भारत की विदेश नीति में गांधी वाद की समाप्ति
डॉ शोभा भारद्वाज
भारत सरकार
पाकिस्तान को विभाजन समझौते के अनुसार 55 करोड़ रु० अभी नहीं
देना चाहती थी क्योंकि सरदार पटेल जैसे नेताओं को भय था पाकिस्तान इस धन का उपयोग
भारत के खिलाफ जंग छेड़ने में करेगा. गांधी जी ने आमरण अनशन आरम्भ कर दिया पाकिस्तान की हरकत पर भी गांधी जी का अहिंसा के सिद्धांत से विश्वास नहीं
उठा वह एक ऐसे भारत पाकिस्तान की कल्पना कर रहे थे दोनों देश प्रेम से रहें क्या
ऐसा हो सका ? आजादी के साथ ही कश्मीर वैली पर अधिकार करने के लिए पाकिस्तान ने कबायलियों
के साथ फौज भेज दी श्री नगर से कबायली कुछ दूर पर थे .कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर का विलय भारत में लिखित रूप
में स्वीकार किया उनके अनुरोध पर भारतीय सेनायें कश्मीर वैली पहुंची युद्ध द्वारा
कश्मीर का वर्तमान भाग कबायलियों के कब्जे से बचाया. महाराजा हरिसिंह से हुई संधि के
अनुसार सम्पूर्ण कश्मीर पर भारत का अधिकार होना चाहिए था अब एक हिस्सा पाकिस्तान के नियन्त्रण में है माउन्ट
बेटन के प्रभाव में नेहरू जी कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले गये. सब
कुछ गांधी जी के जीवन के अंतिम दिनों में हुआ . नेहरू
जी के प्रभाव में जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था . 5 अगस्त
2019 संसद के दोनों सदनों द्वारा पास किये गये कानून द्वारा धारा 370 ,35 a समाप्त
कर दी गयी .
लेकिन गाँधीवादी अध्याय समाप्त नहीं हुआ था. द्वितीय युद्ध के
अंत के बाद विश्व दो भागों में बट गया एक और वारसा पैक्ट के मेंबर कम्यूनिस्ट
ब्लाक दूसरी तरफ मित्रराष्ट्र अमेरिकन गुट .तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू जी ने
गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया जिसका आदर्श सिद्धांत पंचशील था. हमारी सांस्कृतिक विरासत हजारों वर्ष पुराने
इतिहास में शान्ति अहिंसा और सहनशीलता में ही विश्व कल्याण
की भावना है , साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास यही हमारी विदेश नीति थी . पंचशील के सिद्धांत के आधार पर हिंदी चीनी भाई भाई
के नारे लगे .पाकिस्तान ने अमेरिकन गुट से नाता जोड़ कर कम्यूनिस्ट ब्लाक से लड़ने
के नाम पर मिलिट्री ऐड प्राप्त कर अपनी शक्ति बढ़ा की जबकि उसे कम्यूनिस्ट ताकतों
से कोई खतरा नहीं था .पाकिस्तान की विदेश
नीति का आधार भारत से अधिक आर्थिक एवं सैन्य दृष्टि से मजबूत पाकिस्तान एवं
मुस्लिम वर्ड का लीडर बनना था .क्या देश गांधी वाद पर चल सकता था .
भारत के दो पड़ोसी देश जिनसे कई किलोमीटर सीमा मिलती
है दोनों ही दुश्मन हैं क्या हम शांति
से रह सकते हैं ? चीन ने 1959 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया
यह भारत चीन के मध्य में तटस्थ प्रदेश था .श्री
दलाईलामा के साथ तिब्बती शरणार्थियों ने भारत में शरण ली लेकिन नेहरू जी के संबंध
चीन से बढ़ते रहे. चीनी भाई ने 1962 में भारत की पीठ में छुरा भोंका . भारत के एक
भूभाग अक्साई चिन नामक क्षेत्र जो पूर्व जम्मू एवं कश्मीर राज्य का
भाग था, पाक अधिकृत कश्मीर में नहीं आता है उस पर
कब्जा कर स्वयं ही युद्ध विराम की घोषणा की थी . जम्मू-कश्मीर
के लद्दाख से अक्साई चिन तक तथा पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश को वह अपना हिस्सा
मानता है . चीन का भारत के साथ सीमा विवाद का प्रश्न उठाते रहना उसकी नीति है . भारत अब
जागरूक है हर प्रकार के युद्ध के लिए हर डीएम तैयार है. भूटान के क्षेत्र डोकलाम पठार में चीन ने सड़क बनाने की कोशिश की , क्षेत्र भारत के लिए
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है यदि सड़क बन जाती चीन भारत के बीस किलोमीटर चौड़े मार्ग जो
चिकननेक कहलाता है पहुंच जाता . चिकननेक भारत को
नार्थ ईस्ट से जोड़ता क्या चीन को यहाँ चीन प्रभाव बढ़ाने
देते ? नहीं लगभग 73 दिन कर दोनों देशों में तनाव रहा.
चीन के राष्ट्रपति जिंगपिंग चीन को सुपर पावर बनाना
चाहते हैं चीन दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है यहाँ के 250 द्वीपों
पर अधिकार करना चाहता है.भारत को वह हिंदमहासागर में चारो तरफ से घेरना चाहता है मिडिल ईस्ट पर अधिकार बढ़ा कर इस क्षेत्र के तेल ,गैस व आयरन के भंडार पर कब्जा करना चाहता है
ईरान के साथ उसने अपने संबंध बढ़ा कर 25 वर्षों तक सस्ते तेल लेने का समझौता किया यहाँ
निवेश भी कर रहा है .
भारत कोरोना महामारी , पाकिस्तान के आतंकी हमले सभी से जूझ रहा है ऐसे में चीन ने
सुअवसर समझ कर अपनी विस्तारवादी सोच के साथ लद्दाख में वास्तविक नियन्त्रण रेखा गलबान घाटी
पेंगोंग झील में पैर पसारने लगा| चीन के साथ वार्ता भी चल रही थी चीनी सेना के जवानों ने भारतीय
सैनिकों पर हमला किया हिंसक झडप हुई एक गोली नहीं चली भारतीय
सैनिकों ने गलबान घाटी में अद्भुत शौर्य दिखाते हुए चीन के 43 से 50 के
करीब सेनिक निर्दयता पूर्वक मार डाले . हमारे 20
जवान शहीद हुए देश की अहिंसात्मक
सोच पर आघात था गांधीवाद पीछे छूट गया . झड़प
का मनोवैज्ञानिक असर पड़ा उसके बाद सेना का जमावड़ा बढ़ा था लेकिन झडप नहीं हुई अब्
दोनों देश नियन्त्रण रेखा से पीछे हट रहे है |
अमेरिकन ऐड और भारत
के चीन के सामने घुटने टेकने की स्थिति का फायदा उठाते हुए 1965 में पाकिस्तान ने
भारत पर हमला कर दिया जबाबी कार्यवाही में हमारी सेनाओं ने लाहौर सियालकोट का
बार्डर खोल कर वह कर दिखाया जिसकी पाकिस्तान ने कल्पना भी नहीं की थी लाहौर से
भारतीय सेनायें केवल 16 किलोमीटर दूर शहर में प्रवेश करने में समर्थ लाहौर भारतीय
तोपों की जद में था .1971 में बंगलादेश का निर्माण भारत की मदद से हुआ एवं करगिल
का युद्ध हमने लड़ा.
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खराब है फिर भी कश्मीर के अलगाववादियों के लिए अलग बजट है . भारत के खिलाफ छद्म युद्ध निरंतर चलता है गोलाबारी की आड़ में ,रात के अँधेरे में पाकिस्तान से आतंकियों की खेप निरंतर सीमा में प्रवेश
करती है . भारतीय सैनिक छावनियों पर आतंकी हमला करना निर्दोष नागरिको से कश्मीर की
धरती को रंगना उसकी नजर में जेहाद है. जेहादी मानसिकता से ग्रस्त मौत को जन्नत
समझने वाले आतंकियों का इलाज क्या हो सकता है ?शांति की भाषा
आतंकी आकाओं को कैसे समझा सकते हैं .
फुलबामा पर आतंकी हमला हुआ हमारे 44 जवान मारे गये. भारत की सेना ने सर्जिकल
स्ट्राईक कर आतंकियों में भय पैदा किया हमारे बम वर्षक
विमानों ने आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया . पकिस्तान न शांति से जीता है न भारत को
शांति से विकास की राह पर चलने देता है . हाफिज सईद
जैसे दबाब समूह जिनकी रूचि देश कल्याण की अपेक्षा जेहाद में अधिक है देश की नोजवान
पीढ़ी को भारत के खिलाफ भड़का कर आतंकवाद के रास्ते पर ले जाना उनका उद्देश्य है | गांधीवादी विचार धारा आतंकियों या आतंकी आकाओं के सामने बेकार है सरकार ने
सख्त नीति अपना कर सुरक्षाबलों को आतंकियों को मारने का अधिकार दिया क्या शठ के
साथ शठ जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिये ? यही कूटनीति है. पकिस्तान टर्की के साथ सम्बन्ध बढ़ा कर भारत के विरुद्ध प्रचार कर रहा है .
क्या हम सहन कर लें ?भारत के विश्व के देशों के साथ भी मधुर
सम्बन्ध हैं चीन के विरुद्ध युद्धाभ्यास चल रहे हैं |
कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार “शत्रु के साथ युद्ध केवल रणक्षेत्र में व केवल हथियारों से ही नहीं लड़ा जाता; युद्ध अपने व
शत्रु देश के मानस मे उसकी मानसिकता को हथियार बनाकर भी लड़ा जाता है” अब देश गांधी वाद से दूर चाणक्य नीति को आधार बना रहा है .