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भाग 17

5 अगस्त 2022

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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और तदनुकूल चलने की शिक्षा देती है। निरू ने सोचा, रीतियों की जो रंगीन साड़ियाँ समय-समय पर शोभा-वृद्धि के लिए वह पहनती हैं, वे आत्मिक सौंदर्य पर पर्दा डाल देती हैं,  यहाँ तक कि देह का भी पूरा सौष्ठव उनके कारण स्पष्ट नहीं होता, पुनः चिक के

भीतर की महिला की तरह यह दूसरे के मुख की रूप-रेखा भी साफ नहीं देख पातीं। सोचा, जिन सामाजिक रीतियों के कारण कुमार जैसे शिक्षित मनुष्य को पीड़ा पहुँचती है, उनका समर्थन करके वस्तुतः ज्ञान की ओर बढ़ने का उसने विरोध किया है, यह रीति के अनुसार धर्म नहीं; जिसे कहीं भी सहारा नहीं मिला, वह समझदार के सहारे की आशा करता है; अगर वहाँ से भी निराश हुआ, तो चाहे जितने भी पुष्ट और अनुकूल तत्त्वों पर वह समझदार अवलंबित हो, एकाएक प्रबल भूकम्प से गिरे सुदृढ़ ऊँचे सौंधों की तरह वे तत्त्व नष्ट-भ्रष्ट हो अपनी आदिम सत्ता में पर्यवसित होते रहते हैं; वह जमींदार है, उसका पहला कर्त्तव्य पीड़ित की रक्षा करना है, फिर कुमार देश और काल के अनुसार गुण भी धारण करता है। जो देश और काल की पीड़ा के मिटानेवाले हैं, ऐसे मनुष्य ने मनुष्यता के मार्ग पर क्या सोचा होगा उसके लिए?

निरू क्षुब्ध हो उठी। कल्पना में देखने लगी, निस्सहाय एक शिक्षित की दृष्टि गाँव की दृष्टि-दृष्टि से फिर रही है, बड़े स्नेह से उनसे सहयोग चाहती है, उन्हें क्षुद्र सीमा से बँधी रहने का ज्ञान देकर वृहत्तर की तरफ ले चलने के लिए, अपने बड़प्पन को भूलकर उन्हें अपने में मिलाने के लिए, फिर भी चारों ओर से दृष्टियों द्वारा जहर उस पर क्षिप्त होता हुआ; शिक्षित चुपचाप सहन करता हुआ; मन-ही-मन उनके प्रसार की कामना करता हुआ; उन्हीं की अवज्ञा के फलस्वरूप हमेशा के लिए अपनी प्रिय पितृभूमि से नतमस्तक हो चलता हुआ। देखा, वह दृष्टि सहानुभूति की आशा से निरू पर भी स्थित हुई थी; उसे समझदार समझा था, पर वह हलकी तुष्ट करनेवाली दृष्टि उसे भी भार मालूम दी-उसने भी उसका तिरस्कार किया, वह उस

पर से भी उसी धैर्य के साथ उठ गई। देखा, उन आँखों में घृणा नहीं-केवल एक समझ है। वह दृष्टि की समझ उसके समस्त पर्दे पार कर, जहाँ वह अचल रीतियों की गोद में बैठी हुई उन्हीं की तरह दुबल हो रही है, वहाँ तक पहँचकर, उसे देख चुकी है। बड़ी ग्लानि हुई। वह इतनी दुर्बल है! इतनी सहानुभूति करते ही जैसे वही दृष्टि निरू को प्राप्त हो गई। उसी दृष्टि से उसका तादात्म्य हो गया। वह जीवन के भीतर से क्षिप्रगति से उठने लगी और क्षणमात्र में वहाँ के समस्त के जीवन के ऊपर हो गई। उसने स्पष्ट अनुभव किया, वह वहाँ के सभी लोगों से ऊपर, बहुत ऊपर है। वहाँ  के समस्त मनुष्य एक अंधकार में पड़े हैं। एक बार देखकर फिर न देख सकी। वहाँ न रह सकी। उस विकृति के प्रति उसे हार्दिक घृणा हुई। धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर चली और उसी दृष्टि को लिए हुए, उसी उच्चता के चरण-क्षेप से। वहाँ का जो कुछ भी उसे स्पर्श करने के लिए आता है; यह सब जैसे कलंकित हो, गिरा देनेवाला। वहाँ की आकृति, स्वर, सब जैसे प्रतिक्षण, प्रति इंगित से अपने पतित होने की सूचना दे रहे हों। इन्हीं से वह सहयोग किए हुए है और यह कौन-सी सत्ता, कौन-सी चीज है, जिसने स्पर्श मात्र से मानव और अमानव, स्वर्ग और पृथ्वी का बोध करा दिया? 

निरू उसी तरह भावनयना अपने पलँग पर बैठ गई। एक छोटी मेज पर दीपक जल रहा है। निरू उसी ऊर्ध्व दृष्टि से देखने लगी, जो जल-सरोवर के किनारों से बँधा हुआ सरोवर का जल कहलाता है-न बहता हुआ। वह मुक्त मेघ से मुक्त होकर आया है, और तब वाष्पाकार होता हुआ सरोवर के किनारों को छोड़कर ऊपर उठता-मुक्त होता है। सोचा, उसी जल की कुछ बूंदें नदी में डाल दी जाएँ तो वे नदी के जल की व्याख्या प्राप्त करती हैं, फिर समुद्र से मिलकर समुद्र के जल की। इस तरह, जल की व्याख्या विशेष भले दी जाए, है वह जल सूक्ष्म रूप में एक ही प्रकार, स्थूल रूप में कूप, सर, नदी, समुद्र का बनता हुआ-भिन्न रूप, गुण और व्याख्या प्राप्त करनेवाला। निरू को हृदय का बल प्राप्त हुआ। वह कुमार को चाहती है, उसने दृढ़ कुमारी की तरह सोचा, कुमार ने भी उसे देखा है, वह भी प्यार करता है या नहीं, वह नहीं जानती, पर दृष्टि से पहले ही दर्शन में जो कुछ कुमार से उसे मिला है, उसके अतिरिक्त प्यार की दूसरी व्याख्या वह मानने के लिए तैयार नहीं। अगर होगी भी तो भी वह उस पहली अनुभूति की तरफ होगी-उसी को पाने की इच्छा रखेगी। संसार में भी वह वस्तु, हृदय में वैसी मधुरता भर देनेवाली, उसे नहीं मिली। यामिनी उस तत्त्व के मुकाबले एक जड़ विशेष है। वही विद्वान उसके मकान में जूता पालिश करने के लिए गया था। यह कितना बड़ा आदर्श है! ब्राह्मणत्व का कहीं नाममात्र के लिए अहंकार नहीं। यूरोप की शिक्षा का ज्वलंत उदाहरण। कहाँ विश्वविद्यालय के सामान्य पद की प्रतियोगिता, कहाँ सामान्य जूता पालिश करना!-एक ही व्यक्ति इन दोनों कार्यों की समता रखता हुआ। कहाँ यह और कहाँ यामिनी, आत्मसम्मानलोलुप-मनुष्य का रूपमात्र रखनेवाला। 'कुमार अविवाहित है, मैं कुमार को चाहती हूँ; भले वह बंगाली नहीं; पर मनुष्य है; कुछ हो या न हो, मैं चाहती हूँ, पहली बात यह है।' सोचती हुई निरू कुछ तनकर बैठी, 'मेरे हैं कौन! मैं लज्जा करूँ भी क्यों? विवाह मन का है, मेरा मन जिसे नहीं चाहता, मैं क्यों उससे विवाह करूँ?'

साथ ही निरू को गाली देनेवाली बात याद आई; सोचा, 'वह गाकर चिढ़ानेवाला कुमार ही होगा!' 'कुमार' शब्द के अस्फुट उच्चारण में वह आत्म-संप्रदान कर रही थी, 'कितना चालाक है! मैं जब गई तब मौन। माँ की जब ऐसी बँगला है, तब उसकी क्यों न वैसी होगी! मैं अगर मिलूँ भी तो क्या बुरा है? वे मुझे लड़की समझती हैं, इसीलिए बुलाया भी। मैं नहीं जा सकती थी। कमजोरी यह। ठीक नहीं। लज्जा अनुचित थी। पहले तो पति को बुलाते भी किसी को लज्जा नहीं लगी-न रुक्मिणी को लगी, न संयोगिता को। वह मेरी कमजोरी थी। दादा दादा हैं, बस। मैं उनका अहित तो चाहती नहीं, फिर उनके सामने मेरी आँखें क्यों झुकें? अपने लिए मैं जैसा उचित समझती हूँ, क्यों नहीं कर सकती? मुझे उनसे मिलना चाहिए। अभी वे गई न होंगी। अगर मैं बुलाऊँ तो ठीक नहीं, क्योंकि पहले वे बुला चुकी हैं; जमींदारी का अभिमान सूचित होगा, फिर हम लोग गुनहगार हैं, अत्याचार इधर से हुआ है, उन्होंने सहन किया है।

निरू ने दासी को बुलाया। आने पर नीली को बुला लाने के लिए कहा। निरू की इच्छा चलते-चलते रामचंद्र की माँ से मिलने की हुई।  रामचंद के आने के बाद, यह मालूम कर कि कुमार बाबू आए हुए हैं, नीली रामचंद्र के जाने से पहले उसके घर पहुँची और अब तक वहाँ पुरानी पड़ गई। जितनी बातें पेट में थीं और कहने लायक उसने समझीं, सब कह दी, और जानने लायक जो उसे मालूम दीं, सब पूछ लीं। कुमार से नीली का ऐसा अकृत्रिम व्यवहार देखकर सावित्री देवी को दुःख के समय भी हँसी आ गई। पुत्र के कार्य-वैचित्र्य से उन्हें प्रसन्नता हुई।

नीली से उन्होंने भी बहुत-सी बातें कीं और भोजन कराया। सावित्री देवी ने नीली से कहा, "तुम्हारी दीदी हमें गरीब जानकर हमारे यहाँ नहीं आई-क्यों?"

नीली मुस्कुराकर रह गई। सावित्री देवी उसे उभारने के लिए फिर बोली, "तुम्हीं ने मना कर दिया है, लोग कहते थे।"

नीली ने मार्जित गले से प्रतिवाद कर दिया, "मैंने तो उन्हें और चलने के लिए कहा था, यह भी कहा था कि दादा ने तो जाने के लिए कह भी दिया है; पर दीदी फिर न जाने क्यों नहीं आई!" कुमार मुस्कुराया। सावित्री देवी इतने से दूर तक समझ गईं। पर संदेह न रहे, इस विचार से कहा, "तुम्हारे दादा कौन बड़े ज्योतिषी हैं! जब तुमने बताया तब मालूम हुआ कि तुम्हारी दीदी वहाँ जा रही है।" "मैंने पहले कब कहा? दादा ने पूछा तब कहा।" नीली निश्चिंत हो गई।

देवी सावित्री का अनुमान पूरा उतरा। इस तरह नीली दरबार जमाए हुए थी। इसी समय निरू की दासी गई और 'बुलाती है' कहकर चुपचाप साथ लेकर बाहर चली आई। नीली इस बार भी दासी से पहले, हाँफती हुई , बहन के पास पहुँची और पूछा, "दीदी,

तुमने बुलाया है?" "हाँ, तू गई कहाँ थी?"

"कुमार बाबू के यहाँ।" पलँग से बँधा मसहरी बाँधनेवाला लट्ठा पकड़े, नाचती हुई जैसे प्रसन्नता से नीली ने कहा।

"लड्डू बँट रहे थे न कुमार बाबू के यहाँ?' स्नेह के स्वर से निरू ने कहा।

नीली विषम दृष्टि से देखती रही।

हँसकर निरू ने पूछा, "क्या बातें हुईं कुमार बाबू से?"

नीली फिर भी कुछ न बोली।

निरू ने कहा, "मैंने तुझे बुलाया था भेजने के लिए कुमार बाबू के यहाँ; पर तू

हो आई, अब क्या जाएगी!"

"जाऊँगी क्यों नहीं?" सीधी होकर नीली ने कहा।

"तो पहले बता कि वहाँ क्या बातें हुईं?"

"कुमार बाबू ने कहा, हमारे गाँव के जमींदार की बहन आ गई।"

"फिर?"

"फिर कुमार बाबू की माँ ने कहा, 'गाँव-भर को खिला रही हैं, हमें पूछा भी नहीं।

फिर मलिकवा की माँ गई और चलने के लिए कहा। कुमार बाबू उसे साथ ले जाने को राजी

हो गए। फिर मैंने कुमार बाबू से उनका पता पूछा।'

निरू मन-ही-मन खिल गई। कहा, "वहाँ भी अड्डा जमाने का विचार है-क्यों? क्या

कहा?"

"57 नम्बर, लाटूश रोड?"

"फिर?"

"फिर कुमार बाबू की माँ ने कहा कि इसने मना कर दिया है, इसलिए इसकी बहन नहीं

आई। मैंने कहा, 'नहीं, दीदी तो आ रही थी।"

"दीदी तो आ रही थी!-नानसेन्स।"

"नहीं, मैंने कहा, दादा से बातें हुई थीं, दादा ने बाद को जाने के लिए कहा भी

था; पर...फिर कुमार बाबू की माँ बोलीं, 'फिर तुम्हारी दीदी नहीं आईं-क्यों?"

निरुपमा लज्जा से वहीं गड़ गई। चलने का विचार जाता रहा। नीली का कान पकड़ा; पर

धीरे से खींचकर छोड़ दिया। मन में सोचा, 'इसने न जाने और क्या-क्या कहा हो!

फिर पूछा, "फिर क्या हुआ?"

"फिर मुझे खाना खिलाया। कुमार बाबू यहाँ खाना नहीं खाएँगे। यहाँ का पानी पीना

पड़ेगा, इसलिए। स्टेशन पर खाएँगे।"

निरुपमा गंभीर हो गई।

दासी खाने के लिए बुलाने आई।

निरू ने कहा, "नीली को ले जा, भोजन महाराज से यहीं रख जाने के लिए कह दे। कुछ

देर बाद खाऊँगी।"

निरू की इच्छा खाने की न थी। पर नीली के सामने न कह सकी।

नीली चली गई। निरू सोचती रही।

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

5 अगस्त 2022
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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

5 अगस्त 2022
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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

5 अगस्त 2022
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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

5 अगस्त 2022
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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

5 अगस्त 2022
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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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