगी करने लगी तो वे अपने ही मुँह ब्याह की बात कह चलीं। भगवान की इच्छा थी, नहीं तो कल किसी का धर्म न रह जाता। 

पति से एकांत सामीप्य प्राप्त कर फिसफिसाते मधुर विश्वस्त स्वर से युवती ने कहा। महावीर सुनकर भौंहें कुटिल कर पदक्षेप से कोने में खड़ी की तेलवाई लाठी लेकर बाहर निकला। युवती ने मुड़कर देखकर कहा, "किसी से लड़ाई न करना, अभी से

कहे देती हूँ।" 

"बैठ चुपचाप," गंभीर स्वर से कहकर धर्म-रक्षा के लिए संदेशवाहक अग्रदूत की तरह महावीर बाहर निकला, और गाँव के मुखिया के द्वार पर पहुँचकर जोर से लाठी का गूला दे मारा और 'मुखिया हो' कहकर ऊँची आवाज लगाई।

मुखिया थे। बाहर निकले। अँधेरे में मुस्कुराकर महावीर से पूछा, "क्या है, इतनी रात कैसे आए?"

महावीर ने संक्षेप में हाल कहा। मुखिया महावीर न थे। पुलिस, महाजन और जमींदार के प्रति उनकी समदृष्टि थी। मन में अपना मतलब गाँठकर महावीर को बढ़ावा देकर गाँव के चार भलेमानसों को बुला लेने के लिए कहा। साथ-साथ इस धर्म की रक्षा के उद्देश्य से आए महावीर को धन्यवाद देना भी न भूले।

जो लोग कड़ाही में थे, उन्हें महावीर जानता था; इसलिए न्यौतेवाले दूसरे लोगों को बुलाने चला, जिनकी दूसरों पर धाक थी। अत्यंत आवश्यक समस्या है, कहकर चार-पाँच अच्छे किसान ब्राह्मण एकत्र कर लिए और मुखिया के यहाँ लिवा लाया।

मुखिया बैठे हुए तम्बाकू थूक रहे थे। द्वार पर दीया भी मँगवा लिया था। अपने विचार के निष्कर्ष पर भी पहुँच चुके थे और भविष्य में प्राप्त उसके फल की कल्पना कर रहे थे कि महावीर आदमियों को लिवाकर पहुँचा। बार-बार कहना पड़ेगा,

इसी विचार से वहाँ विषय की चर्चा नहीं सुनाई। नमस्कार-पलागों करके समागत ब्राह्मण चारपाई पर बैठे। महावीर को मर्म तक देखते हुए जैसे, आए हुए आदमियों के सामने समाचार कहने के लिए मुखिया ने आज्ञा की। महावीर धर्म के रक्षक श्री रामचंद्रजी का स्मरण कर कह

चला और लोगों को शंकित, चकित, त्रस्त, क्षुब्ध, उद्वेलित और धर्म की रक्षा के लिए बद्धपरिकर करते हुए कथा समाप्त की।

"क्या राय है?" मुखिया ने पूछा। "जैसी पंच की राय," बलई सुकुल बोले। "हाँ, भई, पंच परमेसुर बराबर हैं," कालिका मिसिर ने कहा। 

"रामअधार गाँव का साथ छोड़नेवाला नहीं," जोरदार गले से रामअधार पांडे न कहा। देवीदीन दुबे जनेऊ की कसम खाकर बोले, "सब आदमी सलाह कर लेव, फिर देख लेव, देवीदीन आगे ही हैं, नहीं तो यह छानबे नहीं, ताँत ।"

महावीर से न रहा गया। किसी को असलियत पर न आते हुए देखकर गर्म पड़कर बोला, "भाई, सुनो, धर्म पहले है। भगवान धर्म के लिए वनवास को गए और रावण को मारा।  हमारे सामने तो बस पूरी ही कचौड़ी है।"

"अरे तो कौन पहुँचा पेले देता है?" बलई बोले। "यह सिड़ी है।" कालिका मिसिर ने कहा, "जैसे यही भगवान को जानता है। हम स्नान कर रामायण पढ़े बिना पानी नहीं पीते। सलाह कर लेव, जैसी ताल पड़े, वैसा किया

जाए-क्यों मुखिया?" "हाँ, भाई," ढीले स्वर मुखिया बोले, "अब हमारा तो समझा-बूझा नहीं कि कहाँ विवाह हो रहा है। हम तो जानते हैं कि मालिक हैं, बुलाया है, अपनी कड़ाही है,

कुछ दोख नहीं!"  रामअधार जीभ से होंठ चाटकर बोले, "मुखिया, समझदारी की बात तो यही है,

फड़फड़ाना ठीक नहीं। सब काम सलाह से होना चाहिए।"

"तेरे तो लार टपकती है पूरी देखकर।" महावीर से न रहा गया।

देवीदीन ने कहा, "सब खाएँगे तो तू उपास न करेगा। पाव-भर औरों से ज्यादा खाएगा।

बहुत बलक मत। पंचों की राय से काम होगा। मुखिया पुराने हैं, इनको आगे-आगे चलने दे।"  "भाई, सुनो," मुखिया बोले, "आँख और कान से चार अंगुल का फरक है। बस, समझ लेव।"

समझ में किसी के नहीं आया, पर सब समझदार की तरह सिर हिलाने लगे।  "तो क्या कहते हो मुखिया?" बलई ने पूछा।

"भाई, सुनो," मुखिया सिर झुकाए और आँखें उठाए हुए बोले, "हम तो कह चुके! पाप देखे का है, सुने का नहीं।"

सहमत और असहमत दोनों भाववाले एकाग्र होकर सुनने लगे। कुछ देर तक जवाब न मिलने पर मुखिया ने फिर कहा, "जगन्नाथजी में सातों जात के लोग एक साथ खाते हैं। घर लौटकर अपना-अपना धर्म-कर्म करते हैं।"

अभी लोगों की समझ में विशेष बात नहीं आई। सिर्फ रामअधार को कुछ आशा बँधी और महावीर जगा।

फिर भी किसी को कुछ कहते न देखकर मुखिया बोले, "जब कहो कि रेल में मुसलमान, किरस्तान सब रहते हैं, पानी न पिएँगे; धर्म चला जाएगा, तो इस तरह धर्म नहीं जाता। कहा है, 'आपातकाले मर्जादा नास्ति' । हमारे गाँव के मालिक हैं। कहा है- 'राजा जोगी अगिन जल इनकी उलटी रीति।' न जाने कब क्या कर बैठें। इनसे विग्रह ठीक नहीं! फिर हमारे अपने नहीं। और हमारा सरबस इनके हाथ में है। काछी, कुर्मी, तमोली, तेली, बरमभोज करते हैं, सब लोग जाते हो। खाते हो और दच्छिना ले आते हो। तब धर्म कहाँ बह जाता है? हमारा-इनका जितना व्यवहार है, उतना न तोड़ना चाहिए,

क्योंकि हमारा-इनका सदा संबंध-व्यवहार रहेगा। ये जमींदार हैं, हम रियाया। फिर जब कड़ाही हमारी है तब क्या बात है, चाहे जिनके घर ब्याह करते हों ये।" "ब्याह हो जाएगा तो भी खावेंगे सब लोग?" अकेले विरोध की पूरी शक्ति रखने की

दुर्बलता को अस्वीकृत करते हुए महावीर ने पूछा। "यह तो मूसर है पक्का, न आज समझे, न कल।" सब लोग उठकर मुखिया से पालगी करके अपने-अपने घर चले। महावीर परास्त होने पर भी मन से पराजय स्वीकार न करता हुआ कंधे पर लट्ठ रखे सोचता हुआ चला। 

सबके चले जाने पर मुखिया उठकर डेरे चले-सुरेश बाबू से मिलने, यह सोचकर कि आज रात-भर जगमग रहेगी।

महावीर घर आकर पत्नी से बोला, "सब-के-सब चमार हैं री, जाएँगे। धरम-धरम करते ही  हैं, जी से डरते हैं कि खेत छूट जाएँगे।"

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

5 अगस्त 2022
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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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