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भाग 9

5 अगस्त 2022

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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से, ललई पाँच ही जोड़ते हैं। सब हल जोतते और श्रद्धापूर्वक धर्म की रक्षा करते हैं। बेनी बाजपेई कानपुर के मिठाईवाले हैं; पर धर्म की रक्षा करते हुए बीसों बिस्वे बनाए हुए हैं, नीम की जड़ पर बैठे, बाकी इधर-उधर। पानी बरस  चुका है, ये खेत जोतकर विश्राम करते हुए सामाजिक बातचीत कर रहे हैं, पतन से समाज की रक्षा के विचार से। सभी समाज के कर्णधार हैं। सामाजिक मर्यादा में बड़े, बेनी, सभापति का आसन ग्रहण किए हुए हैं। "बाजपेई जी," व्यंग्य में ललई बोले, "किसुन तो आप लोगों में है?"                     
"हम लोगों में?" बाजपेई नाराज होकर बोले, "हमारा बीस बिस्वे में खानदान-हेत  व्यवस्था, किसुन कनवजिया है!""लोग तो कहते हैं?" गुरुदीन स्वर ऊँचा कर बोले। मुँह बिगाड़कर बेनी ने कहा, "ऐसे बहुत हैं! सब बने हुए हैं।" "अब कितने रह गए, बाजपेई जी?" सीतल ने हँसकर पूछा। "अब भी उतने ही हैं।" मन्नी ने उसी तरह उत्तर दिया।

"अब क्या हैं! जैसे बने थे, वैसे ही धो गए।" बेनी गंभीर होकर बोले, "अब तो मकुआ पासी उनसे अच्छा है।" विलाइत से लौटकर घर नहीं आए।' गुरुदीन इशारे की दृष्टि से देखकर बोले। "घरवालों को बचाए रहना चाहते हैं।" धीमे गंभीर स्वर से सीतल ने कहा। "लेकिन क्या बचे रहे घरवाले?" पूरी जानकारी से जैसे मन्नी ने कहा।

बेनी हँसे, मन्नी को देखकर अपनी उच्चता में गंभीर हो गए। फिर कहा, "किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए, पापी अपने ही पापों बहेगा।" "अरे बाजपेईजी," मन्नी पंजों के बल उठकर बोले, "कानपुर में अपनी अम्मा को  बुलाकर मिले और घर न आए, तो क्या गाँववाले इतने बेवकूफ हैं कि नहीं समझे कि वहाँ अम्मा ने सपूत को चौके में बुलाकर खिलाया होगा?" 

मन्नी को बाजी मारते देखकर गुरुदीन त्योरियाँ चढ़ाकर बोले, "उसी के बाद रामचंदा कुएँ पर मिला, हमने कहा, यह तेवारियों का कुआँ है, जहाँ बाप ने खुदवाया हो, वहाँ जाव भरो। फिर क्या भरने पाया?" सीतल बोले, "लेकिन घरों में आना-जाना हमने बंद कराया है। नहीं तो तुम्हारे साथी अब तक कितने बेधरम हो चुके होते।"

शिष्टता से गंभीर होकर बेनी ने कहा, "कहना न चाहिए, लेकिन वही कहावत है कि कहता हूँ तो माँ मारी जाती है, नहीं कहता तो बाप कुत्ता खाता है।" "कही डालिए अब, बाजपेईजी।" कई कंठों ने एक साथ आग्रह किया।

"क्या कहें!" बेनी फिर गंभीर हो गए। "तो अब कुछ मिलने-मिलाने की बात थोड़े ही रह गई है कि कहने से कलंक दबा रह

जाएगा?" ललई ने गले में जोर देकर कहा। "भाई, हमने तो देखा नहीं, लेकिन रामनाथ सुकुल की कही कहते हैं कि किसुन अब लखनऊ में चमार का काम कर रहे हैं- जूता पालिश करते मारे घृणा के सब लोग गड़ गए।

यथार्थ धार्मिक स्वर से बोले, "पाप है और कुछ नहीं, मति भ्रष्ट हो गई!" कुछ देर तक लोगों में सन्नाटा रहा। कामता दुबे दूसरे हार से घर जाते हए, लोगों को देखकर मुड़े। पास आकर अपने आने की सूचना दी, "किसकी नानी मरी, हो?"

भिन्न भाव की तरंग फैली। ललई कामता के काका लगते थे, कहा, "तेरी।" "मेरी तो तेरे आने से पहले मर चुकी थी," बाजपेई को देखकर, "पालागों बाजपेईजी।" खुश होकर, "आओ, दुबे; किसुन की बातें हो रही हैं।" "अब क्या, अब तो किसुन के पौ बारह हैं। राह में चिट्ठीरसा मिला था। पचास का मनीऑर्डर भेजा है।" राम-राम करके कामता भी एक बगल बैठ गए।

लोगों में आश्चर्य का भाव फैल गया। मन्नी बोले, "कलजुग है। बड़ा कड़ा मुकाम। राम का नाम लो, खाने को न मिलेगा।

दूर से ठेंगा दिखाओ, सब मजे में देखेंगे।" गुरुदीन गर्म पड़कर बोले, "धिक्कार है उसको, जो धर्म छोड़कर जिया। गाँव में

रहना मोहाल न कर दिया तो छानबे नहीं।" जनेऊ से अँगूठा निकालकर, "बंजर अमले थे; चार बिगहा में छः पेड़, बेदखल करा दिया। मालिक बोले, स्याबास गुरुदीन, हम खेत भी इनके बेदखल करेंगे, आठ बिगहा लिखाए हैं, बैल एक नहीं-बटाई देते हैं। हमने गवाही दी, तीन पुश्त के खेत छूट गए। अब घर, घर है।" "कानपुर में दो मकान हैं, वे रेहन हैं; कलकत्ते में घाटा आया, सारा खेल खतम हो गया। अफसोस, अफसोस गिरिजाशंकर कूच कर गए। लड़के का मुँह भी न देख पाए।" |

मन्नी और कहने को दम भरकर रह ही गए। ललई ने रोक लिया, "कहते हैं, महाजन की एक रजिस्टरी आई थी, लखनऊ भेज दी गई।" "अब कुछ चुकाया थोड़े चुकने का है रुपया, घर-भर तौल जाएँगे।" कामता रुपये के

महत्त्व में डूबे हुए बोले। गुरुदीन हँसकर बोले, "नाक तक आ गए हैं। लेकिन वाह री औरत; मिजाज वैसा ही है।

अपने हार से पानी लाती है। और रमचंदा वहीं नहाने भी जाता है।" "अब काहे का हार!" ललई बोले, "जब तक मालिक खेत नहीं उठाते तब तक भर ले कुएँ से पानी। फिर?"

"फिर बेटा जूता गाँठे, अम्मा खाल सेहलावे।" बेनीप्रसाद भाववाली दृष्टि से देखते हुए बोले, "क्यों गुरुदीन भाई?"

"यह तो होना ही है! मालिक ने कहा था कि खेत तुमको देंगे, अबकी लिखवा लेना पट्टा। माँगते बहुत हैं।" गुरुदीन ने सरल भाव से कहा। "अरे भाई, बंगाली और पुलिस, ये बाप के नहीं होते।" कामता ने कहा, "जाड़े-भर हम कलकत्ते में बनियाइन बेचते हैं, हमको अच्छी तरह मालूम है। उधार दे दो तो वसूल नहीं होने का। तगादे जाव तो कानून बताते हैं।

"अब धर्म नहीं रहा।" गुरुदीन ने नाक सिकोड़कर जैसे किसी पर घृणा करते हुए कहा। ललई भाव समझकर जैसे मुस्कुराए। मन्नी ने आँख का इशारा किया। बाजपेई ने भी गोलवा मुस्की छोड़ी।  कामता बोले, "मालिक सब ऐसे ही होते हैं, पहले कौल करते हैं, फिर बदल जाते हैं।" 

लोगों ने देखा-स्टेशन से रथ और रब्बा आ रहा है। ललई ने कहा, "हाँ, मालिक के आने की बात थी। अब के असली मालकिन, बिटिया आ रही है।" सब उठकर धीरे-धीरे उसी तरफ बढ़े।

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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