नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से, ललई पाँच ही जोड़ते हैं। सब हल जोतते और श्रद्धापूर्वक धर्म की रक्षा करते हैं। बेनी बाजपेई कानपुर के मिठाईवाले हैं; पर धर्म की रक्षा करते हुए बीसों बिस्वे बनाए हुए हैं, नीम की जड़ पर बैठे, बाकी इधर-उधर। पानी बरस चुका है, ये खेत जोतकर विश्राम करते हुए सामाजिक बातचीत कर रहे हैं, पतन से समाज की रक्षा के विचार से। सभी समाज के कर्णधार हैं। सामाजिक मर्यादा में बड़े, बेनी, सभापति का आसन ग्रहण किए हुए हैं। "बाजपेई जी," व्यंग्य में ललई बोले, "किसुन तो आप लोगों में है?"
"हम लोगों में?" बाजपेई नाराज होकर बोले, "हमारा बीस बिस्वे में खानदान-हेत व्यवस्था, किसुन कनवजिया है!""लोग तो कहते हैं?" गुरुदीन स्वर ऊँचा कर बोले। मुँह बिगाड़कर बेनी ने कहा, "ऐसे बहुत हैं! सब बने हुए हैं।" "अब कितने रह गए, बाजपेई जी?" सीतल ने हँसकर पूछा। "अब भी उतने ही हैं।" मन्नी ने उसी तरह उत्तर दिया।
"अब क्या हैं! जैसे बने थे, वैसे ही धो गए।" बेनी गंभीर होकर बोले, "अब तो मकुआ पासी उनसे अच्छा है।" विलाइत से लौटकर घर नहीं आए।' गुरुदीन इशारे की दृष्टि से देखकर बोले। "घरवालों को बचाए रहना चाहते हैं।" धीमे गंभीर स्वर से सीतल ने कहा। "लेकिन क्या बचे रहे घरवाले?" पूरी जानकारी से जैसे मन्नी ने कहा।
बेनी हँसे, मन्नी को देखकर अपनी उच्चता में गंभीर हो गए। फिर कहा, "किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए, पापी अपने ही पापों बहेगा।" "अरे बाजपेईजी," मन्नी पंजों के बल उठकर बोले, "कानपुर में अपनी अम्मा को बुलाकर मिले और घर न आए, तो क्या गाँववाले इतने बेवकूफ हैं कि नहीं समझे कि वहाँ अम्मा ने सपूत को चौके में बुलाकर खिलाया होगा?"
मन्नी को बाजी मारते देखकर गुरुदीन त्योरियाँ चढ़ाकर बोले, "उसी के बाद रामचंदा कुएँ पर मिला, हमने कहा, यह तेवारियों का कुआँ है, जहाँ बाप ने खुदवाया हो, वहाँ जाव भरो। फिर क्या भरने पाया?" सीतल बोले, "लेकिन घरों में आना-जाना हमने बंद कराया है। नहीं तो तुम्हारे साथी अब तक कितने बेधरम हो चुके होते।"
शिष्टता से गंभीर होकर बेनी ने कहा, "कहना न चाहिए, लेकिन वही कहावत है कि कहता हूँ तो माँ मारी जाती है, नहीं कहता तो बाप कुत्ता खाता है।" "कही डालिए अब, बाजपेईजी।" कई कंठों ने एक साथ आग्रह किया।
"क्या कहें!" बेनी फिर गंभीर हो गए। "तो अब कुछ मिलने-मिलाने की बात थोड़े ही रह गई है कि कहने से कलंक दबा रह
जाएगा?" ललई ने गले में जोर देकर कहा। "भाई, हमने तो देखा नहीं, लेकिन रामनाथ सुकुल की कही कहते हैं कि किसुन अब लखनऊ में चमार का काम कर रहे हैं- जूता पालिश करते मारे घृणा के सब लोग गड़ गए।
यथार्थ धार्मिक स्वर से बोले, "पाप है और कुछ नहीं, मति भ्रष्ट हो गई!" कुछ देर तक लोगों में सन्नाटा रहा। कामता दुबे दूसरे हार से घर जाते हए, लोगों को देखकर मुड़े। पास आकर अपने आने की सूचना दी, "किसकी नानी मरी, हो?"
भिन्न भाव की तरंग फैली। ललई कामता के काका लगते थे, कहा, "तेरी।" "मेरी तो तेरे आने से पहले मर चुकी थी," बाजपेई को देखकर, "पालागों बाजपेईजी।" खुश होकर, "आओ, दुबे; किसुन की बातें हो रही हैं।" "अब क्या, अब तो किसुन के पौ बारह हैं। राह में चिट्ठीरसा मिला था। पचास का मनीऑर्डर भेजा है।" राम-राम करके कामता भी एक बगल बैठ गए।
लोगों में आश्चर्य का भाव फैल गया। मन्नी बोले, "कलजुग है। बड़ा कड़ा मुकाम। राम का नाम लो, खाने को न मिलेगा।
दूर से ठेंगा दिखाओ, सब मजे में देखेंगे।" गुरुदीन गर्म पड़कर बोले, "धिक्कार है उसको, जो धर्म छोड़कर जिया। गाँव में
रहना मोहाल न कर दिया तो छानबे नहीं।" जनेऊ से अँगूठा निकालकर, "बंजर अमले थे; चार बिगहा में छः पेड़, बेदखल करा दिया। मालिक बोले, स्याबास गुरुदीन, हम खेत भी इनके बेदखल करेंगे, आठ बिगहा लिखाए हैं, बैल एक नहीं-बटाई देते हैं। हमने गवाही दी, तीन पुश्त के खेत छूट गए। अब घर, घर है।" "कानपुर में दो मकान हैं, वे रेहन हैं; कलकत्ते में घाटा आया, सारा खेल खतम हो गया। अफसोस, अफसोस गिरिजाशंकर कूच कर गए। लड़के का मुँह भी न देख पाए।" |
मन्नी और कहने को दम भरकर रह ही गए। ललई ने रोक लिया, "कहते हैं, महाजन की एक रजिस्टरी आई थी, लखनऊ भेज दी गई।" "अब कुछ चुकाया थोड़े चुकने का है रुपया, घर-भर तौल जाएँगे।" कामता रुपये के
महत्त्व में डूबे हुए बोले। गुरुदीन हँसकर बोले, "नाक तक आ गए हैं। लेकिन वाह री औरत; मिजाज वैसा ही है।
अपने हार से पानी लाती है। और रमचंदा वहीं नहाने भी जाता है।" "अब काहे का हार!" ललई बोले, "जब तक मालिक खेत नहीं उठाते तब तक भर ले कुएँ से पानी। फिर?"
"फिर बेटा जूता गाँठे, अम्मा खाल सेहलावे।" बेनीप्रसाद भाववाली दृष्टि से देखते हुए बोले, "क्यों गुरुदीन भाई?"
"यह तो होना ही है! मालिक ने कहा था कि खेत तुमको देंगे, अबकी लिखवा लेना पट्टा। माँगते बहुत हैं।" गुरुदीन ने सरल भाव से कहा। "अरे भाई, बंगाली और पुलिस, ये बाप के नहीं होते।" कामता ने कहा, "जाड़े-भर हम कलकत्ते में बनियाइन बेचते हैं, हमको अच्छी तरह मालूम है। उधार दे दो तो वसूल नहीं होने का। तगादे जाव तो कानून बताते हैं।
"अब धर्म नहीं रहा।" गुरुदीन ने नाक सिकोड़कर जैसे किसी पर घृणा करते हुए कहा। ललई भाव समझकर जैसे मुस्कुराए। मन्नी ने आँख का इशारा किया। बाजपेई ने भी गोलवा मुस्की छोड़ी। कामता बोले, "मालिक सब ऐसे ही होते हैं, पहले कौल करते हैं, फिर बदल जाते हैं।"
लोगों ने देखा-स्टेशन से रथ और रब्बा आ रहा है। ललई ने कहा, "हाँ, मालिक के आने की बात थी। अब के असली मालकिन, बिटिया आ रही है।" सब उठकर धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़े।