डर के साए में अमेरिकन प्रजातांत्रिक व्यवस्था
डॉ शोभा भारद्वाज
कैपिटल बिल्डिंग पर
धावा, अमेरिकन प्रजातंत्र की छवि पर दाग लगा गया विश्व की सबसे
पुराने लोकतंत्र की गरिमा पर ट्रम्प समर्थकों में चरम पंथी विचारधारा के
उपद्रवियों ने संसद के बाहर एवं भीतर हंगामा कर प्रश्न चिन्ह लगा दिया .अत : 46वें
राष्ट्रपति बायडन के शपथ ग्रहण समारोह से पूर्व वाशिंगटन डीसी में सुरक्षा के कड़े
इंतजाम किये गये 25००० सुरक्षा कर्मी तैनात कर राजधानी को किले में परिवर्तित कर
दिया गया .अराजकता की शिकार हुई अमेरिकन संसद को विश्व ने देखा इस कृत्य का सबसे
अधिक लाभ चीन के राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग जिन्हें चीन की संसद ने आजीवन राष्ट्रपति पद
पर बने रहने की मंजूरी दे दी एवं रूस की संसद ड्यूमा ने राष्ट्रपति पूतिन का
कार्यकाल 2036 तक बढ़ा दिया , इन दोनों देशों में निवासियों को अमेरिकन संसद पर
हमले के विडियो दिखा कर तानाशाह सत्ताधारी अपने आप को गौरवान्वित
करेंगे देखो हमारे यहाँ कितनी शान्ति है .श्री ट्रम्प की विदाई पर चीन के
राष्ट्रपति शी जिनपिंग उत्सव मना रहे हैं.
अमेरिका
प्रजातांत्रिक विचारधारा का समर्थक एवं प्रचारक हैं इससे प्रभावित होकर मिडिल ईस्ट
में तानाशाही के विरुद्ध स्वर उठ रहे हैं तानाशाहों को भी इन स्वरों को दबाने का
अवसर मिल जाएगा .जिन देशों में बहुदलीय प्रणाली है वहाँ बहुमत
प्राप्त सत्ताधारी दलों की सरकार का विरोध विपक्ष पहले दिन से ही शुरू कर देता है
. संसद द्वारा पास विधेयकों का विरोध करने के लिए महत्वपूर्ण सड़कों पर धरने देने
के चलन की शुरुआत हो चुकी है भय है विपक्षी दलों द्वारा भड़काये उपद्रवी संसद पर
हमला करने की कोशिश न करने लगें. संसद के अंदर संसद की गरिमा को भंग करते सांसद
अक्सर देखे जाते हैं .
अधिकतर अमेरिकन
मतदाता अपने चार वर्ष के लिए चुने गये राष्ट्रपतियों को एक और अवसर देते रहे है लेकिन
ट्रम्प चुनाव हार गये . ट्रम्प उद्योगपति थे उनकी नीति अमेरिकन फर्स्ट की रही है ,
रोजगार के अवसर बढ़ाना उनकी प्राथमिकता थी अमेरिकी
क़ानूनों में राष्ट्र हितों की प्रमुखता रहे, अमेरिकी नागरिकों को नौकरियों में प्राथमिकता मिले, देश में वैध नागरिक रहें अवैध तरीके से मेक्सिको से अमेरिका
में प्रवेश करने वालों एवं ड्रग माफिया को रोकने के लिए दीवार बनाने का प्रस्ताव
पास कर 3200 किलोमीटर लंबी दीवार बनाने का फैसला लिया
. ट्रम्प चाहते थे दीवार का पैसा मेक्सिको दे लेकिन अमेरिकन खजाने से उन्होंने 15
करोड़ डालर दिए इससे 453 किलोमीटर
की दीवार खड़ी की जा चुकी .शपथ ग्रहण के बाद बाइडेन ने दीवार निर्माण के काम पर
रोक लगा दी .घुसपैठ की समस्या सभी विकसित देश जूझ रहे है अब घुसपैठ
के लिए मेक्सिको की सीमा पर घुसपैठिये तैयार खड़े हैं .ट्रम्प ने अपने चुनावी भाषणों में
अवैध रूप से अमेरिका में रहने वालों मुस्लिमों और महिलाओं के खिलाफ भी टिप्पणियाँ
की थीं ,ट्रम्प की आलोचना हुई .
अब अमेरिका में ग्रीन कार्ड होल्डर का कोटा बढ़ेगा ,नागरिकता
मिलने का लम्बा इंतजार नहीं करना पड़ेगा आसान होगा पांच लाख भारतीयों को इसका लाभ
मिलेगा .
उन्होंने हिंसाग्रस्त सीरिया, सूडान, सोमालिया, ईरान, इराक, लीबिया और यमन के शरणार्थियों की अमेरिका
में एंट्री पर बैन लगा दिया इससे मुस्लिम देश नाराज हुए जबकि वह अपने देश में
मुस्लिम शरणार्थियों को घुसने नहीं देते.
कार्यकाल
के शुरुआती हफ्ते में ही ट्रम्प ने येरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर
मान्यता दे दी तेल अवीव से येरुशलम में अमेरिकी एम्बेसी शिफ्ट कर दी. ट्रम्प की
विदेश नीति का सफल कूटनीतिक कदम उनकी
उपस्थिति में संयुक्त अरब अमीरात ( यूएई) एवं इजरायल के
बीच द्विपक्षीय शान्ति समझौता हुआ इस पर बहरीन ने भी हस्ताक्षर किये समझौते को अब्राहम एकॉर्ड का नाम दिया गया . सऊदिया ने इजरायल एवं यूएई के विमानों को अपने क्षेत्र से उड़ने
की इजाजत दे दी लगता है अब और भी अरब देश इजरायल से संबंध जोड़ेंगे .
ट्रम्प ने
अपने चुनावी भाषणों में नाटो गठबंधनों की आलोचना करते हुए कहा था अमेरिका विश्व
में व्यापक बदलाव लाने के लिए बहुत धन खर्च कर चुका है जिससे वह अपने देश की रक्षा
पर पर्याप्त खर्च नहीं कर पा रहा है देश की आर्थिक स्थित पर भी असर पड़ा है .
लेकिन चुनाव जीतने के बाद नाटो और ट्रांस अटलांटिक गठबंधन को लेकर उन्होंने
प्रतिबद्धता व्यक्त की .
वह साउथ ईस्ट एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव उसकी
विस्तारवादी नीति दक्षिण एशिया के समुद्र में टापुओं पर अधिकार कर वहाँ सैनिक
अड्डे बनाने के विरुद्ध थे. चीन की नजर में विश्व एक बाजार है. अमेरिकन बाजार भी चीन
के बने सामान से पटे हुए वह अमेरिकन सामान के मुकाबले सस्ते थे. एक के बाद एक
अमेरिकन फैक्ट्रियां बंद हो रही थी बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही थी उन्होंने
अमेरिकन इकोनोमी को गति देने की भरपूर कोशिश की वह चाहते थे अमेरिका में चीन से
आयात एवं निर्यात बराबर रहे. ट्रम्प ने जनता को निजी और कार्पोरेट टैक्स कम करने का
आश्वासन दिया था अमेरिकन बाजारों को बढ़ाने के लिए चीन से आयात पर 45 %टैक्स लगाया इसका
भारत के निर्यात को भी नुकसान हुआ सस्ते लेबर को दृष्टि में रख कर मेक्सिको में
कारखाने लगाये हैं वहाँ से आने वाले सामान पर 35% ड्यूटी लगाई यहाँ वह विशुद्ध व्यापारी की तरह काम करना चाहते हैं .
विश्व स्वास्थ्य संगठन की कुल फंडिंग में अमेरिकी हिस्सा करीब
40% था।
ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीन की कठपुतली बताया और फंडिंग बंद
कर दी महामारी के दौर में उनके इस कदम का देश और विदेश में विरोध हुआ ट्रम्प के
अनुसार कोई संगठन अमेरिकी टैक्सपेयर्स के पैसे पर ऐश नहीं कर सकता चीन तो बिल्कुल
नहीं चीन के बुहान से निकला कोरोना वायरस
ने समस्त विश्व को अपनी चपेट में ले लिया विश्व स्वास्थ्य संगठन ने क्या किया? चीन
की निंदा भी नहीं की .
इस्लामिक क्रांति के बाद अमेरिका एवं ईरान के सम्बंध बिगड़ते गये . उस
पर पेट्रोलियम निर्यात के लिए प्रतिबन्ध लगा था ईरान विश्व से अलग थलग पड़ गया था लेकिन
ईरान की सत्ता पर बैठे मौलाना किसी कीमत पर परमाणु हथियार चाहते हैं परमाणु हथियार
बनाने की चुपचाप कोशिश चलती रही ओबामा ने अमेरिका और ईरान के बीच एटमी प्रोग्राम
को लेकर एक समझौता हुआ था ट्रम्प ने बातचीत के बजाय और इस समझौते को लागू करने
यानी टकराव का रास्ता अपनाया इजराइल के साथ मिलकर वहां की नामी हस्तियों को निशाना
बनाया .ईरान के जरनल सुलेमानी ईरान के
गुप्त अभियानों के संचालक थे उनकी ड्रोन द्वारा हत्या से ईरान अमेरिका के सम्बंध
अत्यंत कटू हो गये ईरान का
झुकाव चीन की तरफ बढ़ रहा है.ईरान में अमेरिका के विरोध को हवा दी जा रही है .
नार्थ कोरियन तानाशाह किम
जोंग एवं राष्ट्रपति ट्रम्प का कूटनीतिक मिलाप सिंगापुर में हुआ अनेक
पाबंदियों के बाद भी किम जोंग महा शक्ति अमेरिका से नहीं दबता है क्योकि चीन का
सदैव उसके साथ खड़ा दिखाई देना, चीनी कूटनीति का हिस्सा है। विश्व के कूटनीतिज्ञ
जानते हैं चीन ही उत्तर कोरिया के तानाशाह को दबा सकता है तानाशाह से सिंघापुर में 90 मिनट की
वार्ता में 45 मिनट तक दोनों की अकेले भी वार्ता हुई वार्ता के बाद किम सोच मग्न
थे ट्रम्प गम्भीर ट्रम्प को किम से बहुत कुछ चाहिए थे वह शन्ति दूत की छवि बनाना
चाहते थे लेकिन परिणाम जीरो रहा .
पेरिस
जलवायू परिवर्तन समझौत जैसे अंतर्राष्ट्रीय निर्णयों के लिए ओबामा ने ऐतिहासिक
समझौते पर हस्ताक्षर कराने के लिए बहुत प्रयास किया था लेकिन जलवायु परिवर्तन पर
ट्रम्प ने भारत और चीन जैसे देशों पर ठीकरा फोड़ दिया अमेरिका को पेरिस क्लाइमेट
डील से ही अलग कर दिया। बराक ओबामा ने इस कदम को ‘खुदकुशी’ करार किया राष्ट्रपति बायडेन इसे फिर लागू
करने का वादा कर चुके हैं.
सीरिया
और अफगानिस्तान में हालात बहुत खराब थे लेकिन ट्रम्प सियासी फायदा उठाने के लिए वहां से सैनिकों को वापस
बुलाने पर अड़ गए यहाँ तक वह तालिबान से अफगानिस्तान पर समझौता करने के लिए तैयार
थे लाभ कुछ नहीं हाँ अमेरिकी साख को झटका लगा। सीरिया में रूस और अफगानिस्तान में
चीन के जरिए पाकिस्तान फिर पैर पसारने लगा अमेरिकी बैसाखियों पर पाकिस्तान जिंदा रहा है ट्रम्प पाकिस्तान के
मामले में सशंकित रहे उन्होंने भारत से मधुर बढ़ाए ट्रम्प प्रशासन में रक्षा और
आतंकवाद की समाप्ति पर अधिक जोर दिया गया इसलिए उनकी विदेश नीति में भारत अहम रहा
.
उन्होंने कोविड
महामारी के लिए चीन की भर्त्सना की लेकिन कौरोना संकट को गम्भीरता से नहीं लिया अमेरिका जैसे सुविधा पूर्ण देश में मृतको की संख्या बढ़ती रही
यही उनकी हार का प्रमुख कारण बनी. चीन के प्रति श्री ट्रम्प की नीति को बायडन भी
बदल नहीं सकेंगे ट्रम्प कूटनीति की भाषा के बजाय सीधी बात कहने में विश्वास रखते
थे मीडिया के प्रश्नों का उत्तर देने में वह उदासीन रहते थे .ट्रम्प के समय में समाज
में एक खाई बन गयी है उनकी विचारधारा को पसंद करने वालों की कमी नहीं है इस खाई को
पाटने में राष्ट्रपति बायडन को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी .इतिहास ट्रम्प के कार्यकाल की
उचित समीक्षा करेगा .