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भाग 5

5 अगस्त 2022

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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुमार गया था और उसके उत्तरोत्तर बढ़ते परिचय से लोगों में आश्चर्य और श्रद्धा बढ़ रही थी, उस समय बिना व्यक्तित्व और बिना विशेषता की समझी गई नीली भी एक बगल खड़ी हुई सबकुछ देख-सुन रही थी। उसे अपने प्रति होनेवाली अवज्ञा की परवा न थी, कारण, उसने निश्चय कर लिया था कि ऊँचाई, शक्ति और विद्या जैसी कुछ ही बातों में वह दूसरों से छोटी है-जब वह उनकी ऊँचाई तक पहुँच जाएगी, तब वैसी हो जाएगी, यों दूसरों की तरह वह भी सब बातें समझ लेती है। कुमार के चले जाने के बाद देर तक उसके संबंध में बातें होती रहीं, वह सब समझी।

वहाँ कई और बंगाली युवक थे। उन लोगों ने कुमार के विद्वान होने पर भी, जूता पालिश करने का पेशा इख्तियार करने की तारीफें कीं। पहले देर तक बहस हो चुकी थीकि देश गिरा हुआ है, गुलामों की कोई जाति नहीं; फिर भी जातीय ऊँचाई का अभिमान लोगों की नस-नस में भरा हुआ है, इससे मानसिक और चारित्रिक पतन होता है; हम लोगों के एक-दूसरे से न मिल सकने, इस तरह जोरदार न हो पाने का यह मुख्य कारणहै। इतने बड़े विद्धान का निस्संकोच भाव से यह कार्य इख्तियार करना महत्व रखता है। इससे लोगों की आँखें खुलेंगी, उन्हें ठीक-ठीक मार्ग सूझेगा। यों यूरोप विद्यार्थी जाते ही रहते हैं, या तो वहाँ बिगड़ जाते हैं या मेम लेकर, नहीं तोपदवी के साथ काले रंग के गोरे होकर आते हैं-अपनी संस्कृति के पक्के दुश्मनबनकर। यूरोप की चारित्रिक शिक्षा यही है जो इसमें देखने को मिली कि गर्व कानाम नहीं, अपने काम से काम; हृदय से इस काम को छोटा नहीं समझता। बड़ी देर तकसोचते रहकर यामिनी बाबू ने कहा, परिस्थिति मजबूर करती है तब बुरे-भले का ज्ञान नहीं रहता, जो काम सामने आता है, इनसान इख्तियार करता है, क्योंकि पेटवाली मारसबसे बड़ी मार है। दीवानखाने में बैठी हुई निरुपमा सुन रही थी। यामिनी बाबू केविकृत स्वर से मुँह बनाकर उठकर ऊपर चली गई-हृदय से दूसरे युवकों की आलोचना कासमर्थन करती हुई। नीली बातें भी सुन रही थी और बातें करनेवालों का बोलते वक्तमुँह भी देख रही थी।

कुमार के लिए नीली के भी मन में सहानुभूति पैदा हुई। उस आलोचना के फलस्वरूप उसने निश्चय कर लिया कि यह अच्छा आदमी है और हर एक शंका का समाधान इससेनिस्संदेह होकर किया जा सकता है। कभी-कभी वह होटल जाया करती थी; मैनेजर उसे स्नेह करते थे। दुपहर के भोजन के बाद जब घरवाले आाम करने लगे, होटल चलकरकुमार से स्नेह प्राप्त करने के लिए नीली चंचल हो उठी। मिलने की कल्पना से हृदय में बाल-चापल्य पैदा हुआ, जिससे उसे एक प्रकार का सुखानुभव होता रहा।इधर-उधर देखकर घर के लोगों की आँख बचा त्वरित-पद होटल आई। ठीक सामने मैनेजर का कमरा था। एक दृष्टि से मैनेजर को देखा। मैनेजर के मुख पर कुछ ऐसी गंभीरता थी कि नीली की सस्नेह आलाप वाली इच्छा दब गई। उसे कुछ भय-सा लगने लगा। तब तक होटलका नौकर रामचरण आया और बोला, 'बाबू, अभी नहीं तनख्वाह देना चाहते तो दस दिनबाद दीजिए। मैं अपने भाई के पास जाता हूँ; पर कुमार बाबू के बासन अब हम नहीं छू सकते, हमें रोटी पड़ जाएँगी," कहकर चलने लगा। इसका साफ मतलब नीली समझ गई।एक कुर्सी पर बैठ गई और उसी तरह कभी मैनेजर साहब और कभी नौकर का मुँह देखनेलगी।

डाँटकर मैनेजर साहब ने रामचरण को बुलाया, फिर ऊपर नारायण बाबू और जगदीश बाबू को बुला लाने के लिए कहा। 

वह होटल नाम में जितना भड़कीला है, भोजन में उतना सुघर और प्रचुराशय नहीं। नाम के नीचे छोटे अक्षरों में लिखा हुआ है-'वैष्णव भोजन'। होटल में जो कहार हैं,वे भोजन से भी बढ़कर वैष्णव हैं, यानी आचार-शास्त्र का यथानियम पालन करनेवाले। उन्हें तरक्की की भी प्रचुर आशा है, क्योंकि भगवानदीन अहिर अब ठाकुर बन गया हैऔर किसी का छुआ भोजन नहीं करता। उनके मनोभाव की यहाँ पुष्टि होती है। यहाँज्यादातर दफ्तरों के वे बाबू रहते हैं जो सरकार को कलयुग की प्रतिष्ठाबढ़ानेवाली प्रधान शक्ति मानते हैं और उसकी या उसके रंग से रँगी अन्य ऑफिसोंकी नौकरी आर्थिक विवशता के कारण करते हैं; पर वे हृदय से पूर्ण रूप से प्राचीनसनातन-धर्म के रक्षक हैं। उनके विचार में 'यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवतिभारत' का पूरा चित्र इस समय भारत में देख पड़ता है, और श्री भगवान के अवतार में अब क्यों देर हो रही है-यह उनकी समझ में नहीं आता। 

नारायण बाबू और जगदीश बाबू को रामचरण बुला लाया। इतवार को भी आराम नहीं मिल रहा, वे नासिका कुंचित किए हुए सोचते-से आकर कुर्सी पर बैठ गए। मैनेजर साहब ने कहा, "तो क्या कुमार बाबू को जाने के लिए कह दूँ?" "यह हम कैसे कहें?" नारायण बाबू ने कहा, "पर यह जरूर है कि उनके रहने पर हम होटल छोड़ देंगे। " जगदीश बाबू ने कहा, "यह इंगलिस्तान नहीं। जैसा देस, वैसा भेस। यहाँ तो इस तरह चमारों में ही रहा जा सकता है। भाई, हमें सोना है, हम तो जाते हैं।"  "कुमार बाबू को बुला ला।" मैनेजर ने रामचरण को आज्ञा दी। कुमार बगल में था। बातें सुन चुका था पहले की और इस समय की। कहा कि बाकी किराए का बिल चुकाकर वह शाम को चला जाएगा, इस समय उसे मैनेजर साहब की बात सुनने की  फुर्सत नहीं।

कुमार की आवाज मैनेजर साहब के पास तक पहुँची। नीली खुश होकर उठी। आवाज में खुश  कर देने की वैसे ही लापरवाही थी। भीतर से कमरे में न जाकर बाहर के बरामदे में टहलने लगी। बाहर से भी भीतर जाने का दरवाजा है। पर बिना परिचय के जाए कैसे? मैनेजर से पूछताछ कर कोई सूरत निकालती; पर उसकी जगह न रही। 'मैनेजर कैसा आदमी है-इसे अक्ल नहीं-होटलवाले गधे हैं।'

 नीली बरामदे में टहलती रही, कुमार के झरोखे के पास इच्छापूर्वक धीरे-धीरे,कि वह टोके, स्नेह करे, तब बातचीत हो। उसे कुमार जैसा आदमी पसंद है। होटलवालों को  मालूम नहीं-कैसे आदमी से प्यार और किससे घृणा करनी चाहिए। जब कुमार ने नीली को गिन-गिनकर पैर रखते देखा, तब समझ गया कि सामनेवाले घर की लड़की है। वह उसके घर  गया था, इसलिए उसे समझा देना चाहती है कि वह भी आई हुई है और उसके प्रति उसकी  सहानुभूति है।

 बँगला में कुमार ने आवाज दी, "क्यों?"   नीली खुश होकर आगे बढ़ गई! वहाँ से उसका मुँह न देख पड़ता था। उठकर कुमार ने  दरवाजा खोला, देखा। देखकर, लजाकर नीली दूसरी तरफ देखने लगी। टोकने से लड़कियाँ  अक्सर भाग जाती हैं। नीली भागी नहीं। कुमार की इच्छा हुई, उसे बुलाकर बैठाए और   उससे बातें करे। इधर दोपहर-भर धर्म और नीति की बहस सुनते-सुनते परेशान हो रहा  था। कहा, "एक तस्वीर मेरे पास है। बहुत अच्छी है। आओ, तुम्हें दूँ।"

 एक दफा सारी देह हिलाकर नीली ने 'नहीं-नहीं' की; फिर धीरे-धीरे कमरे में गई।   कुमार बँगला बोला। वह साफ बँगला बोल सकता है। यह एक नया आविष्कार नीली ने   किया, और पहले उसके मन में जितना सामीप्य कुमार का था, अब और हो गया।  बड़े आदर से कुमार ने कुर्सी पर बैठने के लिए कहा, फिर अंग्रेजी मैगजीन से एक   तस्वीर फाड़कर दी।

  नीली तस्वीर देखती हुई खुश होकर कुमार से बोली, "आप तो हिंदुस्तानी हैं।" नीली  की साफ हिंदी कुमार को बड़ी अच्छी लगी। पूछा, "और तुम?" "बंगाली।" नीली गम्भीर हो गई! फिर तस्वीर देखने लगी। हम हिंदुस्तानियों से बड़े हैं, यह भाव इस जरा-सी लड़की में भी बद्धमूल है, कुमार ने सोचा, फिर हँसकर पूछा, "तुम कहाँ पैदा हुईं?" अपना मकान दिखाकर नीली बोली, "वहाँ।" "तो वह बँगला है?...तब तो तुम भी हिंदुस्तानी हो।" नीली ने लजाकर सिर हिलाया। कुमार बँगला में बोला, "हम बंगाली हैं, तुम हिंदुस्तानी हो।"नीली बँगला में बोली, "आप हिंदुस्तानी हैं। मैं जानती हूँ।" "मेरी जन्मभूमि कलकत्ता है, फिर मैं हिंदुस्तानी कैसे हूँ?' "तुम कहाँ रहते हो?" "ढाका।"

 कुमार जोर से हँसा और बँगला का पूर्वबंग वालों पर मजाक बनाया एक पद्य कहा। पद्य बहुत मशहूर है। नीली भी जानती थी। चूँकि वह पूर्वबंग की थी, इसलिए उसका उत्तर भी उसने रट रखा था जो पूर्वबंग वालों का बनाया हुआ था, सुना दिया। फिर बोली, "दीदी कलकत्ते की है।"।

 कुमार ने नीली के मकान में जूते पालिश करने के लिए जाकर भी निरुपमा को देखा था। समझ गया, पर उस पर कोई बातचीत न की, कहा, "तुम लोग ढाके के बंगाली बनो, इससे तो बेहतर है कि लखनऊ के हिंदुस्तानी रहो। बंगाली हम हैं।"

"हूँ," कुमार के गर्व के स्वर पर अवज्ञापूर्ण ध्वनि करके नीली ने कहा, "आप तो रामपुर में रहते हैं। रामपुर दीदी की जमींदारी है।" कुमार खूब खुलकर हँसा, कहा, "तुम्हारी दीदी तो बहुत बड़ी जमींदार हैं! तीन घर का गाँव है और कुल नौ खेत, बाकी सब ऊसर!" "और भी तो गाँव हैं।" नीली कुमार को एकटक देखती हुई बोली।

"तुम्हारी दीदी बहुत बड़ी जमींदार हैं। शादी हो जाएगी तब जमींदारी रखी रहेगी; तब तुम जमींदार होगी।'

 "नहीं आप समझे? कहा तो, दीदी कलकत्ते की है; हम ढाका के।" "हाँ, हाँ, गलती हो गई। तुम्हारी दीदी कलकत्ते से यहाँ कैसे आकर जमींदार बन गईं?"

 "आपके गाँव के कौन जमींदार हैं?"

 "वे तो रामलोचन बाबू हैं।"

 "हैं नहीं, थे। उनका देहांत हो गया, तीन साल हुए। अब दीदी जमींदार है। काम सब दादा करते हैं।" नीली मन-ही-मन सोच रही थी, दीदी इन्हें प्यार करती है; ये भी दीदी को प्यार करें।

 "तो तुम्हारी दीदी की जिससे शादी होगी, वह तो रातोंरात मालदार हो जाएगा।

 "हाँ," कहकर नीली खिलखिला दी; कहा, "यामिनी बाबू से होगी।"

 यामिनी बाबू का नाम कुमार को याद था। पूछा, "कौन यामिनी बाबू?"

 ''वह जो यूनिवर्सिटी में अभी लेक्चरर हुए हैं।"

 कुमार चप हो गया। फिर जल्दी ही स्वस्थ होकर पूछा, "तुम्हारा नाम?"

 "श्री नीलिमा देवी।"

 कहने के सभ्य ढंग पर कुमार हँसा। फिर पूछा, "और हमारे गाँव की जमींदार तुम्हारी दीदी का नाम?"

 नीली मुस्कुराकर बोली, "श्री निरुपमा देवी।"

 कुमार कुछ सोचता हुआ-सा उठा, कमरे के बाहर होटल की घड़ी लगी हुई थी, देखने के लिए। लौटा तो नीली ने पूछा, "अच्छा, एक ग्राउंड की घास दो घोड़े दो दिन में चरते हैं तो एक घोड़ा कितने दिन में चरेगा?"

 "चार दिन में। क्यों? मेरा इम्तहान हो रहा है?"

 "नहीं। आप तो आज चले जाएँगे।"

 "तुम्हें कैसे मालूम हुआ?"

 "आप जब कह रहे थे तब मैं वहाँ बैठी थी। अब कहाँ जाएँगे?"

 "कुछ ठीक नहीं। तुम्हारी दीदी की इतनी जमींदारी है, कहीं जगह दिला दो!"

 नीली उठी और तस्वीर लिए दौड़ती हुई जैसे कुछ लक्ष्य कर घर चली गई।

दीदी के कमरे में जाकर देखा, वह अंग्रेजी का एक उपन्यास पढ़ रही थी। नीली को अपनी गलती मालूम होते ही दीदी के प्रति कुछ वैमनस्य दूर हो गया। बगल में बैठकर बोली, "कुमार बाबू ने मोची का काम किया है, इसलिए होटलवाले उन्हें होटल में नहीं रख रहे। वह आज कहीं चले जाएँगे। बड़ी अच्छी बँगला बोलते हैं।" निरुपमा सचिंत आँखों से सोचती रही। किताब एक बगल रखी रही।

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

5 अगस्त 2022
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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

5 अगस्त 2022
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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

5 अगस्त 2022
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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

5 अगस्त 2022
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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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