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भाग 10

5 अगस्त 2022

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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। निरू ने रोका नहीं। केवल उसे सजा दिया। कुछ कहा भी नहीं। नीली को कोई भय नहीं। वह जानती है, उसकी दीदी वहाँ की जमींदार है। वहाँ की कुल जमीन पर उसकी दीदी का अधिकार है। वहाँ उसकी गति अप्रतिहत, शक्ति अपराजेय है, वह वहाँ के आदमियों को कटाक्ष मात्र से अमीर और गरीब बना सकती है, उस दीदी की वह छोटी बहन है।

लोगों में बड़प्पन का एक प्रभाव पड़ गया। रात को काफी बातचीत हो चुकी थी। बड़े-छोटे प्रायः सभी सुरेश बाबू के पास हाजिरी दे आए थे। कुछ से सुरेश ने हली के हल ले आने के लिए कहा था। यद्यपि लोग अपने खेत नहीं बो पाए थे, फिर भी

जमींदार का काम आगे होता है, सोचकर चुप रह गए थे। नीली जिस गली से निकलती है, सब उसे एक दृष्टि से देखते हैं। उसका पहनावा ऐसा है, सबकी आँखों में ऐश्वर्य का भाव मुद्रित हो जाता है। लड़के, लड़कियाँ, उसकी उम्र के होने पर भी उससे बोलने का साहस नहीं करते। वह भी विशेषता की दृष्टि से उन्हें नहीं देखती। उसका लक्ष्य और है। सामने एक पंडितजी स्नान कर राम-नाम जपते हुए आ रहे थे, नीली को उन पर श्रद्धा नहीं हुई, उनका मुख और मुद्रा देखकर। पर रामपुर के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए उन्हें ही उसने पंडित समझा। यद्यपि उनके प्रति नहीं, फिर भी, प्यार से भरे और प्रतिष्ठा से मजे, ललित और ओजस्वी कंठ से उसने पूछा, "कुमार बाबू का कौन-सा मकान है?"

"कौन कुमार बाबू?" वृद्ध ने एक धक्का खाकर जैसे पूछा। "कृष्णकुमार बाबू, और कौन कुमार बाबू!" नीली ने तेज निगाह डाली। "वह है, वह। जो पक्का मकान है," कहकर वृद्ध घृणा से मुँह फेरकर पूर्ववत श्रद्धापरायण हो राम-नाम जपते हुए चले। कुछ याद कर लोटे से चार बूँद पानी मुँह में डाल लिया।

नीली बिना हिचक के भीतर घुस गई और जूते समेत आँगन में जाकर खड़ी हुई; एक प्रौढ़, किंतु आँखों को तृप्ति देनेवाली मूर्ति देखकर उसी तरह बिना रुकावट के पूछा, "यह कुमार बाबू का मकान है? कुमार बाबू आपके कौन हैं?"

देवी को बालिका की हिंदी बड़ी भली मालूम दी, मुस्कुराती बढ़ती बालिका को देखती हुई बोली, "कुमार मेरा बाप है।" वे बँगला अच्छा जानती थीं। पढ़ी भी थीं। 

बालिका के पास आकर सिर पर हाथ फेरकर पूछा, "अब मालूम हुआ?"

नीली लजा गई। लजाकर भी वह दबनेवाली नहीं, तुरंत उत्तर देना उसका पहले का स्वभाव है, बोली, "नहीं, आपके लड़के हैं।"

"आओ, बैठो।" बालिका को सस्नेह पलँग पर बैठालकर कहा, "तुम बड़ी अच्छी हिंदी बोल लेती हो।"

"मैं स्कूल में हिंदी पढ़ती हूँ। कुमार बाबू कहाँ हैं?" नीली कुछ हताश हो चली।

"वह तो वहीं हैं, तुम उसे नहीं ले आईं?" ।

नीली फिर लजा गई, बोली, "इधर एक महीने से मैंने उन्हें नहीं देखा, पहले हमारे सामने के होटल में रहते थे, होटलवाले ने उन्हें नहीं रहने दिया।"

कुमार अपना सब हाल लिख चुका था; होटल छोड़ने का। देवी सावित्री कुछ संकुचित हुईं, पर डरीं नहीं। नीली को जलपान कराने के लिए कुछ पकवान घर के बनाए लेने के लिए गईं। नीली बैठी हुई घर देखती रही।

एक छोटी रकाबी में रखकर नीली को देते हुए कहा, "थोड़ा जलपान कर लो।"

स्नेह के स्वर में नम्र होकर, खाने की इच्छा न रहने पर भी, सभ्यता की स्वाभाविक प्रेरणा से नीली ने रकाबी ले ली और निर्विकार चित्त से खाने लगी।

देवी सावित्री गिलास में पानी ले आईं।

नीली का हाथ धुलाकर, तौलिया पकड़े हुए पोंछवाकर, स्नेह से कहा, "कुमार बाबू की तुम्हारी अच्छी जान-पहचान है? तुम्हें खोजते हुए बड़ी मिहनत करनी पड़ी।"

नीली की सरलता उमड़ी कि कुमार बाबू के पेशे की बात कहे, पर एक अज्ञात दबाव से दब गई, बोली, "हाँ, मेरे सामने रहते थे, मैं भी जानती हूँ, दीदी भी जानती हैं।" जबान फिसल गई, सोचकर चुप हो गई।

"दीदी कौन?"

"दीदी, दीदी, और कौन?" अबकी सँभलकर नीली ने उत्तर दिया।

"रामलोचन बाबू की लड़की?" "हाँ," नीली लजाकर बोली।

माँ की दृष्टि में पुत्र का सांसारिक प्रसंग, सूक्ष्मतम कारण रूप में रहने पर भी कार्यरूप से आ जाता है। कारण, संसार के मार्ग में माँ आगे चली हुई होती है।

जो प्रेम बीजरूप में रहकर भी नीली की समझ में आ गया था, वह नीली की ध्वनि से माँ के हृदय में भी स्पष्ट हो गया। कुमार उन्हीं का कुमार है। वे उसे और अनेक रूपों से जानती हैं। इस निश्चय को विशेष महत्त्व न देकर, हँसकर उन्होंने बँगला

में नीली से पूछा, "तुम्हारा नाम?"

मुस्कुराकर नीली बोली, "श्री नीलिमा देवी।"

"बड़ा अच्छा नाम है; हम लोग नीलिमा के भीतर रहते हैं!"

नीली खुश हो गई।

हँसकर देवी सावित्री ने पूछा, "तुम्हारी दीदी नहीं आई?"

"आई है।"

"नहीं, हमारे यहाँ, तुम तो हमारी माँ हो? हमारा निमंत्रण उनसे कह देना।"

सम्मति की सूचना में जैसे नीली ने गर्दन हिलाई। इसी समय रामचंद्र बाहर से आया।

माँ को देखकर बोला, "हमारे खेत सुरेश बाबू जुतवा रहे हैं।"

"हमारे खेत क्यों?" माँ ने कहा, "हमने खरीदे हैं! उनके खेत हैं, उन्होंने ले

लिए।"

"इनका मुँह कुमार बाबू के मुँह से मिलता है," नीली बोली।

"हाँ," सस्नेह देखती हुई सावित्री देवी ने कहा, "यह कुमार बाबू का छोटा भाई,

रामचंद्र है।"

नीली चलने के लिए उठकर खड़ी हुई। माता ने पुत्र से डेरे तक भेज आने के लिए कहा। रामचंद्र नीली से दो ही तीन साल का बड़ा है। साथ लेकर चला। देखा, कई आदमी घर के इधर-उधर खड़े हैं। देखकर अपने-अपने रास्ते से जैसे चल दिए। रामचंद्र नीली को डेरे ले आया।

नीली दौड़ी हुई भीतर गई और फिर दौड़ी हुई बाहर आई, रामचंद्र कुछ ही कदम घर को चला था, "ए रामचंद्र, यहाँ आओ।" ।

रामचंद्र नीली के पास आया। नीली ने भरे प्यार के गले से कहा, "मेरे साथ आओ,

भीतर।"

रामचंद्र भीतर गया। निरुपमा को देखकर दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया। निरू निष्कलंक हो गई। थोड़ी देर तक देखती रहकर, उस अविकच मुख-श्री में एक विकचपूर्ण पुष्ट मुखच्छवि प्रत्यक्ष कर, स्नेह के ललित कंठ से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या

है?" विनीत स्वर से रामचंद्र ने कहा, "जी, मुझे रामचंद्र कहते हैं।" मन से रामचंद्र ने समझ लिया, यही हमारे गाँव की मालकिन हैं।

"रामचंद्र कृपालु भजु मन हरन भवभय दारुणम्," निरुपमा हँसती आँखों देखती हुई बोली, "रामचंद्र हमारे राजा हैं। हमारे बड़े भाग हैं जो हमारे यहाँ आए हुए हैं।" कुर्सी की ओर हाथ से इंगित करती हुई बोली, "बैठिए।" 

लजाया हुआ रामचंद्र बैठ गया। निरू ने दासी से जलपान लाने के लिए कहा। निरू की आँख नहीं हटती। मुख की मधुरता में अपार तृष्णा बुझ रही है। दासी के हाथ से तश्तरी लेकर बड़े प्यार से हाथ पर रखी और शौक करने के लिए कहा।

बालक निस्संकोच भाव से खाने लगा। गाँववालों के असद् हृदय अमानुषिक बर्ताव का प्रभाव बालक पर माँ से अधिक पड़ा

था जिन्हें वह भक्ति करता था, अपना समझता था, जिनके प्रति संसार के अन्य लोगों से उसका अधिक आकर्षण था, जब वही संसार के सबसे बड़े शत्रुओं में बदल गए, तब बालक एकाएक कवाकर रह गया। मनुष्य मनुष्य के प्रति इतना बड़ा बैर कर सकता है, यह कभी उसकी कल्पना में न आया था। उनके लिए गाँव-भर के द्वार बंद हैं। कोई उससे प्रीतिपूर्वक नहीं बोलता। गाँव के कुँओं में उसका पानी भरना बंद है। नाई, धोबी, कहार, कोई अब उसकी प्रजा नहीं, उसका काम नहीं करते। उसके दाढ़ी-मूँछे नहीं, बाल हैं; शहर जाकर बनवाता है। छुट्टियों में केवल रास्ता और घर; केवल माँ का मुख देखने के लिए आता है। माँ की इच्छा रामपुर रहने की नहीं, पर लाचारी है; और कहीं जगह नहीं। भाई प्रसिद्ध विद्वान हैं; पर कहीं किसी ने जगह नहीं दी। अब वह... । बालक सोच भी नहीं सकता कि उसका भाई चमार का काम करता है, और इस कमाई से उसने रुपये भेजे हैं। केवल भाई के ओजस्वी शब्द, निर्जीव पत्र में भी आग के अक्षरों से लिखे हुए जैसे, उसे धैर्य और शक्ति देते हैं, वह चुपचाप प्रहार सहता जा रहा है। उसकी माँ का स्नेह उसे शांत करता है। उसकी माँ, जिसने कभी पानी नहीं भरा, दूर खेत के कुएँ से पानी लाती है। इस प्रकार साँसत में पड़े बालक को आज गाँव की सबसे बड़ी शक्ति से स्नेह मिला। खाता हुआ सोचने लगा, 'क्या ये मेरा बाग बेदखल कर सकती हैं? क्या इन्होंने मेरे खेत छीन लेने की सलाह दी होगी? मेरे खेत जुतवाने के लिए आई हैं?' आप-ही-आप एक-दूसरे मन ने उत्तर दिया, 'नहीं, यह सब सुरेश बाबू का चलाया चक्र है, ये ऐसा नहीं कर सकतीं।'

रामचंद्र के भोजन कर चुकने के बाद दासी ने हाथ धुला दिए। एक दूसरी कुर्सी पर निरू बैठी थी। नीली कुर्सी का पिछला हिस्सा पकड़े हुए खड़ी हुई। "राजा रामचंद्र, पढ़ते हो?" निरू ने पूछा। "जी हाँ।" लड़के ने सम्मान के स्वर में कहा।

"किस क्लास में हो?"

"जी, एइट्थ में।"

"अच्छा! हाँ, राजा रामचंद्र को कम उम्र में ज्यादा अक्ल होनी ठीक भी है।"

बालक मुस्कुराया।

"अच्छा, रामचंद्रजी, तुम्हारे और भाई कहाँ हैं?"

बालक फिर मुस्कुराया, बोला, "दादा लखनऊ में हैं।"

"नाम?"

"डॉक्टर कृष्णकुमार।"

निरू हँसी, "उलट गया, राजा रामचंद्र के तो छोटे भाई को कृष्णकुमार होना था।"

नीली भी हँसी।

बालक लजाकर झुक गया। तब तक फिर स्नेह से देखती हुई निरू ने पूछा, "आपके छोटे भाई साहब वहाँ क्या करते हैं?"

बालक मर्म की बात कह न सका। निरू से आँखें मिलाकर हँसता रहा।

"जानती हूँ," निरू बोली, "मेरे यहाँ भी आए थे।"

बालक और खिल गया। फिर अपनी ही प्रेरणा से उठकर खड़ा हो गया और हाथ जोड़कर

प्रणाम कर बोला, "दीदी, चलता हूँ।"

निरू को किसी ने गुदगुदा दिया। उठकर जल्दी से बढ़कर, लड़के को पकड़कर, एक अननुभूत स्पर्शसुख अनुभव करती हुई, खींचकर बोली, "अभी तो आप आए, बातचीत जम भी न पाई कि चलने लगे। बैठिए।"

बालक बैठ गया।

"हाँ, तो आपके भाई साहब डॉक्टर कृष्णकुमार क्या करते हैं?" अबकी गंभीर होकर पूछा, नीली रामचंद्र को देखकर मुस्कुराती रही।

"मैं नहीं जानता।" कुछ रुखाई से, सर झुकाए हुए बालक मुस्कुराता रहा।

फिर प्रश्न हुआ, "किस विषय के डॉक्टर हैं-होमियोपैथी के?"

"अंग्रेजी के।" लड़के ने उसी तरह मधुर स्वर से उत्तर दिया।

"अंग्रेजी के डॉक्टर जो चीर-फाड़ करते हैं?" निरू प्रीति से देखती रही।

"चीर-फाड़वाले डी.लिट. होते हैं?' कुछ तीव्र स्वर से लड़के ने कहा। निरू को

तीव्रता में माधुर्य मिला।

"तो आप इसी तरह के डी.लिट. होंगे, क्यों?" स्वर में कुमार का ध्यान करती हुई

बोली।

"अभी तो मुझे बहुत पढ़ना है।"

प्रसन्न होकर पूछा, "आपका खर्च आपके भाई साहब देते हैं?"

"अब लिखा है कि देंगे। अभी तक माँ चलाती थीं।"

"आप अपनी अम्मा को माँ कहते हैं?"

"जी, कलकत्ते में हम लोग पैदा हुए थे।"

निरू सोचती रही; फिर पूछा, "तुम्हारी माँ बँगला समझती हैं?"

"हाँ, वे पढ़-लिख भी लेती हैं।"

"दीदी," नीली बोली, "मैं भी वहाँ गई थी, मुझे हिंदुस्तानी मिठाई दी। बड़ी अच्छी बँगला बोलती हैं। मुझसे कहा, 'तुम अपनी दीदी को नहीं ले आई हो, उनसे मेरा निमंत्रण कहना।"

निरुपमा ने न जाने क्या सोचकर पलकें मूँद लीं। कुछ देर बाद पूछा, "कितना खर्च लगता है?"

"अभी तो केवल पंद्रह रुपये में चल जाता है।"

"आपको बीस रुपये महीने के पहले सप्ताह में मिल जाया करेंगे। फिर बढ़ा दिया  जाएगा, ज्यों-ज्यों आप बढ़ते जाएँगे।"

"लेकिन दादा..." बालक संकुचित होकर न कह सका।

"दादा क्या कहेंगे?" निरू ने डाँट दिया।

खेत से सिपाही खबर लेकर आया तो दासी ने कहा, "दादा बुलाते हैं, खेत बोआया जा रहा है, देखने के लिए।"

"अपनी माँ से मेरा प्रणाम कहना," उठती हुई निरू बोली, "और कहना, मैं कल उनके

दर्शन करूँगी।" ।

बालक चलता हुआ अपने खेत के बोआए जाने की बात सोचता रहा।

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रचनाएँ
निरुपमा
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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।'' कमल और निरुपमा के माध्यम से निराना ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़ कर ही जाना जा सकता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को उनके मरणोपरांत भारत के प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया।
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निरुपमा भाग 1

5 अगस्त 2022
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लखनऊ में शिद्दत की गरमी पड़ रही है। किरणों की लपलपाती दुबली-पतली असंख्यों नागिनें तरु लता-गुल्मों की पृथ्वी से लिपटी हुई कण-कण को डस रही हैं। उन्हीं के विष की तीव्र ज्वाला भाप में उड़ती हुई, हवा में ल

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भाग 2

5 अगस्त 2022
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एक साधारण रूप से अंग्रेजी रुचि के अनुसार सजा हुआ कमरा। एक नेवाड़ का बड़ा   पलँग पड़ा हुआ। पायों से चार डंडे लगे हुए; ऊपर जाली की मसहरी बँधी हुई। पलँग पर गद्दे-चदरे आदि बिछे हुए। चारों ओर तकिए। बगलवाले

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भाग 3

5 अगस्त 2022
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कुमार कमरे में अन्यमनस्क भाव से एक कुर्सी पर बैठ गया। चिंताराशि, फल के छिलके पर खुले रंग जैसे, मुख पर रंगीन हो आई। स्वच्छ हृदय के शीशे पर अपने ही  रूप का प्रतिबिंब पड़ा। इसे ही वह प्यार करता था। अन्यत

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भाग 4

5 अगस्त 2022
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सुरेश ने नीली को बुलाकर यामिनी बाबू से कहा, "हम लोग जाते हैं, जल्द काम है,   तुम पैदल निरू को लेकर आओ," सुरेश मोटर ले गए।  निरुपमा समझकर एक बार लज्जित हो चंपे के झाड़ की तरफ देखने लगी-यामिनी बाबू से  

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भाग 5

5 अगस्त 2022
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नीली मार खाकर जिस तरह निरुपमा से नाराज हुई थी; अनादृत होकर उसी तरह यामिनी  बाबू से हुई। वह शारीरिक शक्ति में दीदी या यामिनी बाबू से कम है! पर बदला चुकाने की शक्ति में नहीं। जिस समय चमार के रूप में कुम

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भाग 6

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सुरेश के पिता योगेश बाबू पचपन पार कर चुके हैं। गृहस्थी के झंझटों से फुर्सत पा घर रहकर योग-साधन किया करते हैं। ध्यान सदा सुरेश पर रहता है कि नवयुवक गृहयुद्ध के दाँव-पेंच भूलकर सहानुभूति में कहीं बहक न

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भाग 7

5 अगस्त 2022
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कमल निरुपमा की मित्र है। फर्स्ट आर्ट तक दोनों साथ थीं, निरू ने छोड़ दिया, वह बी.ए. में है। पिता ब्राह्म हैं, उसके भी विचार वैसे ही। बहुत अच्छा गाती है। मिलने आई है। "नमस्कार।"-कमरे में बैठते ही हाथ जो

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भाग 8

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निरू ने कमल को स्नेहपूर्वक बिदा किया। कमल से वह कुछ खुल गई, इसके लिए मन में कुछ लज्जित हुई। पर, कमल उसकी हिताकांक्षिणी है, सोचकर आश्वस्त हुई। ऐसीछोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना ठीक नहीं, आखिर यह गीत हर

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भाग 9

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नीम के नीचे बैठक है। गुरुदीन तीन बिस्वेवाले तिवारी हैं, सीतल पाँच बिस्वेवाले पाठक, मन्नी दो बिस्वे के, सुकुल, ललई गोद लिए हुए मिसिर - पहले पाँच बिस्वे के पाँडे, अब दो कट गए हैं, गाँववालों के हिसाब से,

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भाग 10

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रामपुर आते-आते निरुपमा के दिल का क्या हाल था, वह काव्य का विषय है। नीली भी  नील आकाश की चिड़िया थी, चपल सुख के पंख फड़काकर उड़ती हुई। मुश्किल से एक रात  डेरे में रही। सुबह होते ही गाँव घूमने निकली। नि

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भाग 11

5 अगस्त 2022
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जूते पहनकर नीली को लेकर निरुपमा चली। बाहर निकलकर गली के घरों को पार करने लगी तो काम करती हुई किसानों की स्त्रियाँ आकर जमा हो गईं और चारों ओर से घेर लिया। स्नेह से उच्छ्वसित होकर उन्हीं में से एक वृद्ध

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भाग 12

5 अगस्त 2022
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भोजन के पश्चात आराम करते हुए सुरेश ने नीली को बुलाया। गाँव की हवा में नीली लहर की तरह मुक्त हो रही थी। लिखने-पढ़ने का कोई दुःख न था। भाई के सामने प्रसन्न मुख आकर खड़ी हुई। सुरेश बँगला उपन्यास की किताब

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भाग 13

5 अगस्त 2022
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शाम चार बजे से निरू को देखने के लिए गाँव की स्त्रियों का आना शुरू हुआ। एक  बड़े कमरे में दरी और चादर बिछा दी गई थी, स्त्रियाँ आ-आकर बैठने लगीं। सब सिर से पैरों तक भारी भूषणों से लदी, जैसे सांस्कृतिक स

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भाग 14

5 अगस्त 2022
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दूसरे दिन निरू ने कई मर्तबे कुमार के घर जाने की इच्छा की, पर उधर चलते पैर ही न उठे। सुरेश के मन में जो भाव पैदा हो गया है, उससे अधिक लज्जास्पद उसके लिए दूसरा नहीं। जाते हुए जैसे उसकी संपूर्ण शोभा चली

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भाग 15

5 अगस्त 2022
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कई रोज हो गए। निरू बाहर नहीं निकली। ज्यों-ज्यों निरू अँधेरे में रहने लगी, सुरेश प्रकाश देखने लगे। अनेक प्रकार के काल्पनिक चित्र आकाश में रंगीन पंख खोलकर उड़ते हुए पक्षियों की तरह सजीव जान पड़ने लगे। स

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भाग 16

5 अगस्त 2022
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दूध उतारने के बहाने युवती घर गई। पति वहीं घर ताक रहे थे। युवती के मन में सुरासुर-करों की कर्षित रज्जु से जो समुद्र-मंथन हो रहा था, उसका निकला हुआ गरल पति को एकांत में बुलाकर, महादेव की तरह का समर्थ सम

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भाग 17

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र के चले जाने पर निरू को एक जबरदस्त धक्का लगा। वह उस जगह जाकर अवस्थित हुई, जहाँ उसकी अक्लेद नारी-सत्ता है-समस्त विश्व की नारियों की एक ही चेतन संस्कृति, जो स्वयं रीति-नीतियों का सृजन करती है और

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भाग 18

5 अगस्त 2022
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रामचंद्र, मलिकवा की माँ और अपनी माँ को लेकर कुमार लखनऊ चला गया। गाँव में किसी से मिला भी नहीं। पहले से वह इसी धातु का बना हुआ है। किसी की समझ पर दबाव डाले, उसका ऐसा स्वभाव नहीं।  जब परीक्षाएँ पास की औ

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भाग 19

5 अगस्त 2022
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ब्रह्मभोज के दूसरे दिन निरुपमा नीली को लेकर लौट आई। चित्त में समाज के विरोध में जगा हुआ क्षोभ बराबर उसे बहका रहा था। सोच रही थी, प्राणों की मैत्री के लिए समाज की आवश्यकता है, वैषम्य की सृष्टि करे-इसके

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भाग 20

5 अगस्त 2022
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कमल भीतर कपड़े बदल रही थी, बाहर कुमार प्रतीक्षा करता हुआ। नए-नए संबंध की घनिष्ठता की डोर कमल के स्नेह-कर में जो थी, कुमार उससे बँधता जा रहा था-उसने बुलाया था, वह गया हुआ है। यद्यपि कुमार पहले से प्रकृ

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भाग 21

5 अगस्त 2022
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"नीली!" उधर से जाती हुई नीली को योगेश बाबू ने बुलाया। मार्ग में बाधा पाकर पिता को देखकर नीली टेढ़ी होकर आँखों से स्नेह बरसाने लगी। "सुन।" भाव भरे गुप्त मंत्रणा के स्वर से पिता ने बुलाया। नीली गई। य

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भाग 22

5 अगस्त 2022
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दिन का तीसरा पहर है। रामचंद्र बाहर खेलने गया है। मलिकवा की माँ दुपहर के बरतन मल रही है। उसने अपने कर्तव्य का स्वयं निश्चय कर लिया है। देहात में  अपनी जाति की. रीति के अनुसार वह किसी के यहाँ का चौका-टह

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भाग 23

5 अगस्त 2022
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कमल ढलते दिन के कमल की तरह उदास बैठी है। हाथ में एक पत्र है, जिसे बार-बार देखती है। रह-रहकर बँगले के सामने सड़क की ओर एक ज्ञात आकर्षण से जैसे निगाह फेर लेती है। अभी दिन काफी है, पर प्रतीक्षा करते उसे

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भाग 24

5 अगस्त 2022
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नीली प्रतीक्षा में थी। मोटर के आने की आहट मिली। नीली ने ऊपर से झाँककर देखा, यामिनी बाबू के साथ दीदी को देखकर जल गई। निरू उतरकर यामिनी बाबू से स्नेह-संभाषण कुछ किए बगैर जीने पर चढ़ने लगी। कुछ द्रुत-पद

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भाग 25

5 अगस्त 2022
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 यामिनी बाबू दूसरे दिन चलते समय निरू से विदा होने गए, तो निरू ने कहा, "मेरी इच्छा है कि मेरा विवाह मामा के घर से नहीं, मेरे घर से हो। इस समय सेन रोडवाला मेरा बँगला खाली है। बारात वहीं आए। आप मामा से क

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