गांधार राज शकुनी अपने समय का कूटनीतिज्ञ
डॉ शोभा भारद्वाज
शकुनी महाभारत के खलनायक ,कौरवों के विनाश का कारण
यह उन दिनों की कहानी है जब राजधर्म में राजनीति को मान्यता दी गयी थी लेकिन कूटनीति का स्थान नहीं था शकुनी पहला कुटिल कूटनीतिकार छलनीति उसका हथियार था वह अपने समय का सबसे बड़ा षड्यंत्रकारी था |समय का प्रचलित खेल चौसर राजा महाराजों के प्रिय खेलों में चौसर एक खेल था शकुनी पांसों को अपने इशारे पर चलाता था | बल से अधिक छल नीति में विश्वास रखता था |
पाकिस्तान के पश्चिम अफगानिस्तान के पूर्व एवं आज के कंदहार के दक्षिणी क्षेत्र का महाजनपद उन दिनों गांधार ( आज का अफगानिस्तान )कहलाता था ,खूबसूरत प्रदेश में प्रकृति की छटा निराली थी महाभारत काल में यहाँ के राजा सुबल की दो संताने थी पुत्र शकुनी पुत्री गांधारी उन दिनों हस्तिनापुर कुरु वंश का शक्तिशाली राज्य था राजा शान्तनू के प्रतापी पुत्र भीष्म ने आजीवन विवाह न करने का प्रण लेकर सत्ता स्वीकार नहीं की लेकिन वह साम्राज्य के संरक्षक थे उनके प्रताप की छत्रछाया में हस्तिनापुर सुरक्षित था हस्तिनापुर के महाराज विचित्रवीर्य वीर्य अल्पायू थे उनके बड़े पुत्र राजकुमार धृतराष्ट जन्मांध थे अत: उनके छोटे भाई पांडू सिंहासन पर आसीन हुए | राजकुमार धृतराष्ट के विवाह के लिए भीष्म ने स्वयं दलबल के साथ गांधार जाकर राजकुमारी गांधारी का हाथ धृतराष्ट के लिए माँगा महाराज सुबल हस्तिनापुर की शक्ति से भय भीत थे उन्होंने अपनी अपूर्व सुन्दरी शिव भक्त पुत्री के लिए धृतराष्ट को दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया लेकिन राजकुमार शकुनी को यह सम्बन्ध स्वीकार नहीं था राजतन्त्र का युग था राजकुमारियाँ अपने पिता के साम्राज्य की रक्षा के लिए समझौता कर लेती थी राजकुमारी गांधारी ने रिश्ते को स्वीकार कर लिया लेकिन विवाह से पूर्व नेत्रों पर पट्टी बांध ली अच्छी खासी राजकुमारी ने अपने लिए अँधेरा चुन लिया |
राजकुमार शकुनी को विलन दिखलाने के लिए एक पैर से लंगडा छोटे कद का चित्रित किया जाता है लेकिन उस प्रदेश के लोग लम्बे छरहरे मजबूत कद काठी के बहादुर होते हैं | उनके मन में गाँठ थी कमजोर राजा शक्तिशाली साम्राज्य से लड़ नहीं सकता था अत : उनकी प्रिय बहन का विवाह जन्मांध जो राजा भी नहीं था से हो गया ऊपर से बहन ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली| राजकुमार शकुनी बहन से साथ हस्तिनापुर आ गये अपनी बहन के हितों की रक्षा के लिए हस्तिनापुर में रह गये गंधार के युवराज होते हुये भी कभी अपने देश नहीं लौटे |
शकुनी ने राज कुमार धृतराष्ट की महत्वकांक्षा को पहचान लिया वह हस्तिनापुर की गद्दी पर अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते थे |भाग्य ने पलटा खाया महाराज पांडू ऋषि के श्राप से श्रापित होकर दो पत्नियों सहित वन चले गये राजकुमार धृतराष्ट हस्तिनापुर के कार्यकारी राजा के नाम से सिंहासन पर बिठाये गये तय था पांडू या धृतराष्ट में जिसकी सन्तान बड़ी होगी वही गद्दी की अधिकारी होगा धृतराष्ट को दुःख था वह जन्मांध थे अत: उन्हें सिंहासन का अधिकारी नहीं माना गया लेकिन उनकी सन्तान तो जन्मांध नहीं होगी अत : उनका ज्येष्ठ पुत्र सिंहासन का अधिकारी होना चाहिए शकुनी ने उनकी सत्ता की लालसा को बढ़ावा दिया | देवयोग से महाराज पांडू के देव कृपा से पुत्र ने पहले जन्म लियी धृतराष्ट के 100 पुत्रों में दुर्योधन पांडू पुत्र युधिष्ठर से छोटा था | पिता जन्मांध माता ने आँखों पर पट्टी बांध ली शकुनी को राजकुमार दुर्योधन को अपने प्रभाव में लेने का सुअवसर मिल गया उसने राजकुमार दुर्योद्धन के बाल मन में बचपन से ही डाल दिया वह कुरु सिंहासन का अधिकारी हैं |पांडू की आस्कमिक मृत्यू के कारण महारानी कुंती अपने पाँचों पुत्रों के साथ हस्तिनापुर आ गयी शकुनी को पांचो भाई खटकने लगे | दुर्योधन ने बचपन से समझौता करना नहीं सीखा था शकुनी ने षड्यंत्र कर कुंती के पाँचों पुत्रों में सबसे बलवान पुत्र भीम को विष देकर नदी में फेक दिया सौभाग्य से नागों ने भीम के शरीर का विष चूस लिया नागों के प्रदेश से भीम और भी शक्तिशाली होकर लौटा दुर्योधन को भीम खटकता था भीम के मन में उसके प्रति रोष था |
सौ कोरवों पाँचों पांडवों के के लिए गुरु द्रोण की नियक्ति की गयी पाँचों पांडव गुणी एवं संगठित थे अर्जुन लगन का धनी सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर था |शिक्षा समाप्ति के बाद हस्तिनापुर की प्रजा के सामने प्रतियोगिता का आयोजन किया गया हर राजकुमार ने अपनी कला का प्रदर्शन किया जन समुदाय उनके कौशल का आनन्द उठा रहे थे धृतराष्ट चाहते थे यदि उनका पुत्र सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुआ वह उसे युवराज घोषित करने का प्रयत्न करेंगे |जन समुदाय अर्जुन के कौशल पर मन्त्र मुग्ध थे लेकिन एक धनुर्धारी कर्ण ने अर्जुन को प्रतियोगिता के लिए ललकारा प्रतियोगिता राजपुत्रों के बीच थी अत : जब युवक से उसका कुल गोत्र पूछा गया वह निरुत्तर था क्योकि वह अधीरथ सारथि का पालित पुत्र था लेकिन विवाह से पूर्व राजकुमारी कुंती को दुर्वाशा ऋषिं ने किसी भी देवता को आमंत्रित करने का मन्त्र दिया था कुंती ने अनजाने में मन्त्र की सच्चाई जानने के लिए सूर्य को आमंत्रित कर दिया वह अविवाहित माँ बनी लोकलाज के भय से पुत्र को एक टोकरी में रख कर नदी में प्रवाहित कर दिया स्नान करते अधीरथ को डलिया में बच्चा मिला निसंतान दम्पत्ति ने उसे पाल लिया शकुनी के इशारे पर दुर्योद्धन ने कर्ण की प्रतिभा के पहचाना उसे अंगदेश का महाराज घोषित कर उसे अपना ऋणी बना लिया | शकुनी ने भांजे को ‘प्रतिभाओं को पहचानने अधिक से अधिक मित्र बढ़ाने का मन्त्र दिया जो उसके प्रति कृतज्ञ रहें |गुरु पुत्र अश्वथामा भी उनका मित्र था |
महाराज धृतराष्ट को दबाब में युधिष्ठिर को युवराज घोषित करना पड़ा शकुनी ने छल द्वारा वारणावत में ज्वलनशील पदार्थों से भवन का निर्माण करवाया यहाँ पांडव माता सहित भस्म हों दुर्योधन की राह के कांटें सदैव के लिए दूर हो जाये |संयोग पांडवों को समय पर महामंत्री विदुर द्वारा शकुनी रचित षड्यंत्र का पता चल गया पांडव भवन से बच निकले वर्षों बाद जब वह लौटे और भी शक्ति शाली होकर लौटे अब वह महाराज द्रुपद के दामाद थे उनकी पुत्री रूप गुणों की खान महा तेजस्वी द्रौपदी को लक्ष्य भेदने की प्रतियोगित में अर्जुन ने जीत लिया था | उनके पास महाराज द्रुपद के साथ द्वारकाधीश श्री कृष्ण की भी शक्ति थी |पांडव हस्तिनापुर लौटे शकुनी की कुटिलता धृतराष्ट की महत्वकांक्षा एवं अपने से छोटे भाई दुशासन के साथ ने दुर्योधन को और भी क्रोधी एवं कुटिल बना दिया था वह पांडवों के साथ किसी प्रकार समझौत नहीं कर सकता था कुरुओं के साम्राज्य का बटवारा कर मुख्य सिंहासन हस्तिनापुर पर महाराज धृतराष्ट आसीन थे खांडव प्रस्थ की बंजर जमीन पांडवों को दे दी गयी |पांडवों ने अपने पराक्रम से बंजर प्रदेश को सम्पन्न प्रदेश बना लिया | महाराज युधिष्टिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन कर हस्तिनापुर में अपने परिजनों को आमंत्रित किया | पांडवों के वैभव, युधिष्ठिर का सम्राट घोषित होना उनकी सत्ता को बढ़ता देख कर कुरु बंधू ईर्षा की अग्नि में जलने लगे उस अग्नि को भड़काने में शकुनी सबसे आगे था कैसे पांडवों के वैभव को हथियाना चाहिए नीतियाँ बनने लगी |
हस्तिनापुर में द्यूत क्रीडा के उत्सव का आयोजन किया गया युद्ध के बजाय ‘कूटनीति’ यहाँ साम दाम दंड भेद के स्थान पर द्यूत शकुनी एवं सम्राट युधिष्टिर के मध्य खेला गया चौसर के अनुपम खिलाड़ी ने इंद्रप्रस्थ का समस्त वैभव पांसों के खेल में जीत लिया अंत में द्यूत का भयानक परिणाम युधिष्टिर अपने प्रतापी भाईयों एवं महारानी द्रौपदी को हार गये द्रोपदी को सभा के मध्य बालों से घसीट कर दुशासन लाया यहाँ तक द्रोपदी के चीरहरण का प्रयत्न किया गया शकुनी सोचता था पांडवों का ऐसा अपमान किया जाए कभी सिर न उठा सकें उनका मनोबल समाप्त हो जाये द्रोपदी के अपमान पर पाँचों भाईयों में फूट पड़ जाए पांडवों की एकता को वह तोड़ नहीं सका एक ऐसी गाँठ पड़ीं , जिसका परिणाम महाभारत था |
धृतराष्ट ने बिगड़ती परिस्थिति को सुधारने के लिए पांडवों का सब कुछ लौटा दिया लेकिन संभव नहीं हो सका दुबारा पांसे फेके गये अबकी बार पांडवों को बारह वर्ष का बनवास एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना पड़ा | कुटिल शकुनी चाहता था पांडवों का अज्ञात वास भंग हो जाए वह दुबारा वनों में भटके लेकिन अंत में दोनों की सेनायें कुरुक्षेत्र के मैदान में इकठ्ठी हुई एक ही परिवार के लोग एवं उनके अपने समर्थको मित्रों के बीच भयंकर युद्ध हुआ युद्ध के अंत में सब कुछ नष्ट हो गया बड़े – बड़े राजवंश खत्म हो गये |
शवों के बीच में गांधार राज शकुनी का भी शव था अपने समय का अलग तरह की कूटनीति का जनक साध्य पाने के लिए किसी भी साधन का प्रयोग किया जा सकता है बचे रहे पाँच पांडव | ऐसा विध्वंस केवल स्त्रियाँ बच्चे बूढ़े बचे थे इसके पीछे शकुनी की कुटिल नीति थी वर्षों बाद इटली में ऐसा ही कूटनीतिज्ञ मेक्यावली जिसका दर्शन ‘दी प्रिंस’ आज राजनेताओं की किताबों की आलमारी में दिखाई देता है|
मेरे द्वारा भेजा गया विकिपीडिया में चित्र महाभारत लिखते गणपति