चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि पाकर मनुष्य परमात्मा का युवराज कहां गया है ! यह मानव जीवन पाकर मनुष्य जीवन भर मांगता ही रहता है और कुछ पा जाने पर उसे ही उपलब्धि मानने लगता है ! परंतु मानव जीवन की मांग केवल काम , दाम अथवा आराम की अधिकाधिक उपलब्धि कर लेना मात्र नहीं ! उसकी मांग है *"परम विश्राम"* अर्थात *"दुर्लभ राम"* !
*मानव देह का लक्ष्य है मिले परम विश्राम !*
*संत कहें बिश्राम को पावन दुर्लभ राम !!*
*पावन दुर्लभ राम नाम लेकर नित जीजै !*
*मूल्यवान हर एक पल यूं ही कभी न छीजै !!*
*कह "अर्जुन आचार्य" सुनो हे मोरे भाई !*
*मानव जीवन लक्ष्य परम विश्राम कहाई !!*
(स्वरचित)
मथुरातिमधुर मधुका पान करने वाली मधुमक्खियां , रंग बिरंगे पंखों से अलंकृत तितलियां तथा दर्जनों बच्चों को एक साथ जन्म देने वाले शूकर - कूकर जैसे प्राणियों ने भोजन स्थान तथा संतान प्रजनन के सांसारिक सुखों की होड़ में मनुष्य को बहुत पीछे धकेल दिया है ! इसलिए विवेक के प्रकाश में हमें मानव जीवन की सही सच्ची मांग की खोज करनी है मानव जीवन का चरम लक्ष्य केवल सुख दुख का भोग करना नहीं अपितु उनके बंधन से मुक्त होना है ! तरंग जल का परित्याग कर , घटाकाश महाकाश की महिमा को नकार कर तथा कुंडल कनक की व्यापकता को भुलाकर अपने अस्तित्व एवं महत्व की स्थापना नहीं कर सकते ! इसी प्रकार जगतपति जगदीश्वर की सत्ता महत्ता और कृपा को भुलाकर केवल जगत का चिंतन कर कोई भी अच्छे स्थिति , दैवीसंपत्ति तथा परम शांति की प्राप्ति नहीं कर सकता ! *जगत की कृपा* हमें अंधकार तथा *भगवत्कृपा* ज्योति जागृति प्रदान करती है
*सुंदर जीवन निर्माण करो ,*
*जिससे उत्थान देश का हो !*
*"पर" से हटकर "स्व" को समझो ,*
*जिससे गुणगान वेष का हो !*
*अधिकारों की आहुति देकर ,*
*कर्तव्य मार्ग पर बढ़े चलो !*
*तब होगी भगवत्कृपा परम ,*
*नित एक एक मंजिल चढ़े चलो !!*
(स्वरचित)
सुंदर जीवन के निर्माण से ही देश , राष्ट्र , समाज और संसार इन सब का समुचित उत्थान हो सकता है ! "पर" से हटकर "स्व" का चिंतन करने , अधिकार की आहुति देकर कर्तव्य पथ पर दृढ़ता से चलने तथा जगत के सभी नाते निभाते हुए *भगवत्कृपा* पर पूर्ण आस्था रखने से सुंदर व्यक्तित्व का निर्माण होता है ! *भगवत्कृपा* से सुंदर व्यक्तित्व निर्माण की सभी आवश्यक साधन सामग्रियां हम सबको प्राप्त हैं ! *गुरुकृपा* के मार्गदर्शन तथा स्वयं के आत्मनिरीक्षण द्वारा सामग्रियों का सदुपयोग करना है ! जब *भगवत्कृपा* से सारी साधन सामग्रियां उपलब्ध हो गई है तो किंचित मात्र प्रयास करने से व्यक्तित्व एवं जीवन का निर्माण भी *भगवत्कृपा* से हो हो जाएगा ! आवश्यकता है एक सकारात्मक प्रयास की !